बोले कुशीनगर : बंधे की दुर्दशा से बाढ़ की आशंका गहराई, एक लाख की आबादी पर मंडरा रहा खतरा
Kushinagar News - छितौनी-दरगौली रिंग बांध जो 4.5 किलोमीटर लंबा है, अब पूरी तरह खस्ताहाल हो चुका है। ग्रामीण बाढ़ के डर में जी रहे हैं क्योंकि बांध की मरम्मत नहीं की गई है। पिछले साल की बाढ़ ने इसे गंभीर रूप से क्षति...

करीब डेढ़ दशक पहले बनाया गया छितौनी-दरगौली रिंग बांध अब पूरी तरह खस्ताहाल हो चुका है। 4.5 किलोमीटर लंबा यह रिंग बांध कभी यहां की एक लाख से अधिक आबादी को बाढ़ से बचाने का सुरक्षा कवच हुआ करता था। मगर, अब उसकी हालत इतनी जर्जर हो चुकी है कि बरसात के मौसम की आहट भर से लोग डरने लगे हैं। इस बार भी ग्रामीणों को रिंग बांध के कारण बाढ़ की चिंता सताने लगी है। ‘हिन्दुस्तान से बातचीत करते हुए बांध से प्रभावित गांवों के लोगों ने अपने दर्द को बयां किया और इसके मरम्मत की मांग की। : बड़ी गंडक नदी, जिसे नारायणी नदी भी कहा जाता है।
तिब्बत से होकर नेपाल की पहाड़ियों के रास्ते कुशीनगर जिले में बहने वाली इस नदी से खड्डा, पनियहवा, छितौनी, जटहा व सेवरही क्षेत्र लगे हुए हैं। नदी के कहर से बचाने के लिए शासन स्तर से बंधे का निर्माण किया गया है ताकि बरसात के मौसम में बाढ़ के कहर से लाखों लोगों को बचाया जा सके, लेकिन बंधों के सही ढंग से रख-रखाव व देखभाल नहीं होने के चलते इनकी हालत बदतर हो चली है। बरसात का मौसम शुरू होते ही छितौनी और उसके आसपास के गांवों के लोग आशंकाओं में जीने लगते हैं। खेती करने वाले किसानों की सबसे बड़ी चिंता यह होती है कि अगर पानी खेतों में भर गया तो न केवल फसलें बर्बाद होंगी, बल्कि परिवार के भरण-पोषण का जरिया भी खत्म हो जाएगा। लोग पहले से ही अपने घरों की छत पर जरूरी सामान रखने की तैयारी में लग जाते हैं। कुछ गांवों में तो लोग बच्चों और बुजुर्गों को पहले ही सुरक्षित स्थानों पर भेज देते हैं। ‘हिन्दुस्तान से बातचीत करते हुए छितौनी बंधे से लगे गांवों के लोगों ने कहा कि बीते वर्ष नारायणी नदी में आयी बाढ़ ने छितौनी बांध को हिला कर रख दिया था। इसके चलते बाढ़ खंड को छितौनी बांध और वीरभार ठोकर को बचाने के लिए काफी मस्सकत करनी पड़ी थी। नदी का पानी वीरभार ठोकर के ऊपर से बहने लगा था। इस ठोकर की लंबाई 1420 मीटर थी और यह एशिया का सबसे लंबा ठोकर है। यह ठोकर नदी के पानी को इतना दूर कर देता है कि इधर बाढ़ आने का खतरा ही नहीं रहता है। बीते वर्ष आयी बाढ़ ने इसे काफी क्षतिग्रस्त कर दिया। जिसे निरीक्षण करने आयी हाई लेवल कमेटी ने भी महसूस किया और इसकी मरम्मत कराए जाने की बात कही थी। ग्रामीणों ने कहा कि, यह रिंग बांध सिंचाई विभाग द्वारा छितौनी के प्रसिद्ध बोधी माई देवी मंदिर से लेकर बिहार के श्रीपतनगर गांव होते हुए नरकहवा के आगे कटाई भरपुरवा तक बनाया गया था। इसका उद्देश्य था कि आने वाले गंडक नदी के बाढ़ के पानी को उत्तर प्रदेश की सीमा में प्रवेश करने से रोका जा सके, लेकिन इस महत्वाकांक्षी परियोजना को कभी पूरा नहीं किया गया। बलुआ टोला के पास करीब 500 मीटर का हिस्सा आज तक नहीं बनाया गया। यही हिस्सा हर साल बाढ़ के समय सबसे कमजोर कड़ी साबित होता है। तेज बहाव के कारण यह क्षेत्र नाले में तब्दील हो जाता है। लोगों ने कहा कि, गंडक नदी जब उफान पर होती है तो आने वाला बाढ़ का पानी बिना किसी रोकटोक के छितौनी कस्बा, बलुआ टोला, चलंतवा पुल और एनएच 727 तक फैल जाता है। इससे सिर्फ फसलें ही नहीं, बल्कि सड़कों और घरों को भी भारी नुकसान उठाना पड़ता है। सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्र बड़हरवा टोला, छोटका नरकहवा और नरकहवा गांव होते हैं, जहां घरों तक पानी पहुंच जाता है। यही नहीं, छितौनी से नरकहवा को जोड़ने वाली सड़क भी पूरी तरह जलमग्न हो जाती है, जिससे आवागमन ठप हो जाता है और लोग कई दिनों तक गांवों में ही फंसे रह जाते हैं। ---------------- बांध जर्जर होने से प्रभावित है यह गांव, डर कर रह रहे ग्रामीण : ग्रामीणों ने बताया कि, बंधे से सबसे ज्यादा बलुआ टोला, बड़हरवा टोला, छोटका नरकहवा, नरकहवा, दरगौली, चलंतवा पुल क्षेत्र और एनएच 727 के किनारे के कई गांव प्रभावित होते हैं। इसलिए यहां के ग्रामीण हर साल भय के माहौल में जीने को मजबूर रहते हैं। लोगों ने कहा कि छितौनी-दरगौली रिंग बांध के अलावा, जो मुख्य छितौनी बांध है, उसकी हालत भी बहुत अच्छी नहीं है। कई स्थानों पर बांध की मिट्टी बह चुकी है और कटीली झाड़ियों से उसे जैसे-तैसे रोका गया है। वर्ष 2021 की बाढ़ में छितौनी बांध के एक हिस्से पर भारी दबाव बना था और अगर कुछ ही घंटों में बोट मशीन से बोरियां नहीं डाली गई होतीं तो कई गांव तबाह हो सकते थे। -------------------- हाईलेवल कमेटी ने की थी जांच, सरकार को भेजा था प्रस्ताव : बंधे के किनारे बसे गांव के लोगों ने बताया कि, बांध की सुरक्षा के लिए हाई लेवल कमेटी ने बीते वर्ष आयी बाढ़ से क्षतिग्रस्त हुए ठोकरों और बांध का निरीक्षण किया था और इसके बाद सात स्थानों को चिह्नित कर प्रस्ताव प्रदेश सरकार को भेजा था। इसमें तीन प्रोजेक्ट का 17 करोड़ रुपया ही सरकार ने दिया है। ऐसे में चार प्रोजेक्ट लटके पड़े हैं और यही कारण है कि इस बार भी अगर नदी में पानी का दबाव बढ़ा तो यह मरम्मत का काम नाकाफी ही साबित होगा। यही वजह है कि छितौनी बांध और ठोकर पर खतरे के बादल अब भी मंडरा रहे हैं। ----------------------- बंधा मरम्मत का हो रहा काम, पर वह भी नाकाफी : ग्रामीणों ने कहा कि, लोग वर्षों से इस बांध की मरम्मत और अधूरे हिस्से के निर्माण की मांग कर रहे थे, अब जाकर उनकी बात सुनी गई है, लेकिन प्रशासन और सिंचाई विभाग द्वारा जो मरम्मत का काम कराया जा रहा है, वह अभी भी स्थायी नहीं है। क्योंकि ठेकेदार के कार्य कराने के तरीकों पर अधिकारियों का ध्यान नहीं है। बाढ़ खण्ड द्वारा अति संवेदनशील की श्रेणी में रखे गए ठोकर नंबर चार के पुनर्निर्माण कार्य के दौरान बालू की जरूरत को पूरा करने के लिए नदी में जिस तरह जेसीबी मशीन से खनन कराया जा रहा है, वह भविष्य के लिए सुखद संकेत नहीं हैं। ठोकर से लगभग 50 मीटर दूरी पर ही खनन से सिल्ट की परत कमजोर होगी। जब पानी का दबाव बैंकरोलिंग से बढ़ेगा तो निचला हिस्सा खिसक जाएगा। ऐसी स्थिति में ठोकर कटेगा और नदी की धारा सीधे बांध से टकराएगी। क्षेत्र से होकर गुजरने वाली बड़ी गंडक के छितौनी बांध के किनारे बसे गैनही जंगल, मदनपुर सुकरौली, सिसवा गोपाल, भेड़ीहारी सहित कई गांवों के लिए बाढ़ का खतरा बना रहेगा। लोगों ने कहा कि बचाने के लिए बंधे की मरम्मत हर साल होती है। लेकिन इसके रख-रखाव में प्रयुक्त होने वाली सामग्रियों के इस्तेमाल में इस साल काफी मनमानी की जा रही है। हर साल करोड़ों रुपये मरम्मत के नाम पर जिम्मेदार खर्च करते हैं, लेकिन जब बाढ़ आती है तो लोग परेशान रहते हैं कि बांध टूट न जाए। ------------- बाढ़ के बाद भरपाई को ना मात्र का मिलता है मुआवजा : ग्रामीणों ने कहा कि, हर साल बाढ़ का खतरा रहता है। अगर किसी साल बाढ़ आती भी है तो उससे जो नुकसान होता है, उसकी भरपाई के लिए प्रशासन द्वारा जो मुआवजा दिया जाता है, वह ना मात्र का होता है। इसलिए हमारी मांग है कि प्रशासन बंधे का सही तरीके से मरम्मत कराए ताकि ग्रामीणों को आने वाले दिनों में किसी तरह की परेशानियों का सामना न करना पड़े। प्रस्तुति : गंगेश्वर त्रिपाठी/सुनील कुमार मिश्र/लल्लन गुप्ता ---------------------------------------------- शिकायतें : 1. बलुआ टोला के पास लगभग 500 मीटर बांध का निर्माण आज तक नहीं हुआ है। यह जगह हर बार बाढ़ का प्रवेश द्वार बन जाता है। 2. 15 वर्षों में बांध की एक बार भी व्यापक मरम्मत नहीं हुई है। कई जगह मिट्टी कट चुकी है और सुरक्षा की दीवारें ढह चुकी हैं। 3. ग्रामीणों द्वारा कई बार ज्ञापन देने के बावजूद सिंचाई विभाग और प्रशासन की तरफ से कोई ठोस पहल नहीं हुई है। यह भी वजह है। 4. न नाव, न नाविक, न मेडिकल सुविधा। बाढ़ के समय ग्रामीणों को खुद ही जान और माल की सुरक्षा करनी पड़ती है। 5. साल दर साल फसलें और मकान बर्बाद होते हैं, लेकिन प्रशासन द्वारा मुआवजा के नाम पर सिर्फ आश्वासन मिलता है। कुछ होता नहीं। ------------------------------------------------ सुझाव : 1. बांध का अधूरा हिस्सा पूरा किया जाए। बलुआ टोला का 500 मीटर हिस्सा प्राथमिकता के आधार पर मजबूत संरचना के साथ बने। 2. तकनीकी टीम से बांध का निरीक्षण कराकर मरम्मत कार्य सुनिश्चित किया जाए। विशेषकर कमजोर और कटाव वाले हिस्सों पर। 3. बाढ़ तैयारी को व्यवस्थित करते हुए प्रत्येक संवेदनशील गांव में नाव, टार्च, दवा, भोजन, पानी और अन्य राहत सामग्री पहुंचाई जाए। 4. स्थायी राहत शिविर और बाढ़ के दौरान ग्रामीणों को शरण देने के लिए स्कूलों, पंचायत भवनों या नए स्थल को चिह्नित कर तैयारी की जाए। 5. बाढ़ प्रभावितों के लिए पारदर्शी मुआवजा नीति लागू हो ताकि शीघ्र मुआवजा मिल सके और ग्रामीणों के खातों में सीधा इसका भुगतान हो। --------------------------------------------------- यह दर्द गहरा है:: हर साल बाढ़ का पानी हमारे घरों तक पहुंचता है। अब तो डर लगने लगा है कि कब नदी आबादी को उजाड़ दे। इसकी मरम्मत होनी चाहिए। -आनंद भाष्कर छितौनी-दरगौली रिंग बांध पर मरम्मत कराने की जरूरत है। जब नदी के जलस्तर में वृद्धि होती है तो हमें भी डर सताने लगता है। -रामभजन चौहान हमारा खेत हर साल बर्बाद होता है। न मुआवजा मिलता है, न फसल की कीमत। बस नुकसान ही नुकसान है। मुआवजा के नाम पर सिर्फ आश्वासन मिलते हैं। -भग्गन चौहान छितौनी बांध के समीप से बालू खनन किया जा रहा है, जो आने वाले दिनों में तटबंध को ही नुकसान पहुंचेगा। इस पर तत्काल रोक लगाना चाहिए। -अभिनंदन चौहान अगर बलुआ टोला का बांध बन जाता तो लोगों को काफी हद तक आसानी होती। कई बार मांग की गई, लेकिन कोई सुनने वाला नहीं है। -खूबलाल राय छोटे-छोटे बच्चे लेकर कैसे सुरक्षित जगह भागें, कोई साधन नहीं है। हर साल बाढ़ की मार सहते हैं। शासन को जरूरी कदम उठाने की जरूरत है। -कन्हैया भगत घर में पानी घुस जाता है। खाने-पीने की चीजें तक बह जाती हैं। जानवर भी सुरक्षित नहीं रहते हैं। बाढ़ से बचाव के लिए ठोस उपाय करना होगा। -चंद्रिका चौहान बांध पर सिर्फ झाड़ियां हैं, मिट्टी कट चुकी है। मानसून का समय सिर पर है और अब तक रेनकट और रैट होल भी ठीक नहीं किए गए हैं। -कृष्णा गुप्ता नदी के जलस्तर में वृद्धि होने के बाद लोग डर के साये में रहते हैं। अनाज और जरूरी सामान को छत पर रखने की मजबूरी हो जाती है। ठोस कदम उठाया जाए। -नथुनी साहनी बाढ़ से पीड़ित लोगों के लिए पारदर्शी मुआवजा नीति लागू हो ताकि शीघ्र मुआवजा मिल सके और बैंक खाते में सीधा इसका भुगतान हो। -नौमी चौहान साल दर साल फसलें और मकान बर्बाद होते हैं, लेकिन प्रशासन द्वारा मुआवजा के नाम पर सिर्फ आश्वासन मिलता है। कुछ होता नहीं है। -वीरेंद्र शर्मा मानसून सिर पर है और बाढ़ से बचाव की कोई तैयारी नहीं की गई है। स्कूलों, पंचायत भवनों या नए स्थल को चिह्नित कर अभी से तैयारी की जाए। -रमेश चौहन दो साल पहले बंधे से होने लगा रिसाव, धंस गया था 10 मीटर बांध -किमी शून्य और किमी एक के बीच महराजगंज जिले के चंदा गांव के पास हुआ था रिसाव -रैट होल के कारण बंधे पर रिसाव होने के बाद मच गया था हड़कंप, दोनों जिलों के अधिकारी पहुंचे थे पडरौना। साल 2023 में नारायणी नदी का जलस्तर बढ़ने के बाद छितौनी बांध के किलोमीटर शून्य व एक के बीच महराजगंज जनपद के चंदा गांव के समीप नदी के तेज दबाव के कारण बांध के नीचे से पानी का रिसाव गैनही ड्रेन में होने लगा था। उस समय रात के करीब नौ बजे बांध का दक्षिणी हिस्सा पटरी समेत लगभग 10 मीटर का धंस गया था। इससे ड्रेन के आसपास के गांव भेड़ीहारी, गैनही, चंदा समेत महराजगंज जिले के कई गांवों के लोग दहशत में आ गए। दोनों जिलों में हड़कंप मच गया था। मौके पर पहुंचे दोनों जिलों के अधिकारियों ने बंधे पर काम शुरू कराया था। रिसाव होने के पीछे की वजह रैट होल को बताया गया था। इस बार भी छितौनी तटबंध पर कई जगहों पर रैट होल हैं, जिन्हें अब तक दुरुस्त नहीं किया गया है। साल 2023 में किसी राहगीर ने बांध से गैनही ड्रेन में पानी के तेज रिसाव की जानकारी मदनपुर चौराहे के लोगों को दी थी। इसके बाद कई गांवों के लोग रिसाव स्थल पर पहुंचे और इसकी सूचना बाढ़ खंड कुशीनगर के अधिकारियों को दी। सूचना के चार घंटे बाद पहुंचे अधिकारियों के खिलाफ ग्रामीणों ने नारेबाजी भी की थी। रात करीब नौ बजे के आसपास मौके पर पहुंचे सिंचाई विभाग के एक्सईएन एमके सिंह ने जलस्तर घटने व बढ़ने की वजह से बांध के भीतर पानी का रिसाव होने की बात कही थी। रिसाव तेज होने की वजह से बांध के भीतर बड़ा होल हो गया है। इससे बांध का 10 मीटर हिस्सा भी धंस गया था। दो दिनों तक युद्धस्तर पर काम कराने के बाद बंधे का मरम्मत किया जा सका था। ग्रामीणों का कहना है कि इस बार भी कई जगहों पर रैट होल बने हुए हैं। मानसून आने में अब महज कुछ ही दिन शेष हैं। ऐसे में उन्हें ठीक नहीं किया गया तो फिर बंधे पर नदी कहर बरपा सकती है।
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