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बोले आगरा: सब्जियों के राजा आलू को सरकारी मदद की दरकार

Agra News - उत्तर प्रदेश में आगरा के आलू किसान आलू अनुसंधान केंद्र और खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों की कमी से जूझ रहे हैं। यहां आलू की बुवाई 71 हजार हेक्टेयर पर होती है, लेकिन किसानों को उचित दाम नहीं मिल रहा है। लागत...

Newswrap हिन्दुस्तान, आगराSat, 31 May 2025 03:38 AM
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बोले आगरा: सब्जियों के राजा आलू को सरकारी मदद की दरकार

उत्तर प्रदेश में करीब सात लाख हेक्टेयर भूमि पर आलू की बुवाई होती है। आगरा का रकबा करीब 71 हजार हेक्टेयर से अधिक है। यहां खंदौली, शमसाबाद, एत्मादपुर, फतेहाबाद, किरावली क्षेत्र में आलू की बुवाई होती है। एक आंकड़े के मुताबिक प्रदेश का 27 प्रतिशत आलू आगरा में ही पैदा होता है। इसका कारण यह है कि आगरा जिले की जलवायु और मिट्टी आलू उत्पादन के लिए सबसे उपयुक्त है। यहां सालाना करीब 50 लाख मीट्रिक टन आलू का उत्पादन होता है। हर साल सात लाख मीट्रिक टन बीज की जरूरत पड़ती है। यहां के आलू किसान अपनी समस्याएं बताते हैं।

आगरा जिले में आलू की खेती महत्वपूर्ण कृषि गतिविधि है। इसकी प्रमुखता के बावजूद, किसानों को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। जो कि उत्पादकता और लाभ को अधिकतम करने की उनकी क्षमता को बाधित करती हैं। आगरा के आलू किसान लंबे समय से आलू अनुसंधान केंद्र और आलू आधारित फूड प्रोसेसिंग यूनिट का सपना देख रहे हैं। उनका ये सपना कागजों में ही सिमट कर रह गया है। आगरा के आलू किसानों का कहना है सरकार उनकी कोई सुध नहीं ले रही। आलू अनुसंधान केंद्र और आलू आधारित फूड प्रोसेसिंग यूनिट सिर्फ कागजों में सज रहे हैं। हकीकत में जमीन पर कोई कार्य नहीं हो रहा है। आलू किसान की लागत तक नहीं निकल रही। आंवलखेड़ा खंदौली क्षेत्र का बड़ा गांव है। यहां आलू की बड़े पैमाने पर खेती होती है। आपके अखबार हिन्दुस्तान के बोले आगरा संवाद में यहां के किसानों ने कहा कि सबसे बड़ी समस्या बीज की है क्योंकि अनुसंधान केंद्र नहीं है। इस वजह से क्षेत्र के ज्यादातर किसान कुफरी बहार (3797) किस्म के आलू की खेती करते हैं जो कि मीठा होता है। अनुसंधान केंद्र होता तो यहां के वातावरण के मुताबिक बीज तैयार होता और किसान दूसरे किस्म के भी आलू उगाते। फूड प्रोसेसिंग यूनिट न होने से भी किसानों को उचित कीमत नहीं मिल रहे हैं। संवाद के दौरान आंवलखेड़ा के आलू किसानों ने बताया कि फसल का उचित दाम नहीं मिल रहा है। लागत मूल्य भी नहीं मिलने से वे परेशान हैं। व्यापारी 10 रुपये प्रति किलों से अधिक दाम देने के लिए तैयार नहीं हैं। किसान वासुदेव यादव, लवली दादा, गोपाल तोमर, बनवारी सिंह, अजेश कुमार, सतेंद्र कुमार, लोकेंद्र सिंह आदि ने बताया कि व्यापारी औने पौने भाव में आलू मांगता है। आलू का बीज 1400 रुपए से लेकर 1700 प्रति बोरा खरीदा था। आलू की रोपाई में 15 सौ से 16 सौ रुपये प्रति बोरा पैसा लगा था। मंहगे दर पर बीज खरीदा था। दो सौ रुपये प्रति बोरा रोपाई, तीन से चार सौ रुपये बोरा जोताई, 1500 से 1600 सौ रुपये बोरा खाद खरीदा था। लेकिन व्यपारी 10 रुपये प्रति किलो से अधिक दाम देने को तैयार नहीं है। किसान बताते हैं कि आगरा का ज्यादातर आलू दक्षिण भारत और गुजरात जाता है। भुगतान भी देर से होता है। कई बार तो पैसे डूबने का भी खतरा रहता है इसलिए जोखिम भी है। सरकारी खरीद भी नहीं होती, जिससे किसान को ठीक दाम नहीं मिलता। अनुसंधान केंद्र का अभाव आगरा में आलू उगाने वाले किसानों के सामने बड़ी चुनौती समर्पित शोध केंद्र की कमी है। हालांकि 2019 में दिल्ली-हाईवे पर सिंगना गांव में अंतरराष्ट्रीय आलू शोध केंद्र स्थापित करने की योजना को मंज़ूरी दी गई थी, लेकिन कई सालों से प्रगति रुकी हुई है। प्रस्तावित केंद्र को पेरू के सहयोग से विकसित किया जाना है। जिसमें 120 करोड़ रुपये का निवेश शामिल था । इस सुविधा से आगरा की जलवायु के अनुकूल बीज की किस्में तैयार करने में मदद मिलेगी। किसानों को मुख्य रूप से उगाई जाने वाली कुफ़री बहार किस्म से परे विविधता लाने में मदद मिलती जो कि अपनी मिठास के लिए जानी जाती है। इस महत्वपूर्ण संसाधन के बिना किसानों को स्थानीय परिस्थितियों के अनुकूल नए और संभावित रूप से अधिक लाभदायक आलू की किस्मों तक पहुँचने में संघर्ष करना पड़ता है। खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों की कमी जिले के आलू किसानों को खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों की अनुपस्थिति के कारण भी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। किसान अपनी उपज के लिए उचित मूल्य प्राप्त करने में असमर्थ हैं, क्योंकि आलू को उच्च मूल्य वाले उत्पादों में संसाधित करने के विकल्प सीमित हैं। इन प्रसंस्करण सुविधाओं के बिना, अतिरिक्त आलू अक्सर भंडारण में सड़ जाते हैं, जिससे उनका वाणिज्यिक मूल्य और शराब या इत्र जैसे उत्पादों में संसाधित होने की क्षमता दोनों ही खत्म हो जाती है, जैसा कि चीन जैसे क्षेत्रों में किया जाता है। अपर्याप्त समर्थन और बुनियादी ढांचा आलू किसानों के लिए बुनियादी ढांचे की कमी ने चुनौतियों को और बढ़ा दिया है। परिवहन लागत अभी भी अधिक है। आलू को खोदने और कोल्ड स्टोरेज तक ले जाने जैसे खर्चों ने पहले से ही लाभ मार्जिन को कम कर दिया है। किसानों का कहना है कि लगभग 50 किलो वजन वाले आलू का एक बैग 600 से 800 रुपये में बिकता है, जिससे उनके लिए लागत निकालना मुश्किल हो जाता है। इसके अलावा, प्रस्तावित आलू बोर्ड जैसे सहायक नीति ढांचे की कमी का मतलब है कि आलू की खेती करने वाले समुदाय के लिए अपर्याप्त रणनीतिक दिशा और समर्थन है। भंडारण में गुणवत्ता संबंधी समस्याएं आलू की आपूर्ति श्रृंखला में एक महत्वपूर्ण चुनौती भंडारण के दौरान गुणवत्ता में गिरावट है। जबकि उन्नत कोल्ड स्टोरेज तकनीक इन मुद्दों को कम करने में मदद करती है, पारंपरिक सुविधाओं में संग्रहीत कई आलू वजन घटाने, नमी की मात्रा में कमी और अंकुरित होने से पीड़ित होते हैं, जिससे उनका बाजार मूल्य कम हो जाता है। यह उनकी उपस्थिति को प्रभावित करता है, जिससे वे उच्च मांग वाले बाजारों, जैसे कि दक्षिण भारतीय मंडियों या निर्यात गंतव्यों के लिए कम वांछनीय हो जाते हैं, जहां उच्च गुणवत्ता वाले आलू की आवश्यकता होती है। बोले आलू किसान 1. आगरा के आलू किसान लंबे समय से आलू अनुसंधान केंद्र और आलू आधारित फूड प्रोसेसिंग यूनिट का सपना देख रहे हैं। उनका ये सपना कागजों में ही सिमट कर रह गया है। आगरा के आलू किसानों का कहना है सरकार उनकी कोई सुध नहीं ले रही। वासुदेव यादव 2. आंवलखेड़ा खंदौली क्षेत्र का बड़ा गांव है। यहां आलू की बड़े पैमाने पर खेती होती है। सबसे बड़ी समस्या बीज की है क्योंकि अनुसंधान केंद्र नहीं है। इस वजह से क्षेत्र के ज्यादातर किसान कुफरी बहार (3797) किस्म के आलू की खेती करते हैं जो कि मीठा होता है। लवली दादा 3. फसल का उचित दाम नहीं मिल रहा है। लागत मूल्य भी नहीं मिलने से वे परेशान हैं। व्यापारी 10 रुपये प्रति किलों से अधिक दाम देने के लिए तैयार नहीं हैं। आलू का बीज 1400 रुपए से लेकर 1700 प्रति बोरा खरीदा था। आलू की रोपाई में 15 सौ से 16 सौ रुपये प्रति बोरा पैसा लगा था। गोपाल तोमर 4. किसान बताते हैं कि आगरा का ज्यादातर आलू दक्षिण भारत और गुजरात जाता है। भुगतान भी देर से होता है। कई बार तो पैसे डूबने का भी खतरा रहता है इसलिए जोखिम भी है। सरकारी खरीद भी नहीं होती, जिससे किसान को ठीक दाम नहीं मिलता। बनवारी सिंह 5. आगरा में आलू उगाने वाले किसानों के सामने बड़ी चुनौती समर्पित शोध केंद्र की कमी है। हालांकि 2019 में दिल्ली-हाईवे पर सिंगना गांव में अंतरराष्ट्रीय आलू शोध केंद्र स्थापित करने की योजना को मंज़ूरी दी गई थी, लेकिन कई सालों से प्रगति रुकी हुई है। प्रस्तावित केंद्र को पेरू के सहयोग से विकसित किया जाना है। अजेश कुमार 6. जिले के आलू किसानों को खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों की अनुपस्थिति के कारण भी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। किसान अपनी उपज के लिए उचित मूल्य प्राप्त करने में असमर्थ हैं, क्योंकि आलू को उच्च मूल्य वाले उत्पादों में संसाधित करने के विकल्प सीमित हैं। सतेंद्र कुमार 7. दिल्ली में आज़ादपुर मंडी में जब आलू की अधिकता होती है, तो आगरा के दाम गिर जाते हैं क्योंकि दिल्ली के व्यापारी सस्ते, आसानी से उपलब्ध आपूर्ति का विकल्प चुनते हैं। दूसरी ओर, जब स्थानीय फसल खराब होने या निर्यात मांग बढ़ने के कारण आज़ादपुर में आपूर्ति कम हो जाती है। लोकेंद्र सिंह 8. आगरा के आलू बाजार के लिए निर्यात एक महत्वपूर्ण कारक बन गया है। बांग्लादेश , श्रीलंका और मध्य पूर्व से मांग कीमतों में उतार-चढ़ाव के लिए एक अंतरराष्ट्रीय आयाम जोड़ती है। निर्यात कीमतें आम तौर पर अधिक होती हैं, जिससे किसान स्थानीय बाजारों के बजाय विदेशों में अपनी उपज बेचने के लिए प्रोत्साहित होते हैं। काली चरण

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