बोले सीवान : मिट्टी के बर्तनों के लिए बाजार और कारीगरों को प्रशिक्षण की दरकार
एक समय था जब मिट्टी के बर्तन बनाने वाले कुम्हारों की मांग बहुत थी। लेकिन अब डिजिटल युग में इनकी स्थिति दयनीय हो गई है। मिट्टी की कमी और बुनियादी सुविधाओं की कमी के कारण कई कुम्हार इस पेशे को छोड़ रहे...
एक समय था, जब हमारे पूर्वज मिट्टी के बर्तन पर निर्भर रहते थे। हर घरेलू उपकरण के लिए मिट्टी से बने बर्तन का प्रयोग करते थे। इससे उन्हें फायदा भी होता था। चिकित्सकों के अनुसार मिट्टी का बर्तन कई स्वास्थ्य लाभ प्रदान करता है। ये बर्तन भोजन के पोषक तत्वों को सुरक्षित रखते हैं। इसमें प्रचुर मात्रा में खनिज और पौष्टिक गुण होते हैं, जो भोजन का एक सरल और प्रामाणिक स्वाद भी देते हैं। जिससे उस समय मिट्टी के बर्तनों की अलग ही डिमांड होती थी। जिसके कारण मिट्टी के बर्तन बनाने वाले कुम्हारों की चाक दिन-रात चलते थे। कुम्हार मिट्टी से कई तरह की जरूरी व घरेलू बस्तुएं बनाते थे।
चाहे पानी शुद्ध रखने के लिए मटके की बात हो या पीने के लिए गिलास। खाना बनाने के लिए भगवना हो या चाय पीने के लिए चूक्कड़ की हो। यूं कहें पहले कुम्हार मिट्टी से ही अनेकों बस्तुएं बनाते थे। जिसका प्रयोग लोग बड़ी दिलचस्पी से करते थे। कारण कि ये बर्तन चिकित्सा पद्धती के लिए कारगर साबित होती थी। लेकिन, धीरे धीरे इस मिट्टी के बर्तन का स्थान दूसरे धातू और प्लास्टिक लेने लग गया है। डिजिटल युग में इस मिट्टी के बर्तन का अब कोई खास डिमांड नहीं रह गई है। कुम्हारों चाक की धार अब पहले जैसा नहीं रह गया है। आधुनिक युग में लोगों को मिट्टी के बर्तन की बजाय दूसरे उपकरणों के प्रति रूझान बढ़ गया है। जिससे इन कुम्हारों के खानदानी पेशे पर संकट मंडराने लगा है। धंधा मंदा होने के कारण इन कुम्हारों की दिन पर दिन स्थिति दयनीय होने लगी है। इन कुम्हारों को मिट्टी के बर्तन बनाने के लिए मिट्टी तक नहीं मिल रहे है। जिससे अधिकांश कुम्हार चाक चलना बंद कर दिए हैं। तो कई अभी भी अपने सांस्कृति को संयोजते हुए खानदानी पेशे को बचाए हुए है। लेकिन, इनके सामने एक-दो नहीं, बल्कि कई समस्याओं और चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। इन्हीं समस्याओं को लेकर जब आपके अखबार हिंदुस्तान टीम ने बोले सीवान मुहिम के तहत संवाद किया, तो इन कुम्हारों की पीड़ा छलक पड़ा। इस दौरान कुम्हार समुदाय के लोगों ने बताया कि इस डिजिटल और टेक्नलॉजी युग ने हमलोगों के धंधे को समाप्त करने के कगार पर ला दिया है। नहीं तो एक जमाना था, जब दिन तो दिन, रात में भी चाके चला चला कर मिट्टी के बर्तन बनाया जाता था। बाजार भी बहुत अच्छी थी। लोग च्वाईंस से मिट्टी के बर्तनाों की खरीदारी करते थे। चाहें पार्टी हो या शादी विवाह-बारात हो या अन्य कार्यक्रम। अधिकांश जगहों पर मिट्टी से तैयार बर्तनों का ही बोल बाला था। जिससे कारोबार काफी चरम पर होता था। इससे अच्छी आमदनी हो जाती थी। लेकिन, अब समय काफी बदल गया है। आज भी मिट्टी का बर्तन बनाने का धंधा किया जाता है। लेकिन, इस धंधे से इच्छाओं की पूर्ति करना तो दूर, पेट चलाना भी मुश्किल है। ये बताते है कि वर्तमान समय में कुम्हारों के पास सबसे बड़ी समस्या मिट्टी को लेकर है। बर्तन बनाने के लिए पर्याप्त मिट्टी उपलब्ध नहीं हो पा रहा है। किसी तरह मिट्टी खरीद कर धंधा किया जा रहा है। जिसमें काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे में सबसे पहले मांग है कि इस धंधे को बढ़ावा देने के लिए कुम्हारों को पर्याप्त मिट्टी उपलब्ध कराने का प्रावाधन किया जाए। ताकि मिट्टी के लिए परेशानियों का समाना नहीं करना पड़े। बुनियादी सुविधाओं से भी अछूत है कुम्हार डिजिटल युग में मिट्टी की बर्तन की जगह विभिन्न प्रकार की धातूओं से बने बर्तन और प्लास्टिक ने ले लिया है। कप, गिलास, मटका आदि मिट्टी के बजाय प्लास्टिक का हो गया है। जिससे कुम्हारों का धंधा काफी प्रभावित हुआ है। जिससे वर्तमान में कुम्हारों की स्थिति दिन पर दिन दयनीय होती जा रही है। बोले सीवान मुहिम के तहत आयोजित संवाद के दौरान कुम्हारों ने बताया कि हमलोगों की दुश्वारियां ऐसी है कि किसी से कह भी नहीं सकते। क्योंकि, हमलोगों के परेशानियों के सामाधन के लिए कोई आगे आने वाला नहीं है। एक तो पहले जैसा अब धंधा नहीं रह गया, तो दूसरी ओर अधिकांश बुनियादी सुविधाएं से भी अछुते हैं। जिससे काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। ये बताते है कि हम सभी कुम्हारों के धंधे को बढ़ावा देने के लिए कोई पहल नहीं किया जा रहा है, चाहे शाासन-प्रशासन हो या जनप्रतिनिधि या नेता। सभी चुनाव के दौरान अपनी-अपनी रोटी सेकने आते है और हवा-हवाई बाते कर चले जाते हैं। लेकिन, धरातल पर हमलोगों को धंधा के लिए कुछ नहीं किया जाता है। नए मॉडलर बर्तन बनने से पुश्तैनी धंधे मिट रहे अधिकांश कुम्हारों को रहने के लिए पक्के मकान नहीं है। राशन नहीं मिलता है। पेंशन से वंचित हैं। इसके लिए संबंधित कार्यालय का चक्कर लगाया जाता है। लेकिन, सुनने वाला कोई नहीं है। जिसकी पैरवी उसी की तूती बोलती है। इतना ही नहीं, अधिकांश कुम्हार अपने खानदानी पेशे को छोड़ दूसरे धंधा में लग गए हैं। कई इस धंधे को करते हुए दूसरे काम की तलाश कर रहे हैं। लेकिन, उन्हें उचित काम नहीं मिल रहा है। जिससे घर चलाने को लेकर काफी परेशानियां होती है। ऐसे मांग है कि मिट्टी के बर्तन बनाने वाले सभी कुम्हारों का प्राथिककता के आधार पर सरकारी योजनाएं और बुनियादी सुविधाएं मुहैया कराया जाए। इस धंधे को बढ़ावा देने की दिशा में नई पहल करने की जरूरत है। पर्याप्त मिट्टी उपलब्ध कराने सहित इसे बिक्री के लिए एक उचित मंडी की प्रावधान करने की दिशा में पहल करने की जरूरत है। ताकि पुरानी परम्परा और धंधे फिर से जीवंत हो सके। शिकायतें 1- मिट्टी के बर्तन बनाने वालों कुम्हारों के पास सबसे बड़ी समस्याएं मिट्टी की उपलब्धता को लेकर है। इन्हें बर्तन निर्माण के लिए मिट्टी नहीं मिल रही है। 2- मिट्टी के बर्तनों के लिए कोई मंडी नहीं है। जिससे इन मिट्टी के बर्तनों का कोई बाजार भाव नहीं है। बर्तनों को औन-पौने दामों में बेचना पड़ता है। 3- मिट्टी के बर्तनों को बढ़ावा देने की दिशा में अब तक कोई पहल नहीं किया गया है। जिससे यह धंधा विलुप्त होने के कगार पर है। 4- मिट्टी के बर्तन बनाने वाले अधिकांश कुम्हार बुनियादी सुविधाओं व योजनाओं से अछुते हैं। जिससे परेशानियों का सामना करना पड़ता है। 5- मिट्टी के बर्तन बनाने वाले कुम्हार को कभी भी प्रशिक्षण नहीं दिया गया है। जिससे उन्हें पुरानी ढर्रे पर काम करना पड़ता है। सुझाव 1- मिट्टी के बर्तन बनाने वाले कुम्हारों को मिट्टी उपलब्ध कराने की दिशा में एक सार्थक पहल व प्रावधान बनाया जाए। ताकि पर्याप्त मिट्टी उपलब्ध हो सके। 2- मिट्टी के बर्तनों के लिए मंडी की व्यवस्था करना चाहिए। ताकि मिट्टी के बर्तनों को औने-पौने दामों में बेचने को मजबूर नहीं होना पड़े। 3- मिट्टी के बर्तनों को बढ़ावा देने की दिशा में एक नई पहल किया जाए। ताकि यह धंधा विलुप्त न होकर नयी अवसर बन जाए। 4- प्राथमिकता के आधार पर कुम्हार को सरकारी योजनाएं और बुनियादी सुविधाए मुहैया कराई जाए। ताकि परेशानियां कम हो सके। 5- डिजिटल युग के मद्देनजर धंधे को बेहतर तरीके से क्रियान्वयन के लिए सभी कुम्हारों को प्रशिक्षण मिलना चाहिए। ताकि धंधे को नया आकार मिल सके। हमारी भी सुनिए 01. मिट्टी से कई तरह की बस्तुएं बनाई जाती है। लेकिन, बाजार भाव नहीं होने से उचित दाम नहीं मिलता है। औने पौने दामों में बर्तन बेचना पड़ता है। जिससे परेशानियां होती है। - रविंद्र पड़ित। 02. पहले की तरह अब मिट्टी के धंधा नहीं रह गया है। डिजिटल युग में अधिकांश लोगों का मिट्टी के बर्तन से रूझान कम हो गया है। जिससे यह धंधा काफी प्रभावित हो गया है। - खुश मोहम्मद। 03. इस धंधे में काफी मेहतन करने के बाद मिट्टी से बर्तन या अन्य बस्तुएं बनाई जाती है। लेकिन, इस धंधे में आमदनी इतनी कम हो गई कि इसे से परिवार चलाना मुश्किल हो जाता है। - राजेंद्र पड़ित। 04. पहले इस धंधे से पूरे परिवार की जरूरतें पुरा हो जाती थी। लेकिन, आज स्थिति ऐसी हो गई है इस धंधे से परिवार चलाना तो दूर एक आदमी का खर्चा तक मुनासिब नहीं हो पाता है। - सुकदेव साह, 05. मंहगाई के दौर में यह धंधा चौपट गया है। इस धंधे से अधिकांश लोग दूरी बनाने लगे है। इस धंधे के लिए सहायता या मदद करने वाला कोई नहीं है। जिससे परेशानी होती है। - मनीष पड़ित। 06. जो पुराने लोग हैं, वहीं इस धंधे को संयोजे हुए हैं। नहीं तो युवा पीढ़ी इस धंधे से दूरी बना ली है। कारण कि मिट्टी के बर्तन का कोई बाजार नहीं है और आमदनी नहीं रह गई है। - रवि भूषण। 07. एक तो धंधा प्रभावित हुआ है। दूसरी ओर हमलोगों को सहायता करने के लिए कोई आगे नहीं आता है। जिससे काफी परेशानियां होती है। किसी तरह इस धंधे से गुजर बसर करना पड़ता है। - लालबाबू पड़ित। 08. यह धंधा इस तरह से प्रभावित हैं कि अधिकांश कुम्हार भुखमरी के कगार पर हैं। उन्हें दूसरा काम भी नहीं मिलता है। ऐसे में मांग है कि प्रशासन सहित सामजिक लोग इस धंधे के बारे कुछ पहल करें। - पप्पू कुमार। 09. इस धंधे से परिवार तो दूर एक आदमी का पेट पालना भी मुश्किल है। इस धंधे को बढ़ावा देने के लिए एक नई पहल करने की जरूरत है। नहीं तो आने वाले दिनों में स्थिति और बदतर हो सकती है। - नागेंद्र पड़ित। 10. सभी कुम्हारों के पास सबसे बड़ी समस्या मिट्टी को लेकर है। बर्तन या अन्य बस्तुएं बनाने के लिए पर्याप्त मिट्टी नहीं मिलती है। जिससे काफी परेशानियां होती है। मिट्टी उपलब्ध कराने दिशा में पहल करना चाहिए। - सुनील प्रसाद 11. पहले जैसा अब धंधा नहीं रहा गया है। सभी कुम्हार मिट्टी के लिए तरस रहे है। जिससे इस धंधे से दूरी बनाने वाले कुम्हारों की संख्या बढ़ती जा रही है। इस पर ध्यान देने की जरूरत है। - अजीत प्रसाद। 12. इस धंधे को बढ़ावा देने की दिशा में पहल करने की जरूरत है। नहीं तो आने वाले दिनों में स्थिति और भी भयावह होने वाली है। सिर्फ एका-दुका कुम्हार ही इस धंधे से जूड़े दिख रहें हैं। - संजीत पड़ित। 13. डिजिटल युग में हमलोगों का धंधा तो मंदा है। साथ ही बुनियादी सुविधाओं से वंचित रखा जाता है। जिससे काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। - उपेंद्र पड़ित। 14. इस समय मिट्टी के कारोबार करने के लिए कई तरह टेक्नलॉजी और मशीने आ गई है। लेकिन, हमलोगों को कुछ भी साधन मुहैया नहीं कराया जाता है। जिससे परेशानियां होती है। - दिनेश पड़ित। 15- इस धंधे को बढावा देने के लिए नयी पहल करने की जरूरत है। प्रशासन सहित जनप्रतिधि से भी आग्रह है कि हमलोगों के धंधे को बढ़ावा देने पर बल दिया जाए। - एस कुमार। 16. किसी तरह इस धंधे से अपने परिवार का गुजर बसर किया जाता है। लेकिन, सरकारी योजनाएं या सुविधाएं मुहैया करने की दिशा में कोई ध्यान नहीं दिया जाता है। जिससे परेशानी होती है। - बाबूनन्द। 17.इस धंधे के बढ़ावा के लिए उचित मंडी का प्रावधान बनाना चाहिए। ताकि इस मिट्टी के वर्तन को उचित किमत मिले। अन्यथा आमदनी कम होने से घर चलना मुश्किल है। - अनिकेत कुमार। 18. मॉडल जमाने में भी इस धंधे को पूरानी ढर्रे पर किया जाता है। ऐसे में मांग है कि इस धंधे को बेहतर बनाने के लिए कम से कम छह माह में शासन प्रशासन को एक बार प्रशिक्षण देना चाहिए। - गोलू कुमार। 19. मिट्टी के बर्तनों से लोग दूरी बनाने लगे है। जिससे यह धंधा खत्म होने के कगार पर पहुंच गया है। इसलिए प्रशासन से आमजन मानस से भी आग्रह है कि इस धंधे को बढ़ावा देने पर विचार की जाए। - राम किशोर 12. अधिकांश कुम्हारों की स्थिति दयनीय है। इसलिए मांग है कि प्राथमिकता के आधार पर सभी कुम्हारों को सरकारी योजनाएं और बुनियादी सुविधाएं मुहैया करने की दिशा में पहल करना चाहिए। - रंजीत ठाकुर।
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