NEET UG : बिजली जाने से परफॉर्म नहीं कर सके, कोर्ट में नीट रीएग्जाम की याचिका खारिज; रिजल्ट का रास्ता साफ
मद्रास हाईकोर्ट ने नीट यूजी परिणाम पर रोक लगाने की मांग वाली याचिकाएं खारिज की। इसमे बिजली गुल को आधार बना कर दोबारा परीक्षा कराने की मांग की थी।

मद्रास उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को नीट (यूजी) 2025 परीक्षा का परिणाम घोषित करने पर रोक लगाने की मांग वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया जिससे अब राष्ट्रीय परीक्षा एजेंसी (एनटीए) द्वारा परीक्षा परिणाम जारी करने का रास्ता साफ हो गया है। इन याचिकाओं में, साई प्रिया एस और 15 अन्य विद्यार्थियों ने मांग की थी कि चेन्नई के चार परीक्षा केंद्रों पर बिजली गुल होने के कारण जिन छात्रों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, उनके लिए पुनः परीक्षा कराई जाए और तब तक परिणाम घोषित न किए जाएं।
हालांकि, न्यायमूर्ति सी कुमारप्पन ने याचिकाएं खारिज करते हुए कहा, "इन मामलों में मुझे प्रतिवादियों (एनटीए आदि) की ओर से कोई दुर्भावना नजर नहीं आती है। इसके अलावा, पूरे भारत में करीब 22 लाख छात्रों ने नीट (यूजी) 2025 परीक्षा में भाग लिया है।"
उन्होंने कहा, "ऐसे परिदृश्य में यदि इन आधारों पर पुनः परीक्षा की अनुमति दी जाती है, तो यह बीस लाख से अधिक उम्मीदवारों के लिए समान अवसरों के सिद्धांत को गंभीर रूप से प्रभावित करेगा। अतः अदालत को इन याचिकाओं में कोई ठोस आधार नहीं दिखता है।"
एक अंतरिम आदेश में, एक अवकाशकालीन न्यायधीश ने 17 मई को एनटीए को चार परीक्षा केंद्रों पर बिजली गुल होने के कारण छात्रों के एक समूह को हुई कथित परेशानी के कारण नीट-2025 के परिणाम जारी करने से अस्थायी रुप से रोक दिया था।
न्यायमूर्ति कुमारप्पन ने अपने आदेश में कहा, "याचिकाकर्ताओं का मुख्य तर्क यह था कि बिजली गुल होने के कारण परीक्षा केंद्रों में रोशनी पर्याप्त नहीं थी जिससे अभ्यर्थियों की एकाग्रता व प्रदर्शन प्रभावित हुआ।"
उन्होंने कहा कि यह स्पष्ट है कि बिजली की समस्या अचानक वर्षा और तूफान के कारण हुई थी।
न्यायमूर्ति ने कहा कि अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल द्वारा प्रस्तुत यह दलील उचित है कि परीक्षा दिन के समय दोपहर दो बजे से पांच बजे के बीच आयोजित की गई थी, जब प्राकृतिक रोशनी पर्याप्त होती है। न्यायमूर्ति ने यह भी कहा, "जब प्राधिकरण (एनटीए) ने स्थल सत्यापन और वैज्ञानिक प्रक्रिया के बाद यह निष्कर्ष निकाला कि पुनः परीक्षा की कोई आवश्यकता नहीं है तो इसे स्वीकार किया जाना चाहिए, जब तक कि रिपोर्ट में किसी प्रकार की दुर्भावना न हो।"