बोले बिजनौर : अपनी जमीन से बेगाने, अब पहचान का संकट
Bijnor News - बिजनौर में पूर्वी बंगाल से विस्थापित बंगाली समाज को अपनी जमीन पर बेगाने होने का दर्द झेलना पड़ रहा है। 1978 में सरकारी अधिग्रहण के बाद, उन्हें भूमि और रोजगार की कमी का सामना करना पड़ रहा है। बांध का...

पूर्वी बंगाल से विस्थापित होने के बाद अपनी ही जमीन पर बेगाने होने का दर्द बिजनौर में पुनर्वासित बंगाली समाज झेल रहा है। उस समय प्रत्येक परिवार को छह एकड़ भूमि आवंटित की गई थी। 1978 में मध्य गंगा बैराज के लिए अधिकतर किसानों की भूमि सरकार ने अधिग्रहित कर ली थी। इससे बंगाली कृषक भूमिहीन व बेरोजगार हो गए। जो भूमि उन्हें प्रदान की गई हैं, उस भूमि की श्रेणी गवर्मेन्ट एक्ट की श्रेणी में होने से कृषि अथवा एजुकेशन लोन, हाउसिंग लोन आदि से वंचित हैं। आधे साल बांध के पानी से खेती की जमीन जलमग्न रहने से उपज सड़-गल जाती है।
आजादी से पहले पूर्वी बंगाल से विस्थापन का दंश झेलकर बिजनौर की माटी पर उम्मीद की किरणें तलाशने वाले बंगाली समाज का जीवन आज घोर निराशा और अनिश्चितता के अंधकार में डूबा है। बंगाली समाज के ये छह गांव अमीरपुरदास उर्फ धर्मनगरी, घासीवाला कालोनी, खेड़की हेमराज, नवलपुर बैराज, चांदपुर नौआबाद तथा इटावा हैं। अखिल भारतीय बंगाली एकता मंच के प्रदेश अध्यक्ष दीपक कुमार मंडल के अनुसार दशकों पूर्व सरकार द्वारा पुनर्वासित इन परिवारों को आवंटित 6 एकड़ भूमि, जो कभी उनके सपनों का आधार थी, आज छिन चुकी है। वर्ष 1978 में मध्य गंगा बैराज के निर्माण ने इनके पैरों तले से जमीन खिसका दी और उन्हें भूमिहीन व बेरोजगार बना दिया। जिस भूमि पर कभी अन्न उगाकर इन परिवारों ने अपने भविष्य के ताने-बाने बुने थे, वह अब सरकारी अधिग्रहण की भेंट चढ़ चुकी है। विडंबना यह है कि जो थोड़ी-बहुत जोत की भूमि उन्हें वैकल्पिक रूप से प्रदान की गई है, वह ‘गवर्नमेंट एक्ट की श्रेणी 1 (ख) में होने के कारण ये लोग कृषि, शिक्षा या आवास जैसे बुनियादी ऋणों से भी वंचित है। यह स्थिति उन्हें न केवल आर्थिक रूप से अपंग बना रही है, बल्कि समाज की मुख्यधारा से भी काट रही है। बंगाली समाज के लोगों को नमोशूद्र, पौण्ड, मांसी अनुसूचित जाति का लाभ नहीं दिया जाता, जबकि देश के अन्य राज्यों पश्चिम बंगाल, असम, मध्यप्रदेश, राजस्थान, बिहार तथा कर्नाटक आदि में इन्हें अनुसूचित जाति का दर्जा प्राप्त है। बांध का पानी हर साल बरबाद कर देता है फसल मध्य गंगा बैराज का पानी आधे साल तक उनकी कृषि भूमि को जलमग्न रखता है, जिससे खड़ी फसलें सड़-गल जाती हैं। लंबे समय से इसे लेकर आवाज उठाते आ रहे अखिल भारतीय बंगाली एकता मंच के प्रदेश अध्यक्ष दीपक कुमार मंडल के अनुसार बांध का पानी बंधे से जो छोड़ा जाता है वह अगर नवंबर में छोड़ा जाए तो फसलों का कम नुकसान होगा। रावली के पास स्टड बन जाए तो बांध से सटकर बह रही गंगा अपने पहले मार्ग पर चली जाए और बांध से पानी रिसने की समस्या काफी कम हो सकती है। प्रकृति की यह मार और इसमें भी सरकारी उदासीनता का दोहरा अभिशाप उन्हें हर साल भुगतना पड़ता है। पेट भरने के लिए संघर्षरत इन परिवारों का दर्द तब और बढ़ जाता है जब कोई सुनवाई नहीं होती। अंडरपास की लड़ाई, अनदेखी की नई दास्तां इस समाज का नवीनतम संघर्ष निर्माणाधीन मेरठ-पौड़ी हाईवे पर अत्यंत खतरनाक और व्यस्त हो चुके हेमराज कालोनी चौराहे पर एक अंडरपास के लिए है। यहां से बंगाली समाज के छह गांवों समेत दर्जनों गांवों के अलावा बिजनौर शहर के लोग भी दिन रात आवागमन करते हैं। बीती 18 अप्रैल से बिजनौर का यह बंगाली समाज अपनी जान हथेली पर रखकर यहां धरने पर बैठा है। इनकी मांग जायज है सुरक्षा और आवागमन में सुगमता, लेकिन सत्ता के गलियारों में उनकी आवाज अनसुनी कर दी गई है। सांसद चंदन चौहान इनके धरना स्थल पर पहुंचे और इस लड़ाई में साथ देने का न सिर्फ वायदा किया, बल्कि इनके प्रतिनिधिमंडल के साथ दिल्ली जाकर केंद्रीय राज्यमंत्री सड़क, परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय हर्ष मल्होत्रा को एनएच 119 पर यहां सड़क के दोनों ओर सर्विस रोड व अंडरपास के निर्माण की मांग को लिखकर भी दिया था, लेकिन अभी तक बात आश्वासन से आगे नहीं बढ़ी है। बंगाली समाज के लोगों के अनुसार यह केवल एक अंडरपास और सर्विस रोड की मांग नहीं, बल्कि अपने अस्तित्व और गरिमा के लिए एक लंबी लड़ाई है। कई पीढ़ियों का दर्द पूर्वी बंगाल से अपनी जड़ों को छोड़कर आए इन परिवारों ने बिजनौर को अपना घर बनाया था। उन्हें उम्मीद थी कि यहां उनका भविष्य सुरक्षित होगा। लेकिन भूमि अधिग्रहण, सरकारी नीतियों की जटिलता और निरंतर उपेक्षा ने उनकी उम्मीदों को चकनाचूर कर दिया है। यह कहानी केवल भूमिहीनता की नहीं, बल्कि एक ऐसे समाज की पीड़ा है जिसने कई पीढ़ियों से विस्थापन, संघर्ष और अनदेखी का दंश झेला है। संघाधिपति ऑल इण्डिया मतुआ महासंघ एवं केन्द्रीय मंत्री भारत सरकार शांतनु ठाकुर ने जून 2023 में इनके बीच पहुंचकर कहा था, कि विस्थापित बंगाली समाज की समस्याओं को प्राथमिकता के आधार पर दूर किया जाएगा। विधायकों से लेकर अन्य मंत्रियों तक भी ये लोग समय-समय पर अपनी जायज मांगे रखते आए हैं, लेकिन बिजनौर का बंगाली समाज आज भी न्याय की राह तक रहा है। शिकायतें... 1. गंगा बैराज बांध से रिसकर आने वाले पानी से फसलें जलमग्न होकर खराब हो जाती हैं। 2. बंगाली समाज को दी गई ‘गवर्नमेंट एक्ट की श्रेणी 1 (ख) की जमीन का अभी तक मालिकाना हक नहीं मिला। 3. अन्य राज्यों की तरह बंगाली समाज के लोगों को नमोशूद्र, पौण्ड, मांसी अनुसूचित जाति का लाभ नहीं मिलता। 4. खतरनाक हेमराज चौराहे पर अंडरपास के लिए 18 अप्रैल से धरना देने पर भी सुनवाई नहीं हो रही। 5. बंगाली समाज के गांव में यहां के युवाओं-बच्चों के लिए आज तक कोई खेल का मैदान नहीं है। सुझाव... 1. बंधे से पानी नवंबर में छोड़ा जाए तो फसलों का कम नुकसान होगा, रावली के पास स्टड बने। 2. बंगाली समाज को दी गई ‘गवर्नमेंट एक्ट की श्रेणी 1 (ख) की जमीन का मालिकाना हक मिले। 3. बंगाली समाज के लोगों को नमोशूद्र, पौण्ड, मांसी अनुसूचित जाति का लाभ यूपी में भी मिले। 4. सुरक्षा और आवागमन में सुगमता के लिए एनएच 119 पर हेमराज चौराहे पर अंडरपास बने। 5. बंगाली समाज के गांव में युवाओं-बच्चों के लिए खेल के मैदान का निर्माण कराया जाए। हमारी भी सुनिए जमीनें छिन चुकी हैं, सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिलता और बुनियादी सुविधाओं के लिए भी संघर्ष करना पड़ रहा है। - दीपक कुमार मंडल, प्रदेश अध्यक्ष प्रदत्त भूमि की श्रेणी गवर्मेन्ट एक्ट के कारण सरकारी सुविधाओं जैसे एजुकेशन लोन, कृषि लोन, हाउसिंग लोन से भी वंचित हैं। - रथेन्द्र विश्वास, पूर्व प्रधान अन्य समस्याओं की क्या कहें, अब हम एक अदद अंडरपास के लिए 18 अप्रैल से धरने पर बैठे हैं, क्या हमारी जान की कोई कीमत नहीं है। - हर्षित हाल्दार सांसद जी ने अंडरपास का वादा तो किया, पर आश्वासन से आगे बात नहीं बढ़ी। हमें अब सिर्फ काम चाहिए, आश्वासन नहीं। - राजू विश्वास ‘गवर्नमेंट एक्ट की श्रेणी 1 (ख) के कारण हमें कोई सरकारी ऋण नहीं मिलता, जिससे हम न खेती कर पा रहे हैं, न बच्चों को पढ़ा पा रहे हैं। - सुषेण मंडल अन्य राज्यों में नमोशूद्र, पौण्ड, मांसी को अनुसूचित जाति का दर्जा मिलता है, पर यहां हम इससे वंचित हैं। - राजेश मंडल मध्य गंगा बैराज का पानी हमारी फसलें हर साल डुबो देता है। हम चाहते हैं कि बांध से पानी छोड़ने का समय बदला जाए। -रणधीर हाल्दार जमीनें अधिग्रहित होने के बाद भूमिहीन हो गए। दी गई जमीन की फसल बांध का पानी नष्ट कर देता है। कैसे परिवार का पेट भरेंगे। - सपन दास, ग्राम प्रधान चांदपुर नौआबाद हमारी जो थोड़ी-बहुत जमीन बची है, उस पर भी बांध का पानी कब्जा कर लेता है। हमारी जीविका ही खत्म हो गई है। - दिलीप अधिकारी, खेड़की हेमराज हमारे बच्चों को स्कूल जाने के लिए हर दिन खतरनाक हाईवे का चौराहा पार करना पड़ता है। यह कब तक चलेगा। - प्रदीप अधिकारी, पूर्व प्रधान खेड़की हेमराज मध्य गंगा बैराज के कारण हर साल फसलें बर्बाद होती हैं और अब मेरठ-पौड़ी हाईवे पर एक अंडरपास के लिए धरने पर बैठे हैं। - बाबू अधिकारी जब तक अंडरपास नहीं बनेगा, हम यहीं बैठे रहेंगे। हमारी सुरक्षा और सुविधा हमारे लिए सबसे पहले है। - विराज मिर्धा हम लगातार प्रदर्शन कर रहे हैं, पर प्रशासन आंखें मूंदे बैठा है। कब तक हमें सड़कों पर उतरना पड़ेगा। - नकुल हाल्दार हमें लगता है कि हम अपनी ही भूमि पर बेगाने हो गए हैं। जब जमीनें छिनी दूसरी सरकार थी। मौजूदा सरकार हमारी ओर कब देखेगी। - दीपक बाला हमारी यह लड़ाई सिर्फ एक अंडरपास की नहीं, बल्कि अपने अस्तित्व और गरिमा को बचाने की है। - शंभू दास मेहनत-मजदूरी कर बच्चों को पढ़ा रहे हैं, लेकिन समाज के गांव में यहां के बच्चों के लिए आज तक कोई खेल का मैदान नहीं है। -मनमोहन सिकदार
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