जयपुर में मिठाइयों के नाम से हटाया गया 'पाक', दुकानदारों ने अपनाया 'श्री' का विकल्प
गुलाबी नगर की मिठाइयों के स्वाद में तो कोई बदलाव नहीं आया, लेकिन उनके नाम अब पहले जैसे नहीं रहे। शहर की कई नामी मिठाई दुकानों ने पारंपरिक व्यंजनों के नामों से ‘पाक’ शब्द हटाकर उसकी जगह ‘श्री’ जोड़ना शुरू कर दिया है।

गुलाबी नगर की मिठाइयों के स्वाद में तो कोई बदलाव नहीं आया, लेकिन उनके नाम अब पहले जैसे नहीं रहे। शहर की कई नामी मिठाई दुकानों ने पारंपरिक व्यंजनों के नामों से ‘पाक’ शब्द हटाकर उसकी जगह ‘श्री’ जोड़ना शुरू कर दिया है। अब 'मोती पाक', 'आम पाक', 'गोंद पाक' और 'मैसूर पाक' जैसी मिठाइयाँ 'मोती श्री', 'आम श्री', 'गोंद श्री' और 'मैसूर श्री' के नाम से ग्राहकों के सामने परोसी जा रही हैं।
यह बदलाव अचानक नहीं हुआ है। इसके पीछे हाल ही में सोशल मीडिया और कुछ संगठनों द्वारा शुरू किए गए 'ऑपरेशन सिंदूर' को माना जा रहा है। इस अभियान के तहत कुछ शब्दों, प्रतीकों और गतिविधियों को राष्ट्रविरोधी बताकर उनके बहिष्कार की मांग की गई। इन्हीं में से एक शब्द था 'पाक', जिसे कुछ लोगों ने पाकिस्तान से जोड़कर आपत्ति जताई। हालांकि, मिठाइयों में 'पाक' शब्द का इस्तेमाल सदियों से पकाने की प्रक्रिया के रूप में होता रहा है।
कई दुकानदारों का कहना है कि वे किसी विवाद में नहीं पड़ना चाहते और अपने ग्राहकों की भावनाओं का सम्मान करते हुए यह कदम उठा रहे हैं। एक प्रसिद्ध हलवाई ने बताया, “हमारा उद्देश्य सिर्फ मिठास परोसना है, न कि विवाद। 'श्री' शब्द संस्कृतनिष्ठ, शुभ और सांस्कृतिक रूप से उपयुक्त लगा, इसलिए नाम में बदलाव किया।”
हालांकि, इस बदलाव पर लोगों की राय बंटी हुई है। कुछ लोग इसे सकारात्मक कदम बताते हैं और मानते हैं कि अगर एक शब्द से किसी वर्ग की भावना आहत होती है तो उसका विकल्प ढूंढना कोई नुकसान की बात नहीं। वहीं, कुछ लोगों को यह बदलाव अप्राकृतिक और भाषिक विरासत के साथ खिलवाड़ लग रहा है।
राजस्थानी भाषा और संस्कृति से जुड़े विद्वानों का कहना है कि 'पाक' शब्द का अर्थ केवल खाना पकाने की प्रक्रिया से है, न कि किसी देश विशेष से। प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. रामनिवास शर्मा के अनुसार, “भाषा को राजनैतिक चश्मे से देखना हमारी परंपरा और इतिहास दोनों को धुंधला करता है। 'मोती पाक' सिर्फ एक मिठाई नहीं, एक सांस्कृतिक पहचान है।”
फिलहाल बाजारों में नए नामों के साथ मिठाइयाँ सज चुकी हैं, लेकिन यह बदलाव ग्राहकों को कितना भाएगा, यह कहना जल्दबाज़ी होगी। अब देखना दिलचस्प होगा कि ‘मोती श्री’ और ‘मैसूर श्री’ जैसे नाम लोगों की जुबान पर उस तरह चढ़ते हैं या नहीं, जैसे उनके पारंपरिक नामों ने बरसों से मिठास घोली है।
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