कुम्हारों को माटी के डिजाइनर उत्पाद बनाना सिखा रहा आईआईटी
Jhansi News - आईआईटी कानपुर में माटी कला कार्यशाला में प्रोफेसर मंगेश अफरे ने बताया कि कुम्हार आधुनिक तकनीक और डिजाइन का उपयोग करके मिट्टी के उत्पादों की बिक्री बढ़ा सकते हैं। कार्यशाला में कारीगरों को नए डिज़ाइन...

कानपुर, वरिष्ठ संवाददाता। आईआईटी कानपुर में चल रही सात दिवसीय माटी कला कार्यशाला में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ क्राफ्ट्स एंड डिजाइन के प्रोफेसर (आईआईसीडी), जयपुर के सिरेमिक विशेषज्ञ प्रोफेसर मंगेश अफरे ने कहा, यदि गांव के कुम्हार माटी के उत्पाद में आधुनिक तकनीक और डिजाइन का उपयोग करें तो कम मिट्टी में अधिक कीमत देने वाले प्रोडक्ट बना सकते हैं। आईआईटी के डिजाइन डेवलपमेंट सेंटर में गांवों से आए माटी कला से जुड़े कलाकारों (कुम्हारों) को नवीनतम तकनीक से रूबरू कराते हुए उन्होंने कहा कि माटी के उत्पादों की बिक्री अधिक हो सकती है यदि वे परंपरागत डिजाइन के साथ इसमें आधुनिकता का समावेश कर लें।
जो नई तकनीक हैं, उसमें मिट्टी कम लगती है और इसे पकाना भी आसान है। उन्होंने कहा कि भले ही ग्रामीण क्षेत्र में डिजाइनर मटके, सुराही, कुल्हड़ आदि बनाए जा रहे हैं लेकिन उसकी डिमांड शहर में लगातार बढ़ती जा रही है। 15 जून तक आईआईटी में चलने वाली इस कार्यशाला प्रोफेसर मंगेश ने एक कारीगर, एक उत्पाद की सोच के तहत कारीगरों को एक खास उत्पाद में महारत हासिल करने पर जोर देते हुए कहा, इसमें हुनर, नवाचार और व्यक्तिगत अभिव्यक्ति शामिल होनी चाहिए। कार्यशाला में उपयोग की गई मिट्टी सीधे गंगा नदी से ली गई है, जो क्षेत्रीय संस्कृति से जुड़ाव दिखाती है। यहां बर्तन बनाने की प्रक्रिया पारंपरिक तरीकों से कम तापमान पर की जाती है, जो पुराने और नए डिजाइन का सुंदर मिश्रण है। प्रोफेसर मंगेश का कहना है कि आमतौर पर कारीगर शहर के बाजार की जरूरतों को नहीं समझ पाते। इसमें हम उनकी मदद करेंगे। उन्होंने कहा कि कानपुर के माटी के कलाकारों के तैयार बर्तन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देखे और सराहना की। छह दिनों के दौरान कारीगर मिट्टी को आकार देने, डिज़ाइन पर चर्चा करने और नमूने बनाने की कारीगरी सीख रहे हैं। हर कारीगर पांच बेहतरीन बर्तन बना रहा है, जिससे उनकी कारीगरी में सुधार हो। वे फॉर्म बनाने, सतह को बेहतर करने और नाज़ुक डिज़ाइन जोड़ने जैसे महत्वपूर्ण पहलुओं पर काम कर रहे हैं।
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