प्रशांत किशोर बोल रहे, मोदी कहें तो भी नीतीश को नहीं चुनना; भाजपा के वोटर टूटे तो फायदा किसका?
सिताब दियारा से 15 दिन पहले यात्रा पर निकले प्रशांत किशोर हर सभा में लोगों से कह रहे हैं कि बिहार में बदलाव जरूरी है, नीतीश कुमार को हटाना जरूरी है, पीएम नरेंद्र मोदी कहें तो भी उनको वोट नहीं देना है। लेकिन भाजपा के वोट पर चोट से फायदा किसे होगा?

जन सुराज पार्टी के सूत्रधार प्रशांत किशोर सिताब दियारा से शुरू हई बिहार बदलाव यात्रा लेकर 15 दिनों में लगभग 20 विधानसभा घूम चुके हैं। 30 से ज्यादा बड़ी और 50 से ऊपर छोटी सभाएं कर चुके हैं। सारण, सिवान और गोपालगंज के अलावा वैशाली, मुजफ्फरपुर और मोतिहारी में भी कदम रख चुके हैं। लगभग 20-25 मिनट का भाषण करते हैं। हर भाषण का खाका एक जैसा है। दुर्दशा क्यों है, वोट जिस मुद्दे पर दिया वो हुआ, लालू नौंवी फेल बेटे की भी सोचते हैं, आपको अपने बच्चों का 15 इंच का सीना नहीं दिखता लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का 56 इंच दिखता है। बिहार में बदलाव जरूरी है, सीएम नीतीश कुमार को हटाना जरूरी है। मोदी कहें तो भी नीतीश को नहीं चुनना है।
पीके के नाम से मशहूर चुनाव रणनीतिकार से राजनेता बन चुके प्रशांत किशोर की यह यात्रा 243 सीटों तक जाएगी। हर विधानसभा में एक बड़ी और दो छोटी सभा उनकी योजना में शामिल है। ये माना जा रहा है कि चुनाव की घोषणा के कुछ दिन पहले ही उनकी यह यात्रा समाप्त होगी। जमीन से लेकर सोशल मीडिया तक उनकी बातें चल रही हैं लेकिन वो खुद को मुख्यमंत्री का कैंडिडेट भी नहीं बताते। कहते हैं कि सीएम बनना छोटा सपना है। उनका सपना बड़ा है। वो अपने जीवनकाल में वो दिन देखना चाहते हैं जब महाराष्ट्र, गुजरात, पंजाब से लोग काम करने बिहार आएं।
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जन सुराज पार्टी को कितना वोट मिलेगा, सीट कितनी मिलेगी, ये प्रशांत किशोर को भी नहीं पता है। वो कह रहे हैं कि बिहार में बदलाव होगा, ये तय है। नीतीश कुमार जाएंगे, ये तय है। जन सुराज की सरकार बनेगी, इसकी गारंटी नहीं है। प्रशांत किशोर जैसा अनुभवी चुनावी विशेषज्ञ अगर कह रहा है कि जन सुराज की सरकार पक्की नहीं है लेकिन नवंबर के बाद नीतीश सीएम नहीं रहेंगे तो इस बात को गहराई से देखने और समझने की जरूरत है। बिहार में नीतीश के हटने पर क्या-क्या संभावना बनती है, उन विकल्पों पर नजर डालने से पहले कुछ चुनावी नंबर को समझते हैं।
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2024 के लोकसभा चुनाव में नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के घटक भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी), जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू), लोक जनशक्ति पार्टी-रामविलास (एलजेपी-आर), हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) और राष्ट्रीय लोक मोर्चा (रालोमो) को बिहार की 40 में 30 सीट और 47.23 प्रतिशत वोट मिला है। तेजस्वी यादव के नेतृत्व वाले विपक्षी महागठबंधन में राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी), कांग्रेस, सीपीआई-माले, सीपीआई, सीपीएम और विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) को 40 में 9 सीट और 39.21 परसेंट वोट मिला है। पूर्णिया में निर्दलीय पप्पू यादव जीते और कांग्रेस में संभावना तलाश रहे हैं। दोनों गठबंधन के बीच 8 परसेंट वोट का अंतर है। ये बड़ा अंतर है, जिसे पाटने के लिए सीएम-इन-वेटिंग तेजस्वी परेशान हैं।
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लोकसभा चुनाव में 8 परसेंट का फासला था, लेकिन 2020 के विधानसभा चुनाव में दोनों अलायंस के बीच महज .03 फीसदी का गैप था। एनडीए ने 37.26 फीसदी वोट के साथ 125 सीटें जीती थीं। महागठबंधन को 37.23 फीसदी वोट के साथ 110 सीटें मिली थीं। तब चिराग पासवान की लोजपा अलग लड़ी थी और उसे 5.66 फीसदी वोट के साथ 1 सीट मिली थी। मुकेश सहनी की वीआईपी तब एनडीए के साथ थी, लेकिन उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा) मायावती की बहुजन समाज पार्टी (बसपा) और असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम के साथ गठबंधन में लड़ी थी। कुशवाहा की पार्टी सबसे ज्यादा 99 सीट लड़ी लेकिन एक ना जीत सकी। मायावती ने 1 जीती लेकिन विधायक जेडीयू में शामिल होकर मंत्री बन गया। ओवैसी के 5 विधायक जीते।
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अगर 2020 के चुनाव के हिसाब से चिराग पासवान और उपेंद्र कुशवाहा का वोट एनडीए के साथ जोड़ दें और मुकेश सहनी का वोट घटा दें तो 43.17 परसेंट वोट बनता है। मुकेश सहनी का वोट महागठबंधन में जोड़ें तो 38.75 परसेंट बनता है। ओवैसी से तेजस्वी की बात चल रही है, जिनके 5 विधायकों में 4 को राजद ने मिला लिया था। ओवैसी के भी वोट को जोड़ लें तो महागठबंधन के पास 2020 के हिसाब से 39.99 परेंसट वोट बनता है। लगभग 3 फीसदी वोट का गैप।
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2015 के चुनाव में जब नीतीश और लालू यादव लंबी जुदाई के बाद एक साथ आ गए थे, जब देश में नरेंद्र मोदी की लहर चल रही थी, तब बिहार में क्या हुआ था, ये भी देखना चाहिए। राजद, जदयू और कांग्रेस के महागठबंधन को 41.9 परसेंट वोट और 178 सीटें मिली थी। भाजपा, लोजपा, हम और रालोसपा के गठबंधन को 34.1 फीसदी वोट के साथ मात्र 58 सीटें मिली थीं। दोनों गठबंधन के बीच लगभग 8 परसेंट का गैप था। 6 वामपंथी दलों का अलायंस था, जिसमें सीपीआई-माले, सीपीआई और सीपीएम को 3.41 परसेंट वोट मिला। उसे महागठबंधन के साथ जोड़ दें तो 45.41 परसेंट वोट बनता है। दोनों का गैप बढ़कर 11 परसेंट हो जाता है।
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पिछला लोकसभा और दो विधानसभा चुनाव का ये नंबर ये स्पष्ट रूप से दिखाता है कि नीतीश का साथ जिसे मिला, उसका वोट शेयर बढ़ा, ज्यादा सीट और जीत मिली। थोड़ा-कम ज्यादा नोटा भी डेढ़ से दो परसेंट के बीच है। मोदी लहर के बावजूद 2015 में लालू और नीतीश जीते थे। उस जीत में प्रशांत किशोर रणनीतिकार के तौर पर महागठबंधन के साथ थे। आज वो कह रहे हैं कि नीतीश को हटाना है, लोगों से टाटा-गुडबाय नीतीश कहवा रहे हैं और कसम दिला रहे हैं कि मोदी आकर कहें तो भी नीतीश को नहीं चुनना है तो ये समझने की बात है कि उनकी बातों पर जितने भी लोगों ने अमल किया, वो किसका नुकसान करेंगे।
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नीतीश कुमार और उनकी पार्टी जेडीयू का कोर वोटर कुर्मी, कोइरी और अति पिछड़ा समाज रहा है। यह वोट प्रशांत किशोर या उनके साथ आ गए आरसीपी सिंह के कहने से कितना टूट पाएगा, ये एक सवाल है। नीतीश के कोर वोटर की नाराजगी की चिंता ही है कि भाजपा नीतीश की सेहत से जुड़े सवालों को नजरअंदाज करके उनके पीछे खड़ी है। लालू यादव के कोर वोटर यादव और मुसलमान माने जाते हैं। प्रशांत किशोर के साथ मुसलमान जुड़ रहे थे, लेकिन लोकसभा चुनाव के दौरान मोदी को 300 से ज्यादा सीट देने वाला उनका इंटरव्यू देखकर, उसकी रफ्तार घट गई है। मुसलमान वोट के दूसरे दावेदार ओवैसी महागठबंधन से हाथ मिलाने को उत्सुक हैं।
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बचे सवर्ण, दलित, वैश्य जैसे बड़े वोटर समूह जो वैचारिक या राजनीतिक वजह से भाजपा के साथ मजबूती से खड़े रहते हैं। एनडीए के साथ दलित वोट के जुड़ाव में चिराग पासवान और जीतनराम मांझी का प्रभाव भी है। ऐसे राजनीतिक समीकरण के बीच प्रशांत किशोर का वोटरों से यह कहना कि पीएम मोदी आकर कहें तो भी नीतीश को वोट नहीं देना, एक तरह से उन वोटों पर चोट है जो मोदी और भाजपा के हैं।
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मौजूदा गठबंधनों के लिहाज से देखें तो 2020 में 3 परसेंट और 2024 में 8 परसेंट का गैप ही दोनों पक्षों के बीच हार और जीत का कारण है। नोटा के लगभग 2 फीसदी वोट पर जन सुराज पार्टी की नजर है क्योंकि ये वो लोग हैं जो ना लालू को चाहते हैं, ना ही मोदी-नीतीश को या फिर उनके दल के कैंडिडेट को। प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी जितनी भी सीट और वोट लाएगी वो इस गैप को घटाकर लाएगी या बढ़ाकर, इसी में 2025 के चुनाव नतीजों का रहस्य छिपा है। किस गठबंधन का वोट कटने से यह गैप घटेगा और बढ़ेगा, ये एक खुला विश्लेषण है जो हर कोई कर सकता है व हर आदमी के विचार के साथ बदल सकता है।
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सीएम पद की रेस में तेजस्वी यादव लंबे समय से हैं। बीजेपी में नित्यानंद राय पहले से थे और अब सम्राट चौधरी भी जगह बना रहे हैं। लेकिन भाजपा में बिल्ली के भाग्य से छींका लगातार टूटता रहा है इसलिए कहा नहीं जा सकता कि कब कौन क्या बन जाए। किसी एक को बहुमत ना मिलने पर सीएम बनने की संभावना तलाशने के लिए चिराग पासवान भी सक्रिय हैं। प्रशांत किशोर भले कह रहे हों कि वो मुख्यमंत्री नहीं बनेंगे, लेकिन उनकी पार्टी का कोई समीकरण चुनाव के बाद बनता है तो उनके अलावा पार्टी में कोई ऐसा चेहरा नहीं है।