बोले पूर्णिया, मनरेगा मजदूरों का भुगतान समय से करने का हो प्रावधान
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) के तहत पूर्णिया में श्रमिकों को समय पर मजदूरी नहीं मिल रही है। सक्रिय जॉब कार्डधारियों की संख्या 2 लाख 52 हजार है, लेकिन समस्याएं जैसे...

प्रस्तुति: मुकेश, केके पप्पू, महानंद महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) को सरकार ने ग्रामीण गरीबों के लिए रोज़गार की गारंटी और आर्थिक संबल के उद्देश्य से लागू किया गया था। इसका मकसद था कि गांव के मजदूरों को गांव में ही काम देकर उन्हें पलायन से रोका जा सके। मनरेगा मजदूरों को आज भी तमाम समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। पूर्णिया में मनरेगा योजना अंतर्गत कुल जॉब कार्ड कार्डधारियों की कुल संख्या 05 लाख 07 हजार 133 है, जिसमें सक्रिय जॉब कार्डधारियों की कुल संख्या 02 लाख 52 हजार 358 है। गांव के मजदूरों का सिर्फ इतना कहना है कि सरकार उनके हक की मजदूरी समय पर दे, काम न मिलने पर बेरोजगारी भत्ता दे और काम के दौरान बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराए।
यदि ऐसा होता है तो गरीबों का पलायन रुकेगा और गांव की अर्थव्यवस्था मजबूत होगी। पूर्णिया में मनरेगा योजना अंतर्गत कुल जॉब कार्डधारियों की कुल संख्या 05 लाख 07 हजार 133 है, जिसमें सक्रिय जॉब कार्डधारियों की कुल संख्या 02 लाख 52 हजार 358 है। इनमें एससी वर्ग से सक्रिय जॉब कार्डधारी की संख्या 36 हजार 859, एसटी वर्ग के सक्रिय जॉब कार्डधारी 07 हजार 468 एवं अन्य वर्गों के सक्रिय 02 लाख 51 हजार 95 हैं। वही जिला में महिला जॉब कार्डधारी की संख्या 1 लाख 75 हजार 617 बतायी गई है। मनरेगा मजदूरों की स्थिति इन दिनों समय से मजदूरी भुगतान नहीं होने से काफी खराब है। बोले पूर्णिया के मंच पर श्रमिकों ने कहा कि मनरेगा के तहत मजदूरों को निर्धारित समय पर मजदूरी देने का प्रावधान है। लेकिन मजदूरी के लिए मजदूरों को महीनों इंतजार करना पड़ता है। कई बार मजदूरी तीन से चार महीने बाद मिलती है, जिससे गरीब परिवारों की रोज़मर्रा की जरूरतें पूरी करने में बड़ी दिक्कत होती है। समय पर भुगतान नहीं होने से मजदूर साहूकारों के कर्ज के जाल में फंस जाते हैं और सूद पर उधार लेकर घर चलाने को मजबूर होते हैं। वही सरकार ने यह व्यवस्था बनायी है कि मजदूरों को काम मांगने पर काम दिया जाएगा। गांवों में मजदूरों को जब काम नहीं मिल रहा है तो काम नहीं मिलने पर बेरोजगारी भत्ता मिलने का प्रावधान है परन्तु बेरोजगारी भत्ता नहीं मिलता है। इससे मजदूरों की आर्थिक स्थिति और दयनीय हो जाती है। नतीजतन, गांव के मजदूर पेट पालने के लिए दूसरे प्रदेशों की ओर पलायन करने को मजबूर हो जाते हैं। मनरेगा के अंतर्गत मजदूरों को काम के दौरान कई बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराने की व्यवस्था है। इसमें शुद्ध पेयजल, छांव की व्यवस्था, प्राथमिक चिकित्सा किट, कार्य स्थल पर उपकरण और काम के बीच में खाने-पीने की सुविधा आदि शामिल है। लेकिन धरातल पर इन सुविधाओं का घोर अभाव है। काम करने वाली महिलाएं बताती हैं कि गर्मी के मौसम में तेज धूप में खुले आसमान के नीचे काम करना पड़ता है। कहीं कोई छांव नहीं होता, न पीने के पानी की व्यवस्था होती है और न ही कोई प्राथमिक चिकित्सा। अक्सर मजदूरों को अपने घर से पानी और खाना लेकर काम पर जाना पड़ता है। कई बार बीमार पड़ने पर खुद ही दवा लानी पड़ती है। काम के समय पेयजल और छांव की कोई व्यवस्था नहीं होती। तेज धूप में बच्चे भी साथ में होते हैं, उनके लिए भी कोई इंतजाम नहीं होता। मनरेगा कार्य स्थल पर मजदूरों को उपकरण विभाग द्वारा उपलब्ध कराना अनिवार्य है। मजदूरों को अपने साधनों से फावड़ा, तसला आदि खरीदकर काम करना पड़ता है। इससे मजदूरों की कमाई पर अतिरिक्त बोझ पड़ता है। इतना ही नहीं, कई बार मजदूरों को पूरा दिन खून पसीना बहाने के बाद भी आधी मजदूरी मिलती है। काम की नापी सही तरीके से नहीं होने और भ्रष्टाचार के कारण मजदूरों के हक की मजदूरी दबा ली जाती है। इसकी शिकायत करने पर भी अधिकारियों से कोई मदद नहीं मिलती। बता दें कि मजदूरों को किसी भी प्रकार की परेशानी होने पर विभाग से शिकायत करने का अधिकार है लेकिन वास्तविकता यह है कि मजदूरों की शिकायतें सुनने वाला कोई नहीं होता। पंचायत से लेकर ब्लॉक स्तर तक मजदूरों को सिर्फ टालमटोल का सामना करना पड़ता है। विशेषज्ञ मानते हैं कि मनरेगा की स्थिति तभी सुधरेगी जब निगरानी तंत्र को मजबूत किया जाए। पंचायत स्तर पर पारदर्शिता लाई जाए, मजदूरों को जागरूक किया जाए और समय पर भुगतान सुनिश्चित किया जाए। इसके साथ ही मजदूरों को काम के दौरान सभी बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराना अनिवार्य किया जाए। हमारी भी सुनिए महात्मा गॉंधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना में 100 दिनों की गारंटी होने के बाबजूद 30 से 40 दिनों से अधिक काम नहीं मिल पाता है। जिस कारण गांव के साहूकारों से कर्ज लेने की नौबत आ जाती है। -विनोद मंडल हर बस्ती में छोटे-छोटे कार्य शुरू किया जाए तो बेरोजगारी काफी हद तक कम हो सकती है। साथ ही मजदूरों का पलायन बंद होंगे लोगों को गांव में ही मजदूरी करने का अवसर मिलेगा। - कैलाश ऋषि मजदूरी भुगतान की प्रक्रिया में काफी विलंब किया जाता है। जिससे हम मजदूर वाजिव मजदूरी करने के बाद भी परेशान रह रहे हैं। समय से मजदूरी का भुगतान होने से मजदूरों का काफी हद तक समस्या दूर हो जाएंगे। -दिनेश ऋषि मनरेगा योजना में घर के पास ही काम मिलता है। बाहर नहीं जाना पड़ता है। लेकिन मजदूरी वृद्धि दर के साथ समय पर भुगतान नहीं किया जा रहा है। जिस कारण महाजन के डर से पलायन को विवस हो रहे है। -राजकुमार ऋषि मनरेगा में समय पर मजदूरी का भुगतान होगा तभी मजदूर काम की मांग करेंगे। मनरेगा से मजदूरों का मोह भंग हो चुका है। जब तक कोई काम नही मिलता लाचारी में काम करते है। - संजय मंडल मनरेगा श्रमिकों को नियमित काम नहीं मिल रहा है। न ही योजना का सही तरिके से क्रियान्वयन ही किया जाता है। स्थानीय स्तर पर मनरेगा योजना का सिर्फ खानापूर्ति किया जा रहा है। -संतोष मंडल जिन श्रमिकों को काम मिलता भी है, वह बहुत कम समय के लिए सिमित दिन के लिए होता है। जिससे उसकी आजीविका की समस्या बनी रहती है। सरकार से मांग करते हैं कि मजदूरों को 100 दिनों की गारंटी सुनिश्चित किया जाए। -वकील ऋषि श्रमिकों को मनरेगा योजना में समय पर मजदूरी नहीं मिलती है। इसका मुख्य कारण भुगतान प्रणाली में खामियां है। सरकार को चाहिए कि सर्व प्रथम भुगतान की खामिया को शीघ्र दूर करें। -छेदी ऋषि मनरेगा मजदूरों को काम के दौरान बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध नहीं करायी जाती है। जिससे काम करने वाले मजदूरों को काम के दौरान काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। प्रखंड एवं जिला प्रशासन से बुनियादी सुविधा उपलब्ध कराने की मांग करते है। -राज कुमार ऋषि मनरेगा योजना में 100 दिनों की काम की गारंटी में बढ़ोत्तरी किया जाना चाहिए ताकि मजदूरों को अधिक से अधिक समय तक काम उपलब्ध हो सके। इससे जीविका चलाने में कठिनाई नहीं हो। -विपिन मंडल मनरेगा योजना का उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में स्थायी बुनियादी ढांचा तैयार करना आवश्यक है। बुनियादी ढांचा तैयार किये मजदूरों को योजना से लाभ नहीं पहुंच सकता, परन्तु मजदूरों की बात अधिकारी व जनप्रतिनिधि नहीं सुन रहे है। - महंथ मंडल रोजगार की गारंटी देने वाली मनरेगा योजना से जुड़े मजदूर कई चुनौतियों से जूझना पड़ रहा है। सरकार इस समस्या से निजात निजात दिलाने का काम करें। - महेन्द्र ऋषि मनरेगा मजदूरों को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। जिनमें समय पर मजदूरी न मिलना, काम की गुणवत्ता की समस्याएं और काम की तलाश में पलायन करना शामिल है। - बुलबुल कुमार मनरेगा के माध्यम से रोजगार उपलब्ध कराने तथा पलायन रोकने की बातें, सरकार और जिला प्रशासन के द्बारा बार बार कही जाती है, परन्तु धरातल पर हवा हवाई साबित हो रहा है। -महंथ मंडल सरकार को मजदूर के हित में तकनीकी उपकरण उपलब्ध कराना चाहिए। मजदूरों को अपने साधनों से फावड़ा, तसला आदि खरीदकर काम करना पड़ता है। इससे मजदूरों की कमाई पर अतिरिक्त बोझ पड़ता है। - रोहित कुमार काम की सही मापी नहीं की जाती है। भ्रष्टाचार के कारण मजदूरों के हक की मजदूरी दबा ली जाती है। इसकी शिकायत करने पर भी अधिकारियों से कोई मदद नहीं मिल रहे है। -रतन मंडल मजदूरों को तीन से चार महीने बाद मजदूरी मिलने से गरीब परिवारों की रोज़मर्रा की जरूरतें पूरी करने में बड़ी दिक्कत होती है। समय पर भुगतान नहीं होने से मजदूर साहूकारों के कर्ज के जाल में फंस जाते हैं और सूद पर उधार लेकर घर चलाने को मजबूर होते हैं। - अमर सिंह गर्मी के मौसम में तेज धूप में खुले आसमान के नीचे काम करना पड़ता है। कहीं कोई छांव नहीं होता, न पीने के पानी की व्यवस्था होती है और न ही कोई प्राथमिक चिकित्सा की सुविधा ही कार्यस्थल पर होते हैं। -सनोज ऋषि गांवों में मजदूरों को काम नहीं मिलते,काम नहीं मिलने पर बेरोजगारी भत्ता दिया जाना है, परन्तु बेरोजगारी भत्ता भी मजदूरों को नहीं मिल रहा है और न ही उनके दुख की कोई सुनवाई होती है। इससे मजदूरों की आर्थिक स्थिति और दयनीय हो गई है। - अशोक ऋषि गांव के मजदूरों को अपने पेट पालने के लिए दूसरे प्रदेशों की ओर पलायन करना पड़ रहा हैं। पूर्णिया के मजदूर बड़ी संख्या में दिल्ली, पंजाब, हरियाणा और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में दिहाड़ी मजदूरी के लिए जाने के लिए विवश हो जाते है। -श्रवण ऋषि बोले जिम्मेदार मजदूरों को नियमित मजदूरी का भुगतान उनके बैंक खाता में सीधा भेजा जाता है। मजदूरी बकाया रहने की बात अब तक मेरे संज्ञान में नहीं है। सभी प्रखंड के पीओ को निर्देशित किया है कि समय से मजदूरों का भुगतान हो रहा है या नही अनुश्रवण करें । साथ ही मररेगा अधिनियम के तहत मजदूरों को मिलने वाली हर संभव बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराएं। -अमरेन्द्र कुमार सिन्हा, निदेशक,डीआरडीए, पूर्णिया शिकायत 1.समय पर नहीं मिलता मेहनताना 2.काम नहीं तो बेरोजगारी भत्ता भी नहीं 3.काम के दौरान बुनियादी सुविधाओं का अभाव 4.उपकरणों का अभाव, मजदूरी का हो रहा शोषण 5.जरूरत है सख्त निगरानी और पारदर्शी व्यवस्था की सुझाव 1.मनरेगा मजदूरों का भुगतान समय से करने का प्रावधान किया जाना चाहिए। 2.अगर काम सरकार नहीं उपलब्ध कराते है तो बेरोजगारी भत्ता दिया जाना चाहिए। 3.काम के दौरान मजदूरों को सभी बुनियादी सुविधा उपलब्ध करानी चाहिए। 4. मजदरों को सरकार उपकरण की व्यवस्था दें ताकि मजदूरों का शोषण नहीं हो सके। 5.इसके लिए प्रशासनिक स्तर पर निगरानी और पारदर्शी व्यवस्था की जानी चाहिए।
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