चर्चा में है दो भाई-दो बहनों की जोड़ी, पिता ने राह दिखाई; एक साथ हासिल की पुलिस की वर्दी
सिपाही बनने का सपना पूरा करने के लिए इन दो सगी बहनों और दो सगे भाइयों ने दिन रात एक कर दिया। आज इनकी कामयाबी पर इनका परिवार ही नहीं इनके गांव के लोग भी खुश हैं। हर कोई इनके जज्बे की मिसाल दे रहा है। दोनों के गांवों में युवाओं से लेकर बुजुर्गों तक हर कोई इनकी चर्चा और तारीफ कर रहा है।

यूपी के संतकबीरनगर में अलग-अलग परिवारों के दो सगे भाई और दो सगी बहनों की जोड़ी चर्चा में हैं। इन चारों ने एक साथ पुलिस की वर्दी हासिल कर अपने-अपने परिवारों का सपना पूरा कर दिया है। इनकी कामयाबी से इनका परिवार ही नहीं, इनका पूरा परिवार खुश है। इनकी सफलता की खबर आई तो गांव में मिठाई भी बंटी और इन्हें बधाई देने वालों का तांता लग गया। हर कोई इन दोनों भाइयों और दोनों बहनों की मेहनत, लगन और संघर्ष की तारीफ कर रहा है।
सबसे पहले बात दो सगी बहनों की। संतकबीरनगर के धनघटा क्षेत्र के मड़पौना गांव की रहने वाली इन दोनों बहनों के नाम हैं साक्षी चतुर्वेदी और मीनाक्षी चतुर्वेदी। पापा की दिखाई राह और वर्दी की चाहत में कड़ा संघर्ष कर इन्होंने सिपाही की नौकरी हासिल कर ख्वाब पूरा किया। जेटीसी के लिए दोनों बहनों को गाजीपुर जिला आवंटित हुआ है। दोनों बहनों का एक ही ध्येय है कि कैंसर पीड़ित पिता का समुचित इलाज हो और खुद की तरक्की की राह पर आगे बढ़ती रहें। बेटियों की कामयाबी से परिवार ही नहीं समूचा गांव खुश है।
बड़ी बहन साक्षी बीएससी, बीएड है। जबकि छोटी बहन मीनाक्षी ने बीए किया है। दोनों बहनों की शुरू से चाहत थी कि उन्हें वर्दी वाली नौकरी मिले। इसकी राह उनके पिता सत्यव्रत चतुर्वेदी ने दिखाई। पिता सत्यव्रत चतुर्वेदी ने करीब 10 साल पहले जमीन खरीद कर पारा चौराहे पर मकान बनवाया था। वह परिवार के साथ वहीं रहते हैं। पारा में ही वह रेडीमेड की दुकान चलाते थे। दो साल पहले इकलौते भाई शुभम चतुर्वेदी का चयन एमबीबीएस में हुआ। शुभम, वर्तमान में राम मनोहर लोहिया मेडिकल कॉलेज दिल्ली से एमबीबीएस कर रहा है। डेढ़ साल पहले पिता सत्यव्रत चतुर्वेदी को गले में कैंसर हो गया। पिता के इलाज में परिवार की आर्थिक कमर टूट गई। यहां तक कि सड़क के किनारे की दो बिस्वा जमीन भी बेच देनी पड़ी। पिता का दिल्ली एम्स में एक साल पहले ऑपरेशन हुआ, लेकिन फिर गले से नीचे पिता को दूसरी जगह कैंसर हो गया। साक्षी आईटीबीपी में सिपाही पद पर चयनित हुई, लेकिन हरियाणा में ट्रेनिंग होनी थी और इधर पिता की देखभाल की समस्या थी। जिसकी वजह से साक्षी ने आईटीबीपी की नौकरी छोड़ दी। दोनों बहनें रामजानकी मार्ग पर दौड़ लगाती थीं। मेहननत की बदौलत दोनों बहनें साथ-साथ उत्तर प्रदेश पुलिस भर्ती में सिपाही पद पर चयनित हुईं। मां साधना चतुर्वेदी बताती है कि उनकी बेटियों ने जिंदगी के कड़े इम्तिहान से गुजर कर नौकरी हासिल की। बेटियों पर उन्हें गर्व है। इनके संघर्ष की कहानी बेटियों के लिए प्रेरणादायक है।
अब बात दो सगे भाइयों की। संतकबीरनगर के धनघटा क्षेत्र के सोनहन गांव के रहने वाले इन दो सगे भाईयों ने कड़ा संघर्ष करके सिपाही की नौकरी हासिल की और अपने पिता का सपना साकार किया। पिता छोटी सी किराने की दुकान चलाते हैं। दोनों भाई अपनी सफलता का पूरा श्रेय अपने माता-पिता को दे रहे हैं। सोनहन गांव के रहने वाले दो सगे भाई शाह आलम और गौसे आजम सिपाही पद पर चयनित हुए हैं। बड़े भाई शाह आलम ने बीकाम किया है। जबकि छोटे भाई गौसे आजम ने बीए किया है। पिता अब्दुल जब्बार 15-20 साल पहले गोरखपुर के कूड़ाघाट में जमीन खरीद कर टिनशेड बनाए थे।
उसी में पिता छोटी सी किराने की दुकान चलाते हैं। परिवार में माता नाजमा खातून और पिता अब्दुल जब्बार के अलावा ये दोनों भाई है। उनका ननिहाल बस्ती के दुबौलिया बाजार में है। उसके नाना दरोगा थे और बड़े मामा भी दरोगा हैं। उनके पिता का सपना था कि वे दोनों भाई पुलिस में भर्ती हों और समाज की सेवा करें। शाह आलम प्राइवेट स्कूल में पढाने के साथ ही टयूशन पढाते थे। वर्ष 2021 में शाह आलम दरोगा भर्ती की परीक्षा में शामिल हुए थे,लेकिन सफलता नहीं मिल पाई थी। दोनों भाई साथ-साथ मेहनत किए और सफलता मिली। शाह आलम को जेटीसी के लिए आजमगढ़ और गौसे आजम को अयोध्या जनपद आवंटित हुआ है।