अशफाक उल्ला खां की जिन्दगी और सोच से मिलाया
Lucknow News - काकोरी काण्ड के नायक अशफाक उल्ला खां की वतन से मोहब्बत और उनकी भूमिका पर लखनऊ में 'दास्तान-ए-अशफाक' सुनाई गई। शहजाद रिजवी और फरजाना मेहदी ने उनकी जिंदगी और विचारों को प्रस्तुत किया। उन्होंने बताया कि...

काकोरी काण्ड के नायको में से एक अशफाक उल्ला खां वतन से कितनी मोहब्बत करते थे, काकोरी एक्शन में उनकी भूमिका और महत्व क्या था। कभी न झुकने की हिम्मत और इंकलाब को कायम रखने का जज्बा अशफाक में कैसा था। ये सब दास्तान-ए-अशफाक से लखनऊ के लोगों ने देखा। इप्टा की ओर से कैफी आजमी सभागार में दास्तान-ए-अशफाक को दास्तानगो शहजाद रिजवी और फरजाना मेहदी ने सुनायी। जिसमें अशफाक उल्लाह खां की जिन्दगी के उनके विचारों से रू-ब-रू कराया गया। शहजाद रिजवी और फरजाना मेहदी ने दास्तान-ए-अशफाक को रवायती अन्दाज से थोड़ा हटकर पेश किया, इसलिए इसकी शुरुआत साकी नामा से न करके अशफाक के उस कलाम की गई जो उन्होंने अपने केस के फैसले की पूर्व संध्या यानी 12 जुलाई 1927 की रात को रचा था।
दास्तानगोई में बताया गया है कि काकोरी ट्रेन एक्शन कोई रूमानियत या जज्बाती काम न था, इसके पीछे एक फलसफा था, अंग्रेज़ों के बाद का देश कैसा होना चाहिए इसका एक खाका था। दोस्ती, मां की ममता, मादर-ए- वतन से मुहब्बत और सबसे अहम था रूसी इन्केलाब की रोशनी में दुनिया को देखते हुए उस वक्त की सबसे मजबूत साम्राज्यवादी ताकत के सामने न झुकने का साहस। इस मौके पर वरिष्ठ रंगकर्मी राकेश, राकेश वेदा, दीपक कबीर, समेत अन्य मौजूद रहे।
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