Crisis in Nawada Major Rivers Drying Up Affecting Agriculture and Water Supply नवादा में सूखीं नदियां, हो रहीं अस्तित्वहीन, जनजीवन हलकान , Nawada Hindi News - Hindustan
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नवादा में सूखीं नदियां, हो रहीं अस्तित्वहीन, जनजीवन हलकान

नवादा, हिन्दुस्तान संवाददाता।नवादा जिले में मुख्यत: पांच प्रमुख नदियां हैं। यह सभी अक्सर सूख जाती हैं। खासकर गर्मियों के मौसम में हाल बेहद बुरा हो जाता है।

Newswrap हिन्दुस्तान, नवादाFri, 6 June 2025 12:06 PM
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नवादा में सूखीं नदियां, हो रहीं अस्तित्वहीन, जनजीवन हलकान

नवादा, हिन्दुस्तान संवाददाता। नवादा जिले में मुख्यत: पांच प्रमुख नदियां हैं। यह सभी अक्सर सूख जाती हैं। खासकर गर्मियों के मौसम में हाल बेहद बुरा हो जाता है। वर्तमान स्थिति यह है कि जिले की जीवन रेखा कही जाने वाली सकरी नदी के अलावा तिलैया नदी पूरी तरह से सूख चुकी है। बारिश में खूब उफनाने वाली सकरी नदी नवादा के लिए जीवनधारा मानी जाती है, लेकिन यह भी अभी सूखी पड़ी है। तिलैया तो अक्सर सूखी ही पड़ी रहती है। अभी खरीफ सीजन चल रहा है और यह दोनों प्रमुख नदियां पूरी तरह से सूखी पड़ी हैं। ऐसे में धान का बिचड़ा आच्छादन बुरी तरह से प्रभावित हो रहा है जबकि अगले एक सप्ताह में इन नदियों में पानी नहीं आया तो धान आच्छादन भी काफी प्रभावित हो सकता है।

इन नदियों के आसपास के गांवों में भूगर्भ जलस्तर में भारी गिरावट के कारण लोगों को पेयजल की कमी का सामना करना पड़ रहा है। सामान्य दिनों में जिले में जहां औसतन 20 से 25 फीट भूगर्भ जलस्तर रहता है, वहीं वर्तमान में औसतन 40 से 45 फीट नीचे तक भूगर्भ जलस्तर पहुंच चुका है। जानकारों के अनुसार, पूर्व में जलस्तर सामान्य दिनों में 20 फीट से भी बेहतर स्थिति में रहता था। दस वर्ष पूर्व तक वाटर लेवल 15 फीट तक की बेहतर स्थिति में रहता था। लेकिन अब जिले के मैदानी क्षेत्रों में 35 से 40 फीट व पहाड़ी क्षेत्रों में 40 से 45 फीट तक पानी नीचे चला जाना, एक सामान्य सी बात बन कर रह गई है। जनजीवन के साथ ही खेती-किसानी पर पड़ रहा बुरा असर नदियों का सूखा रहना जिले के आम लोगों खास कर नदी किनारे रहने वाले लोगों के जनजीवन पर बुरी तरह से प्रभाव डालता है। जहां पेयजल का संकट उन्हें सताता है वहीं खेती-किसानी की बाधा उन्हें रूलाती है। मौसम वैज्ञानिक कहते हैं कि जलवायु के उथल-पुथल के कारण भीषण गर्मी के असर से जिले की सभी पांच प्रमुख नदियों के अलावा छोटी उपनदियां भी जल विहीन होकर रह गई हैं। वर्तमान में दक्षिण बिहार की गंगा कही जाने वाली किसानों की सबसे बड़ी सहायक नदी सकरी एकदम सूखी पड़ी है जबकि खुरी नदी के अलावा धनार्जय, तिलैया और ढाढर नदी का हाल भी बिल्कुल मृतप्राय हैं। बारिश होने में विलंब होने की स्थिति में सभी नदियों के अस्तित्व पर भी संकट साबित हो सकती है। जिले में बारिश भी किसानों को बस ललचा कर रह जाती है। झारखंड में तेजतर्रार बारिश के बाद इन पहाड़ी नदियों में पानी पहुंच पाता है। पुराने किसान बताते हैं कि कभी नदियां खतरे के निशान से भी ऊपर बहा करती थीं जबकि अब पानी के लिए तरसना पड़ता है। ढाढर नदी के किसान अर्जुन सिंह, नन्दलाल महतो, रंजन कुशवाहा समेत तिलैया नदी के किनारे के किसान पंकज सिंह, सुधीर सिंह, मिथिलेश कुमार के अलावा सकरी नदी के किनारे के किसान तनिक सिंह, पंकज मिश्रा, शंकर राम आदि कहते हैं कि नदियों का अस्तित्व ही समाप्ति के कगार पर है। बारिश न हों तो यह सारी नदियां किसी काम की नहीं रह जाती हैं। खुरी समेत कई नदियों का अस्तित्व ही समाप्ति पर खुरी नदी का अस्तित्व समाप्ति की कगार पर है। नगर के मध्य से गुजरने वाली खुरी नदी का लगभग 60 फीसदी क्षेत्र अब कब्जा लिया गया है। पुराने जानकारों व रिकॉर्ड के अनुसार, खुरी नदी का बुधौल से लेकर शहरी क्षेत्र, गोंदापुर और मिर्जापुर के निकटस्थ क्षेत्रों का रकबा 222.175 एकड़ था। इसमें से 133.305 एकड़ पर कब्जा हो गया। ले-दे कर अब नदी का महज 40 फीसदी भाग यानी 88.87 एकड़ ही नदी क्षेत्र बचा है। कई स्थानों पर तो इसके पाट महज 35-40 फीट ही बचे हैं, जो इसे नाला का रूप देने लगा है। ऐसी स्थिति में पटवन के लिए इस नदी का उपयोग कर पाना किसानों के लिए सपना जैसा हो गया है। पशुपालन पर पड़ रहा है बुरा प्रभाव वर्तमान स्थिति सिर्फ आम लोगों ही नहीं वरन पशुओं के लिए भी भारी संकटपूर्ण हो चुका है। बल्कि पशुपालकों को सबसे अधिक संकट झेलने की नौबत है। सामान्य आदमी दिन भर में तीन से पांच लीटर पानी पीकर भी अपना काम चला लेता है लेकिन पशु एक बार में 20 से 30 लीटर तक पानी पी जाते हैं। उन्हें चारा खिलाने में भी 10 से 15 लीटर पानी की जरूरत पड़ती है। इन बुरे हालातों में जिले के पशुपालकों के समक्ष अपने पशु बेचने तक की नौबत आ गयी है। कौआकोल प्रखंड के दर्जनों पशुपालक तो अपने पशुओं को लेकर गर्मी की शुरुआत के साथ ही टाल क्षेत्र के लिए निकल चुके हैं। इधर, यहां की नदियां अत्यधिक अतिक्रमण और गंदगी के कारण भी बुरी तरह से प्रभावित हो रही हैं, जिस कारण पर्यावरण असंतुलन का भी शिकार आम लोगों को होना पड़ रहा है। पर्यावरण पर बुरे असर से अस्तित्व का संघर्ष झेल रहीं नदियां जिले भर की नदियों का जारी अतिक्रमण और गलत तरीके से बालू उठाव एक अलग ही समस्या है। पंचनदी वाले नवादा की सभी नदियों में सालों पुराने गाद, घास, झाड़ी और अवैध बालू खनन से बने बड़े-बड़े गड्ढे ही शेष हैं। प्रमुख नदियों के अलावा नाटी और बघेल जैसी उपनदियां भी बुरे हाल में हैं। इन नदियों से सैकड़ों पईन और नाले भी निकाले गए हैं। लेकिन धरती बूंद-बूंद पानी के लिए तरस रही है। कौआकोल, रोह और पकरीबरावां के लिए बेहद महत्वपूर्ण नाटी उपनदी अपने अस्तित्व का संघर्ष झेल रही है। महुलियाटांड़ और मडुहर के जंगलों से निकलने वाली नदी कौआकोल के बलवा-कोनिया पर आते-आते मात्र 15-20 फीट की नाली बनकर रह गई है। धनार्जय नदी से सिरदला, नरहट, हिसुआ, नवादा और नारदीगंज के करीब 150 गांवों में फसलों की सिंचाई होती थी लेकिन अब यह पुरानी बात हो गई है। इन उपनदियों में साल भर में मुश्किल से एक-डेढ़ माह ही पानी रहती है। अब तो भाग्यवश ही इन नदियों में पानी आ पाता है। कुल मिलाकर नदियों का हाल बुरा है और इस पर निर्भर जिले के लोगों की स्थिति और भी बुरी होती जा रही है।

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