Shani Jayanti 2025 : शनि जयंती पर साढ़ेसाती वाले करें ये उपाय, शनिदेव देंगे शुभ फल
Shani Jayanti 2025 Date : हिंदू पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ माह की अमावस्या तिथि पर शनि देव का जन्म हुआ था। इस दिन को शनि जयंती के नाम से जाना जाता है। हर साल ज्येष्ठ अमावस्या के दिन शनि जयंती मनाई जाती है।

Shani Jayanti 2025 Date : हिंदू पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ माह की अमावस्या तिथि पर शनि देव का जन्म हुआ था। इस दिन को शनि जयंती के नाम से जाना जाता है। हर साल ज्येष्ठ अमावस्या के दिन शनि जयंती मनाई जाती है। इस साल 27 मई को शनि जयंती है। इस दिन शनिदेव की विधि-विधान से पूजा करने पर जीवन के सभी कष्टों से छुटकारा मिलता है और शनि की साढ़ेसाती का प्रकोप भी कम होता है। इस समय कुंभ, मीन और मेष राशि पर शनि की साढ़ेसाती चल रही है। शनि की साढ़ेसाती लगने पर व्यक्ति को अपना विशेष ध्यान रखना चाहिए। शनि की साढ़ेसाती वालों को इस दिन विधि-विधान से शनिदेव की पूजा करनी चाहिए और राजा दशरथ कृत शनि स्तोत्र का पाठ जरूर करना चाहिए। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस स्तोत्र का पाठ करने से शनिदेव प्रसन्न होते हैं।
शनिदेव पूजा विधि-
इस पावन दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त हो जाएं।
घर के मंदिर में दीप प्रज्वलित करें।
शनिदेव के मंदिर जाएं।
शनिदेव को तेल, पुष्प अर्पित करें।
शनि चालीसा का पाठ करें।
अगर संभव हो तो इस दिन व्रत भी रखें।
पूजन-सामग्री : शनिदेव की प्रतिमा, काला या नीला वस्त्र, नीले फूल, सरसों का तेल,हवन सामग्री, हवन कुंड, कपूर, पान, सुपारी, दक्षिणा, धूप, दीप, चंदन,अक्षत, शमी का पत्ता, गंगाजल, फल और मिठाई समेत पूजा की सभी सामग्री एकत्रित कर लें।
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राजा दशरथ कृत शनि स्तोत्र
नम: कृष्णाय नीलाय शितिकण्ठनिभाय च।
नम: कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नम: ।।
नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च।
नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते।।
नम: पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णेऽथ वै नम:।
नमो दीर्घायशुष्काय कालदष्ट्र नमोऽस्तुते।।
नमस्ते कोटराक्षाय दुर्निरीक्ष्याय वै नम:।
नमो घोराय रौद्राय भीषणाय कपालिने।।
नमस्ते सर्वभक्षाय वलीमुखायनमोऽस्तुते।
सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करे भयदाय च।।
अधोदृष्टे: नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोऽस्तुते।
नमो मन्दगते तुभ्यं निरिस्त्रणाय नमोऽस्तुते।।
तपसा दग्धदेहाय नित्यं योगरताय च।
नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नम:।।
ज्ञानचक्षुर्नमस्तेऽस्तु कश्यपात्मज सूनवे।
तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात्।।
देवासुरमनुष्याश्च सिद्घविद्याधरोरगा:।
त्वया विलोकिता: सर्वे नाशंयान्ति समूलत:।।
प्रसाद कुरु मे देव वाराहोऽहमुपागत।
एवं स्तुतस्तद सौरिग्र्रहराजो महाबल:।।