Labour Day Struggles and Hopes of Daily Wage Workers in India बोले फिरोजाबाद: मजदूरों का दर्द, ज्यादा कराते हैं काम, नहीं देते ओवरटाइम, Firozabad Hindi News - Hindustan
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बोले फिरोजाबाद: मजदूरों का दर्द, ज्यादा कराते हैं काम, नहीं देते ओवरटाइम

Firozabad News - एक मई को मजदूर दिवस के अवसर पर मजदूरों की स्थिति पर चिंता जताई गई। मजदूरों को काम की कमी और उचित मजदूरी न मिलने की समस्या का सामना करना पड़ रहा है। कई मजदूरों का कहना है कि उन्हें सरकारी योजनाओं का...

Newswrap हिन्दुस्तान, फिरोजाबादThu, 1 May 2025 01:11 AM
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बोले फिरोजाबाद: मजदूरों का दर्द, ज्यादा कराते हैं काम, नहीं देते ओवरटाइम

एक मई यानी मजदूर दिवस। मजदूरों के महत्व को बताता है। मजदूर पर ही देश की अर्थव्यवस्था निर्भर है। फैक्ट्रियों में उत्पादन की बात हो या फिर कहीं पर भवन बनने की। बगैर मजदूर संभव नहीं है। हर कार्य में मजदूरों की जरूरत पड़ती है। यही वजह है कि मजदूरों के लिए सरकार ने भी कई कानून बनाए हैं। मजदूरों से जुड़े हुए कई संगठन हैं लेकिन सबसे ज्यादा प्रभावित हैं वो मजदूर। जो हर सुबह अपने श्रम का सौदा कराने के लिए मजदूर मंडी में पहुंचते हैं। इनमें से अधिकांश का भवन सन्निर्माण कर्मकार कल्याण बोर्ड में पंजीकरण भी नहीं।

हर आने वाले को आस भरी निगाहों से ताकते हैं कि शायद उसे मजदूरों की जरूरत हो लेकिन इसके बाद भी जब इन्हें काम नहीं मिल पाता है तो फिर निराश कदमों से घर लौटते मजदूरों की आंखों में घर पर बच्चों की अधूरी उम्मीदों का दर्द भी नजर आता है। हिन्दुस्तान ने बोले फिरोजाबाद के तहत रामलीला मैदान के निकट लगने वाली मंडी में जब मजदूरों से संवाद किया तो मजदूरों का दर्द फूट पड़ा। कोई बीते माह दस दिन काम न मिलने की बात बता रहा था तो कोई बता रहा था किस तरह से मजदूरों की मंडी में सुबह आने वाले शराबी फिजां को बिगाड़ते हैं। इनके द्वारा बीच में आकर कम पैसे में भी काम पर जाने के लिए राजी होने के कारण मंडी के रेट खराब हो रहे हैं लेकिन इससे इन पर कोई फर्क नहीं पड़ता है। कई मजदूरों का यह भी कहना था कि उनका अभी तक श्रमिक कार्ड नहीं बन सका है। विभाग में जाने पर कई तरह की औपचारिकताएं होती हैं तो कई चक्कर काटने पड़ते हैं। इसके बाद भी कार्ड नहीं बन पा रहा है तो फिर सरकार की योजनाओं का लाभ भी नहीं मिल पा रहा। अगर कार्ड बन जाए तो काफी हद तक कुछ जरूरी समस्याएं तो हल हो जाएंगी। वहीं कई मजदूरों का कहना था कि महीने में 20-22 दिन काम मिलता है, उस पर भी सरकार ने राशन कार्ड काट दिया है। कर्मचारियों ने बगैर जांच के ही अपात्र दिखा दिया है तो अब दफ्तर के चक्कर लगा रहे हैं तो कार्ड नहीं बन पा रहा है। कम से कम राशन मिलने से कुछ तो मदद मिल जाती थी, अब तो राशन भी नहीं मिल रहा है। मजदूरों की शिकायत सुनने को होनी चाहिए कमेटी मजदूरों का कहना था कि कई लोग तो अच्छे होते हैं लेकिन कुछ लोग काम पर ले जाते हैं तो गुलाम बनाकर काम कराते हैं। एक साथ कई काम बता देंगे तो कई बार तो पांच बजे के बाद भी काम कराते रहते हैं। थोड़ी-थोड़ी देर की बात करते हुए आधा से एक घंटे तक काम करा लेते हैं लेकिन इसके बाद में जब उनसे अधिक काम के लिए रुपये मांगे तो ओवरटाइम के नाम पर भी कुछ नहीं देते हैं। कई तो तय मजदूरी में से भी कटौती करने का प्रयास करते हुए कहते हैं कि काम ढंग से नहीं किया है। इस तरह के लोगों की शिकायत के लिए भी कोई जगह होनी चाहिए, जहां पर गरीब मजदूरों को न्याय मिल सके। इसके लिए एक कमेटी का गठन किया जाना चाहिए। मजदूरों की पीड़ा मजदूरी का काम करते हैं। मजदूरों की अब जगह-जगह मंडी लगने लगी हैं। इधर मजदूरी के रुपये भी पूरे नहीं मिल रहे। लोग आज 300 में मजदूर तलाशते हुए दिखाई देते हैं। इस स्थिति में आम मजदूर कहां पर जाए। -ओम प्रकाश हर रोज काम की तलाश में आते हैं तो कई बार काम नहीं मिल पाता है। घर पर खाली हाथ जाना पड़ता है। सरकार द्वारा योजना चलाई जा रही है लेकिन हमें तो उस योजना का भी लाभ नहीं मिलता है। कैंप लगाकर योजनाओं को लाभ मिले। -गुलफाम हमारा तो राशन कार्ड भी कट गया है। उसके लिए चक्कर काटते हैं तो एक दिन की दिहाड़ी मारी जाती है। कई बार चक्कर काटने पर भी राशन कार्ड नहीं बन पा रहा है। यहां भी हर रोज आते हैं, तब कहीं जाकर महीने में 15 दिन काम मिल पाता है। -राम सिंह सरकार की योजना से हमें कुछ लाभ नहीं मिल रहा है। कई बार तो महीने में दस दिन ही काम मिल पाता है। इस स्थिति में घर का खर्च चलाना भी मुश्किल हो जाता है। मंडी की संख्या बढ़ गई है तो काम कराने वाले भी मोल-भाव करते हैं। -बाबू सिंह मजदूरों के बीच एकता हो तो फिर सभी मजदूरों को उचित मजदूरी मिले लेकिन यहां मजदूरों के बीच एकता ही नहीं है। इसके चलते मजदूरी भी कम मिल पा रही है। महीने में कई बार 15 दिन ही काम मिलता है। परिवार चलाने में भी काफी दिक्कत होती है। -सत्यभान सुबह घर से खाने का टिफिन लेकर काम पर निकलते हैं। मजदूर भी इस मोल भाव में फंस जाते हैं तथा जिन्हें काम नहीं मिल रहा होता है वह 300 रुपये पर राजी हो जाते हैं तो अन्य मजदूरों को भी मजदूरी कम मिलती है। -जयवीर अगर मंडी में सभी मजदूर एक हो जाएं तो अच्छी मजदूरी मिलेगी। अभी तो हर रोज जितनी मजदूरी मिलती है, उसमें से भी कुछ रुपये बचाकर रखने पड़ते हैं कि कल काम मिला भी या नहीं। घर का खर्च कैसे चलेगा। -हरेंद्र राठौर हर रोज मंडी में टिफिन लेकर उम्मीद के साथ में आते हैं, लेकिन कई बार काम नहीं मिल पाता है। हमारा भवन निर्माण कर्मकार कल्याण बोर्ड में पंजीकरण है वहां योजनाओं का लाभ भी मिल रहा है, लेकिन मंडी में काम की स्थिति काफी खराब है। -सलीम

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