आज भी अंग्रेजों के नियमों का पालन कर रहा रेलवे, सील बंद डिब्बे में रहती हैं इमरजेंसी की दवाइयां
रेलवे अब आधुनिक हो चुका है, इसके बावजूद कुछ मामलों में आज भी ब्रिटिश काल के नियमों को फॉलो किया जा रहा है। इनमें एक नियम तो ऐसा है कि यदि तीन प्रमुख लोगों की मौजूदगी न हो तो इमरजेंसी की स्थिति में भी किसी यात्री को प्राथमिक उपचार तक नहीं दिया जा सकता।

रेलवे अब आधुनिक हो चुका है, इसके बावजूद कुछ मामलों में आज भी ब्रिटिश काल के नियमों को फॉलो किया जा रहा है। इनमें एक नियम तो ऐसा है कि यदि तीन प्रमुख लोगों की मौजूदगी न हो तो इमरजेंसी की स्थिति में भी किसी यात्री को प्राथमिक उपचार तक नहीं दिया जा सकता। इसका कारण यह है कि प्राथमिक उपचार से संबंधित उपकरण और जरूरी दवाइयां सील बंद डिब्बे में बंद रहती हैं, जिन्हें तीन सदस्यीय कमेटी के हस्ताक्षर के बिना खोला नहीं जा सकता। अब यदि किसी यात्री को गंभीर चोट भी लगती है तो प्राथमिक उपचार के लिए सबसे पहले स्टेशन मास्टर को इसकी सूचना दी जाती है। उसके बाद सील बंद डिब्बे को लाया जाता है। डिब्बे का सील खोलने के वक्त नियमत: स्टेशन मास्टर, डिप्टी एसएस और पोर्टर की मौजूदगी जरूरी होती है। इन तीनों हस्ताक्षर के बाद ही डिब्बे को खोलकर यात्री को प्राथमिक उपचार दिया जाता है।
जानकारों का कहना है कि रेलवे में यात्रियों को प्राथमिक उपचार देने के लिए ब्रिटिश काल से ही एक नियम बना हुआ है, जो आज भी चल रहा है। इसके तहत हर स्टेशन मास्टर के ऑफिस में टीन के तीन सील बंद बॉक्स रखे होंगे। इन डिब्बों में दो साइड में लॉक सिस्टम होता है। उन दोनों लॉक पर पट्टी बांधकर सील लगा दी जाती है। जिससे पता चलता है कि इनमें बीमारियों के उपचार संबंधी मेडिकल उपकरण और दवाइयां रखी हुई हैं। इसे एक तरह से फर्स्ट एड बॉक्स भी कह सकते हैं। यदि स्टेशन पर या किसी ट्रेन में यात्री की तबीयत बिगड़ती है तो उसे प्राथमिक चिकित्सा उपचार देने के लिए स्टेशन मास्टर के ऑफिस में रखीं इन सील बंद बॉक्स का इस्तेमाल किया जाता है। लेकिन इसे खोलकर यात्रियों को उपचार देने की प्रक्रिया इतनी जटिल है कि कई बार मरीज की तकलीफ बढ़ जाती है।
दरअसल, मरीजों को इस सील बंद डिब्बे से उपचार तभी मिलेगा जब डिप्टी एसएस, स्टेशन मास्टर और टोकन पोर्टर एक जगह ऑफिस में मौजूद होंगे। तीनों की मौजूदगी में ही सील बंद बक्से खोले जाएंगे। दस्तावेजों पर इन तीनों के हस्ताक्षर होने के बाद ही यात्री को इलाज मिल सकेगा। बक्से के अंदर एक पुस्तिका होती है, जिसमें यात्री का संपूर्ण विवरण के साथ ही बीमारी के बारे में पूरी जानकारी भरनी होती है। रेल टिकट का विवरण और नाम-पता, मोबाइल नंबर आदि लिखना पड़ता है, जिससे मेडिकल टीम बाद में उस यात्री के बारे में जानकारी भी ले सके। इस प्रक्रिया को पूरा करने में कम से कम एक घंटे का वक्त लग जाता है। इसके बाद ही यात्री का उपचार होता है।
सील बंद बक्सों में होती हैं ये दवाइयां
सफर के दौरान ट्रेन में या प्लेटफॉर्म पर यात्रियों को अचानक सिर सिर्द, पेट दर्द, उल्टी, लूजमोशन, हार्ट अटैक, गिरने से चोटिल होने, हाथ- पैर टूटने की स्थिति में उपचार के लिए इन सील बंद डिब्बों की जरूरत होती है। इन डिब्बों में पेन किलर, बहते खून को रोकने और खून को पतला करने के साथ-साथ पट्टी होती है। टूटे हाथ-पैर में बांधने के लिए पट्टी आदि भी होती है।
सभी छोटे-बड़े स्टेशनों पर लागू है ये नियम
स्टेशन मास्टर ने बताया कि देश के सभी छोटे-बड़े रेलवे स्टेशनों पर प्राथमिक उपचार से संबंधित दवाइयां और उपकरण को सील बंद डिब्बों में ही रखा जाता है। उन डिब्बों में पेन किलर, मरहम पट्टी, फ्रैक्चर आदि से जुड़े उपकरण आदि दवाइयां होती हैं। अगर डिब्बे को खुला छोड़ा जाएगा तो कर्मचारी ही दवाइयां निकाल लेंगे। इसलिए यात्री का उपचार करने के बाद उन बक्सों को सील कर दिया जाता है। पुस्तिका में लिखा जाता है, बक्सा में क्या-क्या मेडिकल संबंधी वस्तुएं रखी हैं। डिप्टी एसएस, स्टेशन मास्टर और टोन पोर्टर भी पुस्तिका में हस्ताक्षर करते हैं।