बोले औरंगाबाद : मजदूरी बढ़े और समय से भुगतान मिले तो दूर हो समस्या
महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के अंतर्गत काम कर रहे ग्रामीण मजदूरों को पिछले पांच महीनों से मजदूरी का भुगतान नहीं मिला है। इस स्थिति ने उनकी आर्थिक हालत को गंभीर बना दिया है।...
महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी अधिनियम ( मनरेगा) की शुरुआत 2006 में भारत सरकार ने एक विशेष कानून को अधिसूचित करते हुए की थी। ग्रामीण इलाकों में अकुशल मजदूरों को रोजगार उपलब्ध कराने के बहुत बड़े प्रयास के रूप में इसे परिभाषित किया गया था। मेहनतकश को न्यूनतम सौ दिनों के कार्य दिवस का वादा था। गांव के विकास की रफ्तार देने में सबसे अहम भूमिका मनरेगा ने निभाई है। मनरेगा श्रमिक ग्रामीण विकास को अपने पसीने से सींचते हैं। सुबह से शाम तक कड़ी मेहनत करते हैं। पीसीसी सड़क से लेकर मिट्टी खुदाई तक, तमाम विकास के काम मनरेगा श्रमिकों के कंधे पर हैं लेकिन जिले के मनरेगा श्रमिकों की आर्थिक स्थिति बहुत खराब हो गई है। श्रमिकों का कहना है कि पांच महीने से मजदूरी का भुगतान नहीं हुआ है। रोजाना बैंकों के चक्कर काट रहे हैं। ऐसे में ग्रामीण इलाकों में कई लोग पहले ही काम की तलाश में गांव छोड़ चुके हैं। अब ऐसी स्थिति है कि जो लोग गांव पर रहकर मनरेगा के तहत काम कर रहे हैं, उनके बच्चों की पढ़ाई बाधित है। आवश्यक वस्तुएं नहीं खरीद पा रहे हैं। बीमारी का उपचार नहीं हो पा रहा है। मजदूरी भुगतान के लिए अफसर से गुहार लगा रहे हैं लेकिन उनका भुगतान नहीं हो पा रहा है। मजदूरों को कहना है कि मनरेगा में दैनिक मजदूरी 252 रुपए है जबकि बाहर मजदूरी का रेट लगभग 450 रुपए है। महंगाई के दौर में मनरेगा मजदूरी ऊंट के मुंह में जीरा साबित हो रही है। मजदूरों का कहना है कि 60 प्रतिशत कच्चा काम करना पड़ता है। इसके बाद ही उनको पक्के कार्यों में शामिल किया जाता है। काम तो हो जाता है लेकिन भुगतान नहीं मिल पाता। ऐसे में घर चलाने में कठिनाई होती है। यदि समय रहते भुगतान मिलता रहे तो थोड़ी राहत मिलेगी। यही नहीं मजदूरों को सुबह-शाम ऑनलाइन हाजिरी मेट या रोजगार सेवकों को लगानी पड़ती है। मजदूरों से काम तो ले लिया जाता है लेकिन जब भुगतान लेने की नौबत आती है तो तीन से चार माह बीत जाते हैं। इसके बाद भी खाते में पैसा ही नहीं पहुंचता। मजदूरों की पांच महीने से मजदूरी नहीं मिली है। बताया जाता है कि भुगतान के लिए बजट आने वाला है। मजदूरों का कहना है कि सौ दिन रोजगार की गारंटी देने वाली बात कभी हद तक सही साबित नहीं होती क्योंकि बात 100 दिन का रोजगार गांव में ही उपलब्ध करवाने का दावा किया जाता है। इधर काम मुश्किल से 15 से 20 दिन का ही मिलता है जिससे लोग बाहर काम करने जाते हैं। मनरेगा मजदूर कहते हैं कि हम लोग गांव के विकास के लिए काम करते हैं इसलिए पूरे महीने काम मिलना चाहिए और महंगाई को देखते हुए दैनिक मजदूरी काम से कम पांच सौ रुपए होनी चाहिए। सुमंती देवी, कुंती देवी, धनो देवी, विनय कुमार, अजय कुमार, शंकर राम, अनूप कुमार, देवपूजन कुमार सहित अन्य मजदूरों का कहना है कि चार माह बीत जाते हैं लेकिन भुगतान नहीं होता। ऐसे में काम करने का क्या फायदा। हम लोग दैनिक मजदूरी करने वाले लोग हैं। दिहाड़ी पर ही घर के सारे खर्चे पूरे होते हैं। यदि दिन भर काम किया और शाम को पैसा नहीं मिला तो हम लोगों को घर चलाने में बड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। हम लोग की समस्याओं को जिम्मेदारों को ध्यान देना चाहिए। मजदूरों के लिए विशेष प्रावधान किए गए हैं लेकिन धरातल पर बदलाव नहीं होता है।
महंगाई को देखते हुए बढ़ाई जानी चाहिए मजदूरी
सरकार को मजदूरो की सूची ऑनलाइन करने की तरह उनकी उपस्थिति और उपलब्ध कराए गए कार्यदिवसों का ब्यौरा भी ऑनलाइन करना चाहिए। इसके अलावा मजदूरी की दर भी वर्तमान महंगाई की दर से जोड़ते हुए प्रतिदिन 700 से 800 रुपए कर देनी चाहिए। साथ ही पुराने तरीके से हाजिरी मैन्युअल बनवाई जाए। मनरेगा मजदूरों का आरोप है कि कई मुखिया कच्चे काम यानी मिट्टी से जुड़े हुए कार्य की योजना तो बनाते हैं लेकिन अपने चहेते से ही काम कराते हैं। मजदूर जब काम देने का दबाव बनाते हैं तो उन्हें घर से काफी दूर चल रही योजनाओं में शामिल कर लिया जाता है। इससे खासकर महिला मजदूरों को काफी परेशानी होती है। कार्यस्थल पर बच्चों के लिए विशेष प्रबंध और फर्स्ट एड की सुविधा भी नहीं रहती है। साथ ही महिलाओं के लिए शौचालय की भी व्यवस्था नहीं होती है। इसे अपने बच्चों के साथ कार्य स्थल पर आने वाली महिलाओं को अधिक परेशानी होती है। मनरेगा से जुड़े पदाधिकारी व श्रमिकों ने साल दर साल घटते मनरेगा की बजट पर भी चिंता जताई है। महिलाओं को प्राथमिकता के आधार पर काम उपलब्ध कराना चाहिए। जीविका से जोड़कर महिलाओं को अन्य कामों से भी जोड़ा जाना चाहिए। साथ ही कार्यस्थल पर महिलाओं से जुड़ी अन्य सुविधाओं को भी बहाल किया जाना चाहिए। इसके लिए जिला स्तरीय पदाधिकारी को साइट का भ्रमण करना चाहिए। रेशमी देवी, शांति कुमारी, करीना देवी, कुसमी देवी, किरण देवी, धनवंती देवी सहित कई श्रमिकों का कहना है कि मनरेगा मजदूरों को कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। हम लोगों को कार्यस्थल पर बुनियादी सुविधाएं नहीं मुहैया कराई जा रही है। किसी भी साइट पर न तो छाया का प्रबंध रहता है और न दवा आदि का इंतजाम किया जाता है। इसके अलावा मजदूरी भी तय समय पर नहीं मिल रही है। जिससे हम लोगों के समक्ष आर्थिक संकट उत्पन्न हो गया है।
उनका कहना यह है कि सबसे बड़ी समस्या ऐप के माध्यम से बनने वाली उपस्थिति है। आज भी जिले के कई इलाकों में 3जी की बात तो दूर 2जी संचार भी ठीक से काम नहीं करता। ऐसे में ऐप से हाजिरी बनाना काफी दुष्कर होता है। कई बार तो काम पर उपस्थित होने के बाद भी ऐप अनुपस्थित दिखाता है। श्रमिकों का कहना है कि बाजार में दिहाड़ी मजदूर के रूप में प्रतिदिन 500 रुपए मिलते हैं जबकि मनरेगा में काम करने वाले 252 रुपया प्रतिदिन ही मिलता है। इसके वजह से मजदूर और धीरे-धीरे इस महत्वाकांक्षी योजना से दूरी बनाने लगे हैं। इस कारण फिर से जिले के ग्रामीण इलाकों में मजदूरों का पलायन शुरू हो गया है।
सुझाव
1. मनरेगा मजदूरों को पूरे साल कम मिलता रहे।
2. दैनिक मजदूरी बहुत कम है, इससे परिवार का खर्च नहीं चल रहा है।
3. मजदूरी के तीसरे या पांचवे दिन भुगतान का प्रावधान लागू हो।
4. जिले के सभी मनरेगा श्रमिकों को आवास, शौचालय सहित सभी योजनाओं का लाभ दिया जाए।
5. कच्चा काम न होने पर मजदूरों को पक्का काम मिले।
शिकायतें
1. मनरेगा मजदूरों को आम मजदूरी से बहुत कम मजदूरी मिलती है।
2. ग्राम पंचायतों में जरूरत के समय रोजगार ही नहीं मिल पाता है।
3. महीना बीत जाने पर भी खाते में भुगतान नहीं किया जाता।
4. कई बार केवाईसी व अन्य तकनीकी कारण से भुगतान नहीं मिल पाता है।
5. कार्य स्थल पर मजदूरों के लिए किसी भी तरह की सुविधा उपलब्ध नहीं है, साफ पानी और फर्स्ट एड तक का प्रबंध नहीं है।
हमारी भी सुनिए
जॉब कार्ड है लेकिन काफी कम दिनों के लिए काम मिला। काम के लिए भी प्रखंड कार्यालय से लेकर मुखिया और पंचायत रोजगार सेवक की चिरौरी करनी पड़ती है। मजदूरी का भुगतान भी काफी दिनों के बाद होता है।
सुमंती देवी
कार्य स्थल पर ना तो शुद्ध पेयजल की व्यवस्था होती है और ना किसी तरह का शेड बना रहता है। इस कारण खुले में ही बैठकर खाना पड़ता है। काम मिलने में भी परेशानी होती है। भुगतान के लिए कार्यालय के चक्कर काटने पड़ते हैं ।
कुंती देवी
पहले काम मांगने पर मिलता नहीं। दिया भी तो मजदूरी अटका कर रखी है। प्रखंड से लेकर जिला के अधिकारियों से गुहार लगा चुकी हूं लेकिन सभी जगह फंड नहीं होने की बात कह कर लौटा दे रहे हैं।
धानो देवी
पूरे साल लगभग 28 दिन ही काम मिल पाया। मजदूरी भी काफी कम है इसलिए अब काम मांगने ही जाना छोड़ दिया है। जॉब कार्ड केवल पहचान पत्र के तौर पर प्रयोग करता हूं। सरकार को 100 दिन की मजदूरी का प्रावधान करना चाहिए।
विनय कुमार
किसी भी कार्य स्थल पर ना तो दवा की व्यवस्था होती है और ना हमारे साथ आए बच्चों बच्चों की देखभाल का कोई प्रावधान किया जाता है। खुले में ही बच्चों को रखकर काम करना मजबूरी है। सौ दिन का काम नहीं मिलता, उसमें भी सैकड़ो परेशानी है।
करीना देवी
मुखिया और पंचायत रोजगार सेवक अपने चाहे तो को नियमित तौर पर काम देते हैं। इन लोगों को आसानी से 80 से 90 दिन तक का काम दे देते हैं जो चिरौरी नहीं करते। उनको किसी न किसी बहाने काम देने से मना कर देते हैं।
अरविंद कुमार
बरसात के बाद सबसे ज्यादा काम की जरूरत होती है। मगर उस समय ना तो मुखिया काम देने को तैयार रहते हैं और ना पंचायत रोजगार सेवक।
कुसमी देवी
सरकार हर साल एक मजदूर को सौ दिन काम देने का वादा करती है। बार-बार आवेदन देने के बाद भी काम नहीं मिला जबकि जॉब कार्ड बनवाये भी कई वर्ष हो चुके हैं। अब पलायन ही एकमात्र विकल्प बन चुका है।
संतरी देवी
मनरेगा में अब काफी कम मजदूरी मिल रही है। काम भी घर से काफी दूर दिया जाता है। एक दिन की मजदूरी महज 252 रुपए है। इसमें से साइट पर आने- जाने में ही एक चौथाई राशि चली जाती है। ऐसे में घर परिवार चलाने में परेशानी होती है।
गूंगी देवी
ऐप से हाजिरी बनाने में परेशानी होती है। कई बार काम करने के बाद भी हाजिरी कट गई। इससे काम करने के बावजूद मजदूरों को भुगतान से वंचित होना पड़ा है। दूसरा आधार कार्ड से भुगतान के कारण मजदूरी पाने की प्रक्रिया काफी जटिल है।
किरण देवी
मनरेगा में काम करने का कोई फायदा नहीं है। काम करने के बाद समय पर मजदूरी नहीं मिलती है। पांच महीने से मजदूरी रुकी हुई है। बच्चों के कपड़े तक नहीं बन पा रहे हैं। इलाज तक रुक गया है।
धनवंती देवी
मजदूरी का भुगतान न होने से मजदूरों को परिवार पालना मुश्किल हो गया है। मजदूरों के सामने कर्ज लेने के लिए दूसरा विकल्प नहीं बचा है। बहुत अधिक ब्याज पर साहूकारों से कर्ज लिया है। कर्ज लौटाने की चिंता परेशान कर रही है।
सदिका कुमारी
मजदूरों की सुनवाई नहीं हो रही है। अधिकारी बजट आने पर मजदूरी का ऑनलाइन भुगतान करने का भरोसा दे रहे हैं। मजदूर अब बड़े शहरों में रोजगार करने को मजबूर हैं।
शांति कुंवर
मनरेगा के तहत जॉब कार्ड बना हुआ है। इस वक्त काम नहीं मिल रहा है। आवास अभी तक नहीं मिल पाया है जिससे झोपड़ी में रहने को मजबूर हैं।
रेशमी देवी
मनरेगा में पहले काम करते थे। जॉब कार्ड बना हुआ है। इसके बावजूद भी आवास, शौचालय, राशन कार्ड नहीं है जिससे हमको अभी तक कोई लाभ नहीं मिल पाया है। योजना का लाभ हमें भी दिया जाए।
अजय कुमार
मनरेगा से मन भर गया है। मजदूरी करने के बाद समय पर भुगतान नहीं होता है। कई बार मजदूरी मांग चुके हैं। किसी पर असर नहीं है। हमारी परेशानी से किसी को लेना देना नहीं है।
टुनटुन कुमार
तालाबों की खुदाई से लेकर अन्य काम हमने मनरेगा में किया। एक सप्ताह में मजदूरी देने की बात करते थे। अब कोई हमारी सुध नहीं ले रहा है।
सरोज कुमार
हम मजदूरी के लिए लगातार चक्कर काट रहे हैं। सुनवाई नहीं हो रही है। अधिकारी हमारी बात नहीं सुन रहे हैं। ऐसे में काम करने का फायदा नहीं है। हम कर्ज लेकर घर चला रहे हैं।
देव पूजन कुमार
मनरेगा में बस गांव में काम मिल जाता है, यही लालच रहता है। अब 4 महीने से मजदूरी नहीं मिली। उधार लेकर खर्चे पूरे कर रहे हैं। शासन-प्रशासन को फर्क नहीं पड़ रहा है।
अनूप कुमार
प्राइवेट काम करने वालों को काम खत्म होते ही मजदूरी मिल जाती है। मनरेगा में समय पर मजदूरी नहीं मिलती है। समय पर मजदूरी मिलनी चाहिए।
शंकर राम
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