एकल नाटक ‘खौफ ने दिखाई दंगों की खौफनाक तस्वीर
रंग संस्था कैनवास पटना की ओर से अंतिम दिन गुलजार की रचना ख़ौफ का शानदार मंचन किया अभिनेता डॉ मदन ने अपने सशक्त अभिनय से इस प्रस्तुति को यादगार बना दिया बज्जिका गीतकार व कवि अखोरी चंद्रशेखर एवं किशलय...

हाजीपुर। संवाद सूत्र सफ़दर हाशमी एकल नाट्य महोत्सव के तीसरे और अंतिम दिन चर्चित रचनाकार गुलज़ार की संवेदनशील रचना दंगों की दर्दनाक दास्तान पे आधारित एकल नाटक ख़ौफ का कलाकार रंगमंच पर उन दृश्यों को प्रदर्शित कर रहे थे। रंग संस्था कैनवास पटना की ओर से अंतिम दिन गुलजार की रचना ख़ौफ का शानदार मंचन किया गया। निर्देशक व अभिनेता डॉ मदन मोहन कुमार थे। ख़ौफ की क्या सीमा हो सकती है। डर किसी व्यक्ति को मानसिक रूप से आहत कर सकता कि वह किसी की जान ले ले...। बिहार के जाने माने अभिनेता डॉ मदन ने अपने सशक्त अभिनय से इस प्रस्तुति को यादगार बना दिया।
विवेकानंद कॉलोनी निर्माण कार्यालय परिसर स्थित निर्मलचंद्र थियेटर स्टूडियो में निर्माण रंगमंच की ओर से अनीतिम दिन आयोजित महोत्सव का उद्घाटन बज्जिका गीतकार व कवि अखोरी चंद्रशेखर एवं किशलय किशोर ने दीप प्रज्ज्वलित कर किया। उन्होंने एकल नाट्य महोत्सव के आयोजन की प्रसंशा की। कहा कि निर्माण और इसके कलाकार जिस तरह से नाट्य गतिविधियों को जिंदा रखे हैं वह जिले की समृद्ध परंपरा का प्रतीक है। स्वागत करते हुए वरिष्ठ निर्देशक और रंगकर्मी क्षीतिज प्रकाश ने कहा कि कलाकार और दर्शक ही हमारे लिए विशेष होते हैं। दर्शक ही कलाकारों का सही मूल्यांकन करते हैं। अंत में रंगकर्मी पवन कुमार अपूर्व ने धन्यवाद ज्ञापन कर अतिथियों, कलाकारों और दर्शकों के प्रति आभार प्रकट किया। एकल नाटक ‘खौफ़ ने बम्बई में हुए दंगे को प्रदर्शित किया गुलज़ार द्वारा रचित यह नाटक बम्बई में हुए दंगे को प्रदर्शित करता है और खौफ़ का ऐसा मंजर प्रस्तुत करता है, जो दर्शकों को झकझोर कर रख देता है। नाटक की कहानी सोचने पर मज़बूर कर देती है कि आख़िर उस व्यक्ति का क्या क़सूर था, जिसे नाटक का पात्र यासीन ट्रेन से नीचे समंदर की खाड़ी में फेंक देता है। क्योंकि यासीन को लगता है वो आदमी उसे मार देगा। चार दिनों तक कर्फ्यू में फंसे होने के बाद यासीन किसी तरह अपने घर जाना चाहता है। जिसके लिए वो बम्बई लोकल ट्रेन में सफर करता है। जिस दौरान एक व्यक्ति से सामना होता है और यासीन को लगता है कि वो हिन्दू है और उसे मारना चाहता है। जब खौफ़ हद को पहुंच जाता है तब यासीन उस आदमी को ट्रेन से बाहर फेंक देता है। यासीन को तब पता चलता है कि वो आदमी भी मुसलमान था। जब वो आदमी गिरते हुए चीखता है अल्लाह..। यासीन के एक प्रश्न करता है और नाटक समाप्त होता है। उसका प्रश्न है यदि ऐसा न होता तो मैं भी मुसलमान होने का क्या सबूत देता उसे, क्या नंगा हो जाता है। पात्र-परिचय संगीत : रौशन कुमार, प्रकाश : राजीव घोष सेट एवं प्रॉप्स : कनिका शर्मा वस्त्र विन्यास : राजीव कुमार रंजन, हाजीपुर - 16- शनिवार की रात सफ़दर हाशमी एकल नाट्य महोत्सव के तीसरे और अंतिम दिन दंगों की दर्दनाक दास्तान पर आधारित नाटक का मंचन करते कलाकार।
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