सर्जरी के बाद दोबारा दर्द से गुजर रहे 35 % फिस्टुला मरीज, AIIMS ने बताई वजह; की ये अपील
पूर्वांचल में फिस्टुला और बवासीर के मरीज सबसे अधिक हैं। चिंता की बात यह है कि इन मरीजों में 35 से 40 फीसदी मरीज ऐसे हैं, जो अप्रशिक्षित से सर्जरी कराकर गंभीर स्थिति में पहुंच रहे हैं। ऐसे मरीजों की दूसरी बार सर्जरी करनी पड़ रही है। इनमें सबसे अधिक दिक्कत तो बवासीर के मरीजों को है।

सर्जरी के बाद भी 35 से 40 फीसदी फिस्टुला (भगंदर) मरीजों को दोबारा दर्द से गुजरना पड़ रहा है। इसकी वजह ये है कि ऐसी ज्यादातर सर्जरी अप्रशिक्षित हाथों से हो रही है। अप्रशिक्षित से सर्जरी कराने वाले मरीज इलाज के लिए बड़ी संख्या में गोरखपुर के एम्स में पहुंच रहे हैं। चिंता की बात यह है कि बिहार सहित पूर्वांचल में ऐसे अप्रशिक्षितों की संख्या सबसे अधिक है। इन्हीं अप्रशिक्षित सर्जरी की वजह से मरीजों की सेहत भी ज्यादा बिगड़ रही है। इनमें बवासीर के मरीज ऐसे हैं, जो एनीमिया के शिकार भी हो जा रहे हैं।
एम्स के सर्जरी विभाग के डॉ.हरिकेश यादव ने बताया कि पूर्वांचल में फिस्टुला और बवासीर के मरीज सबसे अधिक हैं। चिंता की बात यह है कि इन मरीजों में 35 से 40 फीसदी मरीज ऐसे हैं, जो अप्रशिक्षित से सर्जरी कराकर गंभीर स्थिति में पहुंच रहे हैं, जिनकी दूसरी बार सर्जरी करनी पड़ रही है। इनमें सबसे अधिक दिक्कत तो बवासीर के मरीजों को है।
इनकी सर्जरी फेल होने की वजह से यह एनीमिया के शिकार हो रहे हैं। ऐसे मरीज करीब सात से आठ फीसदी हैं। यही कारण है कि ओपीडी में आने वाले मरीजों को यह सलाह दी जा रही है कि वह अप्रशिक्षित से किसी भी तरह की सर्जरी या इलाज न कराएं। वरना उनका मर्ज गंभीर हो सकता है। बताया कि सबसे अधिक मरीज बिहार के हैं, जो अप्रशिक्षित के चंगुल में फंसकर सर्जरी करा रहे हैं।
जांच में खुलासा हुआ है कि सर्जरी के बाद ऐसे मरीजों की दिक्कतें और बढ़ गई है। कई मरीज तो ऐसे अप्रशिक्षितों से दो से तीन बार सर्जरी करा चुके हैं। इसके बाद जब राहत नहीं मिली है, तब एम्स में इलाज के लिए पहुंच रहे हैं।
फिस्टुला और बवासीर पर एम्स गोरखपुर ने शुरू किया शोध
एम्स की मीडिया प्रभारी डॉ. आराधना सिंह ने बताया कि फिस्टुल और बवासीर के बैक्टीरिया और उसके कारणों की सही जानकारी के लिए एम्स ने शोध का फैसला लिया है। यह शोध एम्स की सर्जरी विभाग की टीम करेगी। इसके लिए आईसीएमआर की तरफ से फंडिंग की जाएगी। इस पर मुहर लग गई है। करीब डेढ़ साल तक मरीजों पर शोध के बाद सही परिणाम की जानकारी मिल सकेगी।