इजरायल-ईरान युद्ध भड़का तो भुगतेगा पूरा एशिया
शुक्रवार की सुबह इजरायली सेना ने जिस तरह ईरान के परमाणु कार्यक्रम से जुड़े ठिकानों को अपना निशाना बनाया और बैलिस्टिक मिसाइलों व हवाई सुरक्षा के केंद्रों पर हमले किए, उसके बाद तो यह तय था…

मेजर जनरल (रिटायर्ड) एवं प्रोफेसर
शुक्रवार की सुबह इजरायली सेना ने जिस तरह ईरान के परमाणु कार्यक्रम से जुड़े ठिकानों को अपना निशाना बनाया और बैलिस्टिक मिसाइलों व हवाई सुरक्षा के केंद्रों पर हमले किए, उसके बाद तो यह तय था कि ईरान की तरफ से भी जवाबी हमले होंगे और रात ढलते-ढलते ईरान ने तेल अवीव पर बैलिस्टिक मिसाइलों की बौछारें कर दीं। हालांकि, ज्यादातर हमलों को इजरायली सुरक्षा तंत्र ने नाकाम कर दिया, मगर कई मिसाइलें अपने लक्ष्य पर गिरीं, जिनसे शुरुआती रिपोर्ट के मुताबिक तीन की मौत और 90 से ज्यादा लोगों के घायल होने की सूचना है।
सवाल उठता है कि हमले की यह नौबत आई ही क्यों? दरअसल, अमेरिका और इजरायल को यह यकीन हो चला था कि ईरान परमाणु बम बनाने के करीब पहुंचता जा रहा है और उसके पास जितनी सामग्री है, उसे देखते हुए वह कुछ ही दिनों में कम से कम 15 बम बना सकता है। इजरायल काफी लंबे समय से ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर पैनी नजर रखता आ रहा है, क्योंकि वह जानता है कि यदि एक बार तेहरान के हाथ यह जन-संहारक हथियार लग गया, तो उसके अस्तित्व के लिए गंभीर खतरा पैदा हो जाएगा। प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू कई बार इस चुनौती का सार्वजनिक इजहार कर चुके हैं। इजरायल की यह पुरानी रणनीति है कि खतरा महसूस हो, तो दुश्मन को मजबूत होने से पहले ही नख-दंतहीन कर दिया जाए।
वैसे भी, हरेक सैन्य कार्रवाई के दो लक्ष्य होते हैं- सैन्य और राजनीतिक। इजरायल के हमले का लक्ष्य था- ईरान की परमाणु क्षमता को खत्म करना और अपने इस उद्देश्य में वह काफी हद तक कामयाब हो गया है। खुद ईरान के प्रवक्ता ने फोर्डो परमाणु केंद्र के नुकसान की बात मानी है। अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आईएईए) के निदेशक राफेल ग्रोसी ने भी पुष्टि की है कि तेहरान ने उन्हें फोर्डो के अलावा नतांज और एसफहान परमाणु केंद्रों के आस-पास भी हमले की सूचना दी है। इससे स्पष्ट हो जाता है कि ईरान के परमाणु कार्यक्रम को गहरा नुकसान पहुंचा है। शनिवार दिन भर ईरानी ठिकानों पर इजरायली हमलों की सूचनाएं आती रहीं।
शनिवार दोपहर को इजरायल ने अपनी कार्रवाई में मारे गए ईरान के नौ परमाणु वैज्ञानिकों की बाकायदा सूची जारी की, तो वहीं तेहरान ने अपने दो शीर्ष सैन्य अधिकारियों के मारे जाने की बात मानी। उसने इजरायली हमलों में 100 से अधिक ईरानी नागरिकों के मारे जाने का भी आरोप जड़ा। जाहिर है, ऐसी सूचनाओं का अंतरराष्ट्रीय असर पड़ता है। चूंकि क्षेत्रीय व मजहबी राजनीति में अरब के कई देश ईरान के विरोधी रहे हैं, इसलिए तेहरान चाहेगा कि वह इन आंकड़ों के सहारे दुनिया के तमाम मुस्लिम देशों को अपने पक्ष में लामबंद कर सके। अब इस कोशिश में वह कितना कामयाब होगा, यह तो आने वाले दिनों में पता चलेगा, मगर अरब देश अभी तटस्थ रुख अपनाए हुए हैं। वे ईरान का समर्थन नहीं कर रहे, तो उसका विरोध भी नहीं कर रहे।
निस्संदेह, नेतन्याहू अच्छी तरह जानते हैं कि ईरान गाजा नहीं है और उसे धकेलना आसान नहीं होगा। लगभग नौ करोड़ की आबादी के साथ ईरान के पास 10 लाख की एक बड़ी फौज है। फिर उसकी अर्थव्यवस्था और कूटनीति को तेल भंडारों का बड़ा सहारा हासिल है। यही नहीं, उसके पास सेजिल और इमाद ऐसी मिसाइलें हैं, जो 2,500 किलोमीटर तक मार कर सकती हैं। इस दायरे में पूरा इजरायल आ जाता है। ईरान को तीन दुर्दांत आतंकी संगठनों हमास, हूती और हिज्बुल्ला का भी पूरा साथ हासिल है।
इसीलिए ईरान पर इजरायली हमले के बाद नेतन्याहू ने न सिर्फ दुनिया के मित्र शासनाध्यक्षों को फोन करके इस लक्षित कार्रवाई की जानकारी दी, बल्कि उन्होंने ईरान के लोगों से भी अपील की कि वे अपने तानाशाह निजाम को उखाड़ फेंकें, जो दशकों से उन्हें बंधक बनाए हुए है। इजरायली रक्षा मंत्री इजराइल काट्ज ने ईरान के सुप्रीम लीडर खामेनेई का नाम लेकर कहा है कि अब अगर ईरान ने इजरायली नागरिकों को निशाना बनाया, तो तेहरान के लोगों को इसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी। तेहरान जलेगा। तेल अवीव ने स्पष्ट कर दिया कि लक्ष्य हासिल करने तक वह चैन से नहीं बैठेगा।
साफ है, जो हालात दिख रहे हैं, उनमें इस टकराव के जल्दी थमने के आसार नहीं दिख रहे। ईरान ने पश्चिमी गठबंधन के देशों को चेतावनी दी है कि यदि कोई भी देश इजरायल पर ईरानी हमलों को विफल करने में शामिल हुआ, तो फारस की खाड़ी और लाल सागर में तैनात उसके नौसैनिक जहाज और इस क्षेत्र के उसके सारे ठिकाने ईरानी प्रतिक्रिया की जद में होंगे। आज से मस्कट में ईरान-अमेरिका परमाणु-वार्ता का छठा दौर शुरू होने वाला था, लेकिन तेहरान ने शनिवार को इस वार्ता को बेमानी बता दिया। बताने की जरूरत नहीं कि इस टकराव में इजरायल के पीछे अमेरिका है, तो ईरान के पीछे रूस और चीन खड़े हैं, यानी महाशक्तियों का छद्म युद्ध शुरू हो चुका है।
बहरहाल, दो देशों के बीच संघर्षों या युद्धों की सफलता अब बहुत हद तक वायु सेना की क्षमता पर निर्भर करती है। इस मोर्चे पर इजरायल ईरान से काफी मजबूत स्थिति में है, फिर उसे अमेरिकी सुरक्षा प्रणाली का भी भरपूर सहयोग
हासिल है। इसलिए एक-दूसरे पर जवाबी हमले का यह दौर यदि लंबा खिंचा, तो ईरान को अधिक दुश्वारियां पेश आएंगी। हमारे लिए चिंता की बात यह है कि ईरान के साथ हमारे सांस्कृतिक-ऊर्जा संबंध हैं, तो इजरायल हमारा भरोसेमंद साथी है, जिसके साथ हमारे कई रक्षा समझौते हैं, बल्कि दोनों देश आर्थिक सहयोग की कई परियोजनाओं पर साथ काम कर रहे हैं।
भारत ही नहीं, दुनिया का कोई भी शांतिकामी देश यही कामना करेगा कि इस टकराव का जल्द से जल्द अंत हो, खासकर एशिया की तरक्की के लिए यह बहुत जरूरी है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
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