बोले सीतापुर: मौसम और आग ने फेर दिया मेहनत पर पानी
Sitapur News - सीतापुर के गेहूं किसानों को बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि के कारण भारी नुकसान का सामना करना पड़ रहा है। किसानों की मेहनत और निवेश बर्बाद हो गया है। मौसम के अचानक बदलाव ने उनकी फसल को प्रभावित किया है,...

कॉमन इंट्रो अमीर हो या गरीब पेट भरने के लिए खाई जाने वाली रोटी को बनाने में गेहूं का आटा की उपयोग में लाया जाता है। जिले में कोई घर भी ऐसा नहीं होगा जहां गेहूं का आटा नहीं मिले। इतनी महत्वपूर्ण फसल होने के बाद भी जिले का गेहूं किसान परेशान है। मौसम की मार से अन्नदाता कहा जाने वाला गेहूं किसान कराह रहा है। उम्मीदों से भरी लहलहाती फसलें, प्रकृति के प्रकोप के आगे दम तोड़ गईं। जिससे किसानों को भारी आर्थिक नुकसान का सामना करना पड़ा है। बेमौसम बारिश, ओलावृष्टि और आंधी ने किसानों की कमर तोड़ दी है।
इसके अलावा बिजली के तारों और अन्य कारणों से लगने वाली आग ने भी किसानों को परेशान किया है। खेतों में पकने की कगार पर खड़ी गेहूं की फसल, अप्रत्याशित मौसम के बदलाव के कारण या तो खेतों में बिछ गई या फिर दाने सिकुड़ गए। कई किसानों की मेहनत तो कटाई से पहले ही पानी में बह गई। आपके अपने अखबार हिन्दुस्तान ने मौसम की मार झेल रहे किसानों से बात की, तो उनका दर्द छलक पड़ा। वाकया करीब आज से 20 दिन पहले का है। खेतों में गेहूं की फसल तैयार खड़ी थी। पौधों में लगी बड़ी बड़ी बालियों में मोटे मोटे दाने लहलहा रहे थे। गेहूं की अपनी बेहतरीन फसल को देख किसान खुश थे। उनको उम्मीद ही नहीं बल्कि पूरा विश्वास था कि इस बार उनको गेहूं का ठीक दाम मिल जाएगा, जिससे फसल उत्पादन में लगा पैसा भी निकल आएगा और साथ कुछ मुनाफा भी हो जाएगा, जिससे वह अपने जरुरी कामकाज निपटा सकेगा। लेकिन किसानों की इस उम्मीद पर बेमौसम हुई बारिश ने पानी फेर दिया। खेतों में खड़ी गेहूं की फसल गिर गई या फिर खेतों में कटा पड़ा गेहूं भीग गया। धूप से सुख पाता कि इसके बाद लगातार एक दिन छोड़ एक दिन हुई बारिश ने सारे किए कराए पर पानी फेर दिया। यह पीड़ा किसी एक की नहीं बल्कि जिले के 90 प्रतिशत गेहूं किसानों की है। इसी बीच खेतों से निकले बिजली के तारों से निकली चिंगारी या तार टूटकर गिरने से खेतों में लगी आग ने बची कुची फसल को भी राख कर दिया। किसान बताते हैं कि वह पूरी शिद्दत के साथ गेंहू की कटाई की तैयारी में जुटे थे। लेकिन मौसम की मार ने सारी उम्मीदों का चकनाचूर कर दिया। मौसम में अचाानक आए बदलाव की वजह से उनको भारी नुकसान उठाना पड़ा है। इस वर्ष मार्च और अप्रैल के महीनों में हुई बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि ने गेहूं की फसल को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया। तेज हवाओं के साथ हुई बारिश ने खेतों में खड़ी फसल को बुरी तरह से प्रभावित किया, जिससे पौधे जमीन पर गिर गए। इससे न केवल कटाई मुश्किल हो गई, बल्कि अनाज की गुणवत्ता भी प्रभावित हुई। कई स्थानों पर तो ओलों की मोटी परत जमने से पूरी की पूरी फसल बर्बाद हो गई। किसानों नें अपनी पूरी जमा पूंजी इस फसल में लगा दी थी। सोचा था कि इस बार अच्छी पैदावार होगी तो कुछ कर्ज उतर जाएगा और घर के खर्चे भी निकल आएंगे। लेकिन, अचानक हुई बारिश और ओलों ने सब कुछ मिट्टी में मिला दिया। बातचीत में महोली के एक किसान ने बताया कि हमारी आंखों के सामने हमारी मेहनत बर्बाद हो गई। निचले खेतों में बारिश के बाद पानी भर गया था, जिससे फसल सड़नें लगी। जो थोड़ी बहुत फसल बची थी, उसमें दाने ठीक से नहीं भरे हैं। अब हालात यह हैं कि लागत भी निकलना मुश्किल लग रहा है। इसके अलावा मार्च के अंत और अप्रैल की शुरुआत में जब गेहूं की फसल पकने की ओर बढ़ रही थी, अचानक तापमान में वृद्धि दर्ज की गई। इस असामान्य गर्मी के कारण गेहूं के दाने समय से पहले सूखने लगे और उनका आकार छोटा रह गया। बताते हैं कि बीते सालों की अपेक्षा इस साल प्रति हेक्टेयर उपज में भारी कमी आई है। किसानों का कहना है कि गर्मी अचानक इतनी बढ़ी कि फसल को पकने का पूरा समय ही नहीं मिला। दाने पतले रह गए और वजन में भी काफी कम हैं। मंडी में अच्छे दाम मिलने की उम्मीद भी अब धूमिल हो गई है। मौसम की मार से हलकान किसानों की सारी उम्मीदें अब सरकार पर टिकी हैं। मौसम में आए बदलाव की वजह से नुकसान झाल रहे किसान मुआवजे की आस में सरकार की ओर टकटकी लगाए देख रहे हैं। किसानों ने बताया कि अभी तक फसलों के नुकसान को लेकर कोई सर्वे नही किया गया है। ऐसे में सरकार से मदद की उम्मीद भी धूमिल होती जा रही है। मौसम की बेरहम मार झेल रहे अन्नदाता को सरकार की मदद की दरकार है। बिना सरकारी मदद के कर्ज में डूबा किसान आगे की फसलों की बुआई में पिछड़ रहा है। जिले की विभिन्न तहसीलों सदर, बिसवां, महमूदाबाद, सिधौली, मिश्रिख, लहरपुर और महोली से आ रही खबरें किसानों की पीड़ा बयां कर रही हैं। मौसम पूर्वानुमान और सुविधाओं का हो विकास सीतापुर के गेहूं किसानों पर आई यह आपदा कृषि क्षेत्र के लिए एक गंभीर चुनौती है। यह न केवल किसानों की आर्थिक स्थिति को प्रभावित करेगा, बल्कि जिले की खाद्य सुरक्षा पर भी इसका असर पड़ सकता है। सरकार को इस स्थिति को गंभीरता से लेते हुए तत्काल राहत पहुंचाने के साथ-साथ भविष्य में इस तरह के नुकसान से बचने के लिए दीर्घकालिक योजनाएं बनानी होंगी। किसानों का कहना है कि मौसम पूर्वानुमान प्रणाली को और अधिक मजबूत करना, सिंचाई सुविधाओं का विस्तार करना और किसानों को जलवायु परिवर्तन के अनुकूल खेती की तकनीकों के बारे में जागरूक करना शामिल है। इसके अलावा, फसल बीमा योजना को और अधिक प्रभावी और किसान-हितैषी बनाने की आवश्यकता है ताकि प्राकृतिक आपदाओं के समय किसानों को त्वरित और पर्याप्त आर्थिक सहायता मिल सके। फिलहाल सीतापुर के गेहूं किसान उम्मीद और निराशा के बीच झूल रहे हैं। उन्हें उम्मीद है कि सरकार उनकी पीड़ा को समझेगी और उन्हें इस संकट से उबरने में मदद करेगी। वहीं, उन्हें इस बात की भी चिंता है कि मुआवजा मिलने में देरी हो सकती है या फिर यह उनकी भरपाई के लिए पर्याप्त नहीं होगा। यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि सरकार इस चुनौती का किस प्रकार सामना करती है और किसानों को कितनी राहत पहुंचाती है। आग से फसलें हुई बर्बाद गर्मी बढने के साथ ही आग लगने की घटनाओं में भी इजाफा हुआ है। ये वो समय होता है जब गेंहू की फसल पक कर तैयार हो रही होती है। हर साल की तरह इस साल भी सैकड़ों बीघा फसल आग लगने की घटनाओं में बर्बाद हो चुकी है। किसानों का कहना है कि ज्यादातर आग लगने की घटनाएं बिजली विभाग की लापरवाही से हुई है। मजे की बात तो यह है कि कभी भी बिजली विभाग इन घटनाओं की जिम्मेदारी नहीं लेता है और ना ही पीडित किसानों की तरह की सहायता ही मिल पाती है। तमाम किसानों ने बातचीत के दौरान बताया कि ज्यादातर एचटी लाइन खेतों के ऊपर से होकर गुजरी हैं। जिन खेतों के ऊपर से लाइनें गुजरी हैं, जब तक फसल कट कर घर पहुंच नहीं जाती उन किसानों की धडकनें बढी रहती हैं। किसानों का कहना है कि खेतों के ऊपर से गुजरी तमाम बिजली लाइन के तारों के नीचे किसी तरह की सुरक्षा जाली नहीं लगी है। इसके अलावा लाइन के तार ढीले हैं। जिसकी वजह से तेज हवा चलने की वजह से तार आपस में टकराते हैं, जिसके बाद तारों से निकली चिगारियां से लगने वाली आग फसलों को राख कर रही है। वहीं, इन घटनाओं से हाने वाले नुकसान की भरपाई की भी कोई व्यवस्था नहीं है। किसानों की मांग है कि बिजली विभाग की लापरवाही से होने वाले अग्निकांडों को लेकर जिम्मेदारी तय हो और समुचित भरपाई की भी व्यवस्था हो। केंद्रों पर पसरा सन्नाटा गेंहू खरीद केंद्रों पर सन्नाटा पसरा हुआ है। इस बार किसान सरकारी केंद्रों पर अपनी उपज बेचने के बजाय मंडियों का रुख कर रहे हैं। इसकी बडी वजह है, मंडी के भाव सरकारी क्रय केंद्रो से ज्यादा हैं। जिसके चलते अधिकांश केंद्र खाली पड़े हैं। इसके अलावा क्रयकेंद्रों पर पर फसल बेचने की प्रक्रिया भी जटिल है। किसानों नें बताया कि सरकारी केंद्रों पर कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। कहीं नमी के नाम पर उनकी उपज को रिजेक्ट किया जा रहा है, तो कहीं भुगतान में देरी हो रही है। जटिल पंजीकरण प्रक्रिया और लंबी कतारें भी किसानों को हतोत्साहित कर रही हैं। इसके अलावा इस साल मंडी का रेट भी बेहतर है। नकद भुगतान भी मिल रहा है। कोई झंझट भी नहीं है। यही वजह है कि किसान सरकारी केंद्रों पर अपनी उपज बेचने के बजाय बाजार में निजी कारोबारियों का बेच रहे हैं। प्रस्तुति - अविनाश दीक्षित फोटो - सुनील आनंद शिकायतें एवं सुझाव सुझाव - किसानों को खेती की आधुनिक तकनीक इस्तेमाल करने के लिए प्रशिक्षित किया जाए। - मौसम की सटीक जानकारी किसानों तक पहुंचाने के लिए सिस्टम विकसित किया जाए। - खेतों से होकर गुजरी एचटी लाइन के नीचे सुरक्षा जाली लगाई जाए। - बिजली विभाग ध्यान रखे लाइन के तार ढीले ना रहें। - अभियान चला कर किसानों को फसल बीमा योजना से जोड़ा जाए। - बिजली के तारों से होने वाले नुकसान की भरपाई की व्यवस्था की जाए। शिकायतें - किसानों को आधुनिक से खेती करने के लिए प्रशिक्षण नहीं मिलता है। - किसानों को मौसम की सटीक जानकारी नहीं मिल पाती है। - खेतों से होकर निकली एचटी लाइन के नीचे कोई सुरक्षा जाली नहीं है। - खेतों के उपर से निकली लाइन का अधिकारी निरीक्षण नहीं करते है। - ज्यादातर किसानों को फसल बीमा योजना का लाभ नहीं मिल पाता है। - बिजली के तारों से होने वाले नुकसान की भरपाई नहीं होती है। अपनी पीड़ा बताई इस बार तो मौसम ने कमर तोड़ दी। अचानक बारिश और ओलावृष्टि के चलते फसल का बहुत नुकसान हुआ है। आधी फसल तो चौपट हो गई। लागत भी निकलना मुश्किल है। सरकार से मदद की गुहार है। अखिलेश शुक्ल इस बार फसल काफी बढ़िया थी। हमने तो सोचा था इस बार अच्छी पैदावार होगी। कर्जा चुका देंगे, बच्चों के लिए कुछ बचा लेंगे लेकिन कुदरत के कहर ने सब मिट्टी में मिल गया। सुशील शुक्ल दिन-रात खेत में मेहनत की, खाद-पानी लगाया। फसल जब पकने को आई तो मौसम बिगड़ गया। अब क्या करें, किसके आगे गुहार लगाएं। सरकार को हम लोगों की मदद करनी चाहिए। प्रमोद कुमार सरकार कहती है किसानों की आय दोगुनी करेंगे। मौसम की मार की वजह से लागत भी डूब जाती है। मुआवजा भी मिलता है तो ऊंट के मुंह में जीरा। मौसम पूर्वानुमान को लेकर सरकार काम करें। दूबरि मौर्य पिछले साल फसल में भी नुकसान हुआ था। लेकिन इस साल फसल बहुत अच्छी थी। सोचा था इस बार भरपाई हो जाएगी। लेकिन लगता है अब और कर्ज लेना पड़ेगा। सब बर्बाद हो गया। अजय मिश्रा बेमौसम बारिश और तेज हवाओं ने सारे अरमानों पर पानी फेर दिया। हमारे यहां तो पानी भरने से पूरी फसल लेट गई। दाना भी काला पड़ गया है। मंडी में कौन खरीदेगा इसे। कर्ज भी नहीं उतरेगा। विपिन किसानों खेतों के उपर से बिजली की लाइन निकली है। बिजली के तारों से निकली चिंगारी ने पूरी गेहूं की फसल को राख कर दिया है। किसानों की मेहनत और जमा पूंजी सब जल कर राख हो गर्ह। लल्लन मिश्रा हम किसानों को मौसम की सटीक जानकारी नहीं मिल पाती है। मौसम विभाग वाले भी ठीक से जानकारी नहीं देते। कब बारिश होगी, कब ओले पड़ेंगे, कुछ पता नहीं चलता। हम तो बस आसमान की ओर ताकते रहते हैं। संतोष चतुर्वेदी हम लोगों को खेती की आधुनिक की जानकारी नहीं है। और ना ही इसके लिए जिम्मेदार विभाग की ओर से कोई प्रशिक्षण की कोई व्यवस्था है। सम्बंधित विभाग की ओर से गांवों में कैंप लगाकर प्रशिक्षण दिया जाए। राम खेलावन हमने फसल बीमा भी कराया था। लेकिन योजना का लाभ पाने की प्रक्रिया काफी जटिल है। कंपनी वाले न जाने क्या-क्या नियम बताते हैं। कहते हैं नुकसान उतना नहीं हुआ जितना हम बता रहे हैं। सुनील शर्मा हमारे खेतों के उपर से होकर गुजरी हाइटेंशन लाइन के तारों के नीचे सुरक्षा के कोई इंतजाम नहीं है। जिसकी वजह से हमेशा डर बना रहता है। कई बार बिजली विभाग के अधिकारियों से सुरक्षा जाली लगाए जाने को लेकर अनुरोध किया है। विनोद यादव मौसम की मार से गांव के ज्यादातर किसानों की गेहूं की फसल चौपट हो गई है। अब हम लोग सरकार की ओर उम्मीद भरी नजरों से देख रहे हैं कि सरकार हमारी मदद करे। सानू यादव अधिकतर किसानों को फसल बीमा योजना के बारे में जानकारी नहीं है। जिसकी वजह से किसानों का एक बड़ा वर्ग योजना के लाभ से वंचित है। कृषि विभाग को चाहिए कि अभियान चला कर किसानों को जागरूक करे। शेरा गांवों के छोटे किसानों के पास इंटरनेट की सुविधा नहीं है। जिसकी वजह से उन्हें मौसम की जानकारी नहीं मिल पाती है। सरकार कोई ऐसा तंत्र विकसित करे, मौसम का सटीक पूर्वानुमान किसानों तक पहुंचे। बीरेंद्र नोट - नंबर गेम और अधिकारिक वर्जन दिया जाना शेष है।
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