मिथिला की जुबान में बसते हैं प्रदीप
दरभंगा में मैथिलीपुत्र प्रदीप एवं डॉ. कमलकांत झा की पुण्यतिथि पर विद्यापति सेवा संस्थान द्वारा श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया। महासचिव डॉ. बैद्यनाथ चौधरी ने मैथिली साहित्य में उनके योगदान को सराहा।...

दरभंगा। मैथिलीपुत्र प्रदीप एवं डॉ. कमलकांत झा की पुण्यतिथि पर विद्यापति सेवा संस्थान की ओर से शुक्रवार को श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया। महासचिव डॉ. बैद्यनाथ चौधरी बैजू ने कहा कि मैथिली की लोकप्रिय भगवती वंदना ‘जगदंब अहीं अवलंब हमर, हे माई अहां बिनु आस ककर... के रचयिता मैथिलीपुत्र प्रदीप मिथिला के लोगों के हृदय में ही नहीं, जुबान में आज भी बसते हैं। उनकी मैथिली रचनाओं को लोग आज भी सुनकर भाव-विभोर हो उठते हैं। डॉ. बैजू ने कहा कि शिक्षण के रास्ते साहित्य सृजन का सफर तय करने वाले डॉ. कमलकांत झा मैथिली भाषा विज्ञान एवं पर्यावरण संरक्षण के विशेष हिमायती थे।
मैथिली अकादमी के पूर्व अध्यक्ष पं. कमलाकांत झा ने कहा कि प्रदीप जी आधुनिक मैथिली भाषा-साहित्य के संस्थापकों में से एक थे। डॉ. कमलकांत झा मैथिली साहित्य के भंडार की श्रीवृद्धि करने वाले समर्पित साहित्यकार के रूप में हमेशा याद किए जाएंगे। डॉ. बुचरू पासवान ने कहा कि प्रदीप ने अपनी लेखनी से साहित्यिक एवं सांस्कृतिक क्रांति का बिगुल फूंका, जबकि कमल बाबू का शिक्षण और साहित्य सृजन के साथ ही पर्यावरण संरक्षण के प्रति अमूल्य योगदान था। प्रो. जीवकांत मिश्र, साहित्यकार मणिकांत झा, मीडिया संयोजक प्रवीण कुमार झा आदि ने भी अपने विचार रखे। श्रद्धा सुमन अर्पित करने वालों में शिक्षाविद हीरा कुमार झा, डॉ. महेंद्र नारायण राम, डॉ. महानंद ठाकुर, डॉ. गणेश कांत झा, डॉ. उदय कांत मिश्र, विनोद कुमार झा, प्रो. विजयकांत झा, प्रो. चंद्रशेखर झा बूढा भाई, आशीष चौधरी, डॉ. ममता ठाकुर, डॉ. सुषमा झा, नवल किशोर झा, मनीष झा रघु, दुर्गानंद झा, मिथिलेश ठाकुर, प्रकाश चंद्र मिश्र आदि शामिल थे।
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