गोवर्धन पूजा रुकमिणी विवाह की कथा सुन आनन्दित हुए श्रोता
Santkabir-nagar News - मड़पौना गांव में चल रही श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान यज्ञ में आचार्य विनय प्रभाकर पान्डेय महराज ने गोवर्धन पूजा और रुक्मणी विवाह की कथा सुनाई। श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत की पूजा कर बृजवासियों की रक्षा की।...

पौली, हिन्दुस्तान संवाद। मड़पौना गांव में चल रही श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान यज्ञ में अवध धाम से पधारे आचार्य विनय प्रभाकर पान्डेय महराज ने गोवर्धन पूजा, कंस वध और रुक्मणी विवाह की कथा सुना कर श्रोताओं को आनन्दित कर दिया। रुक्मणी विवाह पर श्रोताओं ने जहां बाराती बनकर पुण्य फल प्राप्त किया। वहीं श्रीकृष्ण और रुक्मणी की झांकी पर फूलों की वर्षा की गई। कथा प्रसंग को आगे बढ़ाते हुए कथा व्यास ने कहा कि कण-कण में ईश्वर व्याप्त है। बृजवासियों ने देवराज इंद्र के पूजा की तैयारी कर रखी थी। किंतु सात साल के नटखट श्रीकृष्ण ने बृजवासियों को इंद्र की पूजा के बजाय गोवर्धन पर्वत की पूजा करने की सलाह दी।
उन्होंने कहा कि बृजवासियों की रक्षा गोवर्धन हमेशा करते हैं। गोवर्धन पूजा से नाराज इन्द्र देव बृजवासियों को डुबाने की इच्छा से घनघोर बरसात शुरू कर दिया। इसे देख अपनी बाएं हाथ की कनिष्का उंगली पर भगवान श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को धारण कर इंद्र के कोप से बृजवासियों की रक्षा की। इस मौके पर श्रोताओं ने गोवर्धन की पूजा के लिए अनेकानेक व्यंजन की व्यवस्था की थी। उन्होंने कहा कि उद्धव जी कंस के बुलावे पर भगवान श्री कृष्ण और बलराम को मथुरा ले गए। वहां पर भगवान ने कंस का वध कर मथुरा और बृजवासियों को उसके पापों से मुक्ति दिलाई। देवी रुक्मणी का विवाह उनके भाई शिशुपाल से करना चाहते थे। जिसकी सूचना रुक्मणी जी ने अपने पत्र के माध्यम से एक ब्राह्मण से भगवान श्रीकृष्ण के पास भेजा। जिसे पढ़कर भगवान श्रीकृष्ण वहां पहुंचे और मंदिर में पूजा करने गई रुक्मणी को अपने साथ ले आए। विधि विधान से भगवान श्रीकृष्ण और रुक्मणी का विवाह हुआ। इस दौरान निकली झांकी ने लोगों का मन मोह लिया। इस मौके पर यज्ञाचार्य हरिओम मिश्र, यजमान बलराम दूबे, हृदयेश दुबे, उमा शंकर दूबे, बजरंगी दूबे समेत तमाम लोग मौजूद रहे।
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