बोले बरेली: स्वास्थ्य बीमा और सरकारी वेतनमान चाहते हैं बरेली कॉलेज के अस्थाईकर्मी
Bareily News - बरेली कॉलेज में लगभग 145 अस्थाई कर्मचारी काम कर रहे हैं, जिन्हें महज 10,000 रुपये महीने मिलते हैं। महंगाई के इस दौर में ये कर्मचारी न्यूनतम वेतन और स्थायीकरण की मांग कर रहे हैं, जबकि कई सालों से उनकी...
प्रदेश के ऐतिहासिक शैक्षिक संस्थानों में शुमार बरेली कॉलेज में वर्तमान में करीब 145 अस्थाई कर्मचारी काम कर रहे हैं। यह लोग तृतीय और चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी के रूप में कार्यरत हैं। कर्मचारियों की नियुक्ति को लगभग तीस वर्ष गुजर चुके हैं। महंगाई के इस दौर में भी इन लोगों को केवल दस हजार रुपये महीना मानदेय ही मिलता है। यह मानदेय भी महज एक-दो वर्ष पहले ही बढ़ा था। मस्ट रोल पर काम कर रहे कर्मियों की स्थिति तो इनसे भी खराब है। उन लोगों को केवल 6000 रुपये महीने का मानदेय दिया जाता है। इससे भी खराब बात यह है कि कर्मचारी काम तो महीने में 30 दिन करते हैं मगर उनको मानदेय केवल 23 दिनों का ही दिया जाता है। अस्थाई कर्मचारी शासन से स्वीकृत न्यूनतम वेतनमान और विनियमितकरण जैसी मांगों को लेकर वर्षों से संघर्ष कर रहे हैं। कॉलेज प्रशासन से लेकर अपनी मांगों को शासन-प्रशासन तक पहुंचाते रहे। कई बार कॉलेज में तालाबंदी जैसे कठोर कदम भी उठाए मगर उसके बाद भी कर्मचारियों की अधिकतर मांगों को अनसुना कर दिया गया। लंबे संघर्ष के बाद न्यूनतम वेतन देने की बात को प्रबंधन ने स्वीकार तो किया मगर आज तक शासनादेश के अनुरूप न्यूनतम वेतन नहीं मिल पा रहा है। कर्मचारियों का कहना है कि पहले तो ईपीएफ का लाभ भी नहीं मिलता था। कर्मचारी कल्याण सेवा समिति के लंबे संघर्ष के बाद वर्ष 2016 में ईपीएफ लागू हुआ। हालांकि अभी भी ईपीएफ में तमाम विसंगतियां हैं। एक ही तारीख से ज्वाइन करने वाले और एक समान वेतन पाने वाले कर्मचारियों के खातों में अलग-अलग ईपीएफ नजर आता है। कर्मचारियों का आरोप है कि कॉलेज ईपीएफ का हिसाब-किताब नहीं दे रहा है। ऐसे में कहीं न कहीं इसमें भी घोटाले की संभावना नजर आ रही है।
संघर्ष में ही बीत रही नौकरी
हिन्दुस्तान से अपना दर्द साझा करते हुए कर्मचारी कहते हैं कि हम लोगों की जिंदगी संघर्ष करते ही बीत रही है। मात्र दस हजार रुपये महीने में हम लोग पूरी ईमानदारी से अपना काम करते हैं। इस कॉलेज में काम करते हुए हम लोगों को 20-20 वर्ष हो चुके हैं। उसके बाद भी कॉलेज ने हम लोगों को कभी अपना नहीं समझा। हम लोगों को जीवन संघर्ष करते हुई ही बीत गया। उग्र आंदोलन किया तो प्रबंधन ने वर्ष 2017 में हमारी सेवाएं ही समाप्त कर दीं। तब लंबे आंदोलन के बाद हमारी सेवाएं बहाल हुईं।
कॉलेज को यूनिवर्सिटी बनाने की मांग
अस्थाई कर्मचारी बरेली कॉलेज को यूनिवर्सिटी बनाने की मांग उठा रहे हैं। उनका कहना है कि कॉलेज के पास यूनिवर्सिटी बनने के लिए पर्याप्त संसाधन हैं। यदि कॉलेज को यूनिवर्सिटी बना दिया जाए तो अस्थाई कर्मचारियों को भी समायोजित किया जा सकता है।
बुढ़ापे का नहीं है कोई भी सहारा
कर्मचारी कहते हैं कि हम से अधिकांश लोग 50 वर्ष के आसपास के हैं। मानदेय इतना कम है कि बचत के नाम पर जेब में कुछ भी नहीं है। अधिकतर लोगों के पास उनके घर तक नहीं है। बुढ़ापे का कोई सहारा नजर नहीं आता है। कम से कम कोई ऐसी पेंशन हो जो बुढ़ापे में हमारा सहारा बन सके।
इलाज के लिए लेना पड़ता उधार
कर्मचारियों का कहना है कि अधिकांश लोगों के आयुष्मान कार्ड बने हुए नहीं हैं। ऐसे में यदि कोई बीमार हो जाए तो इलाज के लिए पैसे उधार लेने पड़ते हैं। लंबा समय उधार निपटाते ही बीतता है। कम मानदेय वाले सभी कर्मचारियों के आयुष्मान कार्ड बनने चाहिए। साथ ही एक सरकारी स्तर पर जीवन बीमा भी होना चाहिए।
सुनिए हमारी बात:
न प्रबंधन और न शासन हमारी मांगों को सुन रहा है। प्रबंधन ने न्यूनतम वेतन देने की बात स्वीकार की थी मगर आज तक शासनादेश के अनुरूप न्यूनतम वेतन नहीं मिल रहा है।-जितेंद्र मिश्रा, अध्यक्ष
अशासकीय महाविद्यालय में रिक्त पड़े पदों पर सरकार को अशासकीय महाविद्यालय में कार्यरत अस्थाई कर्मचारियों का समायोजन करना चाहिए। यही हमारी मांग है।-रविंद्र सहारा, कर्मचारी नेता
लगभग 30 वर्ष से इस नौकरी को कर रहे हैं। बच्चों की शादी की उम्र हो गई है मगर उसके लिए पैसा नहीं जुटा पाए हैं। आज तक अपना घर तक नहीं बना पाए हैं। -तेजपाल
25 वर्ष से बरेली कॉलेज में नौकरी कर रहे हैं। बरसों से न्यूनतम वेतन और विनियमितीकरण की मांग उठा रहे हैं। आज तक इस मांग को किसी ने भी गंभीरता से नहीं सुना है।-राकेश कनौजिया
सबसे बड़ी विडंबना यह है कि हमको यही नहीं पता है कि हम अस्थाई कर्मचारी हैं या फिर संविदा पर काम कर रहे हैं। बाकी तो हमारी कोई भी मांग सुनी ही नहीं जाती है।-राजीव शंकर
कुछ वर्ष पहले ईपीएफ कटना शुरू हुआ है। मगर, इसका भी कोई हिसाब देने वाला नहीं है। एक साथ काम करने वाले कर्मचारियों का भी अलग-अलग पीएफ दिखता है।- रामौतार
ईपीएफ की दिक्कत का आज तक समाधान नहीं हुआ है। कॉलेज में पूछो तो कहा जाता है कि पीएफ ऑफिस में पता करो। वहां जाओ तो कुछ और कहानी बता दी जाती है।-लालू राम
हम लोग लंबे समय से स्थायीकरण की मांग कर रहे हैं। इसके अलावा हमारी यह मांग है कि हमको सरकार के स्तर से घोषित न्यूनतम वेतन हर हाल में देना शुरू किया जाए।-संतोष
बरेली कॉलेज में हम लोग बरसों से सेवाएं दे रहे हैं। उसके बाद भी हम लोगों के साथ सौतेला व्यवहार किया जाता है। समस्याओं को सुलझाने की जगह शोषण होता है। -पूरनलाल मसीह
अस्थाई कर्मचारियों को रिटायर करने का आदेश नहीं है। बिना सूचना उनको रिटायर किया जाता है। यदि रिटायर ही किया जा रहा है तो कम से कम ग्रेच्युटी तो दी जाए।-सुनील कुमार
महंगाई के इस दौर में 10 हज़ार रुपये वेतन में गुजारा करना कठिन है। जब प्रबंधन ने न्यूनतम वेतन देने की बात स्वीकार की थी, तब उसे वेतन देने में क्या दिक्कत है।-ओम प्रकाश
हम जैसे मस्ट रोल वाले कर्मचारियों को तो केवल 6000 रुपये महीने का ही मानदेय दिया जाता है। आठ वर्ष से हम लोग इसी तरह से काम कर रहे हैं। इससे ज्यादा और क्या शोषण होगा।-संदीप कुमार
मस्ट रोल वाले कर्मचारियों को प्रतिदिन के हिसाब से मनरेगा से भी कम पैसा मिलता है। इतने कम पैसे में कैसे गुजरा हो। ऊपर से हर समय निकालने की भी चेतावनी दी जाती है।-आलोक कुमार
मैं पहले संविदा पर था। दो वर्ष पहले मुझको मस्ट रोल में कर दिया गया। मैंने कागज भी सही करवा कर दे दिए। उसके बाद भी मेरी संविदा में वापसी नहीं की जा रही है।-जगदीश
वर्ष 2013 में मस्ट रोल में नौ लोगों को रखा गया था। हम लोग महीने में 30 दिन काम करते हैं मगर हमको 23 दिन का ही मानदेय दिया जाता है। हमको तीसों दिन का पैसा मिले।-संजीव
रविवार को तो सभी की छुट्टी होती है। उसके बाद भी हम लोगों को रविवार के दिन भी काम करने के लिए बुला लिया जाता है। उसके बदले में कोई भुगतान नहीं होता है।-दिलीप
मस्ट रोल की नौकरी एक तरीके से बंधुआ मजदूर वाली नौकरी है। शासन को हमारी दशा पर ध्यान देना चाहिए। कम से कम इतना पैसा तो मिले कि हम चैन से जी सकें।-रघुवीर
23 वर्ष से बरेली कॉलेज में नौकरी कर रहे हैं। ऐसा लग रहा है जैसे पूरा जीवन संघर्ष में ही निकल गया। कॉलेज ने अपने पुराने कर्मचारियों को कभी सम्मान नहीं दिया।-श्याम सुंदर
हम लोगों की जिंदगी मजदूरों से भी बदतर हो गई है। हमारी सेवा शर्तों में कोई भी पारदर्शिता नहीं है। हमारा शोषण किया जाता है। आवाज उठाओ तो शोषण और बढ़ जाता है। -धर्मेंद्र
कॉलेज प्रबंधन अपनी मनमानी पर उतरा हुआ है। कर्मचारी ईमानदारी के साथ में अपना काम करते हैं। इसके बाद भी हमको न्यूनतम वेतनमान देने में कॉलेज को दिक्कत है।-कुलदीप
बरेली कॉलेज प्रबंधन ने अस्थाई कर्मचारियों को कभी अपना माना ही नहीं। यदि हमको अपना माना होता तो आज हमारी स्थिति इतनी अधिक खराब नहीं होती।-मोहम्मद आजम
प्रबंधन हम लोगों के प्रति जरा भी संवेदनशील नहीं है। यदि ऐसा होता तो कम से कम कर्मचारियों की जायज मांगों को तो प्रबंधन समय से पूरा कर ही चुका होता।-राजेश कुमार
हम लोगों ने कभी भी काम से जी नहीं चुराया। जो भी जिम्मेदारी दी गई, उसको ईमानदारी के साथ पूरा किया। उसके बाद भी हम लोगों की सत्य निष्ठा पर सवाल उठाए जाते हैं।-राकेश कुमार पाली
वर्ष 1997 से पूरी ईमानदारी के साथ काम कर रहा। उसके बाद भी न जाने ऐसी क्या दिक्कत है जो कॉलेज मेरी और मेरे जैसे कर्मचारियों की मांग को सुनता ही नहीं है।- रामपाल
न्यूनतम वेतनमान की हमारी मांग को वर्षों से अनसुना किया जा रहा है। बाकी मांगों को छोड़कर यदि यह एक मांग ही पूरी हो जाए तो कर्मचारियों के दिन बहुर जाएंगे।- अरविंद
कर्मचारियों के जीवन में शोषण के सिवा और कुछ भी नहीं है। न तो कॉलेज प्रबंधन हमारी बात सुनता है और न ही शासन और प्रशासन। नेताओं ने भी कोरे आश्वासन ही दिए।- मुकेश
यदि हमारे काम करने में कोई कमी है तो उसमें सुधार कीजिए। बिना किसी गलती के हम को न्यूनतम मानदेय से वंचित रखना आखिर कहां का न्याय है। - राजू
समस्याएं:
0 वर्षों से काम करने के बाद भी अस्थायी कर्मचारियों का विनियमितीकरण नहीं किया जा रहा है।
0 कॉलेज के अस्थायी कर्मचारियों को सरकार से स्वीकृत न्यूनतम वेतनमान नहीं दिया जा रहा है।
0 पीएफ खाते में केवल कर्मचारियों का ही अंश जमा हो रहा है। पीएफ की राशि भी अलग-अलग है।
0 मस्ट रोल पर काम कर रहे कर्मचारियों को केवल छह हजार रुपये महीने का मानदेय दिया जाता है।
0 अस्थाई कर्मचारियों के साथ सौतेला व्यवहार किया जाता है। लगातार उनका शोषण किया जाता है।
समाधान:
0 शासन अस्थाई कर्मचारियों को तत्काल प्रभाव से नियमित करें। इससे उनके जीवन में सुधार आएगा।
0 जब तक नियमित नहीं किया जाता है, तब तक शासन से स्वीकृत घोषित न्यूनतम वेतनमान दिया जाए।
0 अस्थाई कर्मचारियों को रिटायर करते समय अनिवार्य रूप से ग्रेच्युटी प्रदान करने की व्यवस्था होनी चाहिए।
0 अस्थाई कर्मचारियों की असमय मृत्यु होने की स्थिति में उनके आश्रितों को नौकरी देने की व्यवस्था होनी चाहिए।
0 कॉलेज में रिक्त चल रहे तृतीय व चतुर्थ श्रेणी के 70 रिक्त पदों पर अस्थायी कर्मियों को समायोजित किया जाए।
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