बोले काशी - सिस्टम के धुंधलापन से जूझ रहे आंखों के पहरेदार
Varanasi News - वाराणसी में नेत्र परीक्षण अधिकारियों का काम भारी तनाव और वेतन विसंगति से प्रभावित है। वे मरीजों की आंखों की जांच में लगे रहते हैं, लेकिन आधुनिक उपकरणों की कमी और बढ़ते कार्यभार ने उनकी स्थिति को कठिन...
वाराणसी। वे बच्चों-युवाओं एवं बुजुर्गों की आंखों में धुंधलापन पकड़ते हैं। उससे आंखों की रोशनी बचाते हैं। जिला एवं मंडलीय अस्पतालों के अलावा सीएचसी-पीएचसी पर उनकी तैनाती है। उन्हें नेत्र परीक्षण अधिकारी (ऑप्टोमेट्रिस्ट) कहा जाता है। आंखों के इन पहरेदारों की खुद की जिंदगी सिस्टम के धुंधलापन से जूझ रही है। वेतन विसंगति के बीच बढ़ता वर्कलोड उन्हें तनावग्रस्त बना रहा है। सम्मान के लिए राजपत्रित अधिकारी का ओहदा पाने की पुरानी आस भी अधूरी है। वे चाहते हैं कि सीएचसी एवं पीएचसी भी आधुनिक जांच उपकरणों से लैस हों। नेत्र परीक्षण अधिकारी (ऑप्टोमेट्रिस्ट) पर मरीजों की सेवा में दिन रात जुटे रहते हैं।
अधिक काम-कम वेतन और सीएचसी-पीएचसी पर आधुनिक जांच मशीनों की कमी के बीच वे अपने कर्तव्य को पूरी ईमानदारी से निभा रहे हैं। मंडलीय अस्पताल में ‘हिन्दुस्तान से बातचीत में उनकी पीड़ा उभर आई। बोले, पूरी शिद्दत से काम करने के बाद भी हम उपेक्षित हैं। कई चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। बोले, जब किसी की आंख का धुंधलापन दूर होता है और उसमें रोशनी लौटती है तो हमें सुकून मिलता है। लेकिन कई बार बिना आधुनिक मशीनों के यह काम मुश्किल हो जाता है। यह स्थिति सीएचसी-पीएचसी पर अधिक आती है। वहां अत्याधुनिक जांच मशीनों की अधिक जरूरत है। बताया कि कबीरचौरा के मंडलीय, पांडेयपुर के जिला और रामगनर स्थित एलबीएस अस्पताल सहित सभी सीएचसी-पीएचसी पर हर रोज 500 से अधिक लोग आंखों की जांच कराने आते हैं। मशीनों के बिना कैसे हो जांच मंडलीय अस्पताल के नेत्र परीक्षण अधिकारी अनुराग मिश्रा ने कहा कि आधी आबादी ग्रामीण क्षेत्र में रहती है लेकिन उसे आधुनिक जांच के लिए मंडलीय और जिला अस्पताल तक दौड़ लगानी पड़ती है। उनके मुताबिक किसी सीएचसी या पीएचसी पर ऑटो रिफलेक्शन मशीन नहीं है। इससे आंखों के लेंस की जांच की जाती है। आंखों के प्रेशर की जांच करने वाली छोटी मशीन-एनसीटी (नॉन कांटेक्ट टोनोमीटर) और लेंस के पॉवर के निर्धारण के लिए ए-स्कैन भी किसी सीएचसी और पीएचसी पर नहीं है। यही वजह है कि आंखों की जांच के लिए भी मंडलीय एवं जिला अस्पतालों पर लोड बढ़ता जा रहा है। रोगी कल्याण समिति करे पहल जिले में मंडलीय और जिला अस्पताल में ही ऑटो रिफलेक्शन मशीन है। अनुराग मिश्रा ने बताया कि नॉमर्ल प्रक्रिया से आंखों की जांच में दस मिनट लगते हैं जबकि ऑटो रिफ्लेक्शन मशीन से महज पांच मिनट में जांच हो जाती है। इस मशीन से लेंस की सटीक जांच संभव है। कहा कि यह मशीन पांच लाख रुपये में आएगी। जिले के आठों ब्लॉक में एक-एक मशीन लगाने पर 40 लाख रुपये खर्च होंगे। बोले कि रोगी कल्याण समिति को फंड उपलब्ध कराने की पहल करनी चाहिए। लेंस बैंक न होने से दिक्कत जिले के किसी सरकारी अस्पताल में लेंस बैंक नहीं हैं। निजी अस्पतालों में इसकी सुविधा रहती है। बैंक में अलग-अलग नंबर के लेंस होते हैं। जांच के बाद मरीजों की आंख में संबंधित नंबर का लेंस लगा दिया जाता है। मरीजों को कॉर्निया ट्रांसप्लांट (नेत्र प्रत्यारोपण) या किसी अन्य चिकित्सा प्रक्रिया में लेंस की जरूरत होती है। लेंस की शुद्धता और उपयोगिता सुनिश्चित करने के लिए उनके नियमित परीक्षण किए जाते हैं। जिला अस्पताल के नेत्र परीक्षण अधिकारी सुनील पांडेय ने कहा कि शासकीय अस्पताल में यह सुविधा न होने से समस्या होती है। कई बार मरीजों को इंतजार करना पड़ता है। आबादी बढ़ी, कर्मचारी की संख्या नहीं आंखों की रोशनी जांचने के लिए सिर्फ सात नेत्र परीक्षक हैं। सुनील पांडेय ने बताया कि 1980 में पहली बार में इनकी नियुक्ति हुई थी। उस समय बनारस की आबादी करीब 19.19 लाख थी। अब वह दोगुनी हो चुकी है। मरीजों का लोड बढ़ गया है लेकिन पदों में बढ़ोतरी नहीं हुई है। मौजूदा ऑप्टोमेट्रिस्ट ही अस्पतालों में मरीजों का देखते हैं। इसके साथ राष्ट्रीय बाल सुरक्षा कार्यक्रम (आरबीएसके) अभियान के तहत स्कूलों में बच्चों की भी आंखों की जांच करनी पड़ती है। ऐसे में वर्क लोड काफी बढ़ जाता है। सुनील पांडेय ने कहा कि कई सीएचसी एवं पीएचसी में नेत्र परीक्षण अधिकारियों के पद रिक्त चल रहे हैं। वेतन विसंगति बड़ी समस्या जिला अस्पताल के नेत्र परीक्षण अधिकारी सुनील पांडेय ने कहा कि इस समय हम लोगों का वेतनमान 2800 ग्रेड पे है। वहीं, केंद्र सरकार के अधीन नेत्र परीक्षण अधिकारियों का ग्र्रेड पे 4200 रुपये है। दोनों एक ही काम करते हैं लेकिन वेतन असमान है। बताया कि जब हम लोगों का पद सृजित हुआ तब सबसे ज्यादा वेतन था। उस समय फार्मासिस्ट का ग्रेड पे 1350, एक्स-रे टेक्निशियन का 1350, डेंटल हाइजीन का 1200 और स्टाफ नर्स का ग्रेड पे 1400 रुपये था। केन्द्र सरकार के नेत्र परीक्षण अधिकारियों का ग्रेड पे 4200 से 4600 रुपये हो गया है। बोले, हम अभी 2800 ग्रेड पे पर ही अटके हुए हैं। रिजवी कमेटी की संस्तुति लागू हो मंडलीय अस्पताल के नेत्र परीक्षण अधिकारी अनुराग मिश्रा ने कहा कि वेतन विसंगति दूर करने मांग लंबे समय से की जा रही है। हम लोगों की मांग पर 2016 में रिजवी कमेटी गठित हुई थी। कमेटी ने हमारा ग्रेड पे 4200 रुपये करने की संस्तुति की थी लेकिन अब तक उसका अनुपालन नहीं हो पाया। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड के रूप में जब प्रदेश का बटवारा नहीं हुआ था, तब हम वहां भी काम कर चुके हैं। उत्तराखंड सरकार नेत्र परीक्षण अधिकारियों को 4200 ग्रेड पे दे रही है। हमारे साथ दोहरा व्यवहार किया जा रहा है। राजपत्रित अधिकारी का मिले दर्जा नेत्र परीक्षण अधिकारियों ने कहा कि हम लंबे समय से राजपत्रित अधिकारी का दर्जा देने की भी मांग कर रहे हैं। बताया कि पद की शुरुआत नेत्र परीक्षण अधिकारी से होती है। फिर, सेवा अवधि के अनुसार वरिष्ठ नेत्र परीक्षण अधिकारी, मुख्य नेत्र परीक्षण अधिकारी और प्रभारी नेत्र परीक्षण अधिकारी होते हैं। उन्होंने कहा कि कम से कम मुख्य और प्रभारी नेत्र परीक्षण अधिकारी को राजपत्रित का दर्जा जरूर मिलना चाहिए। नेत्र परीक्षण अधिकारियों ने जोर दिया कि वेतन और कार्यभार के संबंध में विभाग और सरकार स्पष्ट नीति बनाए। वे यह भी चाहते हैं कि ग्रामीण क्षेत्रों में सेवाओं के लिए उन्हें विशेष प्रोत्साहन भत्ता दिया जाए। नेत्र परीक्षण अधिकारी के कार्य नेत्र परीक्षण अधिकारी पर नेत्रों की जांच, दृष्टि संबंधी समस्याओं के निदान की मुख्य जिम्मेदारी होती है। चश्मे और कॉन्टेक्ट लेंस का प्रिस्क्रिप्शन देने के साथ आवश्यक होने पर रोगियों को आगे के उपचार के लिए रेफर करते हैं। तब नेत्र सर्जन मरीजों को परामर्श देते हैं। स्वीकृत पद हैं 12, पदस्थ सात जिले में नेत्र परीक्षण अधिकारियों के कुल 12 पद स्वीकृत हैं। उनमें सात पदस्थ हैं। मंडलीय में दो लोग हैं। जिला अस्पताल में एक भी पद स्वीकृत नहीं है। यहां अपर निदेशक कार्यालय के नेत्र परीक्षण अधिकारी को अटैच किया गया है। चार पीएचसी और सीचसी पर तैनात हैं। सुनील पांडेय ने कहा कि वर्कलोड को देखते हुए कम से कम 30 नेत्र परीक्षकों की जरूरत है। इससे काम का लोड कुछ कम हो जाएगा। सभी पीएचसी और सीएचसी पर एक-एक परीक्षक की जरूरत है। इनका है कहना वेतन विसंगति और वर्क लोड के संबंध में तत्काल कदम नहीं उठाए गए तो मरीजों के अलावा पूरे हेल्थ सिस्टम पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा। नेत्र परीक्षण अधिकारियों के पद बढ़ने ही चाहिए। -अनुराग मिश्र, नेत्र परीक्षण अधिकारी, मंडलीय अस्पताल वेतन विसंगति और काम के अत्यधिक दबाव ने बड़ा संकट खड़ा कर दिया है। ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में अधिक काम का बोझ उठाना पड़ रहा है। -सुनील पांडेय, नेत्र परीक्षण अधिकारी, जिला अस्पताल ग्रामीण इलाकों में एक अधिकारी को तीन से चार अस्पतालों का काम देखना पड़ता है। इसका कार्यक्षमता और मानसिक स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ रहा है। -कैलाशनाथ श्रीवास्तव, नेत्र परीक्षण अधिकारी, चोलापुर सीएचसी समान अनुभव एवं योग्यता के बाद भी दूसरे चिकित्सा कर्मियों की तुलना में हमें कम वेतन दिया जा रहा है। ग्रामीण क्षेत्र में कार्यस्थल की कठिनाइयां भी नजरंदाज की जा रही हैं। -शिवसागर, नेत्र परीक्षण अधिकारी, पिंडरा पीएचसी हमें न तो पर्याप्त संसाधन मिलते हैं, न ही वेतन हमारी मेहनत के अनुरूप है। इससे काम गुणवत्ता प्रभावित होती है। व्यवस्था बेहतर होगी तो मरीजों को भी लाभ मिलेगा। -रुद्रकुमार पांडेय, नेत्र परीक्षण अधिकारी, चिरईगांव ग्रामीण इलाकों के काम का बोझ तेजी से बढ़ रहा है। अब हमें तीन से चार अस्पतालों में सेवाएं देनी पड़ रही हैं। इससे मरीजों को भी समय पर सेवाएं नहीं मिल पातीं। -हरिशंकर सिंह, सीएचसी आराजीलाइन कभी-कभी एक दिन में 150 से अधिक मरीज देखने पड़ते हैं। यह न शारीरिक रूप से थकाऊ है, बल्कि इससे हमारी गुणवत्ता पर भी असर पड़ता है। यहां पद बढ़ाने की जरूरत है। -राहुल कुमार, नेत्र परीक्षण अधिकारी, जिला अस्पताल लंबे समय तक काम करने, अपर्याप्त विश्राम और खराब कार्यस्थल सुविधाओं के कारण कई अधिकारी तनाव आदि स्वास्थ्य समस्याओं का सामना कर रहे हैं। -गौरव श्रीवास्तव, नेत्र परीक्षक, जिला अस्पताल शहर से लेकर गांव तक गली-गली चश्मे की दुकानें खुल रही है। वे कैसा चश्मा दे रहे हैं, इसकी जांच नहीं होती। कई दुकानें बिना पंजीकरण के चल रही हैं। -रामपाल यादव, नेत्र परीक्षक, चिरईगांव पीएचसी नेत्र परीक्षण अधिकारियों का वेतन दूसरे स्वास्थ्यकर्मियों के समान होना चाहिए। नेत्र परीक्षण अधिकारी पद के लिए परीक्षा हुई है लेकिन अब तक परिणाम नहीं आए हैं। -प्रभात रंजन, नेत्र परीक्षक, पीएचसी सेवापुरी सुझाव 1. नेत्र परीक्षण अधिकारियों का वेतन अन्य चिकित्सा कर्मचारियों के समान बनाया जाए। इससे उनकी कार्यक्षमता सुधरेगी। 2. ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के नेत्र परीक्षण अधिकारियों का वर्कलोड कम करने के लिए नए पद सृजित किए जाएं। 3. आंख की सटीक जांच के लिए सीएचसी एवं पीएचसी के अलावा सभी अस्पतालों में अत्याधुनिक मशीनों की व्यवस्था की जाए। 4. ग्रामीण क्षेत्रों में काम करने वाले अधिकारियों के लिए विशेष प्रोत्साहन योजना लागू की जाए। 5. सभी सीएचसी पर दो-दो, पीएचसी पर एक-एक जबकि मंडलीय और जिला अस्पताल में तीन-तीन नेत्र परीक्षण अधिकारी की नियुक्ति हो। शिकायतें 1. जिले में किसी सीएचसी और पीएचसी पर ऑटो रिफ्लेक्शन जांच मशीन नहीं है। 2. ग्रामीण क्षेत्र में एक नेत्र परीक्षण अधिकारी पर दो से तीन अस्पताल का लोड है। 3.पीएचसी और सीएचसी पर नेत्र परीक्षण अधिकारी का मानकीकरण नहीं किया गया है। 4. नेत्र परीक्षण अधिकारियों की संविदा पर भर्ती हो रही है। रिक्त पदों पर नियुक्ति नहीं की जा रही है। 5. मेडिकल कॉलेज के जिला अस्पताल में तब्दील होने के बाद नेत्र परीक्षण अधिकारियों पद समाप्त किए जा रहे हैं। ऐसा नहीं होना चाहिए। बोले जिम्मेदार सीएसआर फंड से मशीनें लगवाने का प्रयास सीएचसी और पीएचसी पर आधुनिक जांच मशीन के लिए शासन को पत्र लिखूंगा। इसके साथ नेत्र परीक्षण अधिकारियों की जो भी मांगें हैं, उन्हें शासन को भेजा जाएगा। वेतन विसंगति शासन स्तर का मामला है लेकिन मशीन के लिए हमारा प्रयास रहेगा कि सीएसआर फंड से व्यवस्था कराई जाए। हमारा प्रयास है कि आंखों के मरीजों को शासकीय अस्पतालों में सभी सुविधाएं नि:शुल्क मिलें। उन्हे निजी अस्पताल न जाना पड़े। -डॉ. एमपी सिंह, अपर निदेशक (स्वास्थ्य) एवं वरिष्ठ नेत्र रोग विशेषज्ञ
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