छह महीने में 4 पहाड़ों की चोटियों तक पहुंचने वाली पहली भारतीय महिला गीता समोता, माउंट एवरेस्ट पर चढ़ बनाया नाम geeta samota becomes cisf first women to reach on mount everest
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छह महीने में 4 पहाड़ों की चोटियों तक पहुंचने वाली पहली भारतीय महिला गीता समोता, माउंट एवरेस्ट पर चढ़ बनाया नाम

पहाड़ों की चोटियां नापने के लिए अदम्य साहस और असीम धैर्य के साथ चाहिए अटूट दृढ़ संकल्प। इन्हीं गुणों के बल पर गीता सामोता माउंट एवरेस्ट पर चढ़ाई करने वाली सीआईएसएफ की पहली महिला अधिकारी बन गई हैं। उनकी सफलता की कहानी साझा कर रही हैं स्मिता।

Aparajita लाइव हिन्दुस्तानSat, 14 June 2025 08:15 AM
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छह महीने में 4 पहाड़ों की चोटियों तक पहुंचने वाली पहली भारतीय महिला गीता समोता, माउंट एवरेस्ट पर चढ़ बनाया नाम

इतिहास में अपना नाम वे लोग ही दर्ज करवा पाते हैं, जिनके पास हिम्मत और साहस के साथ-साथ विपरीत परिस्थितियों से मुकाबला करने का दम होता है। पिछले दिनों इसी तरह की विशेषताओं से पूर्ण केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (सीआईएसएफ) में उप-निरीक्षक के पद पर कार्यरत गीता सामोता ने माउंट एवरेस्ट पर चढ़ाई करने में सफलता हासिल की। ऐसा करने वाली वह सीआईएसफ की पहली महिला कर्मचारी हैं।

बचपन में ठाना था पहाड़ पर चढ़ना

गीता सामोता बेहद साधारण परिवार से ताल्लुक रखती हैं। उनका पालन-पोषण राजस्थान के सीकर जिले के चक गांव में चार बहनों के साथ हुआ है। उन्होंने बचपन से ही लैंगिक असमानता झेला था, इसलिए लड़कों की उपलब्धियों के किस्से सुनकर वे सोचती रहतीं कि कोई लड़कियों की किसी खास उपलब्धि के बारे में क्यों नहीं बात करता है। वे खुली आंखों से सपने देखकर इतिहास में अपना नाम अमर करना चाहती थीं। गीता को बचपन से प्रकृति से गहरा लगाव था। उन्हें अपनी बहनों के साथ घर के कामकाज में हाथ भी बंटाना पड़ता था। वे अकसर घर के कामकाज से बचने के लिए गांव के पास की पहाड़ियों पर चढ़ाई करने चली जाती थीं।

मेहनत-लगन से सब है संभव

लोग अकसर पहाड़ पर चढ़ने की उनकी कोशिशों का मजाक उड़ाते। वे कहते कि पहाड़ पर चढ़ना लड़कियों के वश की बात नहीं है। ऐसी बातों से गीता अपने मन को छोटा नहीं होने देतीं, बल्कि अपने इस सपने को साकार करने की तरकीब सोचने लगतीं। उनमें यह विश्वास गहरा हो जाता कि मेहनत और लगन से लड़कियां कुछ भी हासिल कर सकती हैं। अपने कॉलेज के दिनों में गीता एक शानदार हॉकी खिलाड़ी थीं, लेकिन एक चोट ने उनके खेल के सपने को अधूरा छोड़ने पर मजबूर कर दिया था। पर, इसी मजबूरी ने उन्हें पर्वतारोहण से जुड़ने का अवसर दे दिया।

अपने बैच की पहली महिला

वर्ष 2011 में गीता सीआईएसएफ में शामिल हो गईं। यहां उन्होंने पाया कि बहुत कम लोग पर्वतारोहण से जुड़े हैं। इस अवसर का लाभ उठाते हुए उन्होंने वर्ष 2015 में औली (उत्तराखंड के चमोली जिले स्थित एक हिल स्टेशन) में भारत-तिब्बत सीमा पुलिस प्रशिक्षण संस्थान में पर्वतारोहण के बुनियादी पाठ्यक्रम में दाखिला ले लिया। यहां वे अपने बैच में एकमात्र महिला थीं। अपनी योग्यता और जुनून के बल पर वर्ष 2017 में उन्होंने अपना पाठ्यक्रम पूरा कर लिया। इस तरह वे ऐसा करने वाली पहली सीआईएसएफ महिला ऑफिसर बन गईं।

उपलब्धियों का अंबार

गीता सामोता वर्ष 2019 में उत्तराखंड में माउंट सतोपंथ (7,075 मीटर) और नेपाल में माउंट लोबुचे (6,119 मीटर) पर चढ़ने वाली किसी भी केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल की पहली महिला ऑफिसर बनीं। तकनीकी कारणों से 2021 के लिए नियोजित एवरेस्ट अभियान रद्द हो गया था। इसके बाद गीता ने अपने सामने प्रत्येक महाद्वीप की सबसे ऊंची चोटी ‘कठिन सात शिखर’ पर चढ़ने की एक नई चुनौती रखी। वर्ष 2021 और 2022 के बीच उन्होंने मात्र छह महीने और 27 दिनों में ऑस्ट्रेलिया में माउंट कोजिअस्को पर्वत, रूस में माउंट एल्ब्रुस, तंजानिया में माउंट किलिमंजारो और अर्जेंटीना में माउंट एकांकागुआ पर सफलतापूर्वक चढ़ाई की। इतने कम समय में यह उपलब्धि हासिल करने वाली वे पहली भारतीय महिला पर्वतारोही बन गईं। भारत आकर उन्होंने लद्दाख के रूपशु क्षेत्र की पांच चोटियों - तीन 6,000 मीटर से ऊपर और दो 5,000 मीटर से अधिक पर सिर्फ तीन दिनों में चढ़कर एक और विशिष्ट रिकॉर्ड अपने नाम कर लिया।

सफलता से खत्म हो जाती है थकावट

गीता ने बीबीसी से हुई बातचीत में बताया, ‘एवरेस्ट पर चढ़ाई के दौरान हिमस्खलन, हड्डियों को सुन्न करने वाली थकान, हताहत हुए पर्वतारोहियों की लाशों ने एकबारगी तो भावनात्मक स्तर पर बुरी तरह तोड़ दिया था। पर, मैंने हार नहीं मानी। जब 19 मई की सुबह यह यात्रा समाप्त हुई, तो यह क्षण पूरी तरह से जीत का जश्न मनाने का प्रतीक बन गया।’ वर्तमान में उदयपुर में तैनात गीता कहती हैं, ‘जब मैंने एवरेस्ट की चोटी पर तिरंगा फहराया, तो उस एक पल में सारा संघर्ष और सारी थकावट खत्म हो गई।’ असल में आप कितनी भी तैयारी पहले से क्यों न कर लें, इस पूरे अनुभव के लिए आप खुद को पहले से तैयार नहीं कर सकते। इतनी ऊंचाई पर हर कदम आखिरी कदम जैसा लगता है।’ वास्तव में पहाड़ की चोटी केवल शारीरिक सहनशक्ति का परीक्षण नहीं करती है, बल्कि मानवीय भावना को तोड़ती और फिर से बनाती भी है।

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