मिट गईं दूरियां? पायलट को 'गद्दार-निकम्मा' कह चुके गहलोत बोले- हम दोनों हमेशा साथ थे
राजस्थान की सियासी रणभूमि में एक बार फिर तापमान हाई हो गया है. मौका था स्व. राजेश पायलट की पुण्यतिथि का, लेकिन चर्चा का केंद्र बन गए पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट के 'बिगड़े' और 'सुलझे' रिश्ते.

राजस्थान की सियासी रणभूमि में एक बार फिर तापमान हाई हो गया है. मौका था स्व. राजेश पायलट की पुण्यतिथि का, लेकिन चर्चा का केंद्र बन गए पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट के 'बिगड़े' और 'सुलझे' रिश्ते. दौसा में आयोजित इस भव्य कार्यक्रम में गहलोत ने जो बयान दिए, उसने न सिर्फ मीडिया में सनसनी मचा दी बल्कि सियासी गलियारों में भी नई चर्चा छेड़ दी है.
'हमेशा साथ थे, खूब मोहब्बत भी है!' - गहलोत
चौंकाने वाली बात ये रही कि जिस मंच से कभी गहलोत ने सचिन पायलट को 'गद्दार' और 'निकम्मा' जैसे संबोधनों से नवाजा था, उसी मंच से उन्होंने अपने पुराने 'शिष्य' के लिए प्रेम और सौहार्द का राग अलापा. गहलोत ने मीडिया की उन खबरों को सिरे से खारिज कर दिया, जिनमें उनकी और पायलट की अनबन की बातें कही जाती रही हैं. उन्होंने बड़े नाटकीय अंदाज में कहा, "मैं और पायलट कब अलग थे? हम तो हमेशा से साथ हैं और दोनों में खूब मोहब्बत भी है, ये तो मीडिया चलाता रहता है अनबन की खबरें."
गहलोत के इस बयान के बाद कार्यक्रम में मौजूद भीड़ में एक खुसर-पुसर शुरू हो गई. लोगों के चेहरों पर सवाल थे - क्या वाकई दूरियां मिट गईं? या ये सिर्फ एक सियासी दांव है? जिस गहलोत ने पायलट को खुलेआम 'गद्दार' कहा था, वो आज 'मोहब्बत' की बात कर रहे हैं! ये बयान एक तरफ जहां पायलट समर्थकों के लिए राहत भरा था, वहीं दूसरी तरफ सियासी दिग्गजों को भी सोचने पर मजबूर कर गया.
'गद्दार' से 'मोहब्बत' तक
याद कीजिए वो दिन, जब राजस्थान में सियासी भूचाल आया था और सचिन पायलट अपने समर्थक विधायकों के साथ मानेसर चले गए थे. तब अशोक गहलोत ने पायलट पर तीखे हमले करते हुए उन्हें 'गद्दार' और 'निकम्मा' तक कह दिया था. इन बयानों ने कांग्रेस के भीतर की दरार को और गहरा कर दिया था. लेकिन आज, दौसा में गहलोत के बदले हुए सुर ने सबको हैरान कर दिया.
सियासी गलियारों में ये कयास लगाए जा रहे हैं कि क्या ये कांग्रेस आलाकमान के दबाव का नतीजा है? या आने वाले विधानसभा चुनावों को देखते हुए गहलोत ने पायलट के साथ सुलह का रास्ता अपनाया है? कुछ विश्लेषकों का मानना है कि गहलोत शायद ये संदेश देना चाहते हैं कि पार्टी में अब कोई मतभेद नहीं है और सभी एकजुट होकर आगे बढ़ रहे हैं. वहीं, कुछ का मानना है कि ये सिर्फ एक 'पॉलिटिकल स्टंट' है, ताकि सचिन पायलट के समर्थक वोटरों को अपनी तरफ खींचा जा सके.
पायलट खेमा मौन, लेकिन अंदरखाने खुशी
हालांकि, इस पूरे घटनाक्रम पर सचिन पायलट की तरफ से कोई सीधी प्रतिक्रिया नहीं आई है, लेकिन उनके खेमे में खुशी की लहर साफ देखी जा सकती है. गहलोत के इस बयान को पायलट के सम्मान के रूप में देखा जा रहा है. लंबे समय से जो तल्खी दोनों नेताओं के बीच बनी हुई थी, उसे कुछ हद तक कम करने का श्रेय गहलोत के इस बयान को दिया जा रहा है.
क्या साथ मिलकर लड़ेंगे चुनाव?
अब सबसे बड़ा सवाल ये है कि क्या गहलोत और पायलट की ये 'नई मोहब्बत' राजस्थान की सियासत में कोई नया गुल खिलाएगी? क्या दोनों नेता आगामी चुनावों में साथ मिलकर काम करेंगे और कांग्रेस को सत्ता में वापस लाने के लिए एकजुट होकर लड़ेंगे? या ये सिर्फ एक अस्थायी विराम है, जिसके बाद फिर से टकराव की स्थिति देखने को मिल सकती है?
दौसा से निकली गहलोत की इस 'प्रेम-बाण' ने राजस्थान की सियासत में एक नया अध्याय जोड़ दिया है. आने वाले समय में ये देखना दिलचस्प होगा कि क्या ये 'मोहब्बत' वाकई गहरी है या सिर्फ एक सियासी दांव, जिसका मकसद सिर्फ वोट बटोरना है. फिलहाल, दौसा की इस पुण्यतिथि कार्यक्रम ने सियासी पंडितों को सोचने पर मजबूर कर दिया है और जनता के मन में भी कई सवाल छोड़ गए हैं.
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