दिल से फेफड़ों को जोड़ने वाली धमनी से थक्का बिना बेहोश किए निकाला
Gorakhpur News - सर्जरी बीआरडी मेडिकल कॉलेज में हृदय रोग विशेषज्ञों ने बुजुर्ग महिला की बचाई जान

गोरखपुर, वरिष्ठ संवाददाता। बीआरडी मेडिकल कॉलेज में चिकित्सकों ने पहली बार पल्मोनरी मैकेनिक एसप्रेशन थ्राम्बेक्टोमी कर मरीज की जान बचाई है। महानगर निवासी 70 वर्षीय बुजुर्ग महिला के फेफड़े और दिल को जोड़ने वाली धमनी के बीच में खून का थक्का फंस गया था। इससे महिला का दम फूल रहा था। उनका रक्तचाप तेजी से नीचे गिर रहा था। दवाएं कारगर नहीं हो पा रही थी।
जानकारी के अनुसार, महानगर की रहने वाली 70 वर्षीय बुजुर्ग महिला के घर पर गिरने से कमर और पैर की हड्डी टूट गई। परिजनों ने उन्हें मेडिकल कॉलेज के आर्थोपेडिक विभाग में भर्ती कराया। इलाज के दौरान महिला की हालत बिगड़ने लगी। उसका बीपी नीचे गिरने लगा। नब्ज की गति धीमी होने लगी। महिला का दम फूलने लगा।
आनन-फानन में आर्थोपेडिक विभाग से महिला को कार्डियोलॉजी विभाग में शिफ्ट किया गया। कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. राजेंद्र सिंह, डॉ. आशीष राघव और डॉ. आशुतोष सिंह ने मरीज की जांच की। डॉ. राजेन्द्र ने बताया कि ईको कार्डियोग्राफी करने के बाद यह पता चल गया कि दिल और फेफड़ों के बीच में कहीं कुछ गड़बड़ है। तस्दीक के लिए सीटी स्कैन कराया गया। पता चला कि दिल से फेफड़ों को जोड़ने वाली धमनी में खून का थक्का फंस गया है। इसे कार्डियो-पल्मोनरी एल्ब्यूलिज्म कहते हैं। डॉ. राजेन्द्र ने बताया कि सामान्यत: इसमें मरीज की जान बचाने के लिए बाईपास जैसी सर्जरी होती है। यह सर्जरी खतरनाक व बेहद खर्चीली है।
पैर के जरिए तार डालकर खींच लिया थक्का
डॉ. राजेंद्र ने बताया कि मरीज की जान बचाने के लिए मेडिकल कॉलेज में पहली बार पल्मोनरी मैकेनिकल एसप्रेशन थ्राम्बेक्टमी करने का फैसला किया गया है। यह सुविधा लखनऊ, दिल्ली या मुंबई के बड़े अस्पतालों में है। इसके लिए आवश्यक कैथेडर, वायर, डिवाइस, सक्शन मशीन को हवाई जहाज के जरिए दिल्ली से मंगाया गया।
बगैर बेहोश किए हुए सर्जरी
डॉ. राजेन्द्र ने बताया कि सर्जरी में मरीज को बेहोश करने में रिस्क था। उनके दिल की धड़कन और नब्ज धीमी हो गई थी। एनेस्थीसिया का डोज ही मरीज की जान ले सकता था। ऐसे में मरीज को बगैर बेहोश किए सर्जरी करने का फैसला किया गया। सर्जरी करीब ढाई घंटे चली। इस दौरान पैर में एक छोटा चीरा लगाया गया। वहां से वायर डालकर दिल तक पहुंच गया। विशेष डिवाइस के जरिए क्लॉट को तोड़कर उसे खींच कर बाहर निकाल दिया गया। पूर्वी यूपी के किसी अस्पताल में पहली बार इस प्रकार की सर्जरी की गई है। सर्जरी के 24 घंटे बाद मरीज पूरी तरह स्वस्थ हो गई। उसे डिस्चार्ज कर दिया गया है।
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