'शेखर यादव के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं की?' जस्टिस वर्मा के समर्थन में सिब्बल; 'महाभियोग' पर सवाल
सिब्बल ने कहा कि इन-हाउस जांच महाभियोग प्रस्ताव का आधार नहीं हो सकती। उन्होंने तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना द्वारा इस रिपोर्ट को सरकार को भेजने की आवश्यकता पर सवाल उठाया।

राज्यसभा सांसद और वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने जज यशवंत वर्मा के खिलाफ प्रस्तावित महाभियोग प्रक्रिया को लेकर गंभीर सवाल उठाए हैं। पूर्व कांग्रेस नेता सिब्बल पहले भी दो बार उच्च न्यायालय के जजों के महाभियोग मामलों में शामिल रह चुके हैं। उन्होंने कहा कि वर्मा के खिलाफ आरोप इतने स्पष्ट नहीं हैं कि उनके आधार पर महाभियोग चलाया जाए। सिब्बल ने कहा, "इस मामले में जांच के बिना किसी नतीजे पर नहीं पहुंचा जा सकता। महज कुछ वीडियो क्लिप और जले हुए नोटों की बातें, जो मीडिया में आई हैं, उन्हें बिना जांच के आधार नहीं बनाया जा सकता।"
इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज शेखर यादव के खिलाफ कार्रवाई रुकी क्यों?
इंडियन एक्सप्रेस को दिए इंटरव्यू में कपिल सिब्बल ने आरोप लगाया कि सरकार पक्षपात कर रही है। सिब्बल ने सरकार और राज्यसभा के सभापति पर इलाहाबाद हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति शेखर यादव के खिलाफ 55 सांसदों द्वारा हस्ताक्षरित महाभियोग प्रस्ताव पर छह महीने से कोई कार्रवाई न करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा, "न्यायमूर्ति यादव का सांप्रदायिक भाषण स्पष्ट है और इसे उन्होंने अस्वीकार नहीं किया। फिर भी, सभापति ने हस्ताक्षरों की जांच के लिए इतना समय क्यों लिया? यह स्पष्ट है कि सरकार इस न्यायाधीश को बचाना चाहती है।" सिब्बल ने यह भी सवाल उठाया कि सभापति ने मुख्य न्यायाधीश को न्यायमूर्ति यादव के खिलाफ इन-हाउस जांच को रोकने के लिए पत्र क्यों लिखा, जबकि न्यायमूर्ति वर्मा के मामले में ऐसा नहीं किया गया। उन्होंने मांग की कि विपक्ष को न्यायमूर्ति यादव के खिलाफ महाभियोग प्रक्रिया पहले शुरू करने पर जोर देना चाहिए। सिब्बल ने कहा कि पहले जज यादव के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए, उसके बाद ही वर्मा के मामले पर विचार होना चाहिए।
"वर्मा के खिलाफ आरोप अस्पष्ट हैं"
सिब्बल ने न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव को अभूतपूर्व और तथ्यों पर आधारित नहीं बताया। सिब्बल ने कहा कि वर्मा के खिलाफ आरोप अतीत के किसी भी महाभियोग मामले से अलग हैं। उन्होंने कहा, "पिछले मामलों में, जैसे न्यायमूर्ति रामास्वामी, एस.के. गंगेले, सौमित्र सेन और एके. गांगुली के खिलाफ, तथ्य स्पष्ट थे और किसी अतिरिक्त जांच की आवश्यकता नहीं थी। लेकिन न्यायमूर्ति वर्मा के मामले में, कोई ठोस तथ्य नहीं हैं, सिवाय इसके कि उनके आवास के आउटहाउस में जली हुई नकदी के वीडियो हैं।"
उन्होंने कहा, "न तो यह स्पष्ट है कि जली हुई नकदी कितनी थी, न यह कि वह नकदी वहां किसने रखी। मुख्यधारा की मीडिया बिना सबूत के करोड़ों की रकम बताती रही।" उन्होंने यह भी कहा कि जज के निवास स्थान के बाहर स्थित एक बाहरी कमरे में यह नकदी मिलने की बात कही जा रही है, जहां कोई सुरक्षा नहीं थी और न ही दिल्ली पुलिस ने उस स्थान को सील किया, न कोई एफआईआर दर्ज की गई, न कोई नोट जब्त हुआ।
"जांच प्रक्रिया में खामी"
सिब्बल ने सवाल उठाया कि जब दिल्ली पुलिस और दमकल विभाग को मौके पर जली हुई नकदी दिखी, तो उन्होंने उसे जब्त क्यों नहीं किया? सिर्फ एक जली हुई नोट की सीरियल संख्या से भी उसकी उत्पत्ति का पता लगाया जा सकता था, लेकिन ऐसा कुछ नहीं किया गया। उन्होंने यह भी बताया कि वीडियो में दिखी नकदी के बारे में जज या उनके परिवार को कोई जानकारी नहीं दी गई। जज वर्मा को भी इस बारे में तब पता चला जब दिल्ली हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने उन्हें वीडियो क्लिप दिखाई।
सिब्बल ने बताया कि 14 मार्च को रात 11:30 बजे आउटहाउस में आग लगी। न्यायमूर्ति वर्मा की बेटी ने एक धमाके की आवाज सुनी और कर्मचारियों के साथ वहां पहुंची। आग बढ़ने के कारण उन्हें पीछे हटना पड़ा। अग्निशमन विभाग और दिल्ली पुलिस बाद में पहुंचे, लेकिन उन्होंने परिवार को जली हुई नकदी के बारे में कुछ नहीं बताया। सिब्बल ने सवाल उठाया कि पुलिस ने नकदी को जब्त क्यों नहीं किया और क्षेत्र को क्यों नहीं सील किया गया।
न्यायमूर्ति वर्मा को 17 मार्च को दिल्ली हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश द्वारा वीडियो दिखाए जाने पर ही नकदी की जानकारी मिली। इसके बाद 20 मार्च को उनका तबादला कर दिया गया, जिसके खिलाफ उन्होंने कोई विरोध नहीं किया। सिब्बल ने कहा कि समिति ने इसे उनकी "गलती" माना, जो कि अनुचित है।
"इन-हाउस प्रक्रिया से महाभियोग नहीं चलाया जा सकता"
सिब्बल ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट की इन-हाउस जांच कोई वैधानिक जांच नहीं है और इसके आधार पर महाभियोग नहीं चलाया जा सकता। उन्होंने कहा, “महाभियोग तभी लाया जाना चाहिए जब सांसदों को जज की कथित गतिविधियों पर पूरा विश्वास हो, जैसा कि हमने जस्टिस दीपक मिश्रा के मामले में किया था।” सिब्बल ने यह भी सवाल उठाया कि क्या तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना को इन-हाउस रिपोर्ट राष्ट्रपति को भेजनी चाहिए थी। यह संसद का विषय है, न्यायपालिका का नहीं।