What is the difference between Ardha Kumbh, Purna Kumbh and Maha Kumbh? Know everything here अर्द्धकुंभ, पूर्णकुंभ और महाकुंभ में क्या होता है अंतर? यहां जानें सबकुछ, एस्ट्रोलॉजी न्यूज़ - Hindustan
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अर्द्धकुंभ, पूर्णकुंभ और महाकुंभ में क्या होता है अंतर? यहां जानें सबकुछ

  • सनातन धर्म में कुंभ का विशेष महत्व है। कुंभ मेले में देश-दुनिया से लोग शामिल होते हैं। इस मेले में दुनिया भर के नागा साधु भी भाग लेते हैं। कुंभ चार पवित्र तीर्थस्थल प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन व नासिक में लगता है।

Yogesh Joshi लाइव हिन्दुस्तान, नई दिल्लीThu, 2 Jan 2025 02:38 PM
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अर्द्धकुंभ, पूर्णकुंभ और महाकुंभ में क्या होता है अंतर? यहां जानें सबकुछ

सनातन धर्म में कुंभ का विशेष महत्व है। कुंभ मेले में देश-दुनिया से लोग शामिल होते हैं। इस मेले में दुनिया भर के नागा साधु भी भाग लेते हैं। कुंभ चार पवित्र तीर्थस्थल प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन व नासिक में लगता है। 2025 में प्रयागराज में महाकुंभ मेला लगने वाला है। हिंदू पंचांग के अनुसार महाकुंभ 13 जनवरी 2025 से शुरू होगा और 26 फरवरी (महाशिवरात्रि) तक रहेगा। कुंभ मेला तीन तरह का लगता है। अर्द्धकुंभ, पूर्णकुंभ और महाकुंभ। आइए जानते हैं, अर्द्धकुंभ, पूर्णकुंभ और महाकुंभ में क्या अंतर होता है।

कैसे तय होता है स्थान?

सूर्य, चंद्रमा और बृहस्पति की स्थिति को देखकर कुंभ मेले का स्थान तय किया जाता है। जब सूर्य और चंद्रमा मकर राशि में होते हैं और बृहस्पति वृषभ राशि में होता है, तब कुंभ मेले का आयोजन प्रयागराज में किया जाता है। वहीं, जब सूर्य मेष राशि और बृहस्पति कुंभ राशि में होते हैं तो कुंभ मेले का आयोजन हरिद्वार में किया जाता है। जब सूर्य सिंह राशि और बृहस्पति ग्रह भी सिंह राशि में होते हैं, तो कुंभ मेले का आयोजन उज्जैन में किया जाता है। जब, सूर्य सिंह राशि और बृहस्पति सिंह या कर्क राशि में होता है, तब कुंभ मेले का आयोजन नाशिक में किया जाता है।

अर्द्धकुंभ मेला

अर्द्धकुंभ मेले का आयोजन प्रत्येक छह वर्ष में एक बार किया जाता है। अर्द्धकुंभ केवल प्रयागराज और हरिद्वार में होता है।

पूर्णकुंभ मेला

पूर्णकुंभ मेले का आयोजन 12 वर्ष में एक बार आयोजित किया जाता है। इस मेले का आयोजन प्रयागराज में संगम तट पर किया जाता है। आखिर बार साल 2013 में यहां पूर्णकुंभ मेले का आयोजन किया गया था।

महाकुंभ मेला

इस साल होने वाला कुंभ महाकुंभ है। जब प्रयागराज में 12 बार पूर्णकुंभ हो जाते हैं, तो उसे एक महाकुंभ का नाम दिया जाता है। महाकुंभ 12 पूर्णकुंभ में एक बार लगता है। महाकुंभ का आयोजन 144 सालों में एक बार होता है।

महाकुंभ में 6 शाही स्नान-

पहला स्नान- पौष पूर्णिमा 13 जनवरी 2025 को महाकुंभ की शुरुआत के साथ ही पहला शाही स्नान होगा।

दूसरा शाही स्नान- मकर संक्रांति यानी 14 जनवरी 2025 को दूसरा शाही स्नान होगा।

तीसरा शाही स्नान- मौनी अमावस्या 29 जनवरी 2025 को तीसरा शाही स्नान होगा।

चौथा शाही स्नान- बसंत पंचमी यानी 3 फरवरी 2025 को चौथा शाही स्नान होगा।

पांचवां शाही स्नान- माघी पूर्णिमा पर 12 फरवरी 2025 को पांचवां शाही स्नान होगा।

छठा शाही स्नान- महाशिवरात्रि और महाकुंभ के अंतिम दिन 26 फरवरी 2025 छठा शाही स्नान होगा।

इस साल महाकुम्भ में साढ़े पांच करोड़ रुद्राक्ष से 12 ज्योतिर्लिंग का स्वरूप तैयार किया जा रहा है

महाकुम्भ में साढ़े पांच करोड़ रुद्राक्ष से 12 ज्योतिर्लिंग का स्वरूप तैयार किया जा रहा है। इसे तैयार करने में डमरू सहित 11 हजार त्रिशूल का भी इस्तेमाल होगा। इसका प्रारंभिक ढांचा तैयार कर लिया गया है। पहले स्नान से पूर्व सभी 12 ज्योतिर्लिंग तैयार कर लिए जाएंगे, जो महाकुम्भ में आने वाले श्रद्धालुओं के आकर्षण का मुख्य केंद्र होंगे।

यह अनूठा ज्योतिर्लिंग अमेठी स्थित संत परमहंस आश्रम के महाकुम्भ सेक्टर छह स्थित शिविर में बनाया जा रहा है। इनका शिविर नागवासुकी मंदिर के सामने है। इसके लिए नेपाल और मलेशिया से रुद्राक्ष मंगवाए गए हैं। जो सात दिनों में यहां आ जाएंगे। प्रत्येक ज्योतिर्लिंग की चौड़ाई नौ फीट और ऊंचाई 11 फीट की होगी। इसमें प्रयोग हो रहे 11 हजार त्रिशूलों को सफेद, काले, पीले और लाल रंग से रंगा गया है।12 जनवरी तक 12 ज्योतिर्लिंग के निर्माण का कार्य पूरा हो जाएगा और 13 जनवरी से लेकर 26 फरवरी के बीच श्रद्धालु इनका दर्शन व पूजन-अर्चन कर सकेंगे। आश्रम के पीठाधीश्वर ब्रह्मचारी मौनी बाबा बताते हैं कि संगम की रेती सदियों से सनातन संस्कृति के लिए पावन भूमि रही है। शिविर में स्थापित किए जा रहे 12 ज्योतिर्लिंग के माध्यम से अखंड भारत और विश्व के कल्याण की कामना की जा रही है।

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