आर्य समाज मंदिर में हिंदू रीति-रिवाजों से हुई शादी भी वैध, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सुनाया फैसला
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक आदेश में कहा है कि आर्य समाज मंदिर में दो हिंदुओं के वैदिक या अन्य प्रासंगिक हिंदू रीति-रिवाजों और समारोहों के अनुसार हुई शादी भी हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की तहत वैध है।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक आदेश में कहा है कि आर्य समाज मंदिर में दो हिंदुओं (एक पुरुष व एक महिला) के वैदिक या अन्य प्रासंगिक हिंदू रीति-रिवाजों और समारोहों के अनुसार हुआ विवाह भी हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा सात के तहत वैध है। विवाह स्थल चाहे मंदिर, घर या खुली जगह हो, ऐसे उद्देश्य के लिए अप्रासंगिक है।
न्यायमूर्ति अरुण कुमार सिंह देशवाल ने कहा कि आर्य समाज मंदिर में विवाह वैदिक पद्धति के अनुसार सम्पन्न होते हैं, जिसमें कन्यादान, पाणिग्रहण, सप्तपदी एवं सिंदूर लगाते समय मंत्रोच्चार जैसे हिंदू रीति-रिवाज व संस्कार शामिल होते हैं और ये समारोह हिंदू विवाह अधिनियम की धारा सात की आवश्यकताओं को पूरा करते हैं। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि आर्य समाज से जारी प्रमाण पत्र में विवाह की प्रथमदृष्टया वैधता का वैधानिक बल नहीं हो सकता, फिर भी ऐसे प्रमाण पत्र बेकार कागज नहीं हैं क्योंकि उन्हें मामले की सुनवाई के दौरान भारतीय साक्ष्य अधिनियम 2023 के प्रावधानों के अनुसार विवाह संपन्न कराने वाले पुरोहित द्वारा साबित किया जा सकता है। इसी प्रकार से विवाह पंजीकरण अधिनियम के तहत पंजीकरण इस बात का प्रमाणपत्र नहीं है कि विवाह वैध है। फिर भी यह महत्वपूर्ण दस्तावेज है।
इसी के साथ कोर्ट ने एसीजेएम बरेली की अदालत में चल रही आपराधिक प्रक्रिया को रद्द करने की मांग में दाखिल महाराज सिंह की याचिका खारिज कर दी। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि वैदिक विवाह को हिंदू विवाह का सबसे पारंपरिक रूप माना जाता है, जिसमें वैदिक मंत्रों के उच्चारण के साथ कन्यादान, पाणिग्रहण और सप्तपदी जैसे विशिष्ट अनुष्ठान किए जाते हैं। यदि आर्य समाज मंदिरों में भी वैदिक रीति से विवाह सम्पन्न किया जाता है, तो वह तब तक वैध होगा, जब तक हिंदू विवाह अधिनियम की धारा सात की आवश्यकताएं पूरी होती हैं।
याची का कहना था कि उसका आर्य समाज मंदिर में हुआ था इसलिए उसे वैध विवाह नहीं माना जा सकता। इसलिए उसे आईपीसी की धारा 498 ए के तहत आरोपों का सामना करने का अधिकार नहीं है। उसका यहटी भी तर्क था कि वास्तव में आर्य समाज मंदिर में कोई विवाह नहीं हुआ था। उसकी पत्नी द्वारा प्रस्तुत आर्य समाज ने जारी विवाह प्रमाणपत्र जाली एवं मनगढ़ंत था। दूसरी ओर सरकारी वकील ने याचिका का विरोध करते हुए कहा कि जिस पुरोहित ने विवाह संपन्न कराया था, उसके बयान के अवलोकन से स्पष्ट है कि विवाह हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार संपन्न हुआ था। यह भी तर्क दिया गया कि केवल इसलिए कि विवाह आर्य समाज मंदिर में हुआ है, वह अवैध नहीं हो जाएगा।