क्या है अंजतापुरम योजना? 3 दशक बाद भी नहीं हो पाई शुरू,यहां फंसा है पेच
आवास एवं विकास परिषद की अजंतापुरम आवासीय योजना तीन दशक (31 साल) बाद भी शुरू नहीं हो पाई है। इससे योजना के लिए जमीन देने वाली सहकारी आवास समितियों में रोष बढ़ रहा। हिंडन एयरपोर्ट के पास सिकंदरपुर,निस्तौली,भोपुरा,बेहटा हाजीपुर और पसौंडा गांव की जमीन पर अजंतापुरम को बसाने की योजना बनी थी।

आवास एवं विकास परिषद की अजंतापुरम आवासीय योजना तीन दशक (31 साल) बाद भी शुरू नहीं हो पाई है। इससे योजना के लिए जमीन देने वाली सहकारी आवास समितियों में रोष बढ़ रहा। हिंडन एयरपोर्ट के पास सिकंदरपुर,निस्तौली,भोपुरा,बेहटा हाजीपुर और पसौंडा गांव की जमीन पर अजंतापुरम को बसाने की योजना बनी थी।
सहकारी आवास समितियों का दावा है कि मार्च 1994 में उनसे परिषद ने जमीन ले ली और दो साल में योजना शुरू करने का आश्वासन दिया था। समितियों ने बिना एवार्ड किए जमीन परिषद को दे दी। समितियों के मुताबिक,आवास विकास परिषद योजना को विकसित करने के बाद उनसे विकास शुल्क लेकर 80 फीसदी जमीन उन्हें लौटा देती। इस जमीन पर भूखंड काटकर सदस्यों को बांटे जाते और नए आवास बनते, मगर आज तक योजना कागजों से बाहर ही नहीं निकल पाई है।
योजना शुरू न होने से नाराज समितियों के लोग अब कोर्ट जाने की तैयारी कर रहे। उनका आरोप है कि योजना का लेआउट फाइनल होने से पहले एक समिति का नक्शा पास कर दिया और एक अन्य समिति को कब्जा भी दे दिया।
यह है अड़चन
अजंतापुरम योजना करीब 190 एकड़ में विकसित होनी है। 11 सहकारी आवास समितियों ने 135 एकड़ जमीन दी है और बाकी जमीन परिषद ने खरीदी है। योजना में जीडीए, नगर निगम, ग्राम सभा, पीडब्ल्यूडी की जमीन भी है। कई बार लेआउट जमीन की अड़चन के चलते फाइनल नहीं हो पाया। कई बार फीजिबिलिटी रिपोर्ट दोबारा बनानी पड़ी। इसी साल लेआउट मुख्यालय भेजा गया था, लेकिन एयरपोर्ट को जाने वाले संपर्क मार्ग के पास व्यावसायिक भूखंड आरक्षित होने से दोबारा बदलाव करना पड़ रहा है। लोगों का कहना है कि लोन लेकर जमीन ली थी। अधिकारियों ने हमारी जमीन लेने के बाद भी इस योजन पर काम नहीं किया।
आज भी हम खाली हाथ
जन विहार सहकारी आवास समिति लिमिटेड के सचिव आरबी शर्मा ने बताया कि साल 1997 में योजना का नोटिफिकेशन हो गया था। इसके बाद भी आज तक जमीन नहीं मिली। लोन लेकर जमीन खरीदी थी। परिषद के अधिकारियों ने हमारी जमीन लेने के बाद कभी भी इस योजना पर गंभीरता से काम नहीं किया, जिसका परिणाम यह है कि आज भी हम खाली हाथ हैं।
शिकायत के बाद भी नतीजा शून्य ही रहा
लोक विहार सहकारी आवास समिति लिमिटेड के सचिव आरपी अरोरा का कहना है कि समितियों ने जब जमीन दी थी तो इनके अधिकांश सदस्य 35-45 साल के थे, अब वो वयोवृद्ध हो चुके हैं। चार हजार सदस्यों में से लगभग 10 फीसदी अब इस दुनिया में भी नहीं हैं। सैकड़ों बार पत्र लिख चुके हैं और कई बैठकें हो चुकीं, लेकिन नतीजा शून्य ही रहा। इस उम्र में भी अपनी जमीन के लिए चक्कर काटने पड़ रहे हैं। अब कोर्ट के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है।