बिहार में बाढ़ राहत शिविर के बिल में फर्जीवाड़ा, खानपान का जिक्र नहीं; टेंट-पंडाल में भी गड़बड़ी
- बिल विपत्रों की छानबीन के दौरान पाया गया कि शरणार्थियों के रहने के लिए जितना बड़ा टेंट-पंडाल लगाने का उल्लेख किया गया है, वह कई गुना अधिक है। अधिकारियों ने पाया कि बिल विपत्र में शिविर के लिए जितना वर्ग फीट दिया गया है, मौके पर उतनी जगह भी उपलब्ध नहीं है।
पिछले साल अक्टूबर में पटना जिले में बाढ़ की स्थिति होने पर पीड़ित परिवारों के लिए बनाए गए राहत शिविर में खर्च के ब्योरे में 2.98 करोड़ का फर्जीवाड़ा पकड़ा गया है। गंगा किनारे कुल 14 जगहों पर राहत शिविर बनाए गए थे। डीएम डॉ. चंद्रशेखर सिंह ने जांच कराई तो यह चौंकाने वाला खुलासा हुआ। जिलाधिकारी ने बाढ़ राहत शिविर के खर्च के बिल विपत्रों की जांच के लिए चार सदस्य कमेटी एडीएम की अध्यक्षता में गठित की थी। कमेटी ने लगभग एक माह तक बिल विपत्र के सभी बिंदुओं पर जांच की। दी
दीघा मरीन ड्राइव से लेकर पटना सदर प्रखंड के कई इलाके में राहत शिविर का भौतिक सत्यापन किया। सभी राहत शिविर में जिला प्रशासन का एक कर्मचारी तैनात था। कई जगहों पर तो संबंधित एजेंसी और कर्मियों की रिपोर्ट में तालमेल नहीं था। जांच अधिकारियों का कहना है कि राहत शिविर में दो करोड़ 72 लाख और भोजन में 50 लाख खर्च होने का विवरण दिया गया था। छानबीन के बाद 16 लाख और भोजन में 8 लाख भुगतान करने से संबंधित अनुशंसा की गई है।
रजिस्टर में खानपान का जिक्र नहीं
शिविर में रोजाना कितने लोगों ने भोजन किया इसका स्पष्ट तौर पर जिक्र रजिस्टर में नहीं है। रजिस्टर में पीड़ित परिवारों का पूरा विवरण देना था। शिविर संचालकों ने मनमानी तरीके से लोगों की संख्या दर्ज कर दी है और भोजन का खर्च मनमाने तरीके से दिखा दिया गया। मालूम हो कि लोकसभा चुनाव 2024 में भी खर्च के विवरण में बड़े पैमाने पर गड़बड़ी पकड़ी गई थी। चार सदस्य कमेटी ने चुनाव खर्च के विवरण की जांच की थी तो124 करोड़ बिल विपत्र की जांच करने के बाद मात्र 32 करोड़ सही पाया गया।
जगह से कई गुना अधिक क्षेत्र में टेंट-पंडाल दिखाया
बिल विपत्रों की छानबीन के दौरान पाया गया कि शरणार्थियों के रहने के लिए जितना बड़ा टेंट-पंडाल लगाने का उल्लेख किया गया है, वह कई गुना अधिक है। अधिकारियों ने पाया कि बिल विपत्र में शिविर के लिए जितना वर्ग फीट दिया गया है, मौके पर उतनी जगह भी उपलब्ध नहीं है। ऐसी स्थिति में फर्जीवाड़ा सामने आया, उसके बाद शिविर में तैनात अधिकारियों की रिपोर्ट और भौतिक सत्यापन के बाद बिल में कटौती की गई।