आपके शरीर पर आपका अधिकार, जानें अबॉर्शन से जुड़े कानून
हमारा कानून विवाहित या अविवाहित महिलाओं को गर्भपात का अधिकार देता है, बावजूद इसके भारत में बड़ी संख्या में अवैध तरीके से गर्भपात किए जा रहे हैं। गर्भपात से जुड़े इस कानून के क्या हैं विभिन्न पहलू, बता रही हैं शमीम खान

गर्भपात को लेकर दुनिया भर के देशों में लगातार एक बहस चल रही है, जिसमें कानूनी तौर पर इसकी इजाजत देने या फिर नहीं देने को लेकर अलग-अलग राय है। कुछ माह पहले फ्रांस ने वहां की महिलाओं को गर्भपात करवाने का संवैधानिक अधिकार दिया। वहीं, अमेरिका में जून, 2022 में, वहां के सुप्रीम कोर्ट ने रो बनाम वेड मामले को पलट दिया, जिससे राज्यों के लिए गर्भपात पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाने का रास्ता खुल गया। वर्तमान में वहां के 13 राज्यों में गर्भपात पर पूरी तरह से प्रतिबंध है। 28 राज्यों में गर्भावधि के आधार पर गर्भपात पर प्रतिबंध है। 7 राज्य 18 सप्ताह के गर्भ या उससे पहले गर्भपात पर प्रतिबंध लगाते हैं। 21 राज्य 18 सप्ताह के बाद गर्भपात पर प्रतिबंध लगाते हैं।
यह एक जग-जाहिर तथ्य है कि गर्भपात महिलाओं के प्रजनन अधिकार का महत्वपूर्ण पहलू है। सोनी लॉ फर्म, इंदौर से जुड़े वकील विवेक सोनी बताते हैं, गर्भपात कानून और इससे संबंधित नियमों को हाल ही में भारत के सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 21 के तहत, प्रजनन स्वतंत्रता का अधिकार एक महिला की स्वतंत्रता का एक अभिन्न हिस्सा है। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि एक अविवाहित महिला को सुरक्षित गर्भपात तक पहुंचने से रोकना उसकी स्वायत्तता और स्वतंत्रता का उल्लंघन है। अविवाहित महिलाओं को 24 सप्ताह की गर्भावस्था को समाप्त करने की अनुमति देने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने गर्भपात कानूनों का दायरा बढ़ाया है।
भारत में क्या है गर्भपात से जुड़ा कानून
भारत में गर्भपात 1971 से वैध है। जब 1971 में एमटीपी अधिनियम को पहली बार लागू किया गया था, तब 12 सप्ताह तक के गर्भपात के लिए एक पंजीकृत डॉक्टर और 20 सप्ताह तक के गर्भपात के लिए दो डॉक्टरों की स्वीकृति की आवश्यकता होती थी। 2003 में संशोधन के माध्यम से, एमटीपी अधिनियम में सात सप्ताह तक के चिकित्सीय गर्भपात के लिए गर्भपात की दवा के इस्तेमाल की अनुमति मिली। 2020 में इस अधिनियम में संशोधन हुए और संशोधित कानून सितंबर, 2021 में प्रभावी हुआ।
नए कानून के प्रावधान
अब कोई महिला 20 से 24 सप्ताह तक चिकित्सकीय गर्भपात करवा सकती है।
20 सप्ताह तक केवल एक ही पंजीकृत चिकित्सक की राय की आवश्यकता होगी।
24 सप्ताह के गर्भपात के अधिकार का इस्तेमाल केवल कुछ विशेष परिस्थितियों में ही किया जा सकता है।
20 सप्ताह के बाद
20 से 24 सप्ताह के गर्भावस्था तक गर्भपात करवाने के लिए दो पंजीकृत चिकित्सकों की राय की आवश्यकता होगी। यदि डॉक्टर ने सहमति प्रदान की है और निम्नलिखित कारणों में से कम-से-कम एक के लिए प्राधिकरण से अनुरोध किया जाता है, तो इसे इस अधिनियम के प्रावधानों के तहत प्रदान किया जाएगा:
यदि गर्भावस्था को जारी रखने से गर्भवती महिला के जीवन को खतरा होता है।
यदि गर्भावस्था जारी रखने से महिला के शारीरिक या मानसिक स्वास्थ्य को गंभीर क्षति पहुंचने का खतरा है।
24 सप्ताह तक में गर्भपात का आधार
दो पंजीकृत चिकित्सकों की राय लेने के बाद नीचे दी गई शर्तों के तहत गर्भपात की अनुमित दी जा सकती है:
यदि महिला यौन उत्पीड़न या बलात्कार या अनाचार की शिकार है। lयदि गर्भावस्था के दौरान उसकी वैवाहिक स्थिति (विधवा होने या तलाक के कारण) में कोई बदलाव होता है। lयदि वह गंभीर शारीरिक विकलांगता से पीड़ित है या मानसिक रूप से बीमार है।
गंभीर रूप से विकलांग बच्चे के जन्म की आशंका हो। lयदि महिला मानवीय या प्राकृतिक आपदा में है या सरकार द्वारा घोषित आपातकाल में फंसी हुई है।
24 सप्ताह से अधिक की गर्भावस्था
जहां गर्भावस्था 24 सप्ताह से अधिक हो गई हो, वहां गर्भपात भ्रूण की असामान्यताओं और विकृतियों के आधार पर किया जाता है। एमटीपी अधिनियम के तहत प्रत्येक राज्य में स्थापित चार सदस्यीय मेडिकल बोर्ड को इस प्रकार के गर्भपात की अनुमति देनी होगी।
अविवाहित के लिए क्या है कानून
संशोधित 2021 एमटीपी अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार, अविवाहित महिलाएं भी उपर्युक्त परिस्थितियों में गर्भपात करा सकती हैं, क्योंकि इस अधिनियम में पति या साथी की सहमति की आवश्यकता का उल्लेख नहीं किया गया है। अगर महिला नाबालिग है, तो अभिभावक की स्वीकृति आवश्यक है।
मिला है गोपनीयता का अधिकार
यह अधिनियम गर्भपात कराने वाली महिला को गोपनीयता के अधिकार की गारंटी देते हैं। अधिनियम की धारा 5-ए के अनुसार, पंजीकृत चिकित्सा प्रदाता केवल उस व्यक्ति को गर्भपात कराने वाली महिला का नाम और विवरण बता सकते हैं, जिसे कानून द्वारा अधिकृत किया गया हो। यदि चिकित्साकर्मी महिला की निजता का उल्लंघन करते हैं, तो उन्हें एक साल की जेल या जुर्माना या दोनों भी हो सकते हैं।
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