बोले हल्द्वानी: दमुवाढूंगा वृद्धाश्रम की बिजली के खंभों ने रोकी राह, एंबुलेंस भी नहीं पहुंचती
हल्द्वानी के दमुवाढूंगा स्थित वृद्धाश्रम में बुजुर्गों को बुनियादी सुविधाओं की कमी का सामना करना पड़ रहा है। संकरे रास्तों पर बिजली के खंभे एंबुलेंस की पहुंच में बाधा बनते हैं। पानी की किल्लत और जंगली...
हल्द्वानी। हल्द्वानी के शांत कोने दमुवाढूंगा में स्थित आश्रय सेवा समिति का वृद्धाश्रम खुद ही अपनी उपेक्षा की कहानी कह रहा है। अपनों के किनारा करने के बाद उम्र के अंतिम पड़ाव में यहां सुकून की तलाश में आए लोगों को बुनियादी सुविधाओं के लिए भी परेशान होना पड़ रहा है। वृद्धाश्रम की समस्याओं का दौर इसके रास्ते से ही शुरू हो जाता है। संकरे रास्तों पर खड़े बिजली के खंभे, आपातकालीन चिकित्सा सहायता के रास्ते में रुकावट बनते हैं। जंगल के पास बने आश्रम में जंगली जानवरों का खौफ बना रहता है। पानी की बूंद-बूंद के लिए तरसती आंखों और रात के अंधेरे में रोशनी की आस लगाए इन बुजुर्गाेंतक सरकारी सहायता भी नहीं पहुंच रही है।
यहां रहने वाले बुजुर्ग दर्द भरी आवाज में कहते हैं कि सोलर फेंसिंग, नियमित पानी और रोशनी का इंतजाम हो जाए तो वृद्धावस्था में उनका संघर्ष कुछ कम हो सकता है। गुमनामी के बीच कई तरह की पीड़ाएं झेल रहे ये बुजुर्ग आज भी एक सुरक्षित और सम्मानजनक जीवन की उम्मीद लगाए बैठे हैं। ‘बोले हल्द्वानी की टीम जब इन लोगों के बीच पहुंची तो उन्होंने खुलकर अपनी परेशानियां बताईं और समाधान भी सुझाए। वर्ष 2016 में बने आश्रय सेवा समिति वृद्धाश्रम में रहने वाले बुजुर्गों ने बुनियादी सुविधाओं की कमी और सुरक्षा को लेकर गहरी चिंता जताई है। जंगल के निकट बसे आश्रम में जंगली जानवरों का खतरा तो रहता ही है, संकरे रास्तों में बिजली के खंभों के कारण एंबुलेंस भी वृद्धाश्रम तक नहीं पहुंच पाती है। इस वजह से गंभीर स्थिति में मरीजों में अस्पताल तक पहुंचाना बड़ी चुनौती बन जाता है। पानी की कमी और सोलर लाइट का अभाव भी यहां रहने वाले 35 बुजुर्गों के लिए चिंता का कारण बना हुआ है। आश्रम में रहने वाले बुजुर्गों ने बताया कि जंगल से सटे होने के कारण जंगली जानवरों का परिसर के आसपास आना आम बात है। इससे उनकी सुरक्षा पर हमेशा खतरा बना रहता है। उन्होंने वन विभाग से आश्रम की सीमा पर सोलर फेंसिंग लगाने की मांग की है। उन्होंने बताया कि आश्रम तक पहुंचने वाले संकरे रास्तों पर बिजली के खंभों की वजह से एंबुलेंस का आवागमन नहीं हो पाता है। कई बार बुजुर्ग व्यक्तियों की तबीयत बिगड़ जाने पर उन्हें कंधे पर बैठाकर 80 मीटर दूर मुख्य सड़क तक ले जाना पड़ता है। इस वजह से कई बार वरिष्ठ नागरिक चोटिल भी हो चुके हैं। बुजुर्गों ने इन खंभों को शिफ्ट करने की मांग की है। यह भी बताया कि आश्रम में पानी भी केवल एक घंटे के लिए आता है, जो पर्याप्त नहीं है। उन्होंने सुबह-शाम दो से तीन घंटे जलापूर्ति देने की मांग की है। सोलर फेंसिंग बचा सकती है जंगली जानवरों से : वृद्धाश्रम के निवासी वन्यजीवों के खतरे को लेकर सबसे ज्यादा चिंतित हैं। उनका कहना है कि आश्रम घने जंगल के करीब बसा है और अक्सर जंगली जानवरों के आने-जाने का केंद्र बना रहता है। आश्रम में रहने वाले सभी लोग वरिष्ठ नागरिक हैं और ऐसे में यदि कोई जंगली जानवर परिसर में आ जाता है तो उनकी सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है। इस समस्या के समाधान के लिए, उन्होंने वन विभाग से आश्रम की जंगल की ओर वाली सीमा पर सोलर फेंसिंग लगाने का अनुरोध किया है। उनका मानना है कि इस उपाय से जंगली जानवरों को आश्रम में प्रवेश करने से रोका जा सकेगा, जिससे यहां रहने वाले बुजुर्ग सुरक्षित महसूस करेंगे। मरीजों को कंधे पर बैठाकर ले जाते हैं: वृद्धाश्रम में बुजुर्गों के लिए तमाम अच्छी सुविधाएं उपलब्ध हैं, लेकिन एक बड़ी समस्या उनके लिए चिंता का विषय बनी हुई है। आश्रम के निवासियों ने बताया कि संकरे रास्ते और सड़कों पर लगे बिजली के खंभों के कारण आपातकालीन स्थिति में एंबुलेंस आश्रम तक पहुंचती है। बताया कि कुछ साल पहले तक जब यहां आबादी कम थी, तब एंबुलेंस आसानी से आश्रम तक पहुंच जाती थी। जैसे-जैसे आसपास लोगों का बसना शुरू हुआ, बिजली की आपूर्ति के लिए रास्तों पर ही बिजली के खंभे लगा दिए गए। इन खंभों और संकरे रास्तों की वजह से अब एंबुलेंस जैसी बड़ी गाड़ी आश्रम तक नहीं पहुंच पाती है। मरीजों को कंधे पर बैठाकर एंबुलेंस तक ले जाना पड़ता है। आश्रम को नहीं मिलती सरकार से कोई सुविधाएं : वृद्धाश्रम के संचालक प्रकाश डिमरी ने सरकार से अपेक्षित सहयोग नहीं मिलने पर निराशा व्यक्त की है। उन्होंने बताया कि उनका आश्रम बेसहारा बुजुर्गों की देखभाल में जुटा है, लेकिन उन्हें सरकार की ओर से कोई भी सहायता प्राप्त नहीं हो रही है। डिमरी ने कहा कि यदि सरकार किसी भी रूप में थोड़ी सी भी मदद करे को आश्रम का संचालन और बेहतर तरीके से किया जा सकता है। इससे बुजुर्गों के जीवन को बेहतर बनाया जा सकता है। डिमरी ने उम्मीद जताई कि उनकी आवाज को सुना जाएगा और सरकार भविष्य में उनके प्रयासों को देखते हुए सहायता प्रदान करेगी, जिससे बुजुर्गों के जीवन में सकारात्मक बदलाव आ सकेगा। वृद्धाश्रम की पांच समस्याएं 1. रास्ते में बिजली के पोल होने से आश्रम तक नहीं पहुंचती एंबुलेंस। 2. केवल एक समय एक घंटे के लिए आता है पानी। 3. जंगल से सटा होने की वजह से वन्यजीवों का रहता है खतरा। 4. सरकार की ओर से नहीं मिलता कोई भी सहयोग। 5. क्षेत्र में सोलर लाइट नहीं होने से हो रही परेशानी। लोगों के पांच सुझाव 1. रास्ते से लगे बिजली के खंभों को शिफ्ट किया जाए। 2. सुबह-शाम दो से तीन घंटे पानी की आपूर्ति की जाए। 3. जंगली जानवरों से सुरक्षा के लिए सोलर फेंसिंग लगाई जाए। 4. सरकार की ओर से सहयोग मिलना चाहिए। 5. क्षेत्र में लगवाई जाए सोलर लाइट। लोगों का दर्द मैं पिछले दो साल से आश्रम में निवास कर रही हूं। यहां सभी सुविधाएं अच्छी हैं, लेकिन एंबुलेंस आश्रम तक नहीं आ पाती है, जिसकी वजह से हमें काफी दिक्कतें होती हैं। पुष्पा पंत मैं पिछले पांच साल से यहां रह रही हूं। पहले तो एंबुलेंस आराम से आ जाती थी लेकिन अब नहीं आ पाती है। कंधे पर बैठाकर हमें एंबुलेंस तक ले जाया जाता है। जानकी पाठक जंगल के बगल में होने की वजह से यहां रात को जंगली जानवर घूमते हैं, जिससे हमें काफी डर लगता है। अगर वन विभाग की ओर से सोलर फेंसिंग लगाई जाए तो काफी राहत मिलेगी। आशा आश्रम में पानी केवल एक समय आता है वह भी केवल एक घंटे के लिए। यहां तीस से ज्यादा लोग रहते है, ऐसे में एक घंटे पानी से कौन-कौन अपना काम कर सकता है। देवी प्रसाद अगर सुबह शाम दो-तीन घंटे पानी आए तो सभी काम आराम से हो सकते हैं। कई बार विभागीय अधिकारियों से मामले की शिकायत कर चुके है लेकिन अभी तक कुछ नहीं हुआ। राम नारायण पानी की तो ऐसी किल्लत है कि क्या बताएं। सिर्फ एक घंटे के लिए पानी आता है। इसमें सभी काम नहीं हो पाते हैं। संबंधित विभाग को हमारी समस्या का देखते हुए राहत प्रदान करनी चाहिए। गीता प्रधान यहां जंगल के पास रहना भी मुसीबत है। रात भर डर लगा रहता है कि कहीं कोई जानवर न आ जाए। हमारी सुरक्षा का कोई इंतजाम नहीं है। सोलर फेंसिंग लग जाए तो थोड़ा डर कम होगा। सरस्वती सरकार भी हमारी कोई सुध नहीं लेती। इतना बड़ा आश्रम है, इतने बूढ़े लोग रहते हैं, लेकिन कोई मदद नहीं मिलती। अगर सरकार थोड़ा सहयोग करे तो यहां कुछ सुधार हो सकता है। चंपा यहां पानी की समस्या गर्मी में और भी बढ़ जाती है। केवल शाम को पानी दिया जाता है वह भी एक घंटे के लिए। उसमें सभी काम नहीं हो पाते। दो-तीन घंटे सुबह और शाम पानी मिलना बहुत जरूरी है। द्रोपदी सरकार को तो हमारी हालत देखनी चाहिए। हम सब अपने घरों से दूर यहां रह रहे हैं। थोड़ी मदद तो मिलनी ही चाहिए ताकि हमारी बुनियादी जरूरतें पूरी हो सकें। गिरीश कुमार यह बिजली के खंभे तो जैसे हमारी जान के दुश्मन बन गए हैं। बीमार होने पर लगता है जैसे मौत सामने खड़ी है और कोई मदद करने वाला नहीं। क्या सरकार को हमारी यह तकलीफ दिखाई नहीं देती? सविता एक घंटे पानी में क्या होता है? बर्तन भी ठीक से नहीं धुल पाते और पीने के लिए भी कम पड़ता है। गर्मी में तो प्यास के मारे बुरा हाल हो जाता है। कम से कम हमारी उम्र का तो लिहाज करना चाहिए। बेगम सुबह-शाम दो-तीन घंटे पानी मिले तो थोड़ी राहत मिले। कपड़े धोने और नहाने के लिए भी पर्याप्त पानी नहीं मिलता। लगता है जैसे हम किसी रेगिस्तान में जी रहे हैं। विनोद कुमार सोलर फेंसिंग लग जाए तो थोड़ा तो सुकून मिले। कम से कम यह डर तो खत्म हो कि रात में कोई जंगली जानवर हमला कर देगा। आश्रम जंगल से सटा है तो जानवरों का डर हमेशा रहता है। मोहन सिंह संचालको की ओर से सभी व्यवस्थाएं तो बढ़िया हैं पर बिजली विभाग की ओर से सड़कों पर खंभे लगा दिए गए हैं, जिनकी वजह से हमें चिकित्सा सहायता समय पर नहीं मिल पाती है। रेखा यह तो हमारी जान से खिलवाड़ जैसा है। जब कोई बीमार होता है, तो सड़क पर लगे खंभों को देखकर लगता है जैसे यमराज सामने खड़े हैं। क्या हमारी जान की कोई कीमत नहीं है। रघुवर यह सरासर लापरवाही है। इन खंभों को कब हटाया जाएगा। क्या किसी की मौत का इंतजार है? प्रशासन को समझना चाहिए कि हर पल कीमती होता है, खासकर हमारी उम्र में। पुष्पा हमारे सुझाव तो बिल्कुल साफ हैं। रास्तों से बिजली के खंभे हटा दो, पानी सुबह-शाम दो-तीन घंटे दो, जंगली जानवरों से बचाने के लिए सोलर फेंसिंग लगाओ, सरकार हमारी मदद करे। अल्का बोले जिम्मेदार दमुवाढूंगा स्थित वृद्धाश्रम के रास्ते में बिजली के खंभों के मामले की जानकारी मिली है, जल्द ही कार्यवाही कर समस्या का समाधान किया जाएगा। बेगराज सिंह, ईई ग्रामीण ऊर्जा निगम
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