सुपौल: निगरानी को बनी समिति पर जांच के लिए शिकायत जरूरी
सुपौल में निजी स्कूलों की मनमानी फीस और शोषण के खिलाफ सरकार ने निगरानी समिति का गठन किया है, लेकिन शिकायतों के अभाव में कोई कार्रवाई नहीं हो रही है। अभिभावक बच्चों के भविष्य को लेकर चिंतित हैं और...

सुपौल। हिन्दुस्तान प्रतिनिधि निजी स्कूलों के मनमाने फीस सहित अन्य मामलों पर अंकुश लगाने के लिए सरकार की ओर से भले ही निजी स्कूल निगरानी समिति का गठन किया गया है लेकिन जिले में इस समिति को भी निजी स्कूल की मनमानी पर अंकुश लगाने के लिए शिकायत का इंतजार है। मामला हाल में निजी स्कूलों द्वारा विभिन्न माध्यमों से अभिभावकों के किए जा रहे आर्थिक शोषण से जुड़ा है। जिले के कई निजी स्कूलों में पहले निजी प्रकाशन की किताब में कमीशनखोरी तो अब प्रिंटेड कॉपी बेचने का फार्मूला लागू हुआ है। इन सब के बीच एक तरफ अभिभावक बच्चों के भविष्य को लेकर खुद को बेबस बता रहे हैं तो दूसरी ओर विभाग गाइडलाइन प्राप्त नहीं होने की बात कहकर अपना पल्ला झाड़ रहा है। मजे की बात तो यह है कि विभाग यह भी मान रहा है कि निजी स्कूलों के मनमाने शुल्क सहित अन्य परेशानी को लेकर जिले में निजी स्कूल निगरानी समिति भी काम करती है और जिला शिक्षा पदाधिकारी खुद समिति के अध्यक्ष होते हैं। इस सब के बावजूद बिना शिकायत किसी तरह की जांच या कार्रवाई में खुद को बेबस बता रहे हैं।
आम नागरिक ही नहीं विभागीय कर्मचारी भी परेशान:
निजी स्कूल के इस मनमानी से सिर्फ आमजन नहीं बल्कि विभिन्न प्रशासनिक विभाग में कार्यरत्त कर्मचारी भी प्रताड़ित है लेकिन बच्चों के भविष्य और सरकार के खिलाफ होने के कारण वह भी शिकायत नहीं करना चाहते है। इसके बाद अभिभावक भी एक-दूसरे को अपनी व्यथा सुनाने के अलावा और कुछ करने से खुद को बेबस बता रहें हैं। कई अभिभावकों का कहना है कि अगर विरोध किया जाएगा तो बच्चे को स्कूल से भी निकाला जा सकता है। जिले भर में सभी स्कूलों के संगठित होने के कारण बच्चे को बेहतर शिक्षा देना भी मुश्किल हो जाएगा। इसके अलावा स्कूल के नियम का पालन नहीं किए जाने बच्चों पर भी दबाव डाला जाता है। इस सब के बाद ऐसे अभिभावक भी शिकायत से परहेज कर रूपए खर्च करना ही अपनी मजबूरी समझ रहे हैं।
आरटीई वाले कर्ज लेकर कर रहे मांग को पूरा:
निजी स्कूलों के मनमाने आदेशों को एक हद तो आमलोग तो जैसे-तैसे पूरा कर दे रहे हैं लेकिन सबसे अधिक हालत खराब आरटीई से अपने बच्चों का बड़े स्कूल में फ्री में नामांकन कराने वाले अभिभावकों का है। आरटीई के तहत चयनित अभिभावकों की आय एक लाख से कम होने के बावजूद एडमिशन कराते ही अभिभावकों के सामने निजी प्रकाशन किताब, बैग, ड्रेस, प्रिंटेड कॉपी आदि के लिए 15-20 हजार रूपए लाने की समस्या खड़ी हो गई है। इसके बाद अब ऐसे अभिभावक भी बच्चों के भविष्य के लिए अपने आय से दुगुना कर्ज लेकर स्कूलों की मांग पूरी कर रहे हैं। कुछ अभिभावकों ने नाम नहीं देने के शर्त पर बताया कि स्कूल को पाठ्य सामग्री के लिए कहा गया था लेकिन उन्होंने इसका लाभ देने से इंकार कर दिया। बच्चों के भविष्य के लिए इसकी शिकायत भी नहीं करते। अब कर्ज लेकर सभी पाठ्य सामग्री की खरीदारी कर रहे हैं।
शिकायत के बाद ही कार्रवाई संभव:
डीपीओ एसएसए प्रवीण कुमार ने बताया कि अगर आरटीई वालों को पाठ्य सामग्री नहीं दी जा रही तो योजना से राशि की कटौती की जाएगी। पाठ्य सामग्री देने के अनिवार्य होने की जानकारी नहीं हैं। इसके अलावा स्कूल द्वारा निजी प्रकाशन की किताब और प्रिंटेड कॉपी जैसे सामग्री का नियम बनाने को लेकर जानकारी नहीं है। इसको लेकर कोई शिकायत भी नहीं मिली है। अगर ऐसा है तो अभिभावक शिकायत कर सकते हैं। शिकायत के आधार पर जांच कर कार्रवाई की जाएगी।
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