कैश कांड में फंसे इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने की तैयारियों तेज हो गई हैं। अब उनके पास महाभियोग से बचने का एक ही रास्ता शेष है।
संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू सहमति बनाने की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं। उनका कहना है कि यह राजनीतिक मामला नहीं है। ऐसे में किसी भी तरह के मतभेद की जरूरत नहीं है। न्यायपालिका से जुड़ा यह एक गंभीर मसला है, जिस पर सभी को एकजुट होकर फैसला करना चाहिए।
सूत्रों का कहना है कि मोदी सरकार ने जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग लाने की तैयारी शुरू कर दी है। उनके घर पर भारी मात्रा में कैश पाया गया था।
ज्यसभा में यदि 50 या उससे ज्यादा सदस्य महाभियोग प्रस्ताव लाने का समर्थन करें तभी उसे पेश किया जाता है। इसी तरह लोकसभा में कम से कम 100 सांसदों की मांग पर ही ऐसा प्रस्ताव आता है। दोनों ही सदनों में सरकार के पास बहुमत है।
तत्कालीन चीफ जस्टिस संजीव खन्ना ने पीएम और राष्ट्रपति को रिपोर्ट सौंप दी है। इस रिपोर्ट में उनके खिलाफ महाभियोग की सिफारिश की गई है। अब चर्चा है कि सरकार संसद के आने वाले मॉनसून सेशन में कोई प्रस्ताव ला सकती है। एनडीए के पास बहुमत है। फिर भी सरकार चाहेगी कि विपक्ष को भी इसाथ लिया जाए।
भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने जांच रिपोर्ट की एक प्रति राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग की कार्यवाही शुरू करने की सिफारिश के साथ भेजी थी।
जस्टिस यशवंत वर्मा के दिल्ली स्थित सरकारी आवास पर इस साल होली की मध्यारत्रि आग लग गई थी. जिसे बुझाने दमकल विभाग की टीम पहुंची थी। इस दौरान जस्टिस वर्मा के बंगले के स्टोर रूम में करोड़ों की नकदी अधजली हालत में मिली थी।
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा कि लोगों को बेसब्री से इंतजार है कि दिल्ली हाई कोर्ट के जज के घर पर बेतहाशा कैश मिलने के मामले में सच क्या है। उन्होंने कहा कि इस मामले में अब तक एफआईआर ही नहीं दर्ज हो सकी।
जस्टिस यशवंत वर्मा के दिल्ली स्थित सरकारी बंगले पर होली की रात आग लग गई थी, जिसके बाद अग्निशमन दस्ते की टीम ने वहां पहुंचकर आग बुझाई थी। इस दौरान फायर ब्रिगेड टीम को उनके स्टोर रूम में अधजली करोड़ों की नकदी मिली थी। इसके बाद से वह विवादों में हैं।
जस्टिस वर्मा का मामला भारतीय न्यायपालिका के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है। इस मामले ने न्यायपालिका की पारदर्शिता और जवाबदेही पर सवाल खड़े किए हैं।