Uttarakhand Folk Artists Protest for Increased Honorarium and Support भुगतान के लिए भटकते कलाकार और सांस्कृतिक कार्यक्रमों की बंदरबांट, Dehradun Hindi News - Hindustan
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भुगतान के लिए भटकते कलाकार और सांस्कृतिक कार्यक्रमों की बंदरबांट

उत्तराखंड के लोक कलाकारों ने संस्कृति विभाग में धरना-प्रदर्शन किया। उन्होंने मानदेय बढ़ाने, समय पर भुगतान और यात्रा भत्ते की मांग की। कलाकारों ने संस्कृति निदेशालय की वर्तमान निदेशक बीना भट्ट को हटाने...

Newswrap हिन्दुस्तान, देहरादूनThu, 3 April 2025 07:42 PM
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भुगतान के लिए भटकते कलाकार और सांस्कृतिक कार्यक्रमों की बंदरबांट

उत्तराखंड के सांस्कृतिक दलों के सदस्य और लोक कलाकारों ने मानदेय बढ़ाने समेत तमाम मुद्दों को लेकर बुधवार को संस्कृति विभाग में धरना-प्रदर्शन किया। सचिव युगल किशोर पंत को दस बिंदुओं पर ज्ञापन देकर लंबित मुद्दों के समाधान की मांग उठाई। लोक कलाकारों ने एक माह में सांस्कृतिक दलों का भुगतान करने के साथ ही संस्कृति विभाग की मौजूदा निदेशक बीना भट्ट को भी पद से हटाने की मांग की। कुमुद नौटियाल की रिपोर्ट...

संस्कृति विभाग में पंजीकृत सांस्कृतिक दल और लोक कलाकारों ने डालनवाला स्थित संस्कृति निदेशालय में पूर्व घोषित कार्यक्रम के तहत धरना-प्रदर्शन किया। वे अपने साथ स्लोगन लिखे पोस्टर लेकर आए। निर्माता-निर्देशक नरेंद्र रौथाण ने बताया कि वर्षों से सांस्कृतिक दलों का भुगतान लटका है। संस्कृति विभाग के अफसर मनमाने तरीके से काम कर रहे हैं। यही नहीं, सांस्कृतिक दलों को कार्यक्रम बंटवारे पर भी पक्षपात किया जाता है। उन्होंने कहा कि प्रदेश के लोक कलाकार नियमित मानदेय न मिलने जैसी कई समस्याओं से जूझ रहे हैं। इसके बावजूद वे बहुत ही उत्साह के साथ काम करते हुए किसी भी सरकारी या गैर सरकारी समारोह में चार चांद लगाते हैं। कार्यक्रम का आकर्षण कई गुना बढ़ा देते हैं। अपनी समस्याओं को कई बार विभाग के सामने रखने के बाद भी उनकी परेशानियों का हल नहीं निकल पाया है। कलाकारों के प्रति अधिकारियों का व्यवहार बहुत निराशाजनक है।

आपके अपने अखबार ‘हिन्दुस्तान के ‘बोले देहरादून अभियान के तहत लोक कलाकारों ने अपना दर्द बयां किया। उन्होंने आरोप लगाया कि उत्तराखंड में लोक कलाकारों का शोषण किया जा रहा है। समय पर भुगतान न मिलने से कई कलाकार तंगहाली से भी जूझ रहे हैं। उनको दल-बल के साथ प्रदेशभर में प्रस्तुति देने जाना पड़ता है। इसके लिए कोई यात्रा भत्ता नहीं मिलता। वे अपने खर्चे पर ही जाने को मजबूर हैं। कई बार कार्यक्रम स्थगित होने पर कलाकारों को उनका मानदेय भी नहीं मिलता। कलाकार अनियमित भुगतान, यात्रा भत्ता न मिलने, मानदेय में बढ़ोत्तरी और बिल पास करवाने के लिए देहरादून आने जैसी अन्य समस्याओं को विभाग को कई बार अवगत कराने के बाद भी समस्याओं का समाधान हो पाया है।

सुझाव

1. कलाकारों का समय पर भुगतान किया जाना चाहिए और बिल भी दिया जाना चाहिए।

2. कलाकारों को दूसरी जगह कार्यक्रम करने के लिए यात्रा भत्ता भी दिया जाना चाहिए।

3. डिमांड के हिसाब से नहीं रोस्टर के हिसाब से कलाकारों को कार्यक्रम दिया जाना चाहिए।

4. कलाकारों का मानदेय बहुत कम है उसे बढ़ाया जाना चाहिए।

5. कलाकारों का ऑडिशन नहीं किया जाना चाहिए और उन्हें पंजीकृत किया जाना चाहिए।

शिकायतें

1. लोक कलाकारों का समय पर भुगतान नहीं किया जाता। इससे उन्हें आर्थिक संकटों का सामना करना पड़ता है।

2. कलाकारों को यात्रा भत्ता नहीं दिया जाता।

3. डिमांड के हिसाब से कलाकारों को काम मिलता है। जिससे प्रदेश में कई कलाकारों को काम नहीं मिल पाता है।

4. कलाकार काफी समय से एक ही मानदेय पर काम कर रहा है।

5. कलाकारों के साथ ऑडिशन के नाम पर अन्याय किया जाता है।

कार्यक्रम के लिए यात्रा का नहीं मिलता खर्च

कलाकारों ने बताया कि वह केवल एक ही जगह पर कार्यक्रम नहीं करते। पूरे प्रदेश में अलग-अलग जगह पर जाकर उन्हें कार्यक्रम करने पड़ते है। उनका मानदेय भी इतना नहीं होता की उससे यात्रा का खर्चा उठाया जाए। उन्हें मामूली किराया ही मिलता है। जबकि कार्यक्रम में समय पर पहुंचने के लिए उन्हें वाहन बुक कर जाना होता है। इस वजह से सभी कलाकार चाहते है कि उन्हें यात्रा का भत्ता भी अलग से मिले।

कलाकारों को मिले विभाग से पहचान पत्र

लोककलाकारों का कहना है कि सभी सांस्कृतिक दलों का पंजीकरण होने के साथ ही हर कलाकार को संस्कृति विभाग द्वारा पहचान पत्र भी दिया जाना चाहिए। इससे उन्हें पहचान मिलेगी। दलों का पंजीकरण होने से एक ही आदमी दस-दस दल नहीं बना सकेंगा। कार्यक्रमों के लिए सभी को एक समान अवसर मिलेंगें। कई बार एक ही आदमी के कई दल भी काम कर रहे हैं।

लोक कलाकारों पर लगता है जीएसटी

लोक कलाकारों ने बताया कि उन पर जीएसटी लगता है। कलाकारों पर जीएसटी लगना उन्हें अखरता है। ऐसा नहीं होना चाहिए। उनकी कमाई ही बहुत कम होती है ऊपर से जीएसटी के नाम पर कुछ मानदेय भी काट लिया जाता है। इससे लोगों को बहुत परेशानी होती है।

संस्कृति निदेशक के रवैये से कलाकार आहत

संस्कृति निदेशक बीना भट्ट के रवैये से लोककलाकार इतने आहत थे कि, बुधवार को हुए प्रदर्शन के दौरान उन्होंने संस्कृति निदेशक से मिलने से इंकार कर दिया। जबकि इस दौरान वह संस्कृति निदेशालय में ही मौजूद थी। लोककलाकारों का कहना था कि संस्कृति निदेशक सालों से इस पद पर जमी हैं, उनके रहते ही समस्याएं बढ़ी हैं। सरकार को उनके कार्यकाल की जांच करानी चाहिए। सभी लोककलाकार संस्कृति सचिव से मिलने की जिद पर अड़े रहे। बाद में संस्कृति सचिव युगल किशोर पंत को मौके पर आना पड़ा। उन्होंने लोककलाकारों को एक माह में सभी मामलों के निपटारे का आश्वासन दिया।

देहरादून में बिल के लिए भटकते हैं लोक कलाकार

जौनसारी लोक गायक सुरेंद्र राणा ने बताया कि कुमाऊं-गढ़वाल और अन्य क्षेत्र से कलाकारों को बिल जमा करने के लिए देहरादून आना पड़ता है। इससे उनका काफी समय जाया हो जाता है। कई बार कलाकार किसी कार्यक्रम में व्यस्त होते हैं। इस वजह से उन्हें इतनी दूर आने का समय नहीं मिल पाता है। कलाकारों की सहुलियत के लिए उनके बिलों को अल्मोड़ा और पौड़ी में जमा किया जाना चाहिए।

अपना हुनर छोड़कर दूसरे काम करने को विवश

उत्तराखंड के लोक कलाकारों के सामने सबसे बड़ी समस्या आर्थिक संकट है। इन कलाकारों की अधिकतर आय उनके कला प्रदर्शन पर निर्भर करती है, लेकिन राज्य में स्थिर मंचों की कमी और पारंपरिक लोक कला का सीमित बाजार होने के कारण उन्हें पर्याप्त वित्तीय सहायता नहीं मिलती। इसके परिणामस्वरूप, बहुत से कलाकारों को अपने हुनर को छोड़कर अन्य काम करने की मजबूरी होती है। इसके अलावा, सरकारी सहायता और योजनाओं की कमी भी एक बड़ी समस्या है। लोक कलाकारों को उनके योगदान के अनुसार उचित मूल्य नहीं मिलता, और उनके कृतियों का उचित प्रचार-प्रसार नहीं हो पाता।

कलाकारों को एक कार्यक्रम के लिए मिलते हैं केवल 800 रुपये

उत्तराखंड के संस्कृति विभाग से जुड़े कई लोक कलाकारों को एक कार्यक्रम के लिए महज 800 रुपये मिलते हैं, जो उनकी कला और मेहनत के मुकाबले बेहद कम हैं। इस मामूली राशि में भी एक और समस्या है। उन्हें 18 प्रतिशत जीएसटी चुकानी पड़ती है। इसका मतलब यह है कि जब कलाकार अपना बिल विभाग में भुगतान के लिए जमा करते हैं, तो पहले ही 18 प्रतिशत जीएसटी काट लिया जाता है। यह स्थिति और भी जटिल हो जाती है जब बिल का भुगतान समय पर नहीं होता। ऐसे में, कलाकारों को बिल का भुगतान नहीं मिलने के बावजूद, उन्हें अपनी जीएसटी रिटर्न भरनी पड़ती है। अगर विभाग ने समय पर बिल का भुगतान नहीं किया, तो भी कलाकारों को जीएसटी का हिसाब अपनी ओर से करना होता है। यह वित्तीय दबाव और प्रशासनिक जटिलताओं से कलाकारों को और भी अधिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। उनका कहना है कि अगर उनकी मेहनत का सही मूल्य और समय पर भुगतान हो, तो वे अपनी कला को बेहतर तरीके से प्रस्तुत कर सकते हैं। सरकार को इस दिशा में कदम उठाने चाहिए ताकि कलाकारों को उचित सम्मान और प्रोत्साहन मिल सके।

बोले कलाकार

दलों को वेशभूषा, आभूषणों और रखरखाव के लिए हर साल कुछ राशि दी जानी चाहिए। अभी तक कलाकारों ने अपने खर्चे पर ही सारी चीजों को संभाल कर रखा हुआ है। -नरेंद्र रौथाण

कलाकारों का ऑडिशन नहीं लिया जाना चाहिए। हम काफी समय से काम कर रहे हैं। कमेटी आकर हमें ऑडिशन से बाहर कर देती है। हमारे साथ ऐसा नहीं होना चाहिए। -शिवानी नेगी

लोक कलाकारों को विभाग से मिलने वाली पेंशन बढ़ाई जानी चाहिए। इसके साथ ही पेंशन मिलने की उम्र को 55 वर्ष किया जाना चाहिए। सरकार को इस पर गंभीरता से ध्यान देना चाहिए। - प्रकाश बिष्ट

सांस्कृतिक दलों को समय पर बिल न जमा करने पर पांच प्रतिशत की कटौती की जाती है। वहीं बिल समय पर जमा करने के बाद भी वर्षों तक कलाकारों के भुगतान नहीं दिए जाते हैं। -विशाल सावंत

कलाकारों को पूरे प्रदेश में कार्यक्रम करने होते है। इसके लिए विभाग की ओर से उसे यात्रा का भत्ता भी दिया जाना चाहिए। इससे उन्हें किसी से मांग कर अपना काम नहीं चलाना पड़ेगा। - गायत्री

यात्रा का भत्ता कलाकारों को समय पर और पूरा दिया जाना चाहिए। यदि कार्यक्रम किसी कारण से स्थगित भी हो जाता है तो भी कलाकारों को यात्रा भत्ता मिलना चाहिए। -सुषमा नेगी

सांस्कृतिक दलों और लोक कलाकारों पर जीएसटी नहीं लगनी चाहिए। जो जीएसटी कलाकारों पर लगी है उसे हटा दिया जाना चाहिए। कलाकारों पर जीएसटी अतिरिक्त भार है। -रवि पंवार

डिमांड पर काम करने से नए दलों और कलाकारों को कभी कार्यक्रम में प्रस्तुति देना का मौका नहीं मिलता है। जिन कलाकारों की पहुंच नहीं है वह डिमांड के मामले में पिछड़ जाते हैं। - भुवन जोशी

पहले और अब के समय में कलाकारों की प्रस्तुति में बहुत अंतर है। पहले कार्यक्रम में अलग-अलग कलाकार होते थे। संस्कृति विभाग की उपेक्षा से कार्यक्रमों की गुणवत्ता भी गिरती जा रही है। -गोकुल बिष्ट

लोक कलाकारों को विभाग की ओर से चिन्हित किया जाना चाहिए। बॉलीवुड कलाकारों की जगह लोक कलाकारों को बुलाना चाहिए। - जितेंद्र राणा

कार्यक्रमों में लोक कलाकारों को निरंतर प्रस्तुति का मौका मिलेगा तो उनका आत्मविश्वास बढ़ेगा। युवा पीढ़ी भी लोक विद्या को अपनाने में संकोच नहीं करेगी। -गिरीश

प्रदेश में कलाकारों की प्रतिभा को पहचानकर उन्हें पंजीकृत किया जाना चाहिए। इससे ठेकेदारी प्रथा पर रोक लगेगी और युवा कलाकारों को मौका मिलेगा। -राजेंद्र मेहता

सांस्कृतिक नियमावली के अनुसार केंद्र में मानदेय बढ़ने पर राज्य के कलाकारों का भी मानदेय बढ़ाना चाहिए। राज्य में अभी तक मानदेय में वृद्धि नहीं हुई। -जितेंद्र शाह

कलाकारों और सांस्कृतिक दलों को रोस्टर के हिसाब से कार्यक्रम मिलने चाहिए। इससे कुछ ही दल और चुनिंदा कलाकारों का दबदबा नहीं रहेगा। -बीराज

समय पर भुगतान न होने की वजह से दल नायकों को अपनी जेब से कलाकारों को खर्चा देना पड़ता है। इस वजह से दल नायकों पर हजारों का कर्जा हो गया है। - आशीष नौटियाल

दलों को वेशभूषा, आभूषणों और रखरखाव के लिए हर साल कुछ राशि दी जानी चाहिए। अभी तक कलाकारों ने अपने खर्चे पर ही सारी चीजों को संभाल कर रखा हुआ है। -नरेंद्र रौथाण

कलाकारों का ऑडिशन नहीं लिया जाना चाहिए। हम काफी समय से काम कर रहे हैं। कमेटी आकर हमें ऑडिशन से बाहर कर देती है। हमारे साथ ऐसा नहीं होना चाहिए। -शिवानी नेगी

लोक कलाकारों को विभाग से मिलने वाली पेंशन बढ़ाई जानी चाहिए। इसके साथ ही पेंशन मिलने की उम्र को 55 वर्ष किया जाना चाहिए। सरकार को इस पर गंभीरता से ध्यान देना चाहिए। - प्रकाश बिष्ट

सांस्कृतिक दलों को समय पर बिल न जमा करने पर पांच प्रतिशत की कटौती की जाती है। वहीं बिल समय पर जमा करने के बाद भी वर्षों तक कलाकारों के भुगतान नहीं दिए जाते हैं। -विशाल सावंत

कलाकारों को पूरे प्रदेश में कार्यक्रम करने होते है। इसके लिए विभाग की ओर से उसे यात्रा का भत्ता भी दिया जाना चाहिए। इससे उन्हें किसी से मांग कर अपना काम नहीं चलाना पड़ेगा। - गायत्री

यात्रा का भत्ता कलाकारों को समय पर और पूरा दिया जाना चाहिए। यदि कार्यक्रम किसी कारण से स्थगित भी हो जाता है तो भी कलाकारों को यात्रा भत्ता मिलना चाहिए। -सुषमा नेगी

सांस्कृतिक दलों और लोक कलाकारों पर जीएसटी नहीं लगनी चाहिए। जो जीएसटी कलाकारों पर लगी है उसे हटा दिया जाना चाहिए। कलाकारों पर जीएसटी अतिरिक्त भार है। -रवि पंवार

डिमांड पर काम करने से नए दलों और कलाकारों को कभी कार्यक्रम में प्रस्तुति देना का मौका नहीं मिलता है। जिन कलाकारों की पहुंच नहीं है वह डिमांड के मामले में पिछड़ जाते हैं। - भुवन जोशी

पहले और अब के समय में कलाकारों की प्रस्तुति में बहुत अंतर है। पहले कार्यक्रम में अलग-अलग कलाकार होते थे। संस्कृति विभाग की उपेक्षा से कार्यक्रमों की गुणवत्ता भी गिरती जा रही है। -गोकुल बिष्ट

लोक कलाकारों को विभाग की ओर से चिन्हित किया जाना चाहिए। बॉलीवुड कलाकारों की जगह लोक कलाकारों को बुलाना चाहिए। - जितेंद्र राणा

कार्यक्रमों में लोक कलाकारों को निरंतर प्रस्तुति का मौका मिलेगा तो उनका आत्मविश्वास बढ़ेगा। युवा पीढ़ी भी लोक विद्या को अपनाने में संकोच नहीं करेगी। -गिरीश

प्रदेश में कलाकारों की प्रतिभा को पहचानकर उन्हें पंजीकृत किया जाना चाहिए। इससे ठेकेदारी प्रथा पर रोक लगेगी और युवा कलाकारों को मौका मिलेगा। -राजेंद्र मेहता

सांस्कृतिक नियमावली के अनुसार केंद्र में मानदेय बढ़ने पर राज्य के कलाकारों का भी मानदेय बढ़ाना चाहिए। राज्य में अभी तक मानदेय में वृद्धि नहीं हुई। -जितेंद्र शाह

कलाकारों और सांस्कृतिक दलों को रोस्टर के हिसाब से कार्यक्रम मिलने चाहिए। इससे कुछ ही दल और चुनिंदा कलाकारों का दबदबा नहीं रहेगा। -बीराज

समय पर भुगतान न होने की वजह से दल नायकों को अपनी जेब से कलाकारों को खर्चा देना पड़ता है। इस वजह से दल नायकों पर हजारों का कर्जा हो गया है। - आशीष नौटियाल

भुगतान में देरी होने से कलाकारों को परेशानी होती है। किसी कार्यक्रम में जाना है तो उनके खाने-पीने, रहने का खर्चा दल नायक को अपनी जेब से करना पड़ता है। -जितेंद्र बलूनी

नेगीदा ने कलाकारों के लिए उठाई हक की आवाज

कलाकारों की समस्याओं को वाजिब ठहराते हुए वरिष्ठ लोकगायक नरेन्द्र सिंह नेगी भी बुधवार को संस्कृति निदेशालय पहुंचे और लोक कलाकारों के धरने में शामिल हुए। उन्होंने धरना स्थल पर कलाकारों का मनोबल बढ़ाने के लिए अपना उत्तराखंड आंदोलन का जनगीत उठा जागा उत्तराखंड्यू सौं उठाणो बखत ऐगे.., भी गाया। नेगीदा ने कहा कि कलाकारों को उनका हक मिलना चाहिए। कलाकारा स्वाभिमानी होता है, लेकिन संस्कृति विभाग के अधिकारियों का रवैया उनका मनोबल और स्वाभिमान को क्षीण करने वाला है। उन्होंने याद दिलाया, उत्तराखंड राज्य प्राप्ति के लिए अनेक कलाकारों ने जुलूस-रैली में सबसे आगे रहकर जनगीत, लोकगीत गाकर राज्यांदोलनकारियों में जोश भरा था। ऐसे में लोककलाकारों के प्रति उपेक्षा का ये भाव उचित नहीं है। कलाकारों के साथ ऐसा बर्ताव बहुत ही निंदनीय है। ऐसा नहीं होना चाहिए। लोक कलाकार प्रदेश की संस्कृति को संजो के रखने का और उसे बढ़ावा देने का काम कर रहे हैं। आज की स्थिति ऐसी है कि कलाकार समय से भुगतान न होने की वजह से कर्ज में डूब रहा है। कलाकारों के लिए सम्मानजनक उचित व्यवस्था करना विभाग का काम है। युवा गायक सौरभ मैठाणी ने भी कलाकारों के शोषण के मुद्दे पर चिंता जताते हुए गीत गाया। उन्होंने कहा कि लोककलाकार अपने हक के लिए लड़ रहे हैं। इसमें समाज के प्रबुद्ध वर्ग को भी आगे आना चाहिए। उनका कहना है कि सांस्कृतिक दलों को कार्यक्रम आवंटन के लिए रोस्टर बनाया जाना चाहिए। इससे कलाकारों की स्थिति में भी सुधार होगा। इसलिए इस पर ध्यान दिया जाना चाहिए।

कम मानदेय से टूट रहा कलाकारों का मनोबल

उत्तराखंड के लोक कलाकारों के मानदेय में वृद्धि की आवश्यकता पर जोर दिया जा रहा है। संस्कृति विभाग में पंजीकृत एक दल के दलनायक हेमंत बुटोला का कहना है कि लंबे समय से लोक कलाकार एक ही मानदेय पर काम कर रहे हैं, जिससे उनका मनोबल गिरता जा रहा है।

लोक कलाकारों तक नहीं पहुंच पाती योजनाएं

उत्तराखंड के लोक कलाकारों के लिए सरकारी सहायता की कमी एक और महत्वपूर्ण समस्या है। सरकारी योजनाएं और अनुदान, जो कलाकारों के कलात्मक काम को बढ़ावा देने के लिए होते हैं, बहुत ही सीमित होते हैं और उन्हें सही तरीके से लागू नहीं किया जाता। राज्य सरकार की ओर से जो योजनाएं बनाई जाती हैं, वे अधिकांशत: लोक कलाकारों तक पहुंचने में असफल रहती हैं। इसके अलावा, सरकारी मंचों और संस्थाओं द्वारा लोक कला के लिए किए जाने वाले आयोजन बहुत ही सीमित होते हैं। कई बार यह आयोजन ऐसे स्थानों पर होते हैं, जहां कलाकारों के पहुंचने की कोई व्यवस्था नहीं होती। इसके परिणामस्वरूप, लोक कलाकार अपनी कला को उचित रूप से प्रदर्शित नहीं कर पाते हैं और उन्हें जरूरी समर्थन नहीं मिल पाता।

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