97 प्रतिशत बच्चों को किया गया है संपूर्ण टीकाकरण
किशनगंज में विश्व टीकाकरण सप्ताह के दौरान सिविल सर्जन डॉ. राज कुमार चौधरी ने कहा कि वैक्सीनेशन बच्चों को गंभीर रोगों से बचाने का एक महत्वपूर्ण साधन है। गर्भवती माताओं और बच्चों के लिए टीकाकरण की...

किशनगंज, एक प्रतिनिधि। वैक्सीनेशन सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं की मजबूती का एक मजबूत स्तंभ है। वैक्सीनेशन हर साल लाखों बच्चों का जान बचाती है। कहा जाता है कि हर वो बच्चा जीवनरक्षक वैक्सीन तक पहुंच का हकदार है,क्योंक वैक्सीनेशन बच्चों को बीमारी, विकलांगता व मृत्यु से बचा सकता है। गर्भवती माताएं और उनके होने वाले शिशु को कई गंभीर रोगों के प्रभाव से मुक्त रखने में रोग रोधी वैक्सीन का महत्वपूर्ण योगदान है। उक्त बातें सिविल सर्जन डॉ.राज कुमार चौधरी ने मंगलवार की अपने कार्यालय वेश्म से टीकाकरण सप्ताह का में अभियान की समीक्षा के दौरान कही। उन्होंने कहा कि वैक्सीनेशन की वजह से चेचक, खसरा, पोलियो, हैजा सहित कई जानलेवा रोगों के प्रभाव से बच्चों को पूरी तरह महफूज पाते हैं। नियमित टीकाकरण की स्वीकार्यता को बढ़ाने इसकी उपयोगिता के बारे में लोगों को जागरूक करने के उद्देश्य से ही जिले में 20 से 30 अप्रैल तक विश्व टीकाकरण सप्ताह आयोजित किया जा रहा है जो है। इस वैश्विक आयोजन के माध्यम से समुदाय में टीकाकरण की मांग को बढ़ावा देने के साथ इसकी स्वीकार्यता को बढ़ावा देना है।
छोटे बच्चों को गंभीर संक्रामक रोगों का खतरा अधिक:
जिला प्रतिरक्षण पदाधिकारी डॉ. देवेन्द्र कुमार ने बताया कि छोटे बच्चों में रोगी प्रतिरोधात्मक क्षमता का अभाव होता है। इस कारण उन्हें गंभीर रोगों के संक्रमण का खतरा अधिक रहता है। छोटे बच्चे पर आसपास का वातावरण व इसमें मौजूद हानिकारक कीटाणु व विषाणु बहुत जल्दी उन पर अपना प्रभाव छोड़ते हैं। इस कारण बच्चों को बीमारियों का खतरा अधिक होता है। बच्चों को इन रोगों से संरक्षित रखने के लिये गर्भ ठहरने के तत्काल बाद महिलाओं को टेटनस-डिप्थेरिया वैक्सीनेशन लगाया जाता है। नवजात के जन्म के उपरांत समय पर सभी जरूरी टीका लगाना जरूरी होता है। जन्म के प्रथम वर्ष तक लगने वाले टीके तो और भी जरूरी होता है। टीका बच्चों के रोगी रोधी क्षमता को बढ़ाता है।
नवजात के जन्म से ही शुरू हो जाती है टीकाकरण की प्रक्रिया:
सिविल सर्जन डॉ. राज कुमार चौधरी ने बताया कि नवजात के जन्म के उपरांत बीसीजी ओरल पोलियो, हेपेटाइटस बी का टीका लगाया जाता है, बच्चे जब 6 सप्ताह की उम्र के होते हैं। तो उन्हें डीपीटी-1, आइपीवी-1, ओपीवी-1, रोटावायरस-1, न्यूमोकॉकल कॉन्जुगेट वैक्सीन दिया जाता है। उम्र 10 सप्ताह पूरे होने के बाद डीपीटी-2, ओपीवी-2 व रोटावायरस-2 दिया जाता है. 14 सप्ताह के बाद डीपीटी-3, ओपीवी-3, रोटावायरस-3, आइपीवी-2 और पीसीवी-2 दिया जाता है। नौ से 12 माह पर खसरा और रुबेला-1 दिया जाता है। 16 से 24 माह पर खसरा-2, डीपीटी बूस्टर -1, ओपीवी बूस्टर दिया जाता है. पांच से छह साल पर डीपीटी बूस्टर-2 वैक्सीनेशन होता है। 10 साल तथा 16 साल पर टेटनस एंड एडल्ट डिप्थीरिया टीकाकरण दिया जाता है। सिविल सर्जन ने बताया कि जिले में हाल के वर्षों में टीकाकरण को लेकर लोगों के नजरिये में साकारात्मक बदलाव आया है। जहां कोविड काल के समय 60 प्रतिशत वही, 2023-24 में 91 तथा 2024-25 में 97 फीसदी बच्चे पूर्णत: टीकाकृत हुए हैं। जन्म के उपरांत 93 फीसदी बच्चे बीसीजी के टीका से आच्छादित हैं। खास बात ये कि टीकाकरण को लेकर सरकारी चिकित्सा संस्थान लोगों के सर्वात्तम विकल्प साबित हो रहा है। टीकाकरण संबंधी मामले में सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं का योगदान करीब 97 प्रतिशत हैं। वहीं इसमें निजी क्षेत्र की हिस्सेदारी महज 1.7 प्रतिशत है।
टीकाकरण से मातृ-शिशु मृत्यु दर पर नियंत्रण संभव :
सिविल सर्जन डॉ. राज कुमार चौधरी ने बताया कि विश्व टीकाकरण सप्ताह के दौरान सभी सरकारी चिकित्सा संस्थानों में जागरूकता संबंधी विशेष आयोजन किये जा रहे है । टीका कर्मियों के क्षमता संवर्द्धन के लिये विशेष प्रशिक्षण सत्र आयोजित किये गये है । उन्होंने बताया कि टीकाकरण मातृ-शिशु मृत्यु संबंधी मामलों पर प्रभावी नियंत्रण स्थापित करने का एक मजबूत विकल्प है।
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