Ayodhya s Environmental Crisis Water Scarcity and Tree Conservation Efforts बोले अयोध्या:नदी और हरियाली बचे रहेंगे खुशहाली के रास्ते तभी बनेंगे, Ayodhya Hindi News - Hindustan
Hindi NewsUttar-pradesh NewsAyodhya NewsAyodhya s Environmental Crisis Water Scarcity and Tree Conservation Efforts

बोले अयोध्या:नदी और हरियाली बचे रहेंगे खुशहाली के रास्ते तभी बनेंगे

Ayodhya News - अयोध्या में पर्यावरण की स्थिति गंभीर है। हवा और पानी की कमी के कारण लोग बोतलबंद पानी पर निर्भर हो गए हैं। कई विकास योजनाओं के बावजूद, नदी और हरियाली के संरक्षण की जरूरत है। वृक्षारोपण अभियानों के तहत...

Newswrap हिन्दुस्तान, अयोध्याThu, 5 June 2025 05:33 PM
share Share
Follow Us on
बोले अयोध्या:नदी और हरियाली बचे रहेंगे खुशहाली के रास्ते तभी बनेंगे

बोले अयोध्या:नदी और हरियाली बचे रहेंगे खुशहाली के रास्ते तभी बनेंगे अयोध्या। जीवन का आधार हवा और पानी आमजन के लापरवाही और जागरूकता की कमी के कारण भेंट चढ़ गया है। बड़ी आबादी पानी के लिए बोतल पर निर्भर हो गई है और घर-घर आरओ मशीन लगवानी पड़ रही है। आर्थिक रूप से अक्षम लोगों और छोटे कारोबारियों को डिब्बा वाला पानी मंगाना पड़ रहा है। भूगर्भ जल के निरंतर भूगर्भ जल स्तर लगातार नीचे खिसकता जा रहा है और अब लोगों को अपने घरों में चार-पांच हजार लागत के नल की जगह 70-80 हजार रूपये खर्च कर समरसेबुल पंप लगवाना पड़ रहा है।

सांस लेने के काम आने वाली हवा की स्थिति भी दिनोंदिन खराब होती जा रही है। छोटे-छोटे कस्बों में एक्यूआई इंडेक्स खतरे के स्तर की चेतावनी देता नजर आता है। विकास चाहे निर्माण से जुड़ा हो अथवा उद्योग से। इससे सबसे ज्यादा प्रभावित पर्यावरण ही हो रहा है। निर्माण और विकास से आमजन को सुविधा व सहूलियत तथा रोजमर्रा के जीवन के आवश्यकताओं की पूर्ति के साथ व्यक्तिगत और तात्कालिक सुख तो हासिल हो रहा है लेकिन पर्यावरण और निर्माण व विकास में समुचित समन्वय न होने से भविष्य के सामने बड़ा संकट खड़ा होता जा रहा है। आए दिन विकास योजनाओं के नाम पर हरियाली पर आरा चल रहा है तो नदी और तालाब पर अवैध कब्जा बढ़ता ही जा रहा है। ऐसा नहीं है कि पर्यावरण संरक्षण के लिए प्रयास नहीं किया जा रहा। कार्ययोजना बनाकर चरणबद्ध ढंग से काम कराया जा रहा है। गत वर्ष भी वन विभाग के सहयोग से जनपद में 38 लाख से ज्यादा पौधे लगाए गए थे,इसके लिए बाकायदा अभियान चलाया गया था और मंत्री से लेकर संतरी तक सबने पौधे रोपे थे। इस वर्ष भी 38 लाख 12 हजार 680 पौधों के रोपण का लक्ष्य तय किया गया है और इसके लिए जिले में कार्यरत प्रदेश और केंद्र सरकार के 26 विभागों को अलग-अलग लक्ष्य दिया गया है। योजना के तहत वन विभाग के नरसरियों में पौध तैयार हो रही है और इसको रोपण के लिए संबंधित विभाग के हवाले किया जाएगा। जिले में पंचवटी,नव ग्रह वाटिका आदि की भी स्थापना की गई है तथा आगे भी ऐसी योजना है। ज्यादा से ज्यादा वृक्षारोपण के लिए आमजन की सहभागिता के साथ पौधरोपण अभियान से एनसीसी, एनएएस, स्काउट गाइड, स्वयं सेवी संस्थाओं और संगठनों को जोड़ा जा रहा है। ऋषि रमणक की तपस्या से उत्पन्न हुई तिलोदकी गंगा सरकारी रिकार्ड से ही गायब हो चुकी है। कई जगहों पर तो यह रिकार्ड में तिलैया नाला बन गई है जिसपर सरकारी विभागों की ओर से जल निकासी की योजना के तहत काम कराया जा रहा है। पौराणिक उद्धरण के मुताबिक अयोध्या के 84 कोस की परिधि में सोहावल तहसील के पंडितपुर गांव स्थित ऋषि रमणक आश्रम से निकलने वाली यह नदी तमसा नदी से मिलते हुए हवाई अड्ड़ा क्षेत्र से मणि पर्वत के बगल से बहती थी। रामनगरी के सीता कुंड और खजुहा कुंड के रास्ते सरयू में मिलने वाली इस नदी के उद्द्गम स्थल रमणक ऋषि आश्रम तथा सीता कुंड पर अब भी विशेष तिथि पर मेला लगता है। बिसुही नदी के उद्धार के लिए अभी किसी योजना पर कोई काम नहीं हुआ। नमामि गंगे योजना के तहत सरयू की पवित्रता को बरकरार रखने अर्थात इसके जल को शुद्ध रखने के लिए करोड़ों रूपये की लागत से कई परियोजनाओं पर काम कराया गया। शहर में सीवर लाइन डलवाई जा रही है और नालों का निर्माण करवा गंदे जल के शोधन के लिए एसटीपी प्लांट का निर्माण करवाया गया है लेकिन कवायद अभी पूरी तरह फलीभूत नहीं हो पाई है। अस्तित्व में आई तमसा मगर अविरल नहीं रामायण कालीन तमसा नदी का उद्गम स्थल अयोध्या जिले के पश्चिमी छोर पर स्थित मवई ब्लॉक के बसौड़ी में स्थित है। इसके तट पर प्रभु श्री राम ने वनगमन के समय प्रथम रात्रि निवास किया था। पहले यह नदी लोगों के लिये जीवन दायिनी थी। पशु-पक्षी इसके शीतल जल को पीकर तृप्त होते थे तो धरती के भगवान को सिंचाई का जल मिलता था। पर्यावरण संरक्षण में सहायक तमसा विलुप्त होने के कगार पर पहुंच गई थी। लेकिन वर्ष 2019 में अयोध्या जिले के तत्कालीन डीएम डा.अनिल पाठक ने मनरेगा योजना के तहत इसकी खुदाई कराकर इसे पुनर्जीवित किया। हालांकि खुदाई के बावजूद जल स्रोत न होने के कारण यह आज तक अविरल नही हो पाई। बरसात का जो थोड़ा बहुत जो जल इसमें संचित हुआ,वह सूर्य के प्रचंड ताप में सूख गया। मवई रुदौली, अमानीगंज, सोहावल, मिल्कीपुर, मसौधा, बीकापुर, तारुन आदि विकास खंडों से होती हुई तमसा गोसाईंगंज के रास्ते अम्बेडकरनगर को जाती है। महर्षि वाल्मीकि ने रामायण में तमसा नदी का वर्णन किया है। बताया जाता है कि 155 किलोमीटर में फैली इस नदी के तट पर महर्षि वाल्मीकि का आश्रम भी था। कटेहरी क्षेत्र में धार्मिक स्थल श्रवण क्षेत्र में इसके बिसुही नदी से संगम पर है। उद्गम स्थल के किनारे लखनीपुर गांव में एक प्राचीन भव्य हनुमान मंदिर है। मंदिर के मुख्य द्वार पर स्थित पुरानी शिलापर इसके उदगम स्थल होने का जिक्र है। यहां प्रतिवर्ष एक फरवरी को विशाल मेला लगता है।मान्यता है कि जो भी इस दिन इस उद्गम स्थल में स्नान कर हनुमान मंदिर पर माथा टेकता है और परिक्रमा करता है।उसकी मनोकामना जरूर पूरी होती है। हालांकि वर्ष के लेकिन आज भी इसमें इतना भी जल नही है कि लोग स्नान आदि कर सकें।वीरेंद्र वर्मा राजेश वर्मा उमाकांत महमूद अहमद खां आदि क्षेत्र के लोगों का कहना है कि इस नदी को कल्याणी नदी से जोड़ने की योजना थी।खुदाई भी कुछ दूर तक हुआ था,लेकिन अधिकारियों व जनप्रतिनिधियों की उदासीनता के चलते तमसा कल्याणी से नही जुड़ पाई।जिससे त्रेतायुगीन इस तमसा नदी का जल आज भी अविरल नही हो पाया। 12 हजार पेड़ कटने से बचाया,15 हजार के लिए प्रयासरत जनपद में एक संस्था ने वृक्षारोपण के साथ पेड़ों को कटने से बचाने का अभियान भी छेड़ रखा है। साथ ही पर्यावरण को लेकर जागरूकता फैलाने की मुहिम चला रही है और पेड़ों के ट्रांसप्लांटेशन के अलावा राम चिरैया अभियान भी चला रखा है। मिशन ग्रीन अयोध्या फाउंडेशन ने विभिन्न गुरुकुलों, भरतकुंड, गुलाबबाड़ी, मकबरा, सूर्यकुंड, सोहावल, मसौधा, गुप्तार घाट आदि पर जून 24 से अब तक 15000 से भी अधिक पेड़ लगवाए हैं। साथ ही संस्था की ओर से पहल कर छावनी क्षेत्र में 14 कोसी परिक्रमा मार्ग की राह में आ रहे 1200 पेड़ों को बचाने में सफलता हासिल की है। अब परिक्रमा मार्ग का चौडीकरण एक तरफ ही होगा। संस्था अब प्रस्तावित भरत पथ पर खड़े 15 हजार पेड़ों को बचाने की मुहिम में जुट गई है। साथ ही संस्था की ओर से कई पेड़ों का दूर खाली स्थान पर ट्रांसप्लांटेशन कराया है और पौराणिक व विशाल वृक्षों को “विरासत पेड़” घोषित कर संरक्षित करने की मांग की है। बोले जिम्मेदार: इस बारे में डीएफओ प्रखर गुप्ता का कहना है कि पर्यावरण संरक्षण के लिए शासन के निर्देशानुसार पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन विभाग की ओर से वृहद पैमाने पर वृक्षारोपण कराया जा रहा है। जिसका प्रभाव भी दिख रहा है। पर्यावरण संरक्षण के लिए विभाग की ओर से जागरूकता अभियान भी चलाया जाता है और वृक्षारोपण के लिए पौध निःशुल्क उपलब्ध कराई जाती है। बोले लोग-: पर्यावरण संरक्षण के लिए स्वच्छता, वर्षा जल संचयन और जैविक कचरा प्रबंधन को जनआंदोलन बनाना होगा। अयोध्या को ग्रीन सिटी बनाना है तो हर नागरिक को एक पेड़ लगाना होगा। - धनंजय पांडेय प्राकृतिक धरोहर नदी झील व तालाब,सभी से जुड़े थे। जिसके कारण से सदियों तक इनसे पर्यावरण को संतुलित रखने में सहायता मिली। अब संरक्षित करने वाले जिम्मेदार संवेदनहीन बने हुए है। - रेनू वर्मा धर्म और आध्यात्म के केंद्र में श्रीराम मंदिर के साथ तमाम विकास योजनाओं पर काम हो रहा है। विकास और पर्यावरण में समन्वय बनाए रखना सरकार के साथ हम सबकी जिम्मेदारी है। - योग गुरु राम सुफल विकास और निर्माण वर्तमान की जरूरत है तो पर्यावरण वर्तमान और भविष्य की। पेड़ों को बचाने के लिए विकास की योजना बनाते समय इस बात का विशेष ध्यान रखें कि पर्यावरण को नुकसान कम हो। - अरविंद श्रीवास्तव जल, जमीन व जंगल जीवन के आधार तत्व हैं। पर्यावरण व प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण से इन आधार तत्वों को बचाया जा सकता है। पेड़ केवल हवा साफ नहीं करते बल्कि जल संचयन में भी मददगार हैं। - स्वतंत्र पांडेय जीव-जंतु सभी के लिए स्वस्थ पर्यावरण जरूरी है। विविध प्रकार की प्राकृतिक प्रजातियाँ चाहे वे पक्षी हों, जीव-जंतु हों अथवा वनस्पतियां, केवल और केवल प्रकृति के संरक्षण से ही सुरक्षित रह सकती हैं। - प्रफुल्ल गुप्ता तमसा नदी के उद्धार के लिए काम तो शुरू हुआ था और बड़ा बजट भी ख़र्च हुआ, लेकिन यह अविरल नहीं हो पाई। जब तक कल्याणी नदी से नही जोड़ा जाएगा, तब तक इसकी धारा अविरल हो ही नहीं पाएगी। - राजेश वर्मा रामनगरी के विकास के साथ पर्यावरण को हानि पहुंची है। इसकी भरपाई जरूरी है। जिसके लिए अपने घर के आस पास पेड़ लगाना होगा और पेड़ों को संरक्षित करना होगा। - दिलीप दुबे एक ओर सरकार विरासत वृक्षों को संरक्षित करने के लिए लगातार निर्देश जारी कर रही है। वही दूसरी ओर प्रतिबंधित प्रजाति के वृक्षों के साथ साथ विरासत से जुड़े वृक्षों को धड़ल्ले से काटा जा रहा है। - डॉ. शमीम तमसा को अस्तित्व में लाने के लिए इसकी खुदाई तो करा दी गई लेकिन पानी कहां से आएगा,इसकी व्यवस्था ही नहीं हुई। तमसा व कल्याणी नदी के बेड लेबल में लगभग चार मीटर गहराई का अंतर है। - आशीष तिवारी प्राइमरी में सभी को पढ़ाया जाता था कि वृक्ष धरा का आभूषण है लेकिन लोग अब स्वार्थ की बात करने लगे हैं। प्लाटिंग और अवैध कब्जे के चक्कर में झील, नदी और तालाब सिकुड़ते जा रहे हैं। - डॉ. अखिलेश तिवारी पेड़-पौधा गांव के किसान लगाते हैं और शुद्ध हवा का इस्तेमाल सभी करते हैं। परिवार बढ़ने के साथ खेती-किसानी का रकबा घटने लगा है,जिसके कारण किसान के पास खाली जमीन नहीं बची। - अजय कुमार

लेटेस्ट   Hindi News ,    बॉलीवुड न्यूज,   बिजनेस न्यूज,   टेक ,   ऑटो,   करियर , और   राशिफल, पढ़ने के लिए Live Hindustan App डाउनलोड करें।