बोले कटिहार, कटाव पीड़ितों के लिए आवास व आजीविका की हो व्यवस्था
कटिहार जिले के गंगोता समाज के लोग गंगा नदी के किनारे बसे हैं, लेकिन अब उनके पास ज़मीन और रोजगार नहीं है। विकास की योजनाएं उन तक नहीं पहुँचती। सरकारी वादों के बावजूद, बुनियादी सुविधाओं का अभाव है। अब...

गंगोता समाज के लोगों की परेशानी
प्रस्तुति: ओमप्रकाश अम्बुज, मोना कश्यप
गंगा किनारे बसे इन चेहरों की आंखों में सपने हैं, पर पैरों के नीचे ज़मीन नहीं। सदियों से कटिहार के कुरसेला, समेली, बरारी, फलका, कोढ़ा, मनिहारी, मनसाही और अमदाबाद में बसे गंगोता समाज ने नदी से जीवन पाया, पर अब वही नदी उनकी ज़मीन, रोज़गार और पहचान बहा ले गई। विकास की हर योजना इन तक आते-आते थम जाती है। न शौचालय, न पानी, न मकान—सिर्फ इंतज़ार और उपेक्षा का बोझ है। इनकी आवाज़ कभी चुनावी वादों में गूंजती है, तो कभी सरकारी कागज़ों में खो जाती है। अब ये समाज अधिकार और सम्मान की मांग कर रहा है—एक स्थायी पहचान की तलाश में।
कटिहार जिले की गंगा और कोसी नदियों के किनारे बसे प्रखंड—कुरसेला, समेली, बरारी, फलका, कोढ़ा, मनसाही, मनिहारी और अमदाबाद—में गंगोता या गंगोत्री जाति के करीब दो लाख लोग आज भी हाशिए पर हैं। यह समाज सदियों से इन इलाकों में बसा है, लेकिन अब तक विकास की मुख्यधारा से पूरी तरह कट चुका है।
गंगोता जाति का ऐतिहासिक संबंध गंगा नदी से रहा है। परंपरागत रूप से यह समाज गंगा के जल से जुड़ी सांस्कृतिक और धार्मिक सेवाओं में संलग्न रहा। तीर्थ यात्रियों की सेवा, नाविक कार्य, मछली पकड़ना और घाटों की देखरेख इनका जीवन रहा। लेकिन समय के साथ नदी ने इनकी आजीविका ही नहीं, जमीन भी छीन ली। फलका, मनिहारी और बरारी जैसे इलाकों में सैकड़ों परिवार आज भी विस्थापन की मार झेल रहे हैं।
लक्ष्मीपुर में 1970 से रह रहे हैं 70 परिवार
बरारी के लक्ष्मीपुर पंचायत के वार्ड 10 में 1971 से रह रहे 70 से अधिक परिवारों की जमीन गंगा में समा गई। अब वे मजदूरी और मनरेगा के अस्थायी कार्यों पर निर्भर हैं। न पक्के मकान, न शौचालय, न नल-जल, न ही सड़क। स्कूल और अस्पताल दो से पांच किलोमीटर दूर हैं।
सरकार की योजनाएं आईं, घोषणाएं हुईं, लेकिन अमल धरातल तक नहीं पहुंचा।
सीएम द्वारा मिला बंदोबस्त पर्चा
मुख्यमंत्री द्वारा बंदोबस्त पर्चा वितरण के तहत हजारों को कागजी पट्टा तो मिला, लेकिन मोटेशन अब तक नहीं हुआ। फलस्वरूप न तो वे अपनी भूमि पर अधिकार जमा पाए और न ही सरकारी लाभ ले पाए।
राजनीतिक प्रतिनिधित्व भी नाममात्र का रहा है। पंचायत चुनावों में कुछ भागीदारी जरूर दिखी है, लेकिन विधानसभा या लोकसभा स्तर पर अब तक इनकी आवाज़ कहीं नहीं गूंज सकी। अब यह समाज अनुसूचित जाति में शामिल किए जाने की मांग कर रहा है। कुछ लोगों ने अपनी पीड़ा बताते हुए कहा कि हमने पीढ़ियों से अपमान और उपेक्षा सहा है, अब हक चाहिए। अमदाबाद के रमेश गंगोता ने बताया कि शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास और सम्मान की जो आधारभूत सुविधाएं मिलनी चाहिए थीं, वे आज भी सपना बनी हुई हैं।
गंगोता समाज की यह आवाज अब बोले कटिहार के पन्नों पर
गंगोता समाज की ये आवाज़ अब बोले कटिहार के पन्नों पर है—सरकार सुने, समाज देखे और एक कदम आगे बढ़े, ताकि यह जाति भी विकास की गंगा में शामिल हो सके।
सुझाव
1. अनुसूचित जाति में शामिल किया जाए – गंगोता समाज की सामाजिक-आर्थिक स्थिति को देखते हुए इन्हें अनुसूचित जाति की सूची में शामिल कर विशेष आरक्षण व सुविधा दी जाए।
2. स्थायी पुनर्वास नीति बने – गंगा कटाव से विस्थापित परिवारों के लिए जमीन, मकान और आजीविका की स्थायी व्यवस्था की जाए।
3. शिक्षा और स्वास्थ्य केंद्रों की स्थापना – हर पंचायत में प्राथमिक विद्यालय और उपस्वास्थ्य केंद्र की व्यवस्था हो, ताकि बुनियादी जरूरतें पूरी हों।
4. मोटेशन प्रक्रिया जल्द हो – जिन्हें बंदोबस्त पर्चा मिला है, उनका त्वरित मोटेशन कर वैधानिक स्वामित्व सुनिश्चित किया जाए।
5. स्थानीय नेतृत्व को बढ़ावा दिया जाए – पंचायत व नगर निकाय चुनावों में गंगोता समाज के बीच से प्रतिनिधित्व को प्रोत्साहित किया जाए।
शिकायत
1. न जमीन बची, न मालिकाना हक – गंगा ने ज़मीन लील ली, और सरकारी बंदोबस्त के बावजूद मोटेशन न होने से कानूनी हक़ अब भी अधूरा है।
2. बुनियादी सुविधाओं का अभाव – न शौचालय, न नल-जल, न सड़क—जीवन जीने के न्यूनतम संसाधनों से वंचित हैं।
3. प्रधानमंत्री आवास योजना का लाभ नहीं मिला – सैकड़ों पात्र परिवार आज भी कच्चे और असुरक्षित घरों में जीवन बिता रहे हैं।
4. शिक्षा से दूरी – दूर-दराज स्कूल, खराब रास्ते और संसाधनों की कमी के कारण बच्चों की पढ़ाई बाधित होती है।
5. स्वास्थ्य सेवाएं दूरस्थ – नजदीक में कोई उपस्वास्थ्य केंद्र नहीं है, इलाज के लिए पांच किलोमीटर दूर जाना पड़ता है।
इनकी भी सुनें
गंगा किनारे बसे हमलोगों की ज़िंदगी हर साल बदलती है, लेकिन हालात नहीं। कभी बाढ़ में घर बहता है, कभी योजना की सूची से नाम कटता है। हम मेहनत से डरते नहीं, लेकिन अब हक चाहिए। कम से कम बच्चों के लिए एक बेहतर भविष्य की गारंटी तो मिले।
– दुखो मंडल
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हमारा वार्ड सबसे बड़ा है, फिर भी सबसे पीछे है। न पानी की व्यवस्था है, न शौचालय, न सड़क। जब नेता आते हैं, वादे करते हैं लेकिन जाते ही सब भूल जाते हैं। अब हम सिर्फ वादे नहीं, ज़मीनी बदलाव चाहते हैं। वरना वोट भी सोचकर देंगे।
– गोपाल कुमार मंडल
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1971 से यहाँ रह रहा हूं। तब से अब तक कई सरकारें आईं, लेकिन हमारी हालत वही है। न स्कूल का भवन बना, न अस्पताल मिला। ज़मीन का पर्चा तो मिला, लेकिन कागज़ों में ही फंसा है। क्या हम सिर्फ गिनती के लिए हैं?
– नागेश्वर मंडल
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हमारी जाति को अभी तक अधिकार नहीं मिला। हर योजना में सबसे पीछे रखे जाते हैं। जो जमीन थी, वो गंगा में समा गई। अब न घर है, न खेत। अगर सरकार हमें अनुसूचित जाति में शामिल करे, तो शायद हम भी आगे बढ़ सकें।
– विश्वनाथ मंडल
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औरतों को सबसे ज़्यादा परेशानी होती है। शौचालय नहीं है, पीने का पानी दूर से लाना पड़ता है। इलाज के लिए भी किलोमीटरों दूर जाना पड़ता है। जब सुविधा नहीं मिलती, तो डर और अपमान साथ चलता है। हम सम्मान से जीना चाहते हैं।
– सुग्गी देवी
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मैं विधवा हूं। अपने बच्चों को जैसे-तैसे पाल रही हूं। आवास योजना में नाम होने के बाद भी घर नहीं मिला। हर बार अधिकारी कहता है- अगली बार मिलेगा। कब आएगी वो अगली बार? सरकार को हमारा दर्द समझना चाहिए।
– उषा देवी
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अब उम्र हो गई, लेकिन घर अब तक नहीं बना। बेटा भी बाहर मजदूरी करता है। न पीने का पानी है, न बिजली ठीक से आती है। सरकार को बुजुर्गों की सुननी चाहिए। हम भी इंसान हैं, और मरने से पहले इंसान की तरह जीना चाहते हैं।
– मंसूरिया देवी
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हमारी जाति की महिलाएं दोहरी मार झेलती हैं—गरीबी और उपेक्षा की। कोई भी योजना में नाम नहीं आता। हम मेहनत कर सकते हैं, लेकिन कोई मौका ही नहीं देता। अब हम चुप नहीं रहेंगे। हमें भी आरक्षण और सरकारी सहायता चाहिए।
– पाचो देवी
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हमारे गांव में बारिश होते ही सड़कों पर कीचड़ हो जाता है। बच्चे गिरते हैं, बीमार होते हैं। अस्पताल दूर है, और दवा दुकान भी नहीं है। क्या गांव के लोगों को सिर्फ वोट देने के लिए ही समझा जाता है? हमें बुनियादी हक़ चाहिए।
– परमिला देवी
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गांव में स्कूल तो है, लेकिन भवन नहीं। टीन की छत के नीचे बच्चे पढ़ते हैं। गर्मी में दम घुटता है, बारिश में पानी टपकता है। क्या यही शिक्षा है? हम चाहते हैं कि हमारे बच्चों को बेहतर माहौल मिले।
– जुगल मंडल
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बिजली सही से आती है, न नेटवर्क। आज की दुनिया में हम डिजिटल इंडिया की बात सुनते हैं, लेकिन मोबाइल तक नहीं चल पाता। बच्चों की पढ़ाई और युवाओं की तरक्की सब रुक गई है। हमें तकनीकी सुविधाएं भी दी जाएं।
– पुलिस मंडल
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पर्चा मिला है, लेकिन मोटेशन नहीं हो रहा। जब तक कागज पर नाम नहीं चढ़ेगा, तब तक हम खेती कैसे करेंगे? सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटते-काटते थक गए। सरकार को यह प्रक्रिया आसान और पारदर्शी बनानी चाहिए।
– बाबू साहेब मंडल
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हमारे समाज के नौजवान बहुत परेशान हैं। नौकरी नहीं है, ट्रेनिंग सेंटर नहीं है, और स्वरोजगार की कोई ठोस व्यवस्था नहीं है। अगर सरकार सही दिशा में काम करे, तो हम खुद को बदल सकते हैं। हमें मौक़ा चाहिए, सिर्फ भाषण नहीं।
– पप्पू मंडल
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मनरेगा में नाम है, लेकिन काम नहीं। जब जरूरत होती है, तब जॉब कार्ड धूल खाता है। कुछ को काम मिलता है, बाकी खाली हाथ। क्या ये योजना सबके लिए नहीं बनी थी? हम चाहते हैं कि काम और मजदूरी दोनों समय पर मिले।
– शिवकुमार मंडल
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हमारी जाति को अब भी गंभीरता से नहीं लिया जाता। न प्रतिनिधित्व है, न आवाज़। हर बार पंचायत चुनाव में दूसरे लोग जीतते हैं, जो बाद में मुंह नहीं दिखाते। अब समय आ गया है कि गंगोता समाज से भी लोग नेतृत्व में आएं।
– मोती मंडल
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मेरे दो बेटे बाहर काम करने गए हैं क्योंकि गांव में कोई रोज़गार नहीं है। खेत तो कट गया, अब बचा क्या? सरकार हमें बसने की जगह दे, सिंचाई की सुविधा दे, और कुछ ऐसा करे कि हम अपने गांव में रह सकें।
– ब्रह्मदेव मंडल
जिम्मेदार
गंगोता समाज की समस्याएं बेहद गंभीर और संवेदनशील हैं। मैं खुद कई बार लक्ष्मीपुर वार्ड का दौरा कर चुका हूं। जमीन के पर्चे का मोटेशन, शौचालय, विद्यालय भवन और आवास योजना से संबंधित समस्याओं को लेकर विभागीय अधिकारियों से बातचीत हुई है। पंचायत स्तर से प्रस्ताव भेजे गए हैं। हम पूरी कोशिश कर रहे हैं कि इस समाज को अनुसूचित जाति में शामिल करने की मांग को भी मजबूती से सरकार के समक्ष रखा जाए। मेरी प्राथमिकता है कि गंगोता समाज को हर मूलभूत सुविधा समय पर मिले।
विजय सिंह, विधायक बरारी विधानसभा
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