Rickshaw Drivers in Siwan Face Economic Struggles Amid Rising Competition and Costs बोले सीवान: रिक्शा चालकों के स्वास्थ्य जांच के लिए लगे शिविर, Patna Hindi News - Hindustan
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बोले सीवान: रिक्शा चालकों के स्वास्थ्य जांच के लिए लगे शिविर

सीवान शहर के रिक्शा चालकों को आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। बढ़ती महंगाई और ऑटो तथा ई-रिक्शा की प्रतिस्पर्धा के कारण उनकी आय में कमी आई है। स्वास्थ्य समस्याएँ और पुलिस द्वारा जुर्माना भी...

Newswrap हिन्दुस्तान, पटनाThu, 20 Feb 2025 10:28 PM
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बोले सीवान: रिक्शा चालकों के स्वास्थ्य जांच के लिए लगे शिविर

सीवान शहर में रिक्शा चालक अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में कई समस्याओं का सामना कर रहे हैं। सबसे बड़ी समस्या उनकी आय से जुड़ी है। बढ़ती महंगाई के कारण उनका दैनिक खर्च बढ़ गया है, लेकिन किराए की दरें उतनी नहीं बढ़ी हैं, जिससे उनकी आमदनी पर असर पड़ता है। कई बार वे ट्रैफिक पुलिस और नगर निगम के अधिकारियों की सख्ती का भी शिकार होते हैं। स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों से भी वे जूझते हैं। वे चाहते हैंकि नियमित तौर पर उनके लिए स्वास्थ्य शिविर लगे। शहर में बढ़ती भीड़ व ट्रैफिक के कारण हमें सवारी ढूंढने में काफी दिक्कत होती है। ऑटो, ई रिक्शा और कैब जैसी सर्विस से समय लग जाता प्रतिस्पर्धा करना रिक्शा चालकों के लिए बहुत बड़ी चुनौती है। ऑटो और ई रिक्शा के कारण हमारी कमाई बहुत घट गई है। अक्सर पुलिस वाले छोटी-छोटी बातों पर चालान या जुर्माना काट देते हैं, जिसमें कमाई का बड़ा हिस्सा चला जाता है। रिक्शा चालक भोला मांझी कहते हैं-हर सवारी डिजिटल भुगतान करना चाहता है, लेकिन हमारे पास वो सुविधा अनपढ़ रिक्शा चालकों के पास नहीं होती। टूटी-फूटी सड़कों पर रिक्शा चलाने में दिक्कत होती है, जिससे रिक्शा भी जल्दी खराब हो जाता है।

लोग हमें इज्जत से नहीं देखते और हमारे साथ दुर्व्यवहार करते हैं। आज कल सवारी भी रिक्शा से जाना पसंद नहीं करता है क्योंकि उतना ही भाड़े में ई रिक्शा वाले उनके गंतव्य तक पहुंचा देते हैं। अब सवारी केवल वैसे ही जगह का मिलता है जहां ऑटो या ई रिक्शा नहीं जाता हो। यही कारण है कि शहर में रिक्शा चालकों की संख्या तेजी से कम हुई है। अब रिक्शा चालक दूसरे प्रकार के काम करने लगे हैं। कई चालको का कहना है कि जिस भी रिक्शा चालक के पास पैसे थे, उसने अपना व्यवसाय बदल लिया है। अब शहर में वही रिक्शा चला रहे हैं जिनकी आर्थिक स्थिति अत्यंत दयनीय हैं और उनके पास दूसरे व्यवसाय करने के लिए पर्याप्त पैसा नहीं है। ऐसे ही चलता रहा तो शहर से रिक्शा जल्द ही विलुप्त हो जाएगा। बताया कि पुलिस प्रशासन वाले पहले बात-बात पर चालान या जुर्माना काट देते था लेकिन वर्तमान में रिक्शा चालकों से जुर्माना या चालान वसूलने में थोड़ी दया दिखा रहे हैं। वर्तमान समय में सबसे ज्यादा परेशानी सवारी को लेकर है। अधिकतर सवारी ऑटो या ई रिक्शा से जाना पसंद करते हैं क्योंकि इसमें समय की बचत है।

ऑटो और ई-रिक्शा से प्रतिस्पर्धा के बीच रिक्शा चालक सवारी भाड़ा बहुत कम कर र दिया है फिर भी सवारी नहीं मिलती है। रिक्शा चालक कहते हैं कि आज शहर के अधिकांश प्रमुख सड़कों की स्थिति पहले से बेहतर है लेकिन पतली गली में ढलाई वाली सड़क है। इसमें कदम कदम पर स्पीड ब्रेकर बनाई गई है, ऐसे रोड में रिक्शा चलाना बहुत मुश्किल होता है। नगर प्रशासन को सड़कों पर ज्यादा संख्या में बनाये गये स्पीड ब्रेकर के ऊपर ध्यान देना चाहिए ताकि यातायात बिना किसी अवरोध के सुचारू रूप से चल सके। उतीम मांझी बताते हैं कि रिक्शा चालक भी समाज से थोड़ा सम्मान और गरिमा की उम्मीद करते हैं जो नहीं मिलता है। कितने ही रिक्शा चालकों की उम्र 50 से ज्यादा है और उनके भी बड़े-बड़े बेटे और बेटी है, वे भी चाहते हैं कि सवारी सम्मान जनक बात करे। ये समस्याएं शहर के रिक्शा चालकों के जीवन को प्रभावित करती हैं और उनके लिए बेहतर नीतियों, प्रशिक्षण, और समर्थन की आवश्यकता को रेखांकित करती हैं।

सीवान जंक्शन पर रिक्शा चालक ने बताया कि बदलते समय के साथ हम लोग अपने को नहीं बदल पाए, जिसका नतीजा हम लोग भुगत रहे हैं। आज भी शहर में सैकड़ों की संख्या में रिक्शा चालक है, जिनकी आर्थिक स्थिति अत्यंत दयनीय है। आज के जमाने के लड़के और लड़कियां पर्स में पैसा लेकर नहीं चलते। उसकी जगह पर डिजिटल भुगतान यूपीआई के रूप में करना चाहते हैं। रिक्शा चालकों के लिए एक नई प्रकार की समस्या है। सभी को सरकार से आर्थिक मदद के रूप में सामाजिक सुरक्षा चाहिए। (प्रस्तुति : अभिषेक उपाध्याय )

हमारी भी सुनिए

बेरोजगार होने लगे हैं रिक्शा चालक

रिक्शा चलाने वाले अब बेरोजगार हो चले हैं , जिसको सरकार से सामाजिक सहायता की उम्मीद है। किसी समय में रिक्शा चालकों ने समाज की बहुत सेवा की है लेकिन आज उनकी स्थिति अत्यंत दयनीय है, जिस पर सरकार को विचार करना चाहिए। शहर के रिक्शा चालकों की समस्याएं आमतौर पर उनकी आर्थिक स्थिति और सामाजिक परिस्थितियों से संबंधित है। रिक्शा बनाने वाले भरत प्रसाद जी कहते हैं कि कभी रिक्शा शहर के शान हुआ करता था, हमारी दुकान पर प्रतिदिन 10 से 12 मजदूर रिक्शा निर्माण का कार्य करते थे। लेकिन आज हालात उसकी विपरीत हैं। दुकान बंद होने के कगार पर है। अब दुकान पर सिर्फ इक्का दुक्का रिक्शा मरम्मत के लिए आते हैं जिससे परिवार का पेट पालना मुश्किल हो गया है। दस साल पहले सड़क पर रिक्शा का जाम लगा रहता था, जहां भी जाओ रिक्शा मिल ही जाता था।

बोले जिम्मेदार

रिक्शा चालकों के लिए अलग से कोई योजना नहीं है। लेकिन वे शहर में एक तरह से रिक्शा चलाकर ही मजदूरी करते हैं तो सुरक्षा को देखते हुए बीमा योजना की सुविधा दी जा रही है। इसमें दुर्घटना होने पर य्2लाख की सहायता राशि एवं समान मृत्यु पर य्50 हजार सहायता राशि देने का प्रावधान है। इसके लिए मजदूर कारीगर एवं ्त्रिरयों को विभाग में अपना पंजीकरण करना होगा साथी आवेदन करना होगा। इनके लिए शेड आदि बनवाने के लिए भी नगर परिषद की ओर से पहल हमेशा की जाती है। अभी इनके लिए सीवान जंक्शन पर पड़ाव है।

-संजय कुमार, श्रम अधीक्षक

सुझाव

1. आसान और कम ब्याज पर ऋण योजनाओं की व्यवस्था की जाए ताकि हम ई रिक्शा खरीद सकें। कोई दूसरा व्यवसाय करने के लिए सब्सिडी या आर्थिक सहायता प्रदान की जाए।

2. रिक्शा चालकों को एप और डिजिटल बुकिंग प्लेटफॉर्म से जोड़ा जाए। ग्राहकों के साथ बेहतर संवाद और व्यवसाय बढ़ाने के लिए मदद हो। डिजिटल भुगतान प्रणाली के बारे में प्रशिक्षण दिया जाए।

3. सरकारी योजनाओं और लाभों से जोड़ने के लिए पहचान पत्र दिया जाए। हमारे काम को समाज में सम्मानजनक बनाया जाए।

4. रिक्शा चालकों को लाइसेंस प्राप्त करने की प्रक्रिया सरल बनाई जाए। हमारी सुरक्षा और शोषण से बचाव के लिए सख्त कानून लागू जाए। शहरी में रिक्शा पड़ाव बनना चाहिए।

शिकायतें

1. समाज में रिक्शा चालकों के प्रति सम्मानजनक दृष्टिकोणा अभाव। हमारी समस्याओं को अक्सर अनदेखा किया जाना।

2. डिजिटल भुगतान और एप के कारण पारंपरिक रिक्शा चालकों को कमसवारी मिल रही है। नई तकनीक सीखने में दिक्कत हो रही है।

3 . खराब मौसम में काम करने की मजबूरी है। क्षमता से अधिक काम करना पड़ता है। इससे स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं होती है। दुर्घटनाओं के दौरान चिकित्सा रिक्शा चालकों के लिए सरकार द्वारा सामाजिक सुरक्षा और आर्थिक सहायता नहीं मिलना। ट्रैफिक नियमों के पालन के लिए पर्याप्त मार्गदर्शन और स्थानों की कमी। छोटी सी गलती पर भी जुर्माना वसूला जाता है।

5. रिक्शा चालकों को लाइसेंस प्राप्त करने की प्रक्रिया सरल नहीं होने से परेशानी होती है। हमारी सुरक्षा और शोषण से बचाव के लिए सख्त कानून लागू किया जाए। शहरी में रिक्शा पड़ाव बनना चाहिए।

उभरा दर्द

जिसके पास आर्थिक संसाधन थे वे ई-रिक्शा खरीद लिए और आज अच्छा कमाई कर रहे हैं। परंतु मेरे पास इतने पैसे नहीं कि ई रिक्शा खरीद सकूं, मजबूरन आज भी मुझे रिक्शा ही चलाना पड़ता है। - अर्जुन गुप्ता

पहले से सैकड़ों के संख्या में रिक्शा चालक अपना रिक्शा रात में खड़ा करते थे। आज मुश्किल से 50 से 60 रिक्शा चालक ही अपना रिक्शा रात में खड़ा करते हैं। कभी तो पार्किंग शुल्क भी नहीं दे पाते हैं।- मो. रफीक खान

आज कल कमाई इतनी कम हो गई है कि किसी दिन घर मायूस होकर भी जाना पड़ता है। परिवार का खर्च पूरा करना मुश्किल हो गया है, किसी के बीमार पड़ने पर कर्ज ही लेकर इलाज करना पड़ता है। - वागेश्वर पासवान

रिक्शा की नियमित मरम्मत और रखरखाव पर अधिक खर्च होता है। यदि रिक्शा खराब हो जाए, तो कई दिनों तक उनकी आमदनी रुक जाती है। तबीयत खराब होने पर भी दवा खा कर रिक्शा चलाना पड़ता है। - जगन्नाथ साह

मैं घर में अकेला कमाने वाला हूं। पहले पूरे परिवार का खर्च आसानी से भरपाई हो जाता था परंतु ई रिक्शा आने के बाद कमाई अचानक से घट गई। आज 100 से 200 रूपया कमाना मुश्किल हो गया है। -राजकुमार राम

हम सरक हम बिहार सरकार से कि हमारे जैसे रिक्शा चालको के लिए कुछ आर्थिक मदद के रूप में सामाजिक सहायता प्रदान किया जाए। ताकि इस उम्र में रिक्शा न चलाना पड़े।- मोहन राम

डिजिटल भुगतान के बढ़ते चलन के कारण हमें तकनीकी ज्ञान की कमी महसूस होती है। आज कल अधिकतर सवारी डिजिटल भुगतान यूपीआई के माध्यम से करना बाहते हैं। ऐसे सवारी को हमे छोड़ना पड़ता है। - देव नारायण

अब हमारी मजबूरी यह करा रही है। अब उम्र ज्यादा ने का मन नहीं करता परंतु बेटा और बेटी के पढ़ाई के खर्च के लिए कमाना पड़ता है। रिक्शा चलाने वाले प्रतिदिन कमाओ और खाओ होते है, उनके घास बचत नहीं होता है। - बलजीत प्रसाद

रिक्शा चलाने में शारीरिक परिश्रम बहुत ज्यादा है और कमाई बहुत ही कम। रात में बिस्तर पर जाने के बाद ऐसी नींद आती है की पता ही नहीं चलता कब सुबह हो गई। - कमालुद्दीन मियां

सीवान जंक्शन के अगल-बगल कहीं रिक्शा पार्क करने पर पुलिस वाले हड़काने और धमकाने लगते हैं। बोलते हैं कि रिक्शा इधर से हटाओ, फिर सवारी के लिए लोग किधर जाएं।

- ददन साह

मुझे दूसरा कोई काम आता नहीं है। कोई कामनहीं आने के कारण रिक्शा चलाने को मजबूर हूं। दिहाड़ी मजदूरी में प्रतिदिन कम से कम 400 रुपए तो मिल ही जाएंगे। - खादर साह

दिनभर रिक्शा खींचने से मेरा पीठ: और घुटनों में रहने लगा में दर्द है। मजबूरी में इसी हालत में दवाई खाकर रिक्शा चलाना पड़ता है क्योंकि घर का खर्च चलना होता है।- अर्जुन मांझी

ठंड, बारिश, और गर्मी में बिना आराम किए काम करना पड़ता है, जिससे सेहत खराब हो जाती है। हमें स्वास्थ्य बीमा या चिकित्सा सहायता की सुविधा नहीं मिलती। हमारी कमाई इतनी नहीं है। - विश्वनाथ यादव

सवारी कई बार किराया देने से इनकार कर देते हैं और बहस करने लगते हैं, मजबूरी में कम सवारी में भाड़ा लेना पड़ता है। दिनभर मेहनत के बावजूद इतनी कमाई नहीं होती कि परिवार का खर्चा पूरा कर सकूं। -पहाड़ी महतो

लाइसेंस: और परमिट बनवाने में बहुत परेशानियां होती हैं। पुलिस वाले बिना वजह रोककर जुर्माना लगा देते हैं। सड़क पर काम करते हुए हमें कई बार पुलिस प्रशासन से शोषण का शिकार होना पड़ता है। -रामाशंकर

कुछ दिन पहले शहर में आता था परंतु आज हालात उसकी विपरीत हैं। रिक्शा शहर से विलुप्त होने वाला है क्योंकि दिन की कमाई इतनी कम हो गई है कि परिवार चलाना

मुश्किल है। - शेषनाथ साह

17. हमारी मेहनत की कोई इज्जत नहीं करता, लोग हमें छोटा समझते हैं। कई बार सवारी अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल करते हैं। हमारी समस्याओं को कोई गंभीरता से नहीं लेता। -वसंत पटेल

सड़कें खराब होने से रिक्शा जल्दी टूट जाता है, मरम्मत में ज्यादा खर्च हो जाता है। शहर की गलियों में जहां ढलाई वाले रास्ते हैं वहां कदम-कदम पर स्पीड ब्रेकर बनाया गया है जो सुगम यातायात में समस्या है। - मिर्जा राम

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