बोले काशी - पूर्वांचल में है पहचान, पानी-रोशनी को परेशान
Varanasi News - वाराणसी की चंदुआ सब्जी मंडी में व्यापारियों और किसानों को पीने के पानी और जल निकासी की गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। मंडी के भीतर हैंडपंप और स्ट्रीट लाइट्स की कमी से लोग परेशान हैं।...
वाराणसी। बनारस की सबसे पुरानी एवं पूर्वांचल की प्रमुख सब्जी मंडियों में शुमार चंदुआ में रोज हजारों व्यापारियों-खरीदारों की जुटान होती है। आधी रात से ही गुलजार होने वाली चंदुआ सट्टी में पीने के पानी का अभाव परेशान करता है तो हर बरसात दुकानों तक पहुंच जाने वाला पानी क्षुब्ध। ये दोनों गंभीर समस्याएं दशकों पुरानी हैं। विडंबना यह कि चंद कदम दूर नगर निगम में गुहार अनसुनी हो जाती है। पूरे साल हरी, सस्ती सब्जियों की उपलब्धता के लिए प्रसिद्ध इस मंडी के आढ़तिया-दुकानदार उपेक्षा से उबरना चाहते हैं। चंदुआ सब्जी मंडी शहर के केंद्र में कैंट-लंका मार्ग पर सिगरा में है।
पास ही में डॉ. सम्पूर्णानंद स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स (स्टेडियम), नगर निगम, सिंचाई कॉलोनी और सामने भारत माता मंदिर है। सामने महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ परिसर में रोपवे का दूसरा स्टेशन बन रहा है। मुख्य मार्ग और प्रमुख कार्यालय, विश्वविद्यालय की वजह से यह मंडी 24 घंटे गुलजार रहती है। मंडी में जुटे आढ़तियों, फड़ियों और किसानों ने ‘हिन्दुस्तान से अपनी पीड़ा साझा की। बोले, यहां आढ़ती और फड़ियों (फुटकर दुकानदार) को पीने का पानी तक मयस्सर नहीं है। मंडी में हैंडपंप और अन्य साधन नहीं हैं। इससे मजबूरी में इन्हें पीने का पानी बाहर से खरीदना पड़ता है। नालियां न होने की वजह से बरसात के दिनों में कई दिनों तक गंदा पानी और कीचड़ लगा रहता है। इससे दुकानदारों और ग्राहकों का आवागमन दुश्वार हो जाता है। मंडी के भीतर स्ट्रीट लाइटों का अभाव अलग ही समस्या पैदा करता है। पर्याप्त रोशनी नहीं होने से दुकानदार वाहनों के आवागमन, लोडिंग-अनलोडिंग में दिक्कतें आती हैं। सब्जी बेचने आए किसानों के लिए बैठने की व्यवस्था के लिए भी ठोस कदम की दरकार है। सड़क पर घूमते छुटा पशु अलग ही समस्या हैं। ये मवेशी कई बार दुकानों पर रखी सब्जियों का नुकसान कर जाते हैं। लब्बोलुआब यह है कि यहां व्याप्त बुनियादी समस्याएं दूर हों तो मंडी का स्वरूप और निखर उठे। दुकानदारों को राहत भी मिले। जीवन के लगभग 84 वसंत पार कर चुके आढ़ती पन्नालाल सोनकर ने बताया कि पेयजल समस्या दूर करने के लिए कई बार जिम्मेदार लोगों से गुहार लगाई गई लेकिन बेनतीजा रही। हमें आश्वासन मिला पर समस्या जस की तस है। पुराने आढ़तियों में शुमार कल्लू प्रसाद सोनकर बोले कि यहां ‘बिन पानी सब सून... वाली कहावत चरितार्थ होती है। पानी बिन जिंदगानी कैसी। पानी खरीदना विवशता है। मंडी के भीतर और बाहर हैंडपंप नहीं हैं। चंदा लगाकर होती है सफाई सब्जी मंडी के आढ़ती और फड़िया आपस में चंदा लगाकर भीतर की सफाई करवाते हैं। बाहर कैंट-सिगरा मार्ग पर डस्टबिन में कचरा रखा जाता है। रोड पर नियमित सफाई होती है। गीला और सूखा कचरा अलग-अलग निस्तारित किया जाता है। हालांकि कई बार कूड़ा समय से न उठने से दुर्गन्ध भी उठने लगती है। बाहर सुलभ इंटरनेशनल के टॉयलेट और यूरिनल की भी व्यवस्था है। लिहाजा प्रसाधन की कोई दिक्कत नहीं है। आढ़तियों ने कहा कि मंडी में आने-जाने वालों की संख्या के हिसाब से कुछ और यूरिनल-टॉयलेट बन जाएं तो राहत होगी। बैठने-पानी का इंतजाम नहीं चंदुआ मंडी में आसपास के कई गांवों के किसान सब्जी लेकर आते हैं। इनके बैठने की कोई व्यवस्था नहीं है। गर्मी-बरसात में वे परेशानी झेलते हैं। जब तक आढ़ती उनकी सब्जी नहीं खरीदते हैं, तब तक वे इधर-उधर समय बिताते हैं। कछवांरोड क्षेत्र के किसान राजनाथ, चंद्रमणि, चितरंजन प्रसाद, सेवालाल ने कहा कि कम से कम बेंच और पेयजल की व्यवस्था तो होनी ही चाहिए। उधर, फुटकर खरीदारी करने वाले ग्राहकों को कोई खास दिक्कत नहीं होती है। कारण कि उन्हें सब्जी खरीदने में ज्यादा समय नहीं लगता है लेकिन थोक खरीदारी करने वाले ग्राहकों को घंटों व्यतीत करना होता है। इस कारण वे या तो आढ़तियों की आढ़त पर बैठते हैं या फिर जगह नहीं मिलने पर इधर-उधर समय बिताते हैं। खुद करते हैं रोशनी सब्जी मंडी में एक भी स्ट्रीट लाइट नहीं है। दुकानों में लगी लाइटों के सहारे रास्ता रोशन रहता है। स्ट्रीट लाइट लगाने की पुरजोर मांग भी उठी लेकिन नतीजा ‘ढाक के तीन पात ही है। आढ़ती लक्ष्मण प्रसाद सोनकर, बाबूलाल सोनकर, मोहन सरदार के मुताबिक इस समय मुख्य मार्ग जगमगाता है तो भीतर आंशिक अंधेरा छाया रहता है। दुकानों-आढ़तों में लगे बल्ब, सीएफएल ही राह दिखाते हैं। 100 वर्ष पुरानी है सब्जी मंडी चंदुआ सब्जी मंडी का काफी हिस्सा काशी नरेश का है। वर्षों से दुकानदार और आढ़ती किरायेदारी पर अपनी दुकानों का संचालन कर रहे हैं। पुरनियों के अनुसार यह मंडी लगभग 100 वर्ष पुरानी है। बनारस की पहली थोक मंडी यहीं शुरू हुई। बाद में पंचक्रोशी, पहड़िया, लमही, पांडेयपुर, सुंदरपुर आदि जगहों पर सब्जी मंडियां आबाद हुईं। पुरानी मंडी होने की वजह से यहां 24 घंटे भीड़ रहती है। दो से तीन करोड़ का कारोबार शहर के केंद्र बिंदु पर बनी चंदुआ सट्टी का महत्व यहां की बिक्री से भी समझा जा सकता है। यहां लगभग 5000 छोटी दुकानें (फड़िया) और ठेले पर सब्जी बेचने वाले हैं। 150 से ज्यादा आढ़त हैं। एक अनुमान के मुताबिक ऑफ सीजन और सीजन मिलाकर प्रतिदिन यहां दो से तीन करोड़ का कारोबार होता है। कारोबारियों में कई ऐसे हैं, जिनकी तीसरी पीढ़ी दुकानों और आढ़तों का संचालन कर रही है। कई बुजुर्ग आढ़तियों ने मंडी में उतार-चढ़ाव के कई दौर देखे हैं। कई राज्यों से से कारोबार चंदुआ अंतरराज्यीय सब्जी मंडी है। यहां बेंगलुरु (कर्नाटक), पुणे तथा नासिक (महाराष्ट्र), रायपुर और अम्बिकापुर (छत्तीसगढ़), सियालदह तथा बशीरहट (पश्चिम बंगाल) से प्रतिदिन आलू-प्याज समेत दर्जनों सब्जियां आती हैं। इन प्रदेशों के अलावा वाराणसी के खैरा, बगहां, कछवांरोड, सेवापुरी, कपसेठी, मधुपुर (सोनभद्र), जौनपुर, नंदगंज और सैदपुर (गाजीपुर), मझवां (मिर्जापुर) आदि जगहों से भी सब्जियां आती हैं। पूर्वांचल, बिहार तक जाती हैं चंदुआ मंडी से पूर्वांचल के गोरखपुर, देवरिया, बलिया, मऊ, मिर्जापुर, सोनभद्र समेत बिहार के सीवान, छपरा, सासाराम, औरंगाबाद, बक्सर तक सब्जियों की आपूर्ति की जाती है। रोज दर्जनों छोटे-बड़े वाहन सब्जियां लोडकर इन जगहों को रवाना होते हैं। बारहों मास हरी और सस्ती सब्जियां चंदुआ सट्टी सब्जी मंडी की खासियत है कि यहां बारहों मास हरी-ताजी सब्जियां उपलब्ध रहती हैं। खीरा, हरी और लाल शिमला मिर्च, फूल गोभी, पत्ता गोभी, परवल, बोड़ा, बैंगन, कोंहड़ा, नेनुआ, लौकी, तरोई समेत दर्जन भर सब्जियां हर मौसम में बिकती हैं। खरीदारों के लिए यह मंडी ‘एक जगह-सभी उत्पाद सरीखी है जहां उन्हें आलू, प्याज, मिर्च से लेकर हर सब्जी वाजिब कीमत पर मिल जाती है। रथयात्रा से सब्जी खरीदने आए संदीप सिंह, परेड कोठी निवासी विराज गुप्ता आदि कहते हैं कि यहां अन्य मंडियों, दुकानों और ठेलेवालों की अपेक्षा काफी सस्ती सब्जियां मिलती हैं। रात से ही बढ़ जाती है ‘वेजिटेबल हब की रौनक चंदुआ सब्जी मंडी रात 11 बजे से चालू हो जाती है। मंडी के बाहर, साजन तिराहे से सिगरा और मलदहिया जाने वाले मार्गों पर सब्जी लदी गाड़ियां इस मंडी की रौनक में इजाफा करती हैं। यह समय थोक खरीदारी का होता है जो सुबह लगभग 9 बजे तक चलता है। इसके बाद शुरू होता है फुटकर खरीदारी का दौर। साजन तिराहे के आगे स्थित छित्तूपुर मार्ग तक दुकानें-ठेले सज जाते हैं। सुबह कई बार सड़क से सटाकर लगाई गई दुकानों की वजह से वाहनों का निकलना मुश्किल होता है। नगर निगम, पुलिस या अन्य जिम्मेदार विभाग अभियान चलाकर दुकानदारों को पीछे करते हैं लेकिन कुछ दिन बाद स्थिति जस की तस हो जाती है। सुबह से शाम और रात 10 बजे तक फुटकर दुकानों और ठेलों पर ग्राहकों की भीड़ रहती है। 24 घंटे गतिमान यह मंडी अपने आप में ‘वेजिटेबल हब सरीखी दिखती है। इनकी रही मौजूदगी आढ़ती और दुकानदार जितेन्द्र सोनकर, अशोक सोनकर, लालबाबू सोनकर, कैलाश सोनकर, मोहन सरदार, बाबूलाल सोनकर, अशोक सोनकर, पप्पू सोनकर, लक्ष्मण प्रसाद सोनकर, राजू सोनकर, राजा मौर्या, पारस सोनकर, मिश्रीलाल सोनकर, धीरज सोनकर, प्रकाश सोनकर और अशोक कुमार ने अपना दर्द साझा किया। बोले कि इतनी पुरानी मंडी होने के बावजूद यहां पेयजल जैसी बुनियादी सुविधा मुहैया कराने में न तो हुक्मरानों ने रुचि ली और न ही अफसरों को चिंता है। वाराणसी समेत पूर्वांचल के दर्जनों जनपदों को हरी सब्जी उपलब्ध कराने वाली इस मंडी के दुकानदार-आढ़ती समेत किसान और ग्राहक एक अदद हैंडपंप के लिए तरस रहे हैं। सुझाव... - चंदुआ सट्टी में पीने के पानी का मुकम्मल इंतजाम हो ताकि दुकानदारों और दूरदराज से आने वाले किसानों को गर्मी में राहत मिल सके। - मंडी के भीतर स्ट्रीट लाइटें लगवाई जाएं ताकि वाहनों के सुचारु आवागमन और लोडिंग-अनलोडिंग में आसानी हो। - मंडी में जलनिकासी के मुकम्मल इंतजाम हो ताकि बारिश के दिनों में परेशानी न उठानी पड़े। गंदे पानी और कीचड़ से निजात मिले। - मंडी में सुविधाएं देने के लिए फुलप्रूफ प्लान बने। सभी बुनियादी समस्याओं को दूर करने की पहल होनी चाहिए। - बाहर से आने वाले किसानों और ग्राहकों को सुविधाएं मुहैया कराने पर पर शासन-प्रशासन गम्भीरता से ध्यान देना चाहिए। शिकायतें... 1- मंडी में पेयजल समस्या दूर करने के लिए हैंडपम्प या टोंटी लगवाने के लिए कई बार जिम्मेदार लोगों से गुहार लगाई गई लेकिन किसी ने नहीं सुनी। 2- स्ट्रीट लाइटें न होने से दुकानों की ट्यूबलाइट, सीएफएल आदि रास्ते को रोशन करने में सहारा बनते हैं। यह समस्या भी वर्षों से कायम है। 3- सड़क दोनों ओर नालियां न होने से दुकानदार हर साल जलजमाव झेलते हैं। अब आजिज आ गए हैं। 4- रोड पर खड़े ठेलों से आढ़तियों के सब्जी लदे वाहनों को मंडी में प्रवेश करने में कई बार कठिनाई होती है। जाम अलग लगता है। 5- सबसे पुरानी सब्जी मंडी होने के बावजूद हुक्मरानों-अफसरों का ध्यान न देना सवाल खड़े करता है। इसकी जिम्मेदारी तय होनी चाहिए। कौन दूर करेगा दर्द मंडी में व्यापार के दौरान कई उतार-चढ़ाव देखे लेकिन एक हैंडपम्प की आस अब तक अधूरी है। - पन्नालाल सोनकर इतनी पुरानी सब्जी मंडी के आढ़तियों, फड़ियों की समस्याओं के बारे में सोचने वाला कोई नहीं है। - कल्लू प्रसाद सोनकर रोड पर ठेलों की वजह से वाहनों को मंडी में आने में दिक्कत होती है। यह रोज की दिक्कत है। - अशोक सिंह पीने का पानी बाहर से खरीदना मजबूरी हो गई है। बाहर से आने वाले किसानों को और दिक्कत होती है। - राजेश सोनकर बुनियादी समस्याएं दूर करने के लिए हमने सभी जिम्मेदारों से फरियाद की लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला। - गुलाब सोनकर मंडी के व्यापारी रोज कई दिक्कतों से दो-चार होते हैं। स्ट्रीट लाइटें लगाकर मंडी को रोशन किया जाए। - शशि कुमार सोनकर शहर के बीच स्थित इस सब्जी मंडी में एक हैंडपंप नहीं होना सवाल खड़ा करता है। इस पर विचार की जरूरत है। - दिलीप सोनकर जलनिकासी का मुकम्मल प्रबंध बहुत बड़ी जरूरत है। इस पर शासन-प्रशासन का ध्यान अपेक्षित है। - रामाश्रय सोनकर वाटर पाइपलाइन से जोड़कर टोंटियां लगा दी जाएं ताकि पेयजल समस्या से कुछ राहत मिले। - विनोद कुशवाहा मंडी में दूसरे प्रदेशों से के व्यापारियों और किसानों को बैठने की व्यवस्था हो। आखिर वे किससे कहने जाएं। - रवि सोनकर
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