बोले कटिहार : सभी सर्टिफिकेट नहीं मिलने से बहाली में लाभ से हो रहे हैं वंचित
कटिहार के एनसीसी कैडेट्स का अनुशासन, नेतृत्व और देश सेवा का सपना वर्दी तक सीमित नहीं है। कठिनाइयों का सामना करते हुए, 70 प्रतिशत से अधिक कैडेट्स प्रमाणपत्र की कमी और सुविधाओं के अभाव में संघर्ष कर रहे...
कटिहार के युवा एनसीसी कैडेट्स के लिए अनुशासन, नेतृत्व और देश सेवा का जुनून सिर्फ वर्दी तक सीमित नहीं है। ये वो सपने हैं जो कठिनाइयों और चुनौतियों के बीच भी जलते रहते हैं। कभी सर्द सुबह की परेड, तो कभी कड़ी धूप में अभ्यास। ये कैडेट्स अपने सपनों को हकीकत बनाने की राह पर हैं। लेकिन जब मेहनत का प्रमाणपत्र नहीं मिलता, तो यह न सिर्फ उनके करियर, बल्कि उनके आत्मविश्वास को भी चोट पहुंचाता है। समय आ गया है कि इन युवाओं की हौसला-अफजाई हो, ताकि वे अपने सपनों की ऊंचाई को छू सकें।
70 प्रतिशत से अधिक एनसीसी कैडेट्स कर रहे हैं जिले में संघर्ष
02 सौ किमी से प्रशिक्षण और अन्य ड्यूटी पर भेजते हैं, नहीं मिलता खर्च
03 में से 02 पात्र कैडेट्स सी सर्टिफिकेट परीक्षा से हो जाते हैं वंचित
देश सेवा का सपना लेकर एनसीसी की वर्दी पहनने वाले कटिहार जिले के सैकड़ों कैडेट्स आज खुद को उपेक्षित महसूस कर रहे हैं। अनुशासन, नेतृत्व और राष्ट्र सेवा की भावना से जुड़ने का जुनून लिए इन युवाओं के सामने कई ऐसी चुनौतियां हैं, जो न सिर्फ उनकी मेहनत, बल्कि उनके सपनों पर भी भारी पड़ रही हैं। भविष्य अधर में, मेहनत बेकार एनसीसी की संरचना तीन स्तरों- ए, बी और सी सर्टिफिकेट पर आधारित है। जहां हाईस्कूल के छात्रों को 'ए', इंटरमीडिएट के छात्रों को 'बी' और स्नातक छात्रों को 'सी' सर्टिफिकेट दिया जाता है। लेकिन शिक्षा प्रणाली में बदलाव के बाद भी एनसीसी सर्टिफिकेट की नीति पुरानी बनी हुई है। कटिहार के कई उच्च माध्यमिक स्कूल अब 10+2 मॉडल में बदल चुके हैं, लेकिन इन स्कूलों में पढ़ने वाले कैडेट्स को आज भी सिर्फ 'ए' सर्टिफिकेट मिल रहा है, जिससे वे अपने दो साल की कड़ी मेहनत के बावजूद सरकारी नौकरियों में मिलने वाले विशेष लाभ से वंचित रह जाते हैं।
कम हो गई सीटों की संख्या, नहीं मिलती सुविधा :
अनुशासन की जगह अनिश्चितता सी सर्टिफिकेट, जो एनसीसी की सर्वोच्च उपलब्धियों में से एक है, प्राप्त करना भी अब पहले जैसा आसान नहीं रहा। पहले प्रमंडल स्तर पर इसकी परीक्षा आयोजित की जाती थी, लेकिन अब सीटों की संख्या सीमित कर दी गई है। प्रशिक्षण पूरा करने के बाद भी कई कैडेट्स परीक्षा की अधिसूचना समय पर न मिलने के कारण आवेदन से वंचित रह जाते हैं। इससे न सिर्फ उनका करियर प्रभावित होता है, बल्कि आत्मविश्वास भी टूटता है। इसके अलावा, एनसीसी कैडेट्स को चुनावी ड्यूटी और अन्य अभियानों में तो लगाया जाता है, लेकिन न तो उन्हें यात्रा सुविधा दी जाती है और न ही किसी प्रकार का स्टाइपेंड। कई कैडेट्स बताते हैं कि वे कई किलोमीटर की यात्रा खुद के खर्चे पर कर ट्रेनिंग और ड्यूटी पूरी करते हैं।
नहीं मिला प्रमाण पत्र, टूट रहा अत्मविश्वास :
कटिहार के कैडेट्स का कहना है कि वे देश सेवा के अपने सपने को पूरा करना चाहते हैं, लेकिन उचित सुविधाओं और प्रमाणपत्रों की कमी उनके इस लक्ष्य में बड़ी रुकावट बन रही है। कई छात्रों ने बताया कि उन्होंने एनसीसी में शामिल होकर न केवल अनुशासन सीखा, बल्कि अपने आत्मविश्वास को भी मजबूत किया। पर जब नौकरी की बारी आई, तो प्रमाणपत्र न मिलने के कारण वे अयोग्य ठहरा दिए गए। आज जरूरत है कि इन समस्याओं को समय रहते हल किया जाए, ताकि यह युवा शक्ति हताश न हो। एनसीसी सिर्फ एक संगठन नहीं, बल्कि युवाओं के सपनों का आधार है। अगर इनकी समस्याओं का समाधान नहीं किया गया, तो यह मंच कमजोर पड़ सकता है, और देश को एक बड़ी संभावनाशील शक्ति से हाथ धोना पड़ सकता है।
शिकायतें:
1. 10+2 मॉडल के बावजूद सर्टिफिकेट वितरण की पुरानी प्रणाली से छात्रों का भविष्य प्रभावित हो रहा है।
2. सी सर्टिफिकेट के लिए सीटों की संख्या सीमित होने से कई योग्य कैडेट्स वंचित रह जाते हैं।
3. ड्यूटी के दौरान यात्रा सुविधा न मिलने से कैडेट्स को आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
4. कई बार अधिसूचनाएं देरी से जारी होती हैं, जिससे आवेदन का मौका छूट जाता है।
5. उचित पहचान न मिलने से छात्रों का आत्मविश्वास और करियर दोनों प्रभावित होते हैं।
सुझाव:
1. उच्च माध्यमिक स्कूलों के 10+2 मॉडल को ध्यान में रखते हुए सर्टिफिकेट वितरण की नीति को अद्यतन किया जाए।
2. सी सर्टिफिकेट के लिए अधिक केंद्र और बैच आयोजित किए जाएं ताकि अधिक कैडेट्स को मौका मिल सके।
3. चुनावी ड्यूटी और अन्य अभियानों में जाने वाले कैडेट्स को यात्रा सुविधा और स्टाइपेंड प्रदान किया जाए।
4. परीक्षा और अन्य गतिविधियों की अधिसूचना समय पर जारी की जाए, ताकि कैडेट्स तैयारी कर सकें।
5. प्रशिक्षकों की कमी को दूर कर नियमित और गुणवत्तापूर्ण प्रशिक्षण की व्यवस्था की जाए।
इनकी भी सुनें
एनसीसी में शामिल होना गर्व की बात है, लेकिन प्रमाणपत्र न मिलने से हमारे सपने अधूरे रह जाते हैं। अगर हमें उचित मान्यता मिले तो हम और बेहतर कर सकते हैं।
-विष्णु कांत स्वर्णकार
एनसीसी से सीखा अनुशासन और नेतृत्व मेरे जीवन को नई दिशा दे रहा है। लेकिन बिना प्रमाणपत्र के सरकारी नौकरियों में अवसर मिलना मुश्किल हो जाता है।
-अभिषेक सुमन
एनसीसी ने मुझे आत्मनिर्भर और सशक्त बनाया, लेकिन प्रमाणपत्र न मिलना मेरे करियर में रुकावट बन रहा है। हमें सही पहचान और अवसर मिलना चाहिए।
-मुन्ना कुमार
देश सेवा के सपने को साकार करने का सबसे बड़ा मंच एनसीसी है, लेकिन सर्टिफिकेट न मिलने से यह सपना अधूरा रह जाता है।
-शुभम कुमार
एनसीसी से सीखा अनुशासन मेरे जीवन का हिस्सा बन चुका है, लेकिन बिना प्रमाणपत्र के मैं अपने सपनों को कैसे साकार करूं?
-राजकुमार
एनसीसी ने मुझे आत्मविश्वास और नेतृत्व सिखाया, लेकिन प्रमाणपत्र की कमी हमें सरकारी नौकरियों में अवसर से वंचित कर रही है।
-शिवम कुमार
एनसीसी ने हमें देश सेवा का जज्बा सिखाया, लेकिन अगर प्रमाणपत्र नहीं मिला तो हमारी मेहनत का क्या मतलब?
-राजकुमारी
एनसीसी से आत्मविश्वास बढ़ा, लेकिन सर्टिफिकेट न मिलने से करियर की दौड़ में हम पीछे रह जाते हैं। यह हमारे लिए निराशाजनक है।
-भारती कुमारी
एनसीसी से सीखा अनुशासन और नेतृत्व मुझे जीवन में प्रेरणा देता है, लेकिन प्रमाणपत्र न मिलने से हमारे प्रयास व्यर्थ हो जाते हैं।
-सानिया कुमारी
एनसीसी ने आत्मविश्वास और साहस सिखाया, लेकिन प्रमाणपत्र की कमी हमें सरकारी नौकरियों में अवसर से वंचित कर रही है।
-मुन्नी कुमारी
एनसीसी ने हमें एक मजबूत व्यक्तित्व दिया, लेकिन प्रमाणपत्र न मिलना हमारे सपनों को तोड़ता है। हमें भी समान अवसर मिलना चाहिए।
-दिशा कुमारी
एनसीसी से सीखा अनुशासन और नेतृत्व मेरे जीवन का हिस्सा बन चुका है, लेकिन बिना प्रमाणपत्र के मैं अपने सपनों को कैसे साकार करूं?
-दिव्यांशु भारती
एनसीसी से सीखा अनुशासन मेरे जीवन में प्रेरणा का स्रोत है, लेकिन प्रमाणपत्र न मिलना हमारे करियर के लिए बड़ी चुनौती है।
-अभिलाषा कुमारी
एनसीसी ने हमें आत्मनिर्भर बनाया, लेकिन सर्टिफिकेट न मिलने से सरकारी नौकरियों में अवसर नहीं मिल पाता। यह हमारे लिए चिंता का विषय है।
-छाया कुमारी
एनसीसी से आत्मविश्वास बढ़ा, लेकिन सर्टिफिकेट न मिलने से करियर की दौड़ में हम पीछे रह जाते हैं। यह हमारे लिए निराशाजनक है।
-छोटी कुमारी
एनसीसी से सीखा अनुशासन मेरे जीवन का हिस्सा है, लेकिन बिना प्रमाणपत्र के मैं अपने सपनों को कैसे साकार करूं?
-आदर्श कुमार
एनसीसी ने हमें आत्मनिर्भर और सशक्त बनाया, लेकिन प्रमाणपत्र न मिलना हमारे करियर में रुकावट बन रहा है।
-आरुषी कुमारी
एनसीसी से सीखा अनुशासन मेरे जीवन का हिस्सा बन चुका है, लेकिन बिना प्रमाणपत्र के मैं अपने सपनों को कैसे साकार करूं?
-विशाल कुमार चौधरी
एनसीसी से आत्मनिर्भरता और नेतृत्व सीखा, लेकिन प्रमाणपत्र न मिलना हमारे भविष्य के लिए चिंता का विषय है।
-प्रियम भगत
एनसीसी ने हमें देश सेवा का जज्बा सिखाया, लेकिन अगर प्रमाणपत्र नहीं मिला तो हमारी मेहनत का क्या मतलब
-रिया कुमारी
बोले जिम्मेदार
एनसीसी कैडेट्स न केवल अनुशासन और नेतृत्व का प्रतीक हैं, बल्कि हमारे राष्ट्र की रीढ़ भी हैं। इन युवाओं ने देश सेवा का सपना लेकर कठिन परिश्रम किया है, लेकिन अगर उन्हें समय पर सर्टिफिकेट और सुविधाएं नहीं मिलतीं, तो यह न सिर्फ उनके आत्मविश्वास, बल्कि देश की युवा शक्ति पर भी गहरा आघात है। मैं कटिहार के सभी एनसीसी कैडेट्स को भरोसा दिलाता हूं कि उनकी समस्याएं मेरी प्राथमिकता में हैं। जल्द ही इस मुद्दे को उच्च स्तर पर उठाकर समाधान की दिशा में ठोस कदम उठाए जाएंगे, ताकि ये युवा अपने सपनों को साकार कर सकें।
-तार किशोर प्रसाद, पूर्व डिप्टी सीएम सह सदर विधायक, कटिहार
बोले कटिहार असर
मानव बल के बकाया वेतन का हुआ भुगतान
कटिहार, हिन्दुस्तान प्रतिनिधि। बिजली विभाग के संविदा मानव बलों की मुश्किलें अब कुछ हद तक कम होती दिख रही हैं। हिन्दुस्तान के बोले कटिहार पेज पर 11 फरवरी को प्रकाशित खबर का असर यह हुआ है कि जिले के लगभग 250 मानव बलों को मार्च महीने तक का बकाया वेतन अब मिल चुका है। कटिहार इलेक्ट्रिक यूनियन वर्कर के जिला अध्यक्ष मोहम्मद सोनू ने इस बात की पुष्टि की। उन्होंने कहा कि पहले 3-4 महीनों तक का वेतन बकाया रहता था, लेकिन अब समय पर भुगतान हो रहा है। मानव बल के कर्मचारी, जो सर्दी, गर्मी और बरसात में दिन-रात बिजली आपूर्ति बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, लंबे समय से कम वेतन, सुरक्षा साधनों की कमी और नियमित छुट्टी न मिलने जैसी समस्याओं का सामना कर रहे थे। इनकी शिकायत थी कि उन्हें 30 दिनों के काम के बावजूद केवल 26 दिनों का मानदेय मिलता था और वह भी समय पर नहीं मिल पाता था। साथ ही, 8 घंटे की शिफ्ट के बदले 24 घंटे तक काम कराया जाता था। हिन्दुस्तान में यह मुद्दा प्रमुखता से उठाए जाने के बाद अब स्थिति में सुधार हुआ है। यूनियन से जुड़े सदस्यों ने अखबार के प्रति आभार व्यक्त करते हुए कहा कि इस मुहिम ने उनकी आवाज को सही मंच दिया और उनके हक की लड़ाई को मजबूती दी। यह उदाहरण दिखाता है कि जब समस्याओं को सही मंच मिलता है, तो बदलाव संभव है। यह मानव बलों के हौसले और संघर्ष की जीत है, जो अपने काम के प्रति निष्ठावान रहते हुए भी अपने हक की लड़ाई लड़ते रहे।
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