बोले बस्ती : माहौल ऐसा बने कि सुरक्षा की फिक्र न हो
Basti News - बस्ती जिले में महिलाएं हर क्षेत्र में पुरुषों के साथ कदम से कदम मिलाकर चल रही हैं। महिलाएं दहेज प्रथा, महिला हिंसा और ऑनलाइन फ्रॉड जैसी समस्याओं का सामना कर रही हैं। वे सुरक्षा, शिक्षा और समान अवसर की...

Basti News : बेटी-बहन या मां। नाम या रूप चाहे जो हो लेकिन बेटियां ही हैं जो दो परिवारों को संवारती हैं। घर-परिवार के हर कार्यक्रम में इनसे ही रौनक होती है। बेटियां घर को संभालनेे के साथ ही हर क्षेत्र में पुरुषों से कंधा मिलाकर चल रही हैं। नगरपालिका और नगर पंचायतों में महिलाएं जीत कर जहां जनसेवा कर रही हैं, वहीं प्रशासनिक पदों के साथ शिक्षा व डॉक्टरी के पेशे में भी महिलाएं आगे हैं। समाजसेवा में भी महिलाएं सक्रिय हैं। महिलाओं की भागीदारी के साथ समाज की सोच भी बदली है लेकिन अब भी इनके हक व सम्मान से जुड़े कई ऐसे पहलू हैं, जहां सुधार की बड़ी जरूरत है। चाहे दहेज प्रथा हो या फिर महिला हिंसा। कोलकाता कांड व दिल्ली के निर्भया कांड जैसी कई ऐसी घटनाएं आजादी के इतने साल बाद भी आधी आबादी को चिंता में डाल देती हैं। ‘हिन्दुस्तान से बातचीत में हर वर्ग से जुड़ी महिलाओं ने अपनी समस्याएं साझा कीं।
बस्ती जिले में आधी आबादी करीब 14 लाख है। महिलाएं हर क्षेत्र में पुरुषों के साथ कदम से कदम मिलाकर चल रही हैं। जिले में 571 महिला प्रधान अपनी ग्राम पंचायतों की कमान संभालकर गांव में विकास की गाथा लिख रही हैं। बस्ती नगर पालिका की कमान नेहा वर्मा, नगर पंचायत नगर की कमान नीलम सिंह और बनकटी में उर्मिला देवी नगर पंचायत की कुर्सी पर आसीन हैं। इसके अलावा 400 महिला पुलिसकर्मी जिले में सेवा दे रही हैं। फिर भी कुछ ऐसी सामाजिक समस्याएं हैं जो हर वक्त बेटियों का टीस देती हैं। महिलाएं चाहती हैं कि दहेज प्रथा बंद हो। महिला हिंसा रुके और सड़क और बाजार में खुद को अकेले सुरक्षित महसूस कर सकें। साथ ही बेटे और बेटी के अंतर को खत्म किया जाना चाहिए। बेटे की तरह बेटी को बराबर का मौका दिया जाना चाहिए। प्रीति श्रीवास्तव, साक्षी यादव और अंकिता ने कहा कि पुरुषों की मौजूदगी के बीच अकेले होने पर भी सुरक्षित होने का अहसास हो, ऐसा माहौल बनाना होगा। बेटियों को नहीं बेटों को संस्कार दिए जाने की जरूरत है। बेटों को ऐसा बनाना होगा कि बेटियों को घर से बाहर निकलने में डर न लगे। रात के अंधेरे में भी बेटों को देखकर बेटियां डरे नहीं। उन्हें अपना भाई, रखवाला समझें।
पूजा चौधरी, सोमी और शैल त्रिपाठी ने कहा कि महिला अपराध से जुड़ी हर घटना को पुलिस को गंभीरता से लेना चाहिए। शिकायत करने के बाद त्वरित कार्रवाई की जाए, जिससे ऐसा करने से पहले हर कोई डरे। इससे बड़ी घटना घटित होने की संभावना कम हो जाएगी। ऐसे उदाहरण प्रस्तुत करने चाहिए कि कोई भी अपराधी महिलाओं, बेटियों को शिकार बनाने से पहले 100 बार सोचे। डर इतना बढ़ा दिया जाए कि महिला अपराधों पर पूरी तरह अंकुश लग जाए। अनीता अग्रहरि, सविता तिवारी ने कहा कि कामकाजी महिलाओं को कार्यस्थल पर सुरक्षित होने का अहसास होना चाहिए। कई बार ऐसा हुआ है कि कार्यस्थल पर महिलाओं के साथ यौन शोषण जैसी घटनाएं सामने आई हैं। ऐसी घटनाओं पर पूरी तरह रोक लगनी चाहिए। ऐसे मामलों में त्वरित कार्रवाई होनी चाहिए। उषा देवी, मालती देवी ने कहा कि महिलाओं के साथ ऑनलाइन फ्राड के मामले भी बढ़ रहे हैं। फोटो और वीडियो को एडिट कर उसे अश्लील बनाकर ब्लैकमेल करने की घटनाएं भय का माहौल बनाती हैं। इन घटनाओं पर अंकुश लगाया जाना चाहिए। छेड़खानी और दुष्कर्म जैसी घटनाएं समाज को शर्मसार करती हैं। किरन शर्मा, वंदना कश्यप और मेघना कहती हैं कि शराबबंदी पर सरकार को विचार करना चाहिए। कितनी महिलाओं के घर-परिवार शराब की वजह से उजड़ जा रहे हैं। महिला हिंसा के मामलों में भी तेजी से बढ़ोत्तरी हो रही है। शराब पर प्रतिबंध लगाने से आपराधिक घटनाओं में भी काफी गिरावट आएगी। आयुषी सेन ने कहा कि सड़क से होकर घर जाते समय रास्ते में शराब की एक दुकान पड़ती है। दुकान पर लोग शराब खरीदते हैं। रात हो जाने पर वहां से होकर गुजरते वक्त डर लगता है।
सोशल मीडिया पर अंकुश लगाना जरूरी
महिलाएं सोशल मीडिया पर बढ़ती अश्लीलता को लेकर भी बेहद चिंतित हैं। सुष्मिता गौतम, सविता ओझा और रानी पांडेय कहती हैं कि सोशल मीडिया का प्रयोग बढ़ा है लेकिन इस पर परोसी जा रही अश्लीलता पर तत्काल प्रभाव से रोक लगनी चाहिए। सोशल मीडिया पर ऐसे कंटेट अपलोड होने चाहिए जिससे बच्चों में संस्कार आए। वे जिम्मेदार बनें। बहन, बेटियों के भक्षक नहीं रक्षक बनें। खासतौर पर फेसबुक पर आने वाली अश्लील वीडियों पर रोक लगनी चाहिए। इन वीडियो के चक्कर में फंसकर कम उम्र के बच्चे अच्छे-बुरे का फैसला नहीं कर पा रहे हैं। महिला अपराध की यह भी बड़ी वजह बन रही है। हर चुनाव में मिले बराबर की भागीदारी : राजनीति में महिलाएं बराबर की भागीदारी चाहती हैं। शिक्षिका नीलम गुप्ता, सुनीता दुबे, रेखा मिश्रा और अनुश्री गुप्ता कहती हैं कि लोकसभा और विधानसभा के चुनावों में महिला प्रत्याशियों की अनदेखी नहीं होनी चाहिए। महिलाओं को भी पुरुष प्रत्याशियों के बराबर मौका मिलना चाहिए। सभासद से लेकर ग्राम पंचायत के चुनाव में महिलाओं को खड़ा तो कर दिया जाता है लेकिन जीतने के बाद भी जन प्रतिनिधि बन चुकी महिलाओं का कामकाज उनका प्रतिनिधि देखता है और महिलाएं चूल्हे-चौके में ही लगी रहती है। रोली और संगम पांडेय कहती हैं कि महिलाओं को डमी बनाने का कल्चर हमेशा के लिए खत्म होना चाहिए। महिलाओं को उनके हिस्से का अधिकार और सम्मान मिलना चाहिए।
सुरक्षित माहौल से निर्भीक होंगी महिलाएं
काजल मिश्रा और प्रियंका ने कहा कि पुलिस व्यवस्था पहले से बेहतर हुई है, लेकिन अभी सुधार की जरूरत है। गर्ल्स स्कूल, कॉलेजों और बाजारों में महिलाओं की सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम होने चाहिए। खासतौर पर स्कूल की छुट्टी के समय महिला पुलिस पिकेट तैनात होनी चाहिए। गौरी गुप्ता, लता गौतम ने कहा कि कामकाजी महिलाओं को कार्यस्थल पर सुरक्षित माहौल मिलना चाहिए।
शराब बंदी के लिए ठोस कदम उठाए सरकार
महिलाओं ने कहा कि शराब अपराध की जननी है। उत्तर प्रदेश में भी बिहार और गुजरात की तरह शराबबंदी होनी चाहिए। सरिता दुबे, रेखा सिंह और रीना कन्नौजिया कहती हैं कि शराब के कारण कई महिलाओं के सुहाग उजड़ गए, कई घर बर्बाद हो गए। अगर शराब की बिक्री बंद हो जाए, तो कई कामकाजी महिलाओं की गृहस्थी पटरी पर आ जाएगी। शराबी पतियों के कारण कई महिलाएं बदहाली में जीवन जी रही हैं। कई विद्यालयों के पास ठेके खुले हैं, जहां सुबह से शराबियों की भीड़ लग जाती है। छात्राओं व शिक्षिकाओं का गुजरना मुश्किल हो जाता है।
सबको मिलकर रोकनी होगी दहेज प्रथा : दहेज प्रभा का कड़े शब्दों में विरोध होना चाहिए। डॉ. अमृता पांडेय, रिया गुप्ता, बीना श्रीवास्तव और सुशीला पांडेय, सेंट जोसफ की प्रिंसिपल एंजेलिना फिलिप कहती हैं कि दहेज प्रथा सामाजिक कुरीति है। इस पर सख्ती के साथ प्रतिबंध लगाना चाहिए। जो लोग बेटे की शादी में दहेज मांगते हैं। उन पर कानूनी कार्रवाई तो हो ही सामाजिक तौर पर भी उनका बहिष्कार करना चाहिए। महिलाओं को भी सामूहिक रूप से इस मुद्दे पर पहल करनी चाहिए। घरेलू हिंसा बढ़ने की मुख्य वजह दहेज प्रथा है। दहेज के लेन-देन से रोकने के लिए जनजागरूकता के साथ सख्त कानून बनाने चाहिए।
शिकायतें
-पुलिस व्यवस्था बेहतर हुई है लेकिन अभी इसमें और सुधार की आवश्कता है।
-शराब के सेवन से कई परिवार उजड़ रहे हैं। घरेलू हिंसा भी शराब के प्रयोग से बढ़ रही है।
-दहेज की मांग को लेकर महिलाओं को प्रताड़ित करने की घटनाएं आए दिन सामने आती थीं।
-सोशल मीडिया पर अश्लील सामग्री परोसी जा रही है। इसे देखकर बच्चों पर गलत प्रभाव पड़ रहा है।
-राजनैतिक क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी बहुत कम है।
सुझाव
-महिलाओं के लिए समाज में हर जगह सुरक्षित माहौल बने।
-सरकार को प्रदेश में शराब बंदी के लिए ठोस कदम उठाना चाहिए।
-दहेज प्रथा को रोकने के लिए सामाजिक जागरूकता के साथ ही सरकार को भी कड़े नियम बनाने चाहिए।
-सोशल मीडिया पर अश्लील सामग्री परोसे जाने पर सख्ती के साथ रोक लगाई जाए
-राजनैतिक क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाई जानी चाहिए।
हमारी भी सुनें
महिलाओं ने हर क्षेत्र में नाम कमाया है। स्कूल में अच्छे संस्कार दिए जाते हैं, पढ़ा-लिखाकर कुछ लायक बनाया जाता है। परिवारों का साथ मिल जाए तो वह उड़ान भरने में खुद को स्वतंत्र पाएंगीं।
अपर्णा सिंह
हर मां सबसे पहले एक बच्ची और छात्रा होती है। वह समाज के हर दौर से गुजरती है। इसलिए महिलाओं को चाहिए कि वे बचपन से लेकर बेटियों के कुछ करने तक उनका साथ दें।
विजयलक्ष्मी सिंह
समाज में हर वर्ग का अधिकार सुरक्षित रहना चाहिए। आधी आबादी के लिए समाज में बराबरी का दर्जा मिलना चाहिए। शुरुआत से ही बच्चियों को उनकी शिक्षा व अधिकार के प्रति प्रेरित करना चाहिए।
एंजेलिना फिलिप
आज भी तमाम परिवारों में हालत ऐसे हैं कि महिलाएं अपनी बात को नहीं रख पाती हैं, जबकि महिलाओं द्वारा हर स्तर पर अपना और परिवार का नाम रोशन किया जा रहा है।
सुनीता सिंह
महिलाओं को बराबरी कहीं नहीं मिल रही है। हमेशा पुरुषों को ही वरीयता दी जाती है। महिलाओं की भागीदारी हर क्षेत्र में बराबर होनी चाहिए। सुरक्षा बेहतर हुई है।
हरप्रीत कौर
बतौर महिला डॉक्टर समाज से जो सहयोग मिलना चाहिए, वह नहीं मिल पाता है। समाज को महिला अधिकारी और कर्मचारी के प्रति सहयोगत्मक रवैया अपनाना चाहिए।
डॉ. शीबा खान
महिला डॉक्टर परिवार के साथ ड्यूटी का फर्ज बखूबी निभा रही हैं। आए दिन ओपीडी में महिला डॉक्टरों को धमकी मिलती है। महिला चिकित्सकों को सुरक्षा की जिम्मेदारी तय होनी चहिए।
डॉ. वंदना
महिलाओं की सुरक्षा केवल एक सामाजिक आवश्यकता नहीं है, बल्कि एक अधिकार है जो उन्हें सम्मान और समानता की भावना के साथ जीने का अधिकार प्रदान करता है।
डॉ. रुपाली नायक
सोशल मीडिया पर रील्स के चक्कर में फंसकर कम उम्र के बच्चे अच्छे-बुरे का फैसला नहीं कर पा रहे हैं। साइबर क्राइम महिला अपराध की बड़ी वजह बनती जा रही है। इस पर नियंत्रण होना चाहिए।
डॉ. अमृता पांडेय
समाज के विचारों में अगर बदलाव आ जाए तो बेटियों को किसी भी मुकाम पर पहुंचाया जा सकता है। इसलिए समाज के बदलाव के लिए शुरुआत से ही बच्चों के अंदर ऐसे संस्कार डालने होंगे।
कमलेश ओझा
समाज में बदलाव हो और परिवार द्वारा बेटियों को बेहतर शिक्षा देने के लिए प्रयत्न किया जाए तो वे अपने भविष्य में परिवार ही नहीं देश का नाम भी रोशन कर सकती हैं।
नीलम गुप्ता
बेटियों की संख्या और उनके द्वारा बेहतर तरीके से कार्य करने का जज्बा आनंदित करने वाला होता है। बेटियों को जितना हो सके खुले आसमान में उड़ने देना चाहिए।
कलावती गुप्ता
हर परिवार अपनी बेटियों को शुरू से ही अच्छे संस्कार दें ताकि वे आगे चलकर देश का नाम रोशन कर सकें। बेटियों को अच्छा और बुरा दोनों पहलुओं को बताना चाहिए।
कविता
महिलाएं हर क्षेत्र में अपने मुकाम को पा रही हैं। महिलाओं को आगे बढ़ाने के लिए परिवारों को भी आगे आना चाहिए। इससे उनका मनोबल बढ़ेगा और महिलाएं ऊंचाइयों को भी छूने का काम करेंगीं।
उमा अग्रवाल
समाज में महिलाओं को अभी भी कमतर समझा जाता है, जबकि महिलाएं किसी काम के लिए ठान लें तो उसको पूरा करके ही मानती हैं। परिवार द्वारा महिलाओं का साथ न मिलने से उनके सपने टूट जाते हैं।
रानी पांडेय
रखी बात
घर-परिवार के हर कार्यक्रम की रौनक बेटियों और महिलाओं से रहती है। किचन हो या बाजार महिलाओं की मौजूदगी के बिना अधूरा है। महिलाएं हैं तो बेटे, बेटियां हैं, घर में खुशियों की बहार है। महिलाएं अपनी ईमानदारी, मेहनत और लगन से घर को मंदिर और शहर को शिखर बना रही हैं। महिलाएं हर क्षेत्र में पुरुषों के साथ कदम से कदम मिलाकर चल रही हैं। बावजूद इसके समाज में कुछ बातें ऐसी हैं, जो दर्द देती हैं। समाज से अशिक्षा, दहेज प्रथा, महिला हिंसा, साइबर वर्ल्ड में महिलाओं संग धोखाधड़ी समेत कई समस्याओं को मिलकर दूर करना होगा। शिक्षा के दम पर बेटियां प्रशासनिक पदों से लेकर शिक्षक, डाक्टरी के पेशे में भी आगे हैं।
रश्मि यादव, एसडीएम, भानपुर।
बस्ती में भी बदलाव की बयार धीरे-धीरे तेज हो रही है। लोगों की सोच में बदलाव आ रहा है, व्यवहार में परिवर्तन आ रहा है और बेटियों पर भरोसा कायम किया जा रहा है। बेटियों के सपनों को ऊंची उड़ान भरने में परिवारों द्वारा सहयोग किया जा रहा है। मुकाम हासिल कराने तक परिवारों द्वारा पूरा साथ दिया जा रहा है। हर क्षेत्र में महिलाओं को आगे बढ़ते हुए देखकर काफी खुशी मिलती है। विभिन्न कार्यक्रमों में जब महिलाओं के बारे में सुनती हूं तो उनके उत्थान को लेकर मन उत्साहित हो जाता है। नगरपालिका के कामकाज के साथ ही घर की जिम्मेदारी भी संभालती हूं। पूरा प्रयास रहता है कि महिलाओं के लिए बेहतर से बेहतर सुविधा उपलब्ध कराई जा सके।
नेहा वर्मा, नगरपालिका अध्यक्ष, बस्ती
मेरे पास जब महिलाओं की समस्याएं आती हैं तो उनको मैं प्राथमिकता के आधार पर हल कराती हूं। टूटे परिवारों को जोड़ने का काम किया जाता है। महिलाओं के लिए शिक्षा बहुत जरूरी है। जब तक अपनी बात खुलकर कहेंगी नहीं, तब उनकी सामाजिक स्थिति में बदलाव नहीं होगा। पहले अपने अधिकारों को जानना है। उसका सदुपयोग करना होगा। आत्मरक्षा के साथ ही साइबर क्राइम से बचाव की ट्रेनिंग भी उन्हें दी जा रही है। समाज की भी अपनी जिम्मेदारी है। किसी भी बच्चे में घर से ही अच्छे संस्कार का अंकुरण कराना चाहिए। घरों में बेटे और बेटी के अंतर को खत्म किया जाना चाहिए। बेटे की तरह बेटी को हर मौका बराबर का दिया जाना चाहिए। डॉ. शालिनी सिंह, एसएचओ, महिला थाना, बस्ती
बड़े पदों पर पहुंचने के बाद भी महिलाओं को परेशानियों का सामना करना पड़ता है। खासकर डिग्री कॉलेज प्रधानाचार्य जैसे पद पर काम करते समय सुरक्षा एक बड़ा मुद्दा बनता है। देर रात तक काम करने, वापस घर जाने में सुरक्षा को लेकर खतरा महसूस होता है। सरकार को कोई ऐसा तंत्र विकसित करना चाहिए, जिससे महिला अधिकारी को अपनी सुरक्षा सुनिश्चित महसूस हो। सरकार पढ़ने वाली लड़कियों के लिए सुविधा तो दे रही है, लेकिन नई शिक्षा नीति के तहत फीस में भी बढ़ोत्तरी हुई है। ऐसे में सरकार लड़कियों की फीस को समाप्त कर दे तो वे स्वयं से पढ़ाई कर आगे बढ़ सकती हैं।
प्रो. रीना पाठक , प्राचार्या, किसान पीजी कॉलेज बस्ती
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