समय से पहले आई गर्मी बढ़ा रही गुस्सा, कम ठंड और तेज धूप से हार्मोन में बदलाव; मूड स्विंग के मामले बढ़े
- इसके शिकार लोग छोटी-छोटी बातों पर चिढ़ने के साथ घरवालों से विवाद तक कर रहे हैं। एम्स के मनोचिकित्सा विभाग की ओपीडी में सीजनल अफेक्टिव डिसऑर्डर (एसएडी) के मरीज पहले अप्रैल से मई तक आते थे। लेकिन इस बार फरवरी में ही ऐसे मामले सामने आ रहे हैं।

Mood swings due to weather: मौसम में हो रहे बदलाव का असर लोगों के स्वभाव पर भी पड़ने लगा है। फरवरी में कम ठंड और तेज धूप से ऐसे मरीजों के हार्मोन में बदलाव हो रहा है। इससे मूड स्विंग के मामले अभी से सामने आ रहे हैं। इसके असर से ऐसे मरीज छोटी-छोटी बातों पर चिढ़ने के साथ घरवालों से विवाद तक कर रहे हैं। एम्स के मनोचिकित्सा विभाग की ओपीडी में सीजनल अफेक्टिव डिसऑर्डर (एसएडी) के मरीज पहले अप्रैल से मई के महीने में आते थे। लेकिन इस बार फरवरी में ही ऐसे मामले सामने आ रहे हैं।
डॉ. मनोज पृथ्वीराज और डॉ. ऋचा त्रिपाठी ने बताया कि मनुष्य केमस्तिष्क में गर्मियों और ठंड में अलग-अलग बदलाव देखने को मिलता है। एसएडी के मरीजों को दिक्कत आमतौर पर अप्रैल से मई के बीच होती है। लेकिन, इस बार फरवरी में ही ऐसे मरीज देखे जा रहे हैं।
30 से 45 वर्ष की उम्र के लोग ज्यादा प्रभावित
इन मरीजों के हार्मोन में बदलाव एक से डेढ़ माह पहले हो रहा है। यह बदलाव बदल रहे मौसम का संकेत है क्योंकि इस बार हर साल की तुलना में ठंड कम पड़ी है और फरवरी में तेज धूप होने लगी है। ओपीडी में एसएडी तीन-चार मरीज रोज आ रहे हैं। फरवरी में अब तक करीब 65 मरीज इलाज के लिए पहुंचे हैं। इनमें 70 फीसदी मरीजों की उम्र 30 से 45 वर्ष के बीच है। इन मरीजों की स्क्रीनिंग कर काउंसलिंग की जा रही है।
डॉ. पृथ्वीराज ने बताया कि आमतौर पर ऐसी दिक्कत यूरोप के देशों में देखी जाती है। क्योंकि, वहां पर धूप कम और ठंड अधिक होती है। डॉ. ऋचा के मुताबिक, कम धूप या अधिक धूप सेरोटोनिन के स्तर को प्रभावित कर रही है। यह मस्तिष्क में एक तरह का हार्मोन है, जो मूड को बदलता रहता है।