Empowering Women Through Didi Ki Rasoi A Model of Self-Reliance and Respect रिवाइज : हुनर को मिली पहचान, दीदी की रसोई से आत्मनिर्भर बन रहीं जिले की महिलाएं, Biharsharif Hindi News - Hindustan
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रिवाइज : हुनर को मिली पहचान, दीदी की रसोई से आत्मनिर्भर बन रहीं जिले की महिलाएं

हुनर को मिली पहचान, दीदी की रसोई से आत्मनिर्भर बन रहीं जिले की महिलाएंहुनर को मिली पहचान, दीदी की रसोई से आत्मनिर्भर बन रहीं जिले की महिलाएंहुनर को मिली पहचान, दीदी की रसोई से आत्मनिर्भर बन रहीं जिले...

Newswrap हिन्दुस्तान, बिहारशरीफMon, 16 June 2025 10:43 PM
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रिवाइज : हुनर को मिली पहचान, दीदी की रसोई से आत्मनिर्भर बन रहीं जिले की महिलाएं

हुनर को मिली पहचान, दीदी की रसोई से आत्मनिर्भर बन रहीं जिले की महिलाएं कभी खेतों में करती थीं काम, आज अपने हुनर से बच्चों को दे रहीं बेहतर तालीम बोलीं महिलाएं-घर चलाने में मिलती है मदद, समाज में हमें दीदी कहकर मिलता है सम्मान सदर अस्पताल से लेकर प्रखंड कार्यालयों तक परोस रहीं घर जैसा खाना फोटो: रसोई: बिहारशरीफ सदर अस्पताल स्थित ‘दीदी की रसोई में पूरी स्वच्छता के साथ मरीजों और ग्राहकों के लिए खाना तैयार करतीं जीविका दीदियां। बिहारशरीफ, हमारे संवाददाता। कभी घर की चारदीवारी और खेतों तक सीमित रहने वाली महिलाएं आज जिले के सरकारी दफ्तरों और अस्पतालों की रसोई संभाल रही हैं।

यह बदलाव बिहार सरकार की महत्वाकांक्षी ‘दीदी की रसोई योजना की देन है। जो जिले की 95 ग्रामीण महिलाओं के लिए सिर्फ कमाई का जरिया नहीं, बल्कि आत्मनिर्भरता, सम्मान और सामाजिक पहचान का प्रतीक बन गई है। जीविका के तहत चल रही यह योजना इन महिलाओं के पारंपरिक हुनर को पहचान देकर उन्हें 5500 से 10 हजार रुपये प्रति माह की सम्मानजनक आमदनी का अवसर दे रही है। जिले में सदर अस्पताल, पावापुरी विम्स और हिलसा अनुमंडलीय अस्पताल समेत कुल सात प्रमुख जगहों पर 'दीदी की रसोई' संचालित हो रही हैं। इसके अलावा, जीविका दीदियां हिलसा और बिहारशरीफ प्रखंड कार्यालयों समेत चार अन्य जगहों पर खुद की कैंटीन भी चला रही हैं। जबकि, समाहरणालय और राजगीर पुलिस अकादमी में स्नैक काउंटर का सफलतापूर्वक संचालन कर रही हैं। अब अपने बच्चों को ट्यूशन भेज पाती हूं: बिहारशरीफ सदर अस्पताल में पिछले चार साल से काम कर रहीं कोसुक गांव की पुटूस देवी बताती हैं कि पहले घर पर भैंस चराती थी और घरेलू काम करती थी। 2020 से यहां जुड़ी तो अपनी कमाई होने लगी। अब अपने चारों बच्चों को ट्यूशन भेज पा रही हूं, यह मेरे लिए सबसे बड़ा बदलाव है। इसी रसोई में काम करने वाली तियुरी गांव की पुष्पा देवी कहती हैं कि पहले गांव में धान रोपती थी, बकरी चराती थी। अब यहां काम करके पैसा कमा रही हूं तो चारों बच्चे अच्छे से पढ़ रहे हैं। घर में मदद करने से सम्मान भी मिलता है। घर जैसा स्वाद, गुणवत्ता पर जोर: सदर अस्पताल में यह दीदियां रोजाना 60 से 90 मरीजों और 100 से अधिक अन्य ग्राहकों के लिए खाना बनाती हैं। यहां हर दिन लगभग 25 किलो चावल, छह किलो दाल दो तरह की ताजी सब्जियां बनती हैं। इस अस्पताल में खाना खाने वाले लोगों का कहना है कि उन्हें साफ-सुथरा और घर जैसा खाना किफायती दरों पर मिलता है। जो बाहर के खाने से कहीं बेहतर है। सदर अस्पताल में स्थित ‘दीदी की रसोई में काम करने वाली जीविका दीदियां बताती हैं कि पहले सिर्फ घर के लिए खाना बनाती थी, कोई पहचान नहीं थी। आज डॉक्टर और मरीज के परिजन हमारे हाथ का बना खाना खाते हैं और हमें ‘दीदी कहकर सम्मान देते हैं। महिला सशक्तीकरण का जीवंत मॉडल जीविका के जिला परियोजना प्रबंधक संजय पासवान ने बताया कि ‘दीदी की रसोई सिर्फ एक कैंटीन योजना नहीं, बल्कि यह महिला सशक्तीकरण का एक जीवंत मॉडल है। हम महिलाओं के पारंपरिक पाक कला कौशल को एक पेशेवर मंच प्रदान कर उन्हें खाद्य उद्यमी बना रहे हैं। इस योजना ने न केवल उन्हें आर्थिक रूप से मजबूत किया है, बल्कि उनका आत्मविश्वास और गरिमा भी लौटाई है। यह बदलाव की एक सशक्त मिसाल है।

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