यूपी: महर्षि दधीचि की तपोस्थली में बढ़ा नेत्रदान करने वालों का कारवां
इस जिले में नेत्रदान करने वालों का कारवां बढ़ता जा रहा है। यहां के आई हॉस्पिटल का नाम देश में सम्मान से लिया जाता है

‘मैं अकेला ही चला था जानिबे मंजिल मगर, लोग मिलते गए और कारवां बनता गया’। महर्षि दधीचि की तपस्थली में जिस तेजी से नेत्रदान की परंपरा बढ़ती जा रही है। उससे एक बार फिर इस शेर की सार्थकता सच साबित हो गई है। ‘नेत्रदान-महादान’, सीतापुर के बाशिंदों के लिए यह महज एक नारा नहीं है। यहां के लोग नेत्रदान के महत्व को भली भांति समझ चुके हैं। यही कारण है कि यहां लोगों ने इस अभियान को हाथों-हाथ लिया है। जिले के बाशिंदे अब जागरूकता की रोशनी से दूसरों के जीवन में खुशियां बिखेरने में पीछे नहीं हैं।
बीते 17 सालों में नेत्रदान की इस मुहिम में सभी धर्मों और वर्गों के लोग शामिल हुए। क्या हिंदू, क्या सिख, क्या जैन हर कोई इस अभियान में शामिल होने को आतुर दिखा। बीते वर्षों में इस अभियान में कदम-कदम पर 'दधीचि' मिलते रहे और अभियान वेग से गंतव्य की ओर बढ़ता रहा। नेत्रदानी परिजन कहते हैं कि यह अभियान हमारी आस्था, विश्वास, श्रद्धा और मानव सभ्यता का एक मजबूत आधार स्तंभ है। इसका निरंतर संचालन हम सभी की साझा जिम्मेदारी है।
इस तरह से शुरू हुई नेत्रदान की परंपरा
जिले में सक्षम संस्था की ओर से नेत्रदान की शुरुआत फरवरी 2008 में की गई। सक्षम संस्था के राष्ट्रीय महामंत्री अविनाश अग्निहोत्री ने नागपुर (मध्य प्रदेश) से सीतापुर आकर नेत्रदान की शुरुआत की। उन्होंने शहर के प्रतिष्ठित चिकित्सक डॉ. प्रमोद धवन, सुभाष अग्निहोत्री, महेश अग्रवाल, स्व. यशवंत शाह, स्व. रमेश अग्रवाल आदि प्रबुद्ध लोगों को अपने अभियान से जोड़ा। मार्च 2008 में शहर के स्वरूप नगर मोहल्ला निवासी व्यापारी पृथीपाल सिंह का पहला नेत्रदान हुआ। इसके बाद सक्षम संस्था का विस्तार करते हुए अक्टूबर 2008 में व्यापारी नेता संदीप भरतिया को जिलाध्यक्ष, मुकेश अग्रवाल को महामंत्री और विकास अग्रवाल को मीडिया प्रभारी के रूप में संस्था में शामिल किया गया। इस युवा टीम ने नेत्रदान को गति देने का काम किया। इस युवा टीम ने सीतापुर आंख अस्पताल के साथ मोतियाबिंद शिविरों में जाकर लोगों को नेत्रदान के प्रति जागरूक किया। सक्षम संस्था की ओर से अब तक 253 नेत्रदान कराए जा चुके हैं। इन सभी कॉर्निया को जरूरतमंद लोगों को नि:शुल्क प्रत्यारोपित भी किया जा चुका है।
कौन कर सकता है नेत्रदान
सीतापुर आंख अस्पताल की सीएमओ कर्नल डॉ. मधु भदौरिया बताती हैं कि कोई भी जीवित व्यक्ति नेत्रदान नहीं कर सकता है। हालांकि व्यक्ति अपने जीवन काल में ही नेत्रदान करने का संकल्प ले सकता है और अपने परिवार को बता सकता है। ऐसे में जब उसकी मृत्यु हो तो तुरंत आई बैंक और अस्पताल को सूचना देकर नेत्रदान कराया जा सकता है। नेत्रदान किसी भी उम्र में या कोई भी स्त्री अथवा पुरुष कर सकता है। मोतियाबिंद का ऑपरेशन करा चुके, चश्मा पहनने वाले, बीपी या डायबिटीज के मरीज भी नेत्रदान कर सकते हैं। कैंसर, एचआईवी पॉजिटिव, सिफलिस, रक्त संबंधी इन्फेक्शन और रेबीज के मरीज कॉर्निया दान नहीं कर सकते हैं। कॉर्निया कंसलटेंट डॉ. स्मृति गौर बताती हैं कि नेत्रदान में पूरी आंख नहीं बल्कि आंखों की कॉर्निया को ही लिया जाता है। बाद में इसे जरूरतमंदों को प्रत्यारोपित कर दिया जाता है। उन्होंने बताया कि सीतापुर आंख अस्पताल में पिछले तीन सालों से डीमैक तकनीक से कॉनिया प्रत्यारोपण किया जाता है। इससे एक कॉनिया से हम लोग दो लोगों की आंखों की रोशनी दे सकते हैं। अब एक नेत्रदान से चार लोग दुनिया को देख सकते हैं।
कैसे होता है नेत्रदान
आई बैंक के प्रभारी अरुणेश मिश्रा बताते हैं कि नेत्रदान करने के लिए आपको किसी आई बैंक में जाकर अपना पंजीकरण कराना होता है। आई बैंक आपसे एक फार्म भरवाता है, जिसमें आपको यह घोषणा करनी होती है कि आप स्वेच्छा से मृत्यु के बाद अपनी कॉर्निया दान करना चाहते हैं। यदि किसी व्यक्ति ने पंजीकरण नहीं कराया है तो उसके परिवारीजन आईबैंक को जानकारी देकर कॉर्निया दान कर सकते हैं। नेत्रदान के बाद कॉर्निया आई बैंक या फिर कॉर्निया बैंक में सुरक्षित रखा जाता है। सीतापुर आंख अस्पताल में इसके संस्थापक डॉ. एमपी मेहरे की स्मृति में वर्ष 2008 में यहां संचालित आई बैंक को दोबारा शुरू किया गया है।
इस तरह निकालते हैं कॉर्निया
सक्षम संस्था के जिलाध्यक्ष संदीप भरतिया कहते हैं कि मृत्यु के छह से आठ घंटे के अंदर कॉर्निया निकाल लिया जाना चाहिए। मृत्यु के बाद जितना जल्दी हो सके आंखें दान की जानी चाहिए लेकिन अधिकतम 6 घंटे के अंदर कॉर्निया को निकाल कर सुरक्षित कर लेना चाहिए। कॉर्निया निकालने में 15-20 मिनट लगते हैं। कॉर्निया को निकालने के लिए डॉक्टरों की टीम मृतक के पास स्पेशल कंटेनर लेकर जाती है, कॉर्निया निकालकर उसे एक सॉल्यूशन में लैब में प्रिजर्व करती है और फिर उसे तत्काल कॉर्निया बैंक को पहुंचाया जाता है। दान किए गए कॉर्निया को अधिकतम 14 दिन के अंदर किसी न किसी को ट्रांसप्लांट करना ही होता है।
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