Patna high court said saying talaq three times does not means divorce तीन बार तलाक कह देने से तलाक नहीं हो सकता, पटना HC ने खारिज की शम्स तरबेज की याचिका, Bihar Hindi News - Hindustan
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तीन बार तलाक कह देने से तलाक नहीं हो सकता, पटना HC ने खारिज की शम्स तरबेज की याचिका

कोर्ट ने माना कि पूरी कहानी काल्पनिक और मनगढ़त प्रतीत होती हैं। न्यायमूर्ति पीबी बजन्थरी और न्यायमूर्ति शशिभूषण प्रसाद सिंह की खंडपीठ ने शम्स तबरेज की अर्जी पर सुनवाई के बाद तीन बार तलाक कहने को नामंजूर करते हुए अर्जी खारिज कर दी।

Nishant Nandan हिन्दुस्तान, विधि संवाददाता, पटनाTue, 17 June 2025 07:14 AM
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तीन बार तलाक कह देने से तलाक नहीं हो सकता, पटना HC ने खारिज की शम्स तरबेज की याचिका

पटना हाई कोर्ट ने एक अहम फैसला में कहा कि तीन बार तलाक-तलाक कह देने से तलाक नहीं हो सकती। कोर्ट ने कहा कि मुस्लिम कानून के तहत तीन बार तलाक कहने में पहले, दूसरे और तीसरे तलाक के बीच कुछ मध्यवर्ती अवधि निर्धारित है। जिसका पालन नहीं किया गया।साथ ही निकाह के दौरान तय दैन मेहर की राशि का पूर्ण भुगतान नहीं हुआ। तय राशि से कम रुपये जमा किए गए।

कोर्ट ने माना कि पूरी कहानी काल्पनिक और मनगढ़त प्रतीत होती हैं। न्यायमूर्ति पीबी बजन्थरी और न्यायमूर्ति शशिभूषण प्रसाद सिंह की खंडपीठ ने शम्स तबरेज की अर्जी पर सुनवाई के बाद तीन बार तलाक कहने को नामंजूर करते हुए अर्जी खारिज कर दी। गौरतलब है कि शम्स तबरेज ने मुस्लिम कानून की धारा 308 और पारिवारिक न्यायालय कानून की धारा 7(1)(ए) के तहत पत्नी इसरत जहां के खिलाफ 29 अक्टूबर, 2007 को अर्जी दायर की थी।

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अर्जी में कहा गया कि दोनों का निकाह 12 जनवरी 2000 को हुआ था। दो बेटे अब्दुल्ला और वलीउल्लाह का जन्म हुआ। कुछ समय बाद पत्नी झगड़ालू महिला के रूप में सामने आई और हमेशा अपने पैतृक घर पर रहने लगी। वह एक गरीब व्यक्ति है, जो जूते की दुकान पर सेल्समैन है, जबकि पत्नी के माता-पिता आर्थिक रूप से संपन्न हैं।

अर्जी में यह भी कहा गया कि शम्स मामले को शांत करने की पूरी कोशिश की, लेकिन उसके सभी प्रयास बेकार गए। अंततः उसने बेतिया के दारुल कजा में मामला दायर किया। दारुल कजा ने पत्नी को उसके ससुराल में रहने का आदेश दिया, लेकिन 15 दिन बाद अपने भाइयों के पास पैतृक घर चली गई।

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तब से वह अपने पैतृक घर में रह रही है। आवेदक ने मुस्लिम कानून की धारा 281 के तहत वैवाहिक मामला संख्या 03/2007 भी दायर किया, लेकिन सिविल कोर्ट के आदेश के बावजूद पत्नी अपने भाइयों के साथ अपने माता-पिता के घर चली गई और अदालत के आदेश की अवहेलना की। पत्नी के भाइयों के हस्तक्षेप के कारण, स्थिति इतनी तनावपूर्ण और कटु हो गई कि आवेदक ने पत्नी को तीन बार ‘तलाक’ कहने का फैसला किया।

थक हार कर उसने पत्नी से तलाक लेने का फैसला किया और कुछ गवाहों की उपस्थिति में 8 अक्टूबर 2007 को तीन बार ‘तलाक’ कह वैवाहिक संबंध विच्छेद कर लिया। आवेदक ने पत्नी को ‘दिन मेहर’ की पूरी राशि और ‘इद्दत’ का खर्च चुका दिया। वहीं पत्नी का कहना था कि वह अब भी कानूनी रूप से विवाहित है और उसका कभी तलाक नहीं हुआ।

वह आवेदक के साथ शांतिपूर्ण वैवाहिक जीवन जीने के लिए तैयार है, लेकिन वह पत्नी के साथ वैवाहिक संबंध जारी नहीं रखना चाहता है। दोनों पक्षों की दलील सुनने के बाद कहा कि मुस्लिम कानून के तहत तीन बार तलाक कह देने से तलाक नहीं हो सकता।

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