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जस्टिस यशवंत वर्मा का क्या होगा, अब तक 5 जजों पर महाभियोग; एक को कैसे कांग्रेस ने बचाया

तत्कालीन चीफ जस्टिस संजीव खन्ना ने पीएम और राष्ट्रपति को रिपोर्ट सौंप दी है। इस रिपोर्ट में उनके खिलाफ महाभियोग की सिफारिश की गई है। अब चर्चा है कि सरकार संसद के आने वाले मॉनसून सेशन में कोई प्रस्ताव ला सकती है। एनडीए के पास बहुमत है। फिर भी सरकार चाहेगी कि विपक्ष को भी इसाथ लिया जाए।

Surya Prakash लाइव हिन्दुस्तान, नई दिल्लीWed, 28 May 2025 09:56 AM
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जस्टिस यशवंत वर्मा का क्या होगा, अब तक 5 जजों पर महाभियोग; एक को कैसे कांग्रेस ने बचाया

दिल्ली हाई कोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा अपने सरकारी आवास में बड़े पैमाने पर कैश पाए जाने के मामले में घिरे हुए हैं। हाल ही में रिटायर चीफ जस्टिस संजीव खन्ना ने उन पर लगे आरोपों की जांच के लिए तीन जजों की एक कमेटी गठित की थी। उनके घर तक जाकर जांच करने के बाद समिति ने जो रिपोर्ट संजीव खन्ना को दी थी, उसमें उन्हें दोषी पाया गया है। इसके आधार पर ही तत्कालीन चीफ जस्टिस संजीव खन्ना ने पीएम और राष्ट्रपति को रिपोर्ट सौंप दी है। इस रिपोर्ट में उनके खिलाफ महाभियोग की सिफारिश की गई है। अब चर्चा है कि सरकार संसद के आने वाले मॉनसून सेशन में कोई प्रस्ताव ला सकती है।

सत्ताधारी गठबंधन एनडीए के पास राज्यसभा से लेकर लोकसभा तक में बहुमत है। फिर भी सरकार चाहेगी कि विपक्ष को भी इस संवेदनशील मामले में साथ लिया जाए। स्वतंत्र भारत के न्यायिक इतिहास में अब तक 5 जजों के खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया शुरू हुई है। इनमें से एक ही जज जस्टिस वी. रामास्वामी के खिलाफ राज्यसभा से महाभियोग का प्रस्ताव पारित हुआ था। फिर उसे लोकसभा में लाया गया, लेकिन सत्ताधारी कांग्रेस ने अंत में रुख बदल लिया और वी. रामास्वामी महाभियोग से बच गए। इस तरह 1990 के दशक में वी. रामास्वामी को लेकर जो तूफान उठा था, वह बिना किसी ऐक्शन के ही समाप्त हो गया।

दरअसल अक्तूबर 1989 में जस्टिस वी. रामास्वामी को पदोन्नति मिली थी और वह पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस से सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश हो गए थे। इसके बाद कैग का ऑडिट हुआ, जिसमे पाया गया कि पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट में रामास्वामी के कार्यकाल के दौरान तय सीमा से कहीं ज्यादा खर्च हुआ है। कुल मिलाकर मामला आर्थिक गड़बड़ी का था। फिर इस मामले में याचिका दाखिल हुई और बार काउंसिल ने जस्टिस रामास्वामी का तीखा विरोध किया। अंत में तत्कालीन चीफ जस्टिस सब्यसाची मुखर्जी ने जांच का आदेश दिया। चीफ जस्टिस ने सलाह दी कि रामास्वामी अपना काम छोड़ दें, जब तक कि उनके खिलाफ जांच चल रही है।

लोकसभा तक आया प्रस्ताव, पर अंत में बच ही गए रामास्वामी

चीफ जस्टिस ने कोर्ट में एक सुनवाई के बाद ऐसा आदेश दिया। वह भी तब जब हॉल पूरी तरह से भरा हुआ था। इसके बाद चीफ जस्टिस को बताया गया कि जस्टिस रामास्वामी ने 6 सप्ताह के लिए छुट्टी ले ली है। जांच रिपोर्ट आई तो चीफ जस्टिस ने केस सरकार के हवाले कर दिया और फिर महाभियोग की प्रक्रिया शुरू हुई। राज्यसभा से प्रस्ताव पारित हुआ तो लोकसभा में लाया गया। यहां दो दिनों तक 16 घंटे डिबेट हुई। अंत में वोटिंग की बात आई तो कांग्रेस ने अपने सांसदों से कहा कि वे अपने विवेक से फैसला ले सकते हैं।

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कैसे कांग्रेस ने अंत में सांसदों से कहा- अपने विवेक से फैसला लें

अंत में सदन में 196 ने समर्थन किया तो 205 सदस्य गैर-हाजिर रहे। AIADMK और मुस्लिम लीग के सांसद भी वोटिंग से दूर रहे। इस तरह दो तिहाई से ज्यादा सांसदों ने महाभियोग का समर्थन नहीं किया तो जस्टिस रामास्वामी बच गए। कहा जाता है कि इन सांसदों को वोटिंग से दूर रखने की सहमति कपिल सिब्बल और तत्कालीन केंद्रीय मंत्री वीसी शुक्ला के चलते बनी थी। कपिल सिब्बल इस केस में वी. रामास्वामी का पक्ष रखने वाले वकील भी थे।