बोले बरेली: स्काउट गाइड को चाहिए बुनियादी सुविधाएं और बेहतर प्रशिक्षक
Bareily News - बरेली में स्काउट-गाइड संगठन बच्चों में नेतृत्व और अनुशासन विकसित करने के लिए काम कर रहा है, लेकिन उन्हें प्रशिक्षण की असुविधाओं और संसाधनों की कमी का सामना करना पड़ रहा है। प्रशिक्षकों को प्रशासनिक...

स्काउट-गाइड संगठन का उद्देश्य बच्चों में नेतृत्व, अनुशासन, और समाज के प्रति जिम्मेदारी की भावना विकसित करना है। यह संस्था न केवल बच्चों को देशसेवा के लिए तैयार करती है, बल्कि उन्हें सामूहिकता, सहकारिता और कड़ी मेहनत के महत्व को भी सिखाती है। लेकिन बरेली में स्काउट-गाइड संघ के सामने कई समस्याएं हैं, जो उन्हें पूरी क्षमता से काम करने में रोक रही हैं। इन समस्याओं में सबसे महत्वपूर्ण है प्रशिक्षण की असुविधाएं, संसाधनों और बेहतर प्रशिक्षक की कमी। बरेली में स्काउट-गाइड संगठन को बेहतर प्रशिक्षण और बुनियादी सुविधाओं की कमी का सामना करना पड़ रहा है, जो उनकी कार्यक्षमता को प्रभावित कर रहा है। स्काउट-गाइड संघ के कार्यकर्ताओं का कहना है कि उन्हें न तो अच्छे प्रशिक्षक मिल रहे हैं, न ही बेहतर सुविधाएं उपलब्ध हैं। संघ के सदस्य अपनी जेब से आवश्यक चीजें खरीदने को मजबूर हैं और अन्य बुनियादी संसाधनों के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
दरअसल, स्काउट-गाइड संघ के बच्चों को प्रशिक्षण देने के लिए जिस कुटीर भवन का उपयोग किया जा रहा है, वह असुविधाओं से भरा हुआ है। कई बार वहां पानी की आपूर्ति बाधित रहती है, नल खराब होते हैं और पाइपलाइन से गंदा पानी आता है। इन सभी समस्याओं के कारण बच्चों को प्रशिक्षण देने में कठिनाई होती है। इसके अलावा, कुटीर भवन का बाउंड्री वॉल भी सही नहीं है, जिससे सुरक्षा संबंधी समस्याएं उत्पन्न होती हैं। संघ का कहना है कि प्रशिक्षकों को प्रशासनिक सहायता प्राप्त नहीं है। उन्हें रेलवे ड्यूटी से छुट्टी नहीं मिलती, जिससे उनका पूरा ध्यान प्रशिक्षण पर नहीं लग पाता। प्रशिक्षकों का समय सीमित होता है और वे पूरी तरह से बच्चों को प्रशिक्षित नहीं कर पाते। इसकी वजह से बच्चों को गुणवत्तापूर्ण प्रशिक्षण नहीं मिल पाता, जो कि उनके विकास के लिए आवश्यक है।
स्काउट-गाइड संघ के पास संसाधनों की भारी कमी है। बच्चों को जब कैंपों में भाग लेने के लिए जाना होता है, तो उन्हें अपनी जेब से टिकट का खर्चा उठाना पड़ता है। रेलवे से कोई यात्रा सुविधा नहीं मिलती, जो कि संघ की जिम्मेदारियों में से एक है। बच्चों को ड्रेस, बैच, जूते और स्कार्फ जैसी सामग्री भी अपनी जेब से खरीदनी पड़ती है। इसके अलावा, कैंपों में खाने-पीने का खर्च भी बच्चों को ही उठाना पड़ता है। संघ के प्रशिक्षकों को भी रेलवे से कोई आर्थिक सहायता नहीं मिलती। राष्ट्रपति से सम्मानित स्काउट-गाइड बच्चों को भी रेलवे से यात्रा टिकट पर कोई छूट नहीं मिलती। जबकि, स्काउट-गाइड का रेलवे के कार्यों में अहम योगदान होता है, जैसे बड़े अधिकारियों का स्वागत, जागरूकता अभियान चलाना आदि। इसके बावजूद उन्हें किसी भी प्रकार की सहायता या छूट नहीं दी जाती।
बरेली में स्काउट-गाइड की संख्या लगभग 600 है। अगर इन्हें उचित सुविधाएं और संसाधन मिलते हैं, तो यह संख्या और भी बढ़ सकती है। बच्चों को अच्छे प्रशिक्षक, बेहतर भवन और आर्थिक सहायता मिलने से वे इस संस्था के साथ जुड़ने के लिए प्रेरित होंगे, जिससे समाज में एक बड़ा बदलाव आ सकता है।
समस्याएं:
1. स्काउट-गाइड संघ का प्रशिक्षण कुटीर भवन में दिया जा रहा है, जो असुविधाओं से भरा हुआ है। वहां पानी की आपूर्ति में समस्याएं आती हैं, जैसे नल का खराब होना और पाइपलाइन में गंदा पानी आना। इस तरह की स्थिति बच्चों के प्रशिक्षण को प्रभावित करती है।
2. प्रशिक्षकों को रेलवे से छुट्टी नहीं मिलती, जिससे वे पूरी तरह से बच्चों को प्रशिक्षण नहीं दे पाते। यह कार्य की गुणवत्ता को प्रभावित करता है, क्योंकि प्रशिक्षक अपनी ड्यूटी और प्रशिक्षण दोनों को संतुलित करने में असमर्थ होते हैं।
3. स्काउट-गाइड के बच्चों को जब कैंपों में भाग लेने के लिए जाना होता है, तो उन्हें अपनी जेब से पैसे एकत्रित करने पड़ते हैं। यह न केवल बच्चों के लिए एक आर्थिक बोझ है, बल्कि उनके माता-पिता पर भी अतिरिक्त दबाव डालता है।
4. बच्चों को अपनी ड्रेस, जूते, बैच, और स्कार्फ जैसी आवश्यक सामग्री खुद के पैसे से खरीदनी पड़ती है। यह स्थिति उनके लिए और अधिक आर्थिक चुनौतियां उत्पन्न करती है।
5. राष्ट्रपति से सम्मानित स्काउट-गाइड बच्चों को भी रेलवे से रेल टिकट पर कोई छूट नहीं मिलती। जबकि स्काउट-गाइड का रेलवे के कार्यों में अहम योगदान होता है, फिर भी उन्हें कोई सुविधा प्रदान नहीं की जाती।
6. स्काउट-गाइड के बच्चों को कैंपों में भाग लेने के दौरान खाने-पीने का खर्च खुद ही उठाना पड़ता है, जो बच्चों और उनके परिवारों के लिए एक अतिरिक्त वित्तीय बोझ है।
7. स्काउट-गाइड के प्रशिक्षकों को रेलवे से कोई आर्थिक सहायता नहीं मिलती। वे अपनी मेहनत और समय का मूल्यांकन किए बिना बच्चों को प्रशिक्षित कर रहे हैं, जिससे उनकी कार्य क्षमता पर असर पड़ता है।
सुझाव:
1. स्काउट-गाइड के लिए एक समर्पित प्रशासनिक भवन प्रदान किया जाए, जहां सभी प्रशिक्षण कार्य, कार्यक्रम, और अन्य गतिविधियां सही तरीके से चल सकें। यह भवन पूरी तरह से बच्चों और प्रशिक्षकों की आवश्यकताओं के अनुसार डिज़ाइन किया जाए।
2. रेलवे को स्काउट-गाइड के कार्यों के लिए आर्थिक सहायता प्रदान करनी चाहिए, ताकि बच्चों को बेहतर प्रशिक्षण, कैंप, और अन्य कार्यक्रमों के आयोजन में कोई समस्या न हो। इससे बच्चों को उच्च गुणवत्ता का प्रशिक्षण मिल सकेगा।
3. जब स्काउट-गाइड के बच्चे बाहर किसी कैंप में भाग लेने के लिए जाते हैं, तो उन्हें रेलवे से मुफ्त यात्रा पास उपलब्ध कराई जाए। इससे बच्चों को यात्रा का आर्थिक बोझ नहीं होगा और वे अपने कार्यक्रमों में आसानी से भाग ले सकेंगे।
4. स्काउट-गाइड के बच्चों को उनकी पूरी ड्रेस, जूते, बैच और स्कार्फ जैसी आवश्यक सामग्री के लिए रेलवे को वित्तीय सहायता प्रदान करनी चाहिए। इससे बच्चों को अपनी जेब से पैसे खर्च करने की जरूरत नहीं पड़ेगी।
5. कुटीर भवन का रेलवे द्वारा विस्तार किया जाए ताकि बच्चों को बेहतर प्रशिक्षण की सुविधा मिल सके। इसके साथ ही बाउंड्री का भी विस्तार किया जाए ताकि सुरक्षा संबंधित समस्याएं न उत्पन्न हों।
6. प्रशिक्षकों को एक-एक सप्ताह की ड्यूटी व्यवस्था दी जाए, ताकि वे बच्चों को अच्छे से प्रशिक्षित कर सकें और उनकी जिम्मेदारियों का संतुलन बनाए रखा जा सके। इसके लिए एक ठोस ड्यूटी चार्ट तैयार किया जाए।
7. रेलवे द्वारा संचालित स्कूलों के प्रिंसिपल को बच्चों को स्काउट-गाइड के कार्यक्रमों में भाग लेने के लिए प्रेरित करना चाहिए। इसके माध्यम से बच्चों में देशसेवा और नेतृत्व क्षमता का विकास होगा।
कहने को कुटीर भवन, असुविधाएं तमाम
इज्जत नगर के पांच नंबर रोड पर स्थित रेलवे स्टेडियम के पास कुटीर भवन है। यह भवन रेलवे के अधिकारियों के आने-जाने का एक प्रमुख स्थल है, लेकिन इस भवन के विस्तार और सुधार के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं। भवन की बाउंड्री इतनी नीची है कि कोई भी आसानी से इसे पार कर सकता है। जब स्काउट-गाइड के शिविर आयोजित होते हैं, तो सड़क से सब कुछ साफ दिखाई देता है। भवन में पानी की उचित व्यवस्था भी नहीं है। हैंडपंप काफी समय से खराब पड़ा है। वॉटर पाइपलाइन में अक्सर गंदा पानी आता है। स्थिति इतनी खराब है कि स्काउट-गाइड को अपना चंदा इकट्ठा कर किसी तरह कैंप आयोजित करना पड़ता है। जबकि रेलवे में बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं, जो स्काउट-गाइड कोटा से जुड़े हुए हैं और राष्ट्रपति से सम्मानित भी हो चुके हैं, लेकिन उनके विभाग के अधिकारी उन्हें प्रशिक्षण के लिए स्काउट-गाइड कैंप में भेजने में रुचि नहीं रखते। अगर रेलवे के अधिकारी लीडर्स की एक-एक सप्ताह की ड्यूटी निर्धारित करें, तो स्काउट-गाइड को उचित प्रशिक्षण मिल सकेगा।
सिर्फ दिया स्थान, आर्थिक सहायता नहीं
संघ का कहना है कि स्काउट-गाइड को जगह तो दी गई है लेकिन कोई आर्थिक सहायता नहीं दी जाती। यही वजह है कि स्काउट-गाइड की सदस्यता में लगातार कमी आ रही है और लोग अपने बच्चों को इसमें शामिल करना नहीं चाहते। रेलवे के कई स्कूलों में, जहां रेलवे कर्मचारियों के साथ-साथ सिविलियंस के बच्चे भी पढ़ते हैं। कई बार संगठन के पदाधिकारी स्कूलों में जाकर प्रिंसिपल से मिले, लेकिन वहां से यही जवाब मिला कि ‘हम समिति के सदस्यों से बात करेंगे। लेकिन आश्वासन से आगे बात नहीं बढ़ी।
गर्मी में स्टेशनों पर प्याऊ लगाएंगे स्काउट-गाइड
गर्मी के मौसम में स्काउट-गाइड रेलवे स्टेशनों पर पूरे दिन प्याऊ लगाएंगे। इस कार्य के लिए उन्हें वाल्टी, मग और गिलास जैसी सुविधाओं की जरूरत होती है, जिन्हें वे अपनी जेब से खर्च कर जुटाते हैं। संगठन के पदाधिकारी पूरे साल की कार्य योजना तैयार करते हैं और निर्धारित तिथियों पर स्टेशन पर कैंप लगाते हैं, ताकि रेल यात्रियों को जागरूक किया जा सके। वे सांस्कृतिक कार्यक्रमों और नुक्कड़ नाटकों के माध्यम से लोगों को जागरूक करने का कार्य भी करते हैं।
स्वागत समारोह से आपदा तक काम करते हैं स्काउट गाइड
जब कोई बड़ा रेल अधिकारी जैसे जीएम, रेल मंत्री या डीआरएम का विशेष निरीक्षण होता है, तो स्वागत के लिए स्काउट-गाइड ही सामने आते हैं। इसके अलावा, जब भी कोई दुर्घटना होती है, जैसे सवारी ट्रेन का डिरेलमेंट, तो एनडीआरएफ की तरह स्काउट-गाइड को भी मौके पर भेजा जाता है। उनके पास घायलों को इलाज देने और कोचों से बाहर निकालने का कौशल होता है। इसके लिए उन्हें आपातकालीन प्रशिक्षण भी दिया गया है, ताकि वे किसी भी आपदा में सही समय पर मदद कर सकें।
स्काउट-गाइड की भी सुनिए
हम लोगों को बेहतर प्रशिक्षक की आवश्यकता है। रेलवे में अच्छे-अच्छे लीडर्स हैं, उनको प्रशिक्षण के लिए भेजा जाये। स्काउट-गाइड के बेहतर प्रशिक्षण को रेलवे के लिये आर्थिक सहायक निर्धारित कर देनी चाहिये। -गंगा, गाइड
कुटीर भवन सिर्फ दिखावे को है। रेलवे ने एक जगह दे दी है। यहां आकर अपना प्रशिक्षण करो। लेकिन प्रशिक्षण कैसे करें और कौन कराएगा, यह पता नहीं। कुछ रेलकर्मी हैं जो कभी-कभार सीनियर्स को भेज देते हैं। -कोमल, गाइड
स्काउट-गाइड को रेलवे की ओर से एक रुपये की आर्थिक सहायता नहीं मिलती हैं। चाहे जिला स्तरीय कैंप हो या फिर राष्ट्रीय स्तर कैंप। उस कैंप में जाने को अभिभावकों को पूरा पैसा देना पड़ता है। यहां तक रेलवे का किराया भी देते हैं। -स्वाति, गाइड
स्काउट-कोटा के माध्यम से जो लीडर्स रेल सेवा में आये हैं। उन्हें बच्चों को प्रशिक्षण देने के बारे में सोचना चाहिए। उन विभाग के अधिकारियों को एक-एक सप्ताह के लिए कुटीर भवन में प्रशिक्षण देने की डयूटी लगा देनी चाहिए। -नैना सिंह, गाइड
तमाम ऐसे रेल जोन हैं, वहां प्रशिक्षण देने को रेलकर्मी लगे हैं। जब कोई राज्य या राष्ट्रीय स्तर का कैंप होता है तो वही स्काउट-गाइड अगले निकलते हैं, जिन्हें बेहतर प्रशिक्षण मिला होता है। यहां स्काउट-गाइड का अपना प्रशासनिक भवन भी नहीं है। - चाहत, गाइड
स्काउट-गाइड के सामने सबसे अधिक दिक्कत तब आती है, जब उन्हें बाहर कहीं कैंप में जाना पड़ता है। अभिभावक को 2500 रुपये देने पड़ते हैं। जिसमें खाना पीने का खर्चा होता है। ड्रेस और रेल टिकट अलग देना पड़ता है। कुछ ही बच्चे कैंप में जा पाते हैं। -उर्वशी, गाइड
कोविड काल के बाद राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त स्काउट-गाइड के लिए भी 50 प्रतिशत की छूट बंद कर दी गई। जो रेल कर्मियों के बच्चे हैं, वो रेल पास से कैंप में जाने को यात्रा करते हैं। बाहरी बच्चों को रेलवे का टिकट पैसे देकर लेना पड़ता है। -शिवांशी, गाइड
जिस तरह से स्काउट-गाइड का प्रशिक्षण होना चाहिए, वह हम लोगों को नहीं मिल पाता है। प्रशिक्षण को बेहतर प्रशिक्षक होने चाहिए। यहां तो कम संसाधन में बेहतर करने का प्रयास करते हैं। - रक्षिका सिंह, गाइड
स्काउट-गाइड को केवल प्रशिक्षण देने से काम नहीं चलेगा। हमें प्रशिक्षण स्थल पर मूलभूत सुविधाओं की भी जरूरत है। कई बार बच्चे असुविधाओं के चलते बेहतर प्रशिक्षण प्राप्त नहीं कर पाते हैं। -युवराज सिंह, स्काउट
कुटीर भवन में बुनियादी सुविधाओं का काफी अभाव है। पीने के पानी तक की व्यवस्था नहीं है। यहां तक अधिकारी भी कैंप में आने से बचते हैं। यदि संबंधित जिम्मेदार ध्यान दें तो बेहतर प्रशिक्षक के साथ ही बुनियादी सुविधाएं भी समय से मुहैया हो सकती हैं। -आदित्य कुमार, स्काउट
जहां पर कुटीर भवन है। वहां एक आम रास्ता भी है, लोगों का आना जाना लगा रहता है। जब मैदान में कैंप करते हैं तो राहगीर खड़े हो जाते हैं। भवन की बाउंड्री चार फीट ऊंची है। जब सड़क पर लोग खड़े हो जाते हैं तो संकोच लगता है। बाउंड्री ऊंची कराई जाए। -प्रखर कुमार, स्काउट
कुटीर भवन में रोज ही स्काउट-गाइड को कुछ देर को प्रशिक्षण दिया जाता है। यहां पीने के पानी की सुविधा नहीं है। एक नल है, जो हमेशा ही खराब रहता है। वाटर पाइप लाइन से पानी आता है। उसका पानी पीने के लायक ही नहीं होता है। -शिवांग, स्काउट
स्काउट-गाइड का जो प्रशिक्षण बच्चे ले रहे हैं, वह अधिकतर रेलकर्मियों के बच्चे हैं। स्काउट-गाइड बनने के लिए सिविलयंस के बच्चों को भी मौका मिलना चाहिए। ऐसे होने से संघ को मजबूती मिलेगी। स्काउट-गाइड की संख्या में बढ़ोत्तरी होगी। -शिवांग, स्काउट
कहने को रेलवे का स्काउट-गाइड संघ है, जिसमें रेलकर्मियों के बच्चे आते हैं। जिनमें से अधिकतर ग्रुप सी और डी वाले रेलकर्मियों के बच्चे हैं। यदि अधिकारी वर्ग के लोग अपने बच्चों को यहां भेजें तो असुविधाओं पर भी उनकी नजर जाएगी। -हंसराज यादव, स्काउट
रेलवे को चाहिए कि स्काउट गाइड के ड्रेस के पैसे मुहैया करा दे। जब कभी भी कैंप को बाहर भेजा जाता है तो उसमें आने वाले खर्च को रेलवे वहन करे। टिकट से लेकर खानपान तक की व्यवस्था करे। इससे आर्थिक बोझ कम होगा। -धर्मेंद्र कुमार,स्काउट
रेलवे स्टेडियम में लाखों रुपये हर साल खर्च कर दिये जाते हैं। जबकि उसके सामने ही कुटीर भवन है। स्टेडियम में काफी सुविधाएं हैं जबकि कुटीर भवन में बुनियादी सामान भी मुहैया नहीं है। कुटीर भवन में भी सुविधायें बढ़ाई जानी चाहिये। -शिवम यादव, स्काउट
प्रशिक्षक द्वारा अगर प्रशिक्षण दिया जाता है तो बच्चा अधिक जल्दी सीखता है। स्काउट-गाइड को बेहतर प्रशिक्षक नहीं मिल पाते हैं। कुछ रेलकर्मी हैं, जो छुट्टी में प्रशिक्षण देते हैं। अधूरा प्रशिक्षण बाद में बाहरी कैंपों में जाकर पराजय का कारण बन जाता है। -विनीता कश्यप, गाइड
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